राजनीतिक विज्ञान:संप्रभुता का अर्थ प्रकृति व विशेषताएं Political Science Concept: Sovereignty
संप्रभुता राजनीतिक विज्ञान में राज्य सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा है गार्नर ने तो कहा कि राजनीति राज्य से आरंभ होती है और राज्य पर समाप्त होती है राज्य की चार विशेषताएं मानी जाती है जनसंख्या, भू भाग, सरकार, संप्रभुता जिसमें संप्रभुता राज्य की अन्नय विशेषता होती है जिससे राज्य परिभाषित होता है आज संप्रभुता सत्ता की एक वैश्विक व्यवस्था है इनकी सभी धर्मों ,सभ्यताओं, भाषाओं, संस्कृतियों, जातियों ,प्रजातियों के समूह व अन्य समुदायों में पहुंचे ताकि संप्रभु राज्य व्यवस्था सत्ता की एकमात्र ऐसी वैश्विक व्यवस्था है जिसका कभी अस्तित्व रहा है संप्रभुता साॕवरेन्टी लैटिन भाषा के सुपरनैस शब्द से बना है जिसका अर्थ है सर्वोच्च शक्ति कभी ऐसा संभव था कि लाखों लोग संपूर्ण राज्यों के क्षेत्राधिकार से बाहर रहते हो लेकिन अब यह यह संभव नहीं है दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं जहां मानव बसते हैं और जो कि संप्रभु सरकार के क्षेत्राधिकार में नहीं हो दुनिया की सारी जनसंख्या किसी न किसी संप्रभु राज्य के अंतर्गत एक रहती है लोगों को थोड़ी बहुत स्वतंत्रता होती है कि वह किस राज्य के सदस्य बनना चाहते हैं लेकिन उन्हें किसी ने किसी राज्य का सदस्य तो बनना ही पड़ता है हालांकि संप्रभुता एक आधुनिक विचार है लेकिन इनका सत अरस्तु के समय से राजनीतिक चिंतन में मौजूद था और अरस्तु ने राज्य के सर्वोच्च शक्ति को इंगित किया था रोमन कानून वक्ता एवं मध्य युग में भी संप्रभुता का अंश किसी न किसी रूप में मौजूद था 15 वीं शताब्दी में पहली बार संप्रभु और संप्रभुता शब्दों का प्रयोग फ्रांसीसी न्याय कर्ताओं ने किया यूरोप में वेस्टफेलिया की संधि 1648 ईस्वी को माना जाता है कि इस संधि से विश्व में संप्रभु राज्य व्यवस्था आरंभ हुई संप्रभुता के दो भाग है 1.एकलवादी संप्रभुता :-इसके तीन भाग है(अ) कानूनी संप्रभुता (ब)राजनीतिक संप्रभुता (स) लोकप्रिय संप्रभुता 2.बहुलवादी संप्रभुता :- गियर्के व मैटलेण्ड बहुलवादी संप्रभुता के जनक है संप्रभुता के कारण राज्य आन्तरिक क्षेत्र में सर्वोच्च होता है और बाहरी क्षेत्र में स्वतन्त्र होती है बोंदा पहला आधुनिक विचारक था जिसने संप्रभुता के विचार पर विस्तृत विवेचना की ओर इसे राजनीतिक चिंतन में महत्वपूर्ण बनाया फ्रांस में उनके समय में अराजकता फैली हुई थी और एक ऐसे दर्शन की आवश्यकता थी जिसमें एक ऐसी सता का निर्माण किया जाये जिसका हर व्यक्ति स्वभाव से जिसकी आज्ञा का पालन करें बोंदा ऐसी परिस्थितियों में संप्रभुता की अवधारणा पर अपनी पुस्तक सिक्स बुक ऑन द रिपब्लिक में विस्तार से चर्चा की और उसने एक स्थाई संप्रभुता की कल्पना की है संप्रभुता नागरिकों के ऊपर एक सर्वोच्च शक्ति है जिसके ऊपर कोई बन्धन नहीं है सैद्धांतिक रूप से संप्रभु को उन समझौतों का पालन करना चाहिए जो उसके किए हैं लेकिन एक बुद्धिमान संप्रभु हमेशा ऐसा नहीं करता संप्रभु ईश्वर के क़ानून से सिमित होता है तथा उसे समाज की परंपराओं का भी ध्यान रखना चाहिए संप्रभु एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह हो सकता है आस्टिन:- संप्रभु एक जीता -जागता इन्सान होना चाहिए जिसका सम्पुर्ण समाज या अधिकाश भाग आज्ञा का पालन करना चाहिए ऐसा इन्सान किसी ओर की आज्ञा का पालन नही करना चाहिए ऐसा इन्सान संप्रभु है और उनका आदेश ही कानून है संप्रभुता सर्वोच्च, निरकुंश ,अदेय, स्थाई है हाॕब्स संप्रभुता पर बोंदा द्वारा लगाई गई सभी बंदिशों हटा दिया हालांकि उनका संप्रभु सामाजिक समझौते का परिणाम था तथा वह कृत्रिम संस्था थी! लेवियाथन सभी प्रकार की सत्ता का स्रोत हुआ है और उनके पास कानून बाध्यकारी शक्ती है लाॕक व्यवस्थापिका को संप्रभु मानता है हालांकि कुछ शर्तों के साथ! विधायिका राज्य के समान है डायसी-राजनीतिक प्रभुसताधारी वह प्रभुसताधारी है जिसके सामने कानूनी प्रभुसताधारी को सिर झुकाना पड़ता है गिलक्राइस्ट:-इनके अनुसार राजनीतिक प्रभुसता प्रभावशाली व्यक्तियों का योग है रूसौ सामान्य इच्छा को संप्रभु मानता है जॉन ऑस्टिन को संप्रभुता का कानूनी संप्रभुता का सबसे बड़ा विचारक माना जाता है इसके अनुसार संप्रभु एक निर्धारक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है और कानून संप्रभु कि आज्ञा है इसमें जनता को संप्रभु की आज्ञा पालन स्वभावगत करना है अन्यथा संप्रभु सजा दे सकता है इसमें आज्ञा के कानूनी स्वरूप की बात की गई है उनके नैतिक स्वरूप कि नहीं ! हाल के वर्षों में संप्रभुता के विचार की आलोचना की गई एक बहुलवादी विचार सामने आया इसके अनुसार संप्रभुता पूर्ण नहीं है और उसे अपनी सता अन्य संस्थाओं के साथ साझा करनी चाहिए संप्रभुता कहां स्थित होती है इस पर बड़ा विवाद है यह अवधारणा सैद्धान्तिक स्तर पर तो ठीक है लेकिन व्यवहार में इसका स्थान पहचानना कठिन है इसलिए लास्की ने कहा कि अगर संप्रभुता को राजनीति विज्ञान से हटा दिया जाए तो यह राजनीति विज्ञान पर बड़ी कृपा होगी लेकिन ऐसा करना शायद संभव नहीं हो क्योंकि इसके बिना राज्य की प्रकृति को समझना संभव नही है डायसी के अनुसार संप्रभुता पर दो सीमाएं होती हैं बाहय रुप से हमेशा यह संभावना बनी रहती है कि नागरिक कानूनों का विरोध करें या अवज्ञा करे! आतंरिक रूप से संप्रभु की संरचना ही सीमा तय करती है जिसके कारण वह कार्य चाहते हुए भी नहीं कर पाता संप्रभुता के कई प्रकार होते हैं उनके कोई भेद करना आवश्यक है जैसे नाम मात्र की संप्रभुता एवं वास्तविक संप्रभुता नाममात्र का शासक वह होता है जिसके पास औपचारिक रूप से शक्ति होती है लेकिन वास्तविक शक्ति नही होती वो किसी और के पास होती है जैसे इंग्लैंड का राजा नाममात्र का संप्रभु है वास्तविक शक्ति संसद के पास होती है इसी प्रकार से डि फैक्टो व डी जुरे में अन्तर किया जाता है डि फेैक्टो का अर्थ वह संप्रभु जिसका कानून की दृष्टि से अस्तित्व नहीं है डी जुरे वह है जिसमें कानून की दृष्टि से संप्रभु माना जाता है इस प्रकार कानूनी और राजनीतिक संप्रभु में अंतर किया गया कानून संप्रभु निर्धारक, निश्चित, व्यवस्थित, सटीक एवं कानून से मान्यता प्राप्त है कानूनी दृष्टि से केवल यह ही राज्य की इच्छा को व्यक्त करता है राजनीतिक संप्रभु राज्य में स्थिति उन सभी प्रभावों का योग है जो कानून के पीछे होते हैं डायसी के अनुसार वह समुदाय राजनीतिक संप्रभुता है जिसकी इच्छा को अंतिम रूप से राज्य के नागरिक मानते हैं प्रत्यक्ष प्रजातंत्र में कानूनी और राजनीतिक संप्रभु में अंतर नहीं होता इंग्लैंड में किंग्स इन पार्लियामेंट कानूनी संप्रभु तथा जनता राजनीतिक संप्रभु है एक आर्दश प्रजातंत्र में कानूनी संप्रभु वह करता है जो राजनीतिक संप्रभु चाहता है! एक और तरह की संप्रभुता होती है लोकप्रिय संप्रभुता ! इसके अनुसार संप्रभुता जनता में निहित होती है रूसो लोकप्रिय संप्रभुता का पक्षधर था लाॕक राजनीतिक संप्रभुता का प्रतिपादक था हाॕब्स कानूनी संप्रभुता में विश्वास करता था लोकप्रिय संप्रभुता के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह जनता में कहां और कैसे स्थित होती है यह मालूम करना लगभग असंभव है यह समय स्थान मुद्दों के साथ परिवर्तित होती है रूसो की सामान्य इच्छा का पता लगाना कठिन कार्य है जनता की कोई स्पष्ट व निश्चित इच्छा नहीं होती तो कई बार समूह की इच्छा एक दूसरे के विपरीत होती हैं यह तीनों प्रकार की संप्रभुताए संप्रभुता का विभाजन नहीं है अपितु उनके तीन रूप हैं!
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