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घग्घर नदी- कालीबंगा सभ्यता

घग्गर नदी का उद्गम स्रोत हिमालय के निचले ढलानों पर स्थित है। विशिष्ट होने के लिए इस नदी का प्रारंभिक स्रोत शिवालिक पहाड़ियों, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह स्थान शिवालिक पहाड़ियों के दगशाई गाँव में समुद्र तल से 1,927 मीटर (6,322 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। पहले यह नदी सिंधु नदी की सहायक नदी थी और इसके पुराने नाले का पता आज भी लगाया जा सकता है। इस नदी की कुल लंबाई 465 किलोमीटर है।                     घग्गर नदी प्रकृति में मौसमी और गैर बारहमासी है और यह केवल मानसून के मौसम में बहती है। बरसात के मौसम में इस नदी के पानी का आयतन बढ़ जाता है और कहीं मानसून के दौरान इस नदी की चौड़ाई 10 किलोमीटर हो जाती है। वहीं साल के सूखे मौसम में यह नदी पानी से रहित रहती है। घग्गर नदी राजस्थान में फैली दो सिंचाई नहरों के लिए पानी का स्रोत भी है।            घग्गर नदी की प्रमुख बायीं ओर की सहायक नदी कौशल्या नदी है। कौशल्या नदी हरियाणा के पंचकुला जिले में बहती है और पिंजौर (कौशल्या बांध के नीचे की ओर) के पास मुख्य नदी के साथ मिल जाती है। घग्गर नदी की प्रमुख दाहिने किनारे की सहायक नदियाँ हैं- मार्कंडा नदी, सरसुती नदी, तंगरी नदी और चौतांग नदी।घग्गर नदी भारत और पाकिस्तान में वर्षा ऋ तु में चलने वाली मौसमी नदी है। इसे हरियाणा के ओटू वीयर (बांध) से पहले घग्गर नदी के नाम से और उसके आगे हकरा नदी के नाम से जाना जाता है।                                   कुछ विद्वानों के अनुसार यह प्राचीन काल में बहने वाली महान सरस्वती नदी ही का बचा हुआ रूप है                   घग्घर नदी राजस्थान की सबसे बड़ी अंतः प्रवाही नदी है इस नदी के पाट को नाली के नाम से जाना जाता है (नाली एक भेड़ की नस्ल भी है जो मुख्यतः गंगानगर हनुमान गढ क्षेत्र में पाई जाती है) हनुमानगढ़ में घग्गर नदी द्वारा निर्मित मैदान को बासमती चावल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है यह क्षेत्र इंदिरा गांधी नहर के पानी द्वारा भी सिंचित है लेकिन पानी की अधिकता के कारण यह सेम की समस्या भी है इसका कारण केशिका क्रिया क्रषण से भूमिगत लवण धरातल पर जमा हो जाना है घग्घर नदी में पानी ज्यादा आने पर कभी-कभी यह पाकिस्तान के फोर्ट अबास तक चली जाती है जहां पर इसे हकरा के नाम से जाना जाता है

इस नदी के किनारे ही सिंधु घाटी सभ्यता के सर्वाधिक पुरास्थल हैं जिनमें मुख्य रुप से कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है जहां से जूते हुए खेत के अवशेष, ऊंट की हड्डियां,अग्नि वेदिकाए और ईटं की बनी हुई पक्की नालियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं                 दशरथ शर्मा ने इसे सिंधु में घाटी सभ्यता की तीसरी राजधानी भी कहा है

यहां इस तथ्य को उल्लेखित  करना प्रासंगिक होगा कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र योद्धेय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहां पर इस नाम से जनजाति निवास करती थी राजस्थान का सर्वाधिक प्राचीन दुर्ग भटनेर का दुर्ग यहीं पर हनुमानगढ़ में है इसका निर्माण 295 ईसवी में  राजा भूपत ने करवाया था हालांकि बाद में जब बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने 1808 मे मंगलवार के दिन इसको जीता तो इसका नाम हनुमानगढ़ कर दिया                            राजेश कुमार                                                         राजनीतिक विश्लेषक&कंटेंट लेखक

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