राजनीतिक विचारक जे जे रूसो ( 1712-1778 ईस्वी)Political theorist JJ Russo
जे जे रूसो ( 1712-1778 ईस्वी) जे जे रूसो का जन्म 1712 ईस्वी में स्विस के आईजर राज्य में हुआ जन्म के साथ ही उसकी माता का देहांत हो गया इसलिए वह लिखता की जन्म मेरी प्रथम दुर्भाग्यपूर्ण घटना है उसका लालन-पालन चाचा ने किया रूसो को छोटी उम्र में ही काम पर ही लगवा दिया इसलिए रूसो आवारा हो गया इसलिए 1 दिन रात को रूसो देरी के कारण उसे फ्रांस भागना पड़ा फ्रांस में एक होटल में उन्होंने कार्य किया था यहीं पर उनका साथ उच्च वर्ग की महिलाओं से हुआ जिन्होंने इन्हें विभिन्न भाषाओं का अध्ययन करवाया और दिजोन की एकेडमी में प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने के लिए प्रेरित किया उसके बाद रूसो विश्व में प्रसिद्ध हो गया रूसो की प्रमुख पुस्तकें:- 1. कला व विज्ञान का मनुष्य पर प्रभाव 1751 2.असमानता का उद्भव 1754 3. the ईमाइल 1762 :-यह शिक्षा मनोविज्ञान का ग्रंथ है फिलीबिस्टर व थार्नडाइक इसी से प्रभावित है उसने इसी पुस्तक में लिखा है कि रिपब्लिक शिक्षा पर लिखा सबसे बड़ा ग्रंथ है 3.सोशल कॉन्ट्रैक्ट 1762;- यह पुस्तक इमाइल के बाद में लिखी गई थी इसी पुस्तक में सामाजिक समझौता, सामान्य इच्छा, लोकप्रिय संप्रभुता संबंधी विचार प्रस्तुत करता है 4.confession1770 5.कंसीडरेशन गवर्नमेंट ऑफ पोलैंड 1772 6.लिंग्विस्ट 1772 7.सॉलिटेरी वार्कर 1782 8.जुली व न्यूहैलिस रूसो के विचार :- जहां हाॕब्स मानव को दुर्गुणी प्रकृति का बताता है वही लाॕक सद्गुणी प्रकृति का बताता है और रूसो का कहना है कि मनुष्य ने सद्गुणों और दुर्गुणों दोनों प्रकृति पाई जाती है रूसो के अनुसार मानव की दो मूल प्रकृति हैं आत्मप्रेरित व सहानुभूति! रूसो के अनुसार आत्म प्रेम और सहानुभूति में सामान्यतः संतुलन पाया जाता है परंतु बाहरी वातावरण के कारण आत्म प्रेम की प्रवृत्ति बढ़ जाती है ऐसी स्थिति में अंतःकरण सहानुभूति की मात्रा को बढ़ाकर दोनों में संतुलन स्थापित करता है अंतः करण में कमी है कि वह अच्छे बुरे में अंतर नहीं करता इसीलिए अंतः करण का मार्गदर्शन विवेक करता है इस प्रकार मानव की प्रकृति का अंतिम नियामक विवेक है रूसो के प्राकृतिक अवस्था संबंधी विचार:- रूसो प्राकृतिक अवस्था के तीन चरण बताएं है प्रथम चरण इसमें सब की संपत्ति सामूहिक थी और मानव मानव के बीच कोई भेदभाव नहीं था इसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे आदर्श विद्यमान थे रूसो इसे श्रवणयुगीन अवस्था ,आदर्शबर्बर कहता है द्वितीय चरण इस काल में कला व विज्ञान में कुछ प्रगति हुई जिसके कारण मछली का कांटा, तीर, धनुष जैसे उपकरण बनाए गए जिसमें तेरे मेरे की भावना आ गई रूसो कहता है कि यह अवस्था ठीक-ठाक है क्योंकि इसमें स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के आदर्श बने हुए थे तृतीय चरण इस काल में कला व विज्ञान के साथ-साथ हल का आविष्कार हुआ और निजी संपत्ति का उद्भव हुआ इसी संदर्भ में रूसो का कहना कि जैसे ही कुछ लोगों ने भूमि पर कब्जा कर यह कहा कि यह हमारी है वैसे ही समाज दो वर्गों में बट गया स्वामी और दास दास के पास स्वतंत्रता और समानता बंधुता आदर्श नहीं थे अतः इस काल में स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व नष्ट हो गई थी रूसो का कहना है कि इसलिए मनुष्य सामाजिक समझौते के माध्यम से सामान्य इच्छा पर आधारित राज्य या नागरिक समाज का निर्माण करता है जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श विद्यामान होते हैं उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर रूपों के दो कथन हैं 1. मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन वर्तमान में हर जगह जंजीरों से जकड़ा हुआ है 2.प्रकृति की ओर लौट चलो इस प्रकार रूप से सतत विकास का पोषणीय विकास का समर्थन करता है रूसो के सामाजिक समझौता संबंधी विचार:- रूसो के सामाजिक समझौता संबंधी विचार मानव प्रकृति व प्राकृतिक अवस्था पर आधारित हैं रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते का कारण तृतीय स्तर निजी संपत्ति का उद्भव होना है रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते के लिए सभी मनुष्य एक जगह पर एकत्रित होते हैं पहले यथार्थ इंच्छा की भावना प्रकट करते हैं उस पर सहमति नहीं बनती बाद में सहानुभूति पर आधारित आदर्श इच्छा या वास्तविक इच्छा को प्रकट करते हैं इस पर सहमति बन जाती है आदर्श इच्छा का योग ही सामान्य इच्छा है इस प्रकार सामान्य इच्छा पर आधारित राज्य की निम्न विशेषताएं हैं 1.राज्य शरीर के समान है व्यक्ति अंग मात्र है जैविक सिद्वान्त का समर्थन करता है 2.यह स्वतंत्रता, समानता, बंधुता पर आधारित राज्य का समर्थन करता है 3,प्रत्यक्ष लोकतंत्र व लोकप्रिय प्रभुसत्ता का समर्थन करता है 4.रूसो का कहना है कि राज्य व्यक्ति को स्वतंत्रता के लिए बाध्य कर सकता है 5.रूसो राज्य व समाज में अंतर तो करता है लेकिन राज्य सरकार में नहीं 6.इस प्रकार रूसो के विचारों में लोकतंत्र व निरकुशतावाद दोनों के लक्षण दिखाई देते हैं रूसो के सामान्य इच्छा् सम्बन्धी विचार:- रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा् आदर्श इच्छा् का योग है यह लोकप्रिय प्रभुसत्ता का स्रोत है ग्रीन के अनुसार सामान्य इच्छा् सामान्य हित की सामान्य चेतना है इसे एक व्यक्ति भी प्रकट कर सकता है अनेक विद्वान सामान्य इच्छा की उन विशेषताओं पर बल देते हैं जो हाॕब्स की लेवियाथन से मिलती है जैसे सामान्य इच्छा निरंकुश है अदेय है सार्वभौम है स्थाई है इसी संदर्भ में डिग्वी जैसे विद्वान कहते हैं कि रूसो की सामान्य इच्छा जैकोबियन से भी अधिक निरंकुश है परंतु अधिकांश विद्वान सामान्य इच्छा की उन विशेषताओं पर बल देते हैं जो हाॕब्स से भिन्न है जैसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र , लोकप्रिय संप्रभुता, स्वतंत्रता, समानता का स्रोत! इसी संदर्भ में सी.इ. वाहन का कथन है कि रूसो की सामान्य इच्छा हाॕब्स का शीश कटा लेवियाथन है रूसो प्रतिनिधि शासन की आलोचना करता है और कहता है कि जैसे ही प्रतिनिधित्व होता है वैसे ही लोकतंत्र समाप्त हो जाता है नेपोलियन का कहना है कि अगर रूसो नहीं होता तो फ्रांस की क्रांति नहीं होती इस प्रकार जे जे रूसो ने वर्तमान लोकतंत्र के प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण प्रस्तुत किया और प्रकृति की ओर लौटने का भी आह्वान किया
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