राजस्थान के लोक देवता जाहर पीर गोगाजी महाराज
- वीर गोगाजी की जीवनी - वीर गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले में विक्रम संवत् सन 1003 में ददरेवा नामक ग्राम में हुआ था. गोगाजी के पिता का नाम जेवरसिंह था और माता का नाम बाछल देवी था. गोगाजी के जन्म को लेकर ऐसा माना जाता है कि वीर गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था. वीर गोगाजी को नागों के देवता होने का वरदान था. लोकमान्यताओं के आधार पर वीर गोगाजी को साँपो के देवता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें लोग गोगाजी, जाहिर वीर, गुग्गा वीर, जाहर पीर, मण्डलिक आदि नामों से पुकारते है गोगा जी की पत्नी का नाम ‘केमल दे’ था जिसे विवाह के समय एक सर्प ने काट लिया था ! इससे क्रोधित होकर गोगाजी ने आग पर कढ़ाई में तेल डालकर मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया ! जिससे संसार के सभी सर्प आकर गर्म कढ़ाई में गिरने लगे ! तब सांपो के रक्षक तक्षक नाग ने गोगा जी से माफी माँगी और केमल दे का जहर चूस चूस कर वापिस जिवित किया ! सर्पो के देवता के रूप में पूज्य होने का आर्शिवाद भी दिया! ===गोगा जी द्वारा गौरक्षा,राज्य विस्तार,विधर्मियों से संघर्ष और अध्यात्मिक साधना ===
गोगा जी ने अरब आक्रमणकारीयो से 11 बार युद्ध करके उनको परास्त किया और अफगानिस्तान के बादशाह द्वारा लूटी हुई हजारो गायो को बचाया.अफगानिस्तान का शाह रेगिस्तान से हजारो गायो को लूटकर ले जा रहा था उसी समय गोगा जी ने उसपर आक्रमण करके हजारो गायो को छुडा लिया,इससे डरकर अरब के लूटेरो ने गाय धन को लूटना बंद कर दिया ! महमूद गजनवी ने सन 1000 से 1026ईस्वी तक भारत पर 19 बार चढाई कर के लूट खसोट और अत्याचार किये उस समय गोगा जी ही थे जिन्होने महमूद गजनवी को कई बार मात दी थी जिससे गोगा जी का राज्य और शक्तिशाली हो गया और उसका नाम ददरेबा सेे बदलकर गोगागढ रख दिया!राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक फ़ैल गया था .रणकपुर शिलालेख में गोगाजी को एक लोकप्रिय वीर माना है.यह शिलालेख वि.1496 (1439 ई.) का है.गोगाजी Gogaji की मृत्यु के संबंध में कहा जाता है इनके चचेरे भाई अर्जुन-सर्जुन ने भूमि बंटवारे को लेकर हुए विवाद के कारण ! इनके इलाके की सारी गायों को घेर कर मुस्लिम आक्रांता गजनवी को दे दी ! जिस कारण गोगा जी गाँयों को बचाने गये इस पर गोगाजी ने अपने 47 पुत्रों और60 भतीजों के साथ ‘चिनाब नदी‘ पार कर गजनवी से युद्ध कर के गायों को मुक्त करवाया ! महमूद गजनवी ने इनके युद्ध शोर्य को देखकर इन्हें जाहरपीर या जिंदा पीर कहा थालेकिन वापस आने के बाद इनके चचेरे भाईयों ने इनसे युद्ध किया जिसमें ये वीर गति को प्राप्त हुए थे ! अन्य इतिहास के अनुसार गोगा जी ने अपने चचेरे भाई अर्जुन-सुर्जन के साथ भूमि विवाद पर युद्ध करते हुए वीरगति पाई थी !
युद्ध में लड़ते हुए उनका शीश ददरेवा (चुरू) में गिरा इसी कारण इसे ! शीर्षमेड़ी (ददरेवा तालाब की मिट्टी से सर्पदंश का जहर उतारने की ऐसी लोकमान्यता है !) और कपन्ध (बिना शीश का धड़) गोगामेड़ी (नोहर-हनुमानगढ़) में गिरा इसी कारण इसे धुरमेड़ी कहते हैं !मुख्य द्वार पर फारसी में शिलालेख महमूद गजनी के गोगाजी के संबंध का वर्णन करता है। हाथों में 'निशान' कहे जाने वाले बहुरंगी झंडों के साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोगों को गाते और नाचते हुए देखना काफी दिलचस्प होता
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादुलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान हैप्रतिवर्ष गोगानवमी को यहाँ विशाल मेला भरता हैं. देश के कोने-कोने से श्रद्दालु जाहर वीर गोगाजी की समाधि पर माथा टेकने आते हैं. मान्यता हैं कि किसी तरह के सर्प दंश पर यदि गोगाजी के नाम का धागा बाधकर मन्नत मागने से उसका जहर उतर जाता हैं, आस-पास के क्षेत्रों में सर्प या किसी जहरीले जीव के काटने पर रोगी को अस्पताल की बजाय गोगामेड़ी लाया जाता हैं. गोगाजी की ओल्डी सांचोर(जालौर) में स्थित है।
उत्तरप्रदेश राजस्थान और हरियाणा में हिन्दू इन्हें जाहर वीर गोगाजी अथवा गोगा देव व् मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग इन्हें गोगा पीर के नाम से मानते हैं. भादों के कृष्ण और शुक्ल पक्ष नवमी को गोगानवमी का त्यौहार मनाया जाता हैं. जिसमे किसी वृक्ष (मुख्यत खेजड़ी) के नीचें बने गोगाजी के थान (पूजा स्थल/मन्दिर) में उनकी पूजा अर्चना की जाती हैं.
प्रचलित कथाओं के अनुसार गोगाजी की माँ बांछल देव निसंतान थी. सन्तान सुख प्राप्ति के सभी प्रयासों के बाद भी वो सुख उन्हें नही मिला. अतः वह सिद्धो के गुरु गोरखनाथ जी के पास गईं. उस समय गोरखनाथ जी गोगामेड़ी में तपस्या में लीन थे. बांछ्ल दे ने अपनी व्यथा उनकों बताई. गोरखनाथ जी ने पुत्र प्राप्ति का वर देकर प्रसाद स्वरूप उन्हें गूगल धूप दिया. जिन्हें ग्रहण करने के पश्चात उन्हें गर्भधारण हो गया था.
और इस प्रकार गोरखनाथ जी के प्रताप से बांछ्ल दे की कोख से गौ रक्षक जाहर वीर गोगाजी का जन्म हुआ. हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक गोगामेड़ी में लगने वाले गोगाजी मेले में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु भिन्न-भिन्न राज्यों से अपनी मन्नते लेकर पहुचते हैं. भादो कृष्ण पूर्णिमा से अमावस्या तक यहाँ मेला लगा लगा रहता हैं. गोगाजी के समाधि स्थल पर फेरी लगाने वाले भक्तो में छड़ी को लेकर विशेष श्रद्धा हैं.
जो लोहें की साक्लों का गुच्छा होता हैं. जिनको भगवे अथवा लाल रंग के कपड़े से बांधा जाता हैं. इस छड़ी में सावल सिंह और नाहर सिंह की उपस्थति मानी जाती हैं. गोगाजी की जागरण अथवा जम्मे में बिना छड़ी के इन्हे अधुरा समझा जाता हैं. जागरण की शुरुआत से पूर्व इस छड़ी की पूजा की जाती हैं. भक्तो के कंधे पर इस छड़ी को फेरने भर से सम्पूर्ण दुखो का नाश हो जाता हैं.गोगा जी का पंचपीरो मे स्थान हैगोगानवमी के अवसर पर भरने वाले इस मेले की विशाल जागरण में भोपा लोग इस छड़ी से जोर से अपने दाहिने कंधे पर वार करते हैं. माना जाता हैं. दिव्य शक्ति के प्रभाव के कारण उस भक्त को किसी तरह के दर्द का अहसास नही होता हैं. रात भर चलने वाली इस जागरण में गोगाजी और गोरखनाथ जी के भजनों और किस्सों का वृतांत सुनाया जाता हैं.
राजेश कुमार राजनीतिक विश्लेषक&कंटेंट लेखक
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