राजस्थान के क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ(1872 - 1941)
केसरी सिंह बारहठ(1872 - 1941) शाहपुरा राजस्थान के सुप्रसिद्ध कवि व क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ का जन्म भूमि शाहपुरा व कर्मभूमि कोटा थे जिनका जन्म 21 नवंबर 1872 को शाहपुरा रियासत के देवपुरा गांव में हुआ उनके पिता का नाम कृष्ण सिंह बारहठ था उनकी माता के निधन पर उनके बाल्यावस्था में ही हो गया था इनकी प्रारंभिक शिक्षा उदयपुर उसने आरंभ हुई उनकी अंतिम दिनों में उन्हें वर्धा में सेठं जमनालाल बजाज ने बुलाया केसरी सिंह बारहठ के स्वाध्याय के लिए उनके पिता कृष्ण सिंह द्वारा प्रसिद्ध पुस्तकालय कृष्ण वाणी विलास उपलब्ध था राजनीति में वे इटली के राष्ट्रपिता मेैजिनी को अपना गुरु मानते थे मेैजिनी की जीवनी वीर सावरकर ने लंदन में पढ़ते हुए मराठी भाषा में लिखकर गुप्त रूप से लोकमान्य तिलक को भेजी थी क्योंकि उस समय मेैजिनी की जीवनी पुस्तक पर ब्रिटिश साम्राज्य ने पाबंदी लगा रखी थी केसरी सिंह बारहठ ने इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया था ! उस समय राजस्थान के अजमेर में मेयो कॉलेज में राजाओं और राजकुमारों के लिए अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू कर रखी थी जिसमें ढल कर अपनी प्रजा व देश से कटकर अलग थलग पड़ जाए इसलिए सन 1904 में नेशनल कॉलेज कोलकाता जिसके प्रिंसिपल अरविंद घोष थे अजमेर में भी क्षेत्रीय कॉलेज स्थापित करने की योजनाएं बनाई जिससे राष्ट्रीय शिक्षा का विकास हो सके !इस योजना में उनके साथ राजस्थान के कई प्रमुख बुद्धिजीवी साथी थे! केसरी सिंह बारहठ ने इस विस्तृत योजना को क्षात्र शिक्षा परिषद और छात्रावास आदि कायम कर मौलिक शिक्षा देने की योजना बनाई संन 1911- 1912 में क्षेत्रीय जाति की सेवा अपील निकाली शिक्षा के प्रचार के साथ ही वैज्ञानिक खोज का एक नया विषय केसरी सिंह जी ने सन 1903 में ही अक्षर स्वरुप री शोध का कार्य आरंभ किया ! 19वीं शताब्दी के प्रथम दशक में ही युवा केसरी सिंह का पक्का विश्वास इसी सिद्धांत पर था कि आजादी सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ही संभव है केसरी सिंह ने 1903 में वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा आहूत दिल्ली दरबार में शामिल होने से रोकने के लिए उदयपुर के महाराजा फतेह सिंह को संबोधित करते हुए चेतावनी रा चूंगट्या नामक 13 सोरठे लिखे जो उनकी अंग्रेजों के विरुद्ध भावना की शपथ अभिव्यक्ति थी! ब्रिटिश सरकार की गुप्त रिपोर्टों में राजपूताना में विप्लव फैलाने के लिए केसरी सिंह भारत व अर्जुन लाल सेठी को जिम्मेदार माना गया था ! इन्होंने राजस्थान के सभी वर्गों को क्रांतिकारी गतिविधियों से जोड़ने के लिए 1910 में वीर भारत सभा की स्थापना की राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का संचालन किया तथा स्वतंत्रता की आग में अपने संपूर्ण परिवार को झोंक दिया केसरी सिंह भारत ने अपने सहोदर जोरावर सिंह पुत्र प्रताप सिंह व जा माता ईश्वरदान आशिया को रासबिहारी बोस के सहायक मास्टर अमीर चंद की सेवा में क्रांति का व्यावहारिक अनुभव व प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेज दिया साधु प्यारेलाल हत्याकाण्ड केसरी सिंह बारहठ तथा विजय सिंह पथिक ने डॉक्टर गुरुदत्त लक्ष्मीनारायण, हीरालाल जालोरी और सोमदत्त लाॕहिडी को मिलाकर 1910 में वीर भारत सभा का गठन किया था क्रांतिकारियों को धन की आवश्यकता थी जोधपुर की धनिक साधू प्यारेलाल को योजना बनाकर कोटा लाया गया 25 जून 1912 को हीरालाल जालोरी सोमदत्त लाहिड़ी ने साधु की हत्या कर दी लेकिन धन नहीं मिला परिणाम स्वरुप केसरी सिंह बारहठ ,हीरालाल जालोरी, सोमदत्त लाॕहिडी, राम करण व हीरालाल जौहरी को साधु की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया मुकदमे के दौरान लक्ष्मीनारायण कायस्थ मुखबीर बन गया हीरालाल जालोरी सोमदत्त लाहिड़ी और रामकरण को 20- 20 वर्षों का कारावास दंड दिया गया साधू प्यारेलाल कांड के संदेह में केसरी सिंह को पकड़ लिया गया जहां से जेल सुप्रिडेंट की सिफारिश पर 5 वर्ष बाद रिहा कर दिया गया वे रिहा होकर कोटा पहुंचे केसरीसिंह पर ब्रिटिश सरकार ने प्यारेलाल नामक एक साधु की हत्या और अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ बगावत व केंद्रीय सरकार का तख्तापलट व सैनिकों की स्वामी भक्ति खंडित करने के षड्यंत्र रचने का संगीन आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया इनकी जांच के लिए मिस्टर आर्मस्ट्रांग आई पी आई जी इंदौर को सौंपी गई जिस ने 2 मार्च 1914 को शाहपुरा पहुंचकर शाहपुरा के राजा नाहर सिंह के सहयोग से केसरी सिंह को गिरफ्तार कर लिया इस मुकदमे में स्पेसल जज ने केसरी सिंह को 20 वर्ष की आजन्म सजा सुनाई और राजस्थान से दूर हजारीबाग केंद्रीय जेल बिहार भेज दिया गया जेल में उन्हें पहले चक्की पीसने का कार्य सौंपा गया जहां भी दाल व अनाज के दानों से क ख ग अक्षर बनाकर अनपढ़ केैदियों को अक्षर ज्ञान देते थे और अनाज के दानों से ही जमीन पर भारत का नक्शा बनाकर कैदियों को देश के प्रांतों का ज्ञान कराते थे केसरी सिंह का नाम उस समय कितना प्रसिद्ध था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में केसरी सिंह को जेल से छुड़ाने का प्रस्ताव पेश किया उन्होंने प्रताप सिंह के बरेली जेल में शहीद होने का समाचार मिला तो उन्होंने कहा कि भारत माता का पुत्र मुक्ति के लिए बलिदान हो गया केसरी जी का शेष जीवन कोटा में व्यतीत हुआ हजारीबाग जेल से छूटने के बाद अप्रैल 1920 में केसरी सिंह ने राजपूताना के एजेंट गवर्नर जनरल को एक पत्र लिखा जिसमें राजस्थान और भारत की रियासतों में उत्तरदाई शासन पद्धति कायम करने के लिए शुद्ध रूप से योजना पेश की इसमें राजस्थान महासभा का गठन का सुझाव था जिसमें दो सदन भूस्वामी प्रतिनिधिमंडल और द्वितीय सदन सार्वजनिक प्रतिनिधि परिषद का प्रस्ताव था सन 1920 -21 जमनालाल बजाज द्वारा आमंत्रित करने पर केसरी सिंह जी सपरिवार वर्धा चले गए जहां विजय सिंह पथिक जैसे जनसेवक पहले से ही मौजूद थे वर्धा में उनके नाम से राजस्थान केसरी साप्ताहिक शुरू किया गया जिसका संपादन विजय सिंह पथिक ने किया आज देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ होम कर देने वाले क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ ने 14 अगस्त 1941 को हरि ओम के उच्चारण के साथ अंतिम सांस ली उनके कुछ समय पूर्व में उनके सहोदर जोरावरसिंह अज्ञात अवस्था में शहीद हो चुके थे उन्होंने अपनी पुत्री चंद्रमणि को पत्र में ठीक ही लिखा था भारत के एक महत्वपूर्ण प्रदेश में जागृति का आरंभ कुटुम्ब की महान आहुतियों के साथ हुआ है इस राज सूय यज्ञ में हम लोगों की बलि मंगल रूप से हुई !स्वयं रासबिहारी बहुत वर्षों पहले कह चुके थे भारत में एकमात्र ठाकुर केसरी सिंह बारहठ ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने भारत माता की दास्तां की श्रृंखलाओं को काटने के लिए अपने समस्त परिवार को स्वतंत्रता के युद्ध में झोंक दिया यहाँ यह तथ्य उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि नगेंद्र बाला केसरी सिंह बारहठ की पोैत्री थी इन्होंने 1942 ईस्वी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया 1941- 45 तक किसान आंदोलनों में सक्रिय रही इन्हे राजस्थान की प्रथम महिला जिला प्रमुख बनने का गौरव प्राप्त है केसरी सिंह बारहठ के साहित्यक ग्रंथ केसरी सिंह बारहठ ने 1903 चेतावनी रा चूंगट्या लिखकर मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह में राष्ट्र की भावना जागृत की! प्रताप चरित्र, दुर्गादास चरित्र ,रूठी रानी, कुसुमांजलि आदि ग्रंथ लिखकर अपनी साहित्यिक रुचि का भी परिचय दिया इस प्रकार ठाकुर केसरी सिंह भारत में अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को न्योैछावर कर दिया
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