अस्पृश्यता और भारत
डाॅ. घुरिये के अनुसार," अनुसूचित जातियों की परिभाषा मैं उस रूप मे कर सकता हूँ, जो कुछ समय के लिये अनुसूचित जातियों के अंतर्गत रखे गये है।
डाॅ. मजूमदार के अनुसार," अस्पृश्य जातियाँ वे है जो कि विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक निर्योग्यताओं से पीड़ित है, जिनमे से बहुत सी निर्योग्यताएँ उच्चतर जातियों के द्वारा परम्परागत रूप से निश्चित व सामाजिक रूप से लागू की गई है। गांधी के अस्पृश्यता-उन्मूलन संबंधी विचार:- अस्पृश्यता-उन्मूलन संबंधी विचारों और अंबेडकर के साथ उनकी सहानुभूति की वजह से सनातनियों ने गांधी को पहले नंबर का दुश्मन घोषित कर रखा था. सात नवंबर, 1933 से दो अगस्त, 1934 तक लगातार दस महीने तक गांधी ने अस्पृश्यता मिटाने की एक लंबी यात्रा भारत में की. इसे गांधी के ‘हरिजन दौरा’ के नाम से जाना जाता है. बारह हजार पांच सौ मील की इस यात्रा में उन्होंने न केवल भरपूर जन-जागृति पैदा की, बल्कि हरिजन कल्याण कोष के लिए आठ लाख रुपये भी जमा किए. सत्यशोधक समाज (अर्थ : सत्य अर्थात सच की खोज करने वाला समाज) 24 सितम्बर सन् 1873 में ज्योतिबा फुले द्वारा स्थापित एक पन्थ है। यह एक छोटे से समूह के रूप में शुरू हुआ और इसका उद्देश्य शूद्र एवं अस्पृश्य जाति के लोगों को विमुक्त करना था। इनकी विचार "गुलामगिरी, सार्वजनिक सत्यधर्म " में निहित है । डॉ. भीमराव अंबेडकर जी इनके विचारो से बहुत प्रभावित थे । सत्य शोधक समाज के प्रमुख उद्देश्य : शूद्रों-अतिशूद्रों को पुजारी, पुरोहित, सूदखोर आदि की सामाजिक-सांस्कृतिक दासता से मुक्ति दिलाना, धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों में पुरोहितों की अनिवार्यता को खत्म करना, शूद्रों-अतिशूद्रों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि वे उन धर्मग्रंथों को स्वयं पढ़-समझ सकें, जिन्हें उनके शोषण के लिए ही रचा गया है, सामूहिक हितों की प्राप्ति के लिए उनमें एकजुटता का भाव पैदा करना, धार्मिक एवं जाति-आधारित उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना, पढ़े-लिखे शूद्रातिशूद्र युवाओं के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना आदि. कुल मिलाकर ये सामाजिक परिवर्तन के घोषणापत्र को लागू करने का कार्यक्रम था। डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के अस्पृश्यता आंदोलन:- उन्होंने मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), नाशिक सत्याग्रह (1930), येवला की गर्जना (1935) जैसे आंदोलन चलाएं. - बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जागरुक करने के लिए साल 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक और पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया संविधान में अस्पृश्यता के अंत:-
संविधान की प्रस्तावना में ‘प्रतिष्ठा व अवसर की समता’ तथा अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध एवं अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के अंत की घोषणा है सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम- संसद ने अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 पारित किया तथा 1976में इसका संशोधन कर इसका नाम ‘सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम’ कर दिया गया।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति(उत्पीड़न निवारण) अधिनियम,1989 के तहत प्रथम बार ‘उत्पीड़न’ शब्द की व्यापक व्याख्या की है। केंद्र सरकार ने इस अधिनियम से प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 1995 में एक नियमावली का निर्माण भी किया है। हरिजन एक्ट कब लागू हुआ था?
इसे सुनेंरोकेंहरिजन एक्ट में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989, (अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989) को 11 सितंबर 1989 को भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से पूरे भारत में (जम्मू एवं कश्मीर) कश्मीर को छोड़ कर) लागू किया गया।
2015 में उपरोक्त अधिनियम में संशोधन के माध्यम से पुराने प्रावधानों को और अधिक सख्त कर दिया गया है। इसमें उत्पीड़न की परिभाषा में कई और कृत्यों, जैसे- सिर व मूंछ मूँडना, चप्पलों की माला पहनाना, जनजातीय महिलाओं को देवदासी बनाना आदि को भी शामिल किया गया है। इसमें मामलों के त्वरित निवारण के लिये विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान किया गया अस्पृश्यता को भारत का "छिपा हुआ रंगभेद" किसने कहा?
दिसंबर, 2006 में, भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह अस्पृश्यता और रंगभेद के अपराध के बीच समानता को स्वीकार करने वाले पहले भारतीय नेता बने ।
प्रधान मंत्री सिंह ने अस्पृश्यता को "मानवता पर धब्बा" के रूप में वर्णित किया और स्वीकार किया कि संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा के बावजूद, पूरे भारत में जातिगत भेदभाव अभी भी मौजूद है।
धारा 3 1 w क्या है?
इसे सुनेंरोकेंउल्लेखनीय है कि धारा 3(1)(w) के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिला को, उसकी सहमति के बिना, छूने पर, और छूने का कार्य यदि यौन प्रकृति का है, दंड का प्रावधान किया गया है। 18A क्या है?
इसे सुनेंरोकेंकोर्ट ने SC/ST एक्ट की धारा 3 (अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दंड), धारा 18 ( सीआरपीसी की धारा 438 ) और धारा 18A (प्राथमिकी के पंजीकरण के लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है या गिरफ्तारी के लिए अनुमोदन) का विश्लेषण किया। पीठ ने मामले में दोनों पक्षों द्वारा उद्धृत मामलों में की गई टिप्पणियों पर भी विचार किया।
धारा 3 2 द क्या है?
इसे सुनेंरोकेंधारा 3 (2) (v) यह प्रदान करती है कि जो कोई भी, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, वह आईपीसी के तहत किसी भी अपराध के लिए दस साल या उससे अधिक अवधि के कारावास या जुर्माने का अपराध करता है, ऐसे व्यक्ति के खिलाफ जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति जो इनके सदस्य की है, वो आजीवन
अस्पृश्यता उन्मूलन के अन्य संभावित उपाय-
पीड़ित समुदाय के आर्थिक व सामाजिक विकास के द्वारा।
अस्पृश्यता व उत्पीड़न जैसे मामलों के त्वरित निवारण के लिये पर्याप्त संख्या में विशेष अदालतों के गठन के द्वारा।
अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देकर तथा खाप पंचायतों के उन्मूलन द्वारा।
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