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महात्मा गांधी जीवन परिचय आन्दोलन पुस्तकें और आजादी में योगदान

 


महात्मा गांधी जीवन परिचय आन्दोलन पुस्तकें और आजादी में योगदान


महात्मा गांधी, जिन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के एक प्रमुख राजनैतिक और आध्यात्मिक नेता थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अहिंसक प्रतिरोध के प्रमुख नेता थे। 

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में जन्मे.

पिता करमचंद गांधी, राजकोट के दीवान थे।

13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी से विवाह हुआ। 

शिक्षा और दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष:

1888 में इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई की। 

1893 में दक्षिण अफ्रीका गए, जहां उन्होंने रंगभेद और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। 

दक्षिण अफ्रीका में 'सत्याग्रह' का प्रयोग किया, जो अहिंसक प्रतिरोध का एक रूप था। 

भारत में स्वतंत्रता आंदोलन:

1915 में भारत लौटे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 

असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे प्रमुख आंदोलनों का नेतृत्व किया। 

अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

उन्हें 'राष्ट्रपिता' के रूप में जाना जाता है। 

मृत्यु:

30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। 

विचारधारा और योगदान:

सत्य, अहिंसा, और स्वराज उनके प्रमुख सिद्धांत थे। 

अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में विश्वास रखते थे। 

समाज सुधारक के रूप में, उन्होंने छुआछूत, जातिवाद, और महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। 

उनके विचार और कार्य आज भी दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत हैं। 

महात्मा गांधी जीवन - क्रम (2 अक्तूबर, 1869 - 30 जनवरी, 1948)

1869

जन्म 2 अक्तूबर, पोरबन्दर, काठियावाड़ में - माता पुतलीबाई, पिता करमचन्द गांधी।

1876

परिवार राजकोट आ गया, प्राइमरी स्कूल में अध्ययन, कस्तूरबाई से सगाई।

1881

राजकोट हाईस्कूल में पढ़ाई।

1883

कस्तूरबाई से विवाह।

1885

63 वर्ष की आयु में पिता का निधन।

1887

मैट्रिक पास की, भावनगर के सामलदास काॅलेज में प्रवेष लिया, एक सत्र बाद छोड़ दिया।

1888

प्रथम पुत्र सन्तान का जन्म, सितम्बर में वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड रवाना।

1891

पढ़ाई पूरी कर देष लौटे, माता पुतलीबाई का निधन, बम्बई तथा राजकोट में वकालत आरम्भ की।

1893

भारतीय फर्म के लिये केस लड़ने दक्षिण अफ्रीका रवाना हुए। वहाँ उन्हें सभी प्रकार के रंग भेद का सामना करना पड़ा।

1894

रंगभेद का सामना, वहीं रहकर समाज कार्य तथा वकालत करने का फैसला - नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना की।

1896

छः महीने के लिये स्वदेष लौटै तथा पत्नी तथा दो पुत्रों को नेटाल ले गए।

1899

ब्रिटिष सेना के लिये बोअर युद्ध में भारतीय एम्बुलेन्स सेवा तैयार की।

1901

सपरिवार स्वदेष रवाना हुए तथा दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीयों को आष्वासन दिया कि वे जब भी आवष्यकता महसूस करेंगे वे वापस लौट आएंगे।

1901 – 1902

देष का दौरा किया, कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेषन में भाग लिया तथा बम्बई में वकालत का दफ्तर खोला।

1902

भारतीय समुदाय द्वारा बुलाए जाने पर दक्षिण अफ्रीका पुनः वापस लौटे।

1903

जोहान्सबर्ग में वकालत का दफ्तर खोला।

1904

‘इण्डियन ओपिनियन’ साप्ताहिक पत्र का प्रकाषन आरम्भ किया।

1906

‘जुलु विद्रोह’ के दौरान भारतीय एम्बुलेन्स सेवा तैयार की - आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। एषियाटिक आॅर्डिनेन्स के विरूद्ध जोहान्सबर्ग में प्रथम सत्याग्रह अभियान आरम्भ किया।

1907

‘ब्लैक एक्ट’-भारतीयों तथा अन्य एषियाई लोगों के ज़बरदस्ती पंजीकरण के विरूद्ध सत्याग्रह।

1908

सत्याग्रह के लिये जोहान्सबर्ग में प्रथम बार कारावास दण्ड आन्दोलन जारी रहा तथा द्वितीय सत्याग्रह में पंजीकरण प्रमाणपत्र जलाए गए। पुनः कारावास दण्ड मिला।

1909

जून - भारतीयों का पक्ष रखने इंग्लैण्ड रवाना, नवम्बर - दक्षिण अफ्रीका वापसी के समय जहाज़ में ‘हिन्द-स्वराज’(पुस्तक) लिखी।

1910

मई - जोहान्सबर्ग के निकट टाॅल्स्टाॅय फार्म की स्थापना।

1913

रंगभेद तथा दमनकारी नीतियों के विरूद्ध सत्याग्रह जारी रखा - ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व किया जिसमें 2000 भारतीय खदान कर्मियों ने न्यूकासल से नेटाल तक की पदयात्रा की।

1914

स्वदेष वापसी के लिये जुलाई में दक्षिण अफ्रीका से रवानगी।

1915

21 वर्षों के प्रवास के बाद जनवरी में स्वदेश लौटे। मई में कोचरब में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की जो 1917 में साबरमती नदी के पास स्थापित हुआ।

1916

फरवरी में बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय में उद्घाटन भाषण।

1917

बिहार में चम्पारण सत्याग्रह का नेतृत्व।

1918

फरवरी - अहमदाबाद में मिल मज़दूरों के सत्याग्रह का नेतृत्व तथा मध्यस्थता द्वारा हल निकाला।

1919

राॅलेट बिल पास हुआ जिसमें भारतीयों के आम अधिकार छीने गए - विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय सत्याग्रह छेड़ा, राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान भी सफल हुआ। अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र ‘यंग इण्डिया’ तथा गुजराती साप्ताहिक ‘नवजीवन’ के संपादक का पद ग्रहण किया।

1920

अखिल भारतीय होमरूल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुए - क़ैसर-ए-हिन्द पदक लौटाया - द्वितीय राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ किया

1921

बम्बई में विदेषी वस्त्रों की होली जलाई। साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध बम्बई में 5 दिन का उपवास। व्यापक अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया।

1922

चौरा चोरी की हिंसक घटना के बाद जन-आन्दोलन स्थगित किया। उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला तथा उन्हांेने स्वयं को दोषी स्वीकार किया। जज ब्रूमफील्ड ने छः वर्ष कारावास का दण्ड दिया।

1923

‘दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह’ पुस्तक तथा आत्मकथा के कुछ अंष कारावास के दौरान लिखे।

1924

साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास रखा - बेलगाम कांग्रेस अधिवेषन के अध्यक्ष चुने गए।

1925

एक वर्ष के राजनैतिक मौन का निर्णय।

1927

सरदार पटेल के नेतृत्व में बारदोली सत्याग्रह ।

1928

कलकत्ता कांग्रेस अधिवेषन मेें भाग लिया-पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929

लाहौर कांग्रेस अधिवेषन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया - ‘पूर्ण स्वराज’ के लिये राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ।

1930

ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह - साबरमती से दांडी तक की यात्रा का नेतृत्व।

1931

गांधी इरविन समझौता - द्वितीय गोलमेज़ अधिवेषन के लिये इंग्लैण्ड यात्रा - वापसी में महान् दार्षनिक रोमां रोलां से भेंट की।

1932

यरवदा जेल में अस्पृष्यों के लिये अलग चुनावी क्षेत्र के विरोध में उपवास - यरवदा पैक्ट को ब्रिटिष अनुमोदन तथा गुरूदेव की उपस्थिति में उपवास तोड़ा।

1933

साप्ताहिक पत्र ‘हरिजन’ आरम्भ किया - साबरमती तट पर बने सत्याग्रह आश्रम का नाम हरिजन आश्रम कर दिया तथा उसे हमेषा के लिए छोड़कर - देषव्यापी अस्पृष्यता विरोधी आन्दोलन छेड़ा।

1934

अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की।

1935

स्वास्थ्य बिगड़ा - स्वास्थ्य लाभ के लिये बम्बई आए।

1936

वर्धा के निकट सेगाँव का चयन जो बाद में सेवाग्राम आश्रम बना।

1937

अस्पृष्यता निवारण अभियान के दौरान दक्षिण भारत की यात्रा।

1938

बादषाह ख़ान के साथ एन. डब्ल्यू. एफ. पी. का दौरा।

1939

राजकोट में उपवास - सत्याग्रह अभियान।

1940

व्यक्तिगत सत्याग्रह की घोषणा - विनोबा भावे को उन्होंने पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही चुना।

1942

‘हरिजन’ पत्रिका का पन्द्रह महीने बाद पुनः प्रकाषन - क्रिप्स मिषन की असफलता

भारत छोड़ो आन्दोलन का राष्ट्रव्यापी आह्वान

उनके नेतृत्व में अन्तिम राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह।

पूना के आगाखाँ महल में बन्दी जहाँ सचिव एवं मित्र महादेव देसाई का निधन हुआ।

1943

वाइसराॅय तथा भारतीय नेताओं के बीच टकराव दूर करने के लिये उपवास।

1944

22 फरवरी - आग़ा ख़ाँ महल में कस्तूरबा का 62 वर्ष के विवाहित जीवन के पश्चात् 74 वर्ष की आयु में निधन।

1946

ब्रिटिष कैबिनेट मिषन से भेंट - पूर्वी बंगाल के 49 गाँवों की षान्तियात्रा जहाँ साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़की हुई थी।

1947

साम्प्रदायिक षान्ति के लिये बिहार यात्रा।

नई दिल्ली में लार्ड माउन्टबैटन तथा जिन्ना से भेंट

देष विभाजन का विरोध

देष के स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त 1947 को कलकत्ता में दंगे षान्त करने के लिये उपवास तथा प्रार्थना

9 सितम्बर 1947 को दिल्ली में साम्प्रदायिक आग से झुलसे जनमानस को सांत्वना देने पहुँचे।

1948

देष में फैली साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में दिल्ली के बिड़ला भवन में 13 जनवरी से 5 दिनों तक चला जीवन का अंतिम उपवास।

20 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा में विस्फोट।

30 जनवरी को नाथूराम गोडसे द्वारा षाम की प्रार्थना के लिये जाते समय बिड़ला हाउस में हत्या।


महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं: सत्य के प्रयोग (My Experiments with Truth), हिंद स्वराज, और दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास. 

गांधीजी की कुछ अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख:

सत्य के प्रयोग (My Experiments with Truth):

यह उनकी आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और सत्य और अहिंसा के प्रति अपनी खोज का वर्णन किया है. 

हिंद स्वराज:

इस पुस्तक में, गांधीजी ने पश्चिमी सभ्यता और भारत की स्वशासन की अवधारणा पर अपने विचार व्यक्त किए हैं. 

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास:

इस पुस्तक में, गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह आंदोलन के अनुभवों का वर्णन किया है. 

गीता माता:

यह पुस्तक भगवद गीता पर गांधीजी के विचारों का संकलन है. 

सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय:

यह गांधीजी के लेखन का एक विशाल संग्रह है, जिसमें उनके विभिन्न विषयों पर लेख, पत्र, और भाषण शामिल हैं. 

अन्य:

गांधीजी ने "अनासक्ति योग", "सप्त महाव्रत", "ग्राम स्वराज", "मेरे सपनों का भारत", और "येरवडा मंडिर से" जैसी पुस्तकें और लेख भी लिखे हैं. 

इन पुस्तकों के अलावा, गांधीजी ने "यंग इंडिया" नामक एक साप्ताहिक पत्रिका भी प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया और भारत की स्वशासन की मांग को बढ़ावा 




महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण आंदोलन चलाए, जिनमें चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन (दांडी मार्च), और भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख हैं। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलन:

चंपारण सत्याग्रह (1917):

यह 1917 में बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के समर्थन में किया गया एक सत्याग्रह था। 

खेड़ा आंदोलन (1918):

1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों के समर्थन में किया गया एक आंदोलन था। 

असहयोग आंदोलन (1920-1922):

यह 1920 में शुरू हुआ एक देशव्यापी आंदोलन था जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन का असहयोग करना था। 

सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934):

1930 में शुरू हुआ, इस आंदोलन में नमक कानून के खिलाफ दांडी मार्च प्रमुख था। 

भारत छोड़ो आंदोलन (1942):

1942 में शुरू हुआ, यह ब्रिटिश शासन को भारत से बाहर निकालने के लिए एक व्यापक आंदोलन था। 

गांधीजी के आंदोलनों की विशेषता:

गांधीजी के आंदोलन अहिंसक प्रतिरोध (सत्याग्रह) और सविनय अवज्ञा पर आधारित थे। उन्होंने इन सिद्धांतों का उपयोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष करने के लिए किया। उनके आंदोलनों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को गति दी, बल्कि भारतीय समाज में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाए। 

गांधीजी के आंदोलनों का प्रभाव:#politworld360

गांधीजी के आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय जनता को एकजुट किया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना जगाई। उनके सिद्धांतों और आंदोलनों ने दुनिया भर में स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को प्रेरित किया। #@politworld360

 

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