राजनीतिक विज्ञान अवधारणा : शक्ति का अर्थ प्रकृति व विशेषताएं Political Science Concept : Power
यथार्थ की राजनीति का अध्ययन करने का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण शक्ति का होता है इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति केवल शक्ति का संघर्ष है! हेराल्ड लासवेल ने अपनी पुस्तक पॉलिटिक्स हू गेट्स व्हाट व्हेन एंड हाउ 1936 ने उत्तर दिया है की शक्ति को कब कौन कैसे प्राप्त करने का नाम ही राजनीति है शक्ति एक महत्वपूर्ण अवधारणा है अगर राजनीति संघर्ष का निवारण करना है तो शक्ति का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि शक्तियों के उचित प्रकार के वितरण से ही संघर्ष निवारण होता है आदर्शवादी सिद्धांतवेता यह स्वीकार नहीं करते उनके अनुसार शक्ति राजनीति की प्रमुख अवधारणा नहीं है सत्ता प्रमुख अवधारणा है व्यक्ति केवल शक्ति प्राप्त करने की इच्छा से ही प्रेरित नहीं होता तथा हमेशा दूसरों को नियंत्रित करने की बात ही नहीं करता शक्ति केवल साधन है महत्वपूर्ण यह है कि साध्य क्या है शक्ति को महत्वपूर्ण मानने से बल प्रयोग हिंसा इत्यादि सही प्रतीत होते हैं इसलिए राज्य में सत्ता महत्वपूर्ण है शक्ति नहीं! हाॕब्स ने शक्ति का प्रयोग व्यक्ति के अधिपत्य में रहने वाली सामर्थ्य के अर्थ में काम में लिया है उसके अनुसार यह वह सामर्थ्य है जो भविष्य के सुख को प्राप्त करने में सहायक होती है प्राकृतिक दशा में सभी व्यक्ति एक दूसरे की शक्ति से भयभीत होते हैं कमजोर व्यक्ति शारीरिक रूप से शक्तिशाली व्यक्ति से और शक्तिशाली व्यक्ति कमजोर के षडयंत्र करने की शक्ति से! लेकिन आधुनिक समय में व्यवहारवाद के प्रभाव से शक्ति को दो व्यक्तियों समूह या देशों के मध्य संबंधों के आधार पर परिभाषित किया जाता है रोर्बट डाहल के अनुसार अ ब से तभी तभी शक्तिशाली है जब अ ब से वह कार्य करवा ले जो ब अ की अनुपस्थिति में नहीं कर रहा था इस प्रकार शक्ति स्वयं के सामर्थ्य एवं दूसरों पर प्रभाव डालने की सामर्थ्य के रूप में परिभाषित होती है शक्ति और बल में अंतर होता है शक्ति में केवल भय दिखाकर दूसरे का व्यवहार परिवर्तित किया जाता है लेकिन अगर शक्ति का यथार्थ में प्रयोग करना पड़े तो वह बल बन जाता है इस प्रकार बल शक्ति का वास्तविक प्रयोग है शक्ति को दो दृष्टिकोण से देखा जाता है एक तो व्यक्ति की सामर्थ्य कि वह क्या कर सकता दूसरा व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता! राजनीति में शक्ति को संबंधों के भीतर परखा जाता है इसलिए राजनीतिक सिद्धांत की मुख्यधारा में शक्ति को दूसरों को प्रभावित करने के संदर्भ में ही परिभाषित किया जाता है मुख्यधारा में शक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण राज्य को माना जाता है बेवर के इसी अर्थ में सत्ता एवं प्रशासन का अध्ययन किया जाता है जिसमें उसने मध्ययुगीन तथा आधुनिक राज्य का विश्लेषण किया हालांकि बाद में संपूर्ण शक्ति पर कार्य होता रहा है जिसने व्यक्तियों एवं समूह की राज्य के संबंधों पर ध्यान दिया गया वेबर ने माना कि शक्ति दूसरे समूह जैसे व्यापारिक समूह और चर्च में भी शक्ति का अस्तित्व होता है! बेवर यह मानता है कि शक्ति के द्वारा व्यक्ति अपनी इच्छा दूसरों पर उनके विरोध के बावजूद थोप सकता है शक्ति संबंध जीरो सम गेम की तरह होते हैं समाज में हमेशा शक्ति का वितरण होता है जिसमें कुछ शक्तिशाली बनते हैं और कुछ शक्तिहीन हो जाते हैं शक्ति के लिए अनवरत संघर्ष चलता रहता है इस तरह की स्थिति के लिए लासवेल एवं काप्लान ने एक औपचारिक मॉडल बनाया जिसे साइमन ने एक गणितीय स्वरूप में ढाल दिया यह लोग शक्ति के प्रयोग के व्यवहारवादी पहलू को महत्व देते हैं इस दृष्टिकोण में व्यक्तिवादी व विवेकी कार्य को वास्तविक मानकर अध्ययन किया जाता है इस दृष्टिकोण का एक परिष्कृत रूप में विवेकी चुनाव सिद्धांत में देखा जाता है जिसे आर्थिक अवस्था में होने वाले संघर्ष का अध्ययन किया जाता है! लेकिन शक्ति संघर्ष केवल औपचारिक या प्रघटनात्मक ही नहीं होता एक दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार बाहय दिखने वाले शक्ति संघर्ष से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उनकी पृष्ठभूमि में होने वाला संघर्ष! जैसे एक मीटिंग में अगर चेयरमैन को मालूम है कि एक मुद्दे पर सदस्यों द्वारा उसका विरोध किया जाएगा और वह सदस्य की संख्या को अपनी तरफ नहीं कर सकता तथा उसके इस मीटिंग में संघर्ष में हारने के अवसर हैं तो वह मीटिंग के पहले उस मुद्दे को अजेण्डे से हटवा देगा जिससे कि वह मुद्दा प्रस्ताव के रूप में सामने ना आए वह यह प्रयास करेगा कि जब वह अनोपचारिक रूप से बहुमत को अपनी ओर कर लेगा तभी उस प्रस्ताव को मीटिंग में लाने की अनुमति देगा इस दृष्टिकोण का बेचरच व बरट्ज जैसे लेखक समर्थन करते हैं ल्युक जैसे लेखक का तीसरा पहलू ही देखते हैं उसके अनुसार शक्तिमान व्यक्ति अपने निर्णय को शक्तिहीन व्यक्तियों पर इस चतुराई से थोपते हैं कि शक्तिहीन व्यक्ति ये समझे कि वह निर्णय उनके हितों की रक्षा करेगा जबकि वास्तव में वह निर्णय उनके हितों को हानि पहुंचाने वाला होता है समसामयिक समय में मिशेल फूको ने शक्ति की अवधारणा पर नए प्रकार से कार्य किया आपने पुस्तकों मैडनेस एंड सिविलाइजेशन, दि बर्थ ऑफ क्लीनिक, डिसीप्लिन एंड पनिश में यह तर्क देता है कि शक्ति व्यक्तियों में नहीं संस्थाओं में होती है उनके अनुसार आधुनिक समय में व्यवस्थाएं और नियंत्रण बनाए रखने के लिए नए तरीके खोजे गए हैं जिसमें शक्ति का गैर व्यक्तिकरण कर दिया गया उदाहरणार्थ शक्ति जेल में, स्कूल में ,फैक्ट्री में है उन को नियंत्रित करने वाले व्यक्तियों में नहीं ! मिशेल फूको ने इस मॉडल का नाम पेनोप्टिकन दिया शक्ति के कई रूप हो सकते हैं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष! जो व्यक्ति स्वंय शक्ति का उपयोग करता है तो वह प्रत्यक्ष शक्ति होती है जब वह अपने साथियों या अधीनस्थ के माध्यम से शक्ति का प्रयोग करता है तो वह अप्रत्यक्ष शक्ति है जब शक्ति का उपयोग खुले रूप में किया जाता है तो उसे प्रकट शक्ति कहते हैं जैसे पुलिस या सेना की शक्ति! जब शक्ति का उपयोग खुले में नहीं किया जाता तो उसे अप्रकट शक्ति कहते हैं जैसे जन समुदाय की शक्ति ! शक्ति के प्रकार भी होते हैं क्रिस्पीग्री ने शक्ति संबंधों के छह श्रेणियों में विभाजित किया है 1.बाध्यकारी शक्ति 2.आगमनात्मक शक्ति 3प्रतिक्रियात्मक शक्ति 4.बांधात्मक शक्ति 5.आकर्षक शक्ति 6.प्रेरणात्मक शक्ति इस प्रकार राजनीतिक विज्ञान की अवधारणा में शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है!
Post a Comment