राजस्थान के लोकदेवता:जसनाथ जी
जसनाथ जी
नाथ संप्रदाय के प्रभाव से जसनाथी संप्रदाय का विकास हुआ था परंतु वैष्णव धर्म से अधिक प्रभावित था इसी कारण यह वैष्णव धर्म का ही संप्रदाय ही माना जाता है जांभोजी के साथ क्षेत्र में जसनाथ जी भी उस समय के प्रसिद्ध सन्त था जिसका जन्म विक्रमी संवत 1539 को कार्तिक शुक्ला एकादशी शनिवार के दिन कतरियासर नामक गांव में हुआ यह हमीरजी नामक जाणी जाट व उनकी पत्नी रूपादे के पुत्र थे इसका नाम जसवंत रखा गया था जसनाथ जी 12 वर्ष के थे तब भागथली नामक जंगल में ऊंटो को ढूंढते समय इन्होंने विक्रमी संवत 1551 की आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ली थी उसमें गुरु गोरखनाथ ने दीक्षित करने के बाद इनका नाम जसनाथ रखा जसनाथ जी ने गोरखमालिया नामक स्थान पर निरंतर 12 वर्षों तक तप किया और साथ ही अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को जीव दया ,उत्तम चिंतन का उपदेश दिया जिसमें बमलू गांव के हारो जी ,व लालमदेसर के जीयोजी को आत्मचिंतन करने और बकरों की हत्या करने वाले कसाईयों को हिसा का मार्ग छोड़ कर अहिसा अपनाने का उपदेश दिया जसनाथ जी ने लोहापांगल नामक तांत्रिक का अभिमान चूर किया इन्होंने राव लूणकरण को बीकानेर राज्य की गद्दी प्राप्त करने का वरदान भी दिया व राव घड़सी का अभिमान चूर कर उन्हें ज्ञान प्राप्ति का उपदेश दिया अंत में विक्रमी संवत 1563 शुक्रवार को समस्त सेवक संघ को यथोचित आदेश उपदेश देकर 24 वर्ष की अवस्था में उन्होंने कतरियासर में जीवित समाधि ली! कुछ समय बाद इनकी अविवाहित पत्नी कॉललदे ने भी कतरियासर से पूर्व ही लगभग 1 मील दूर जीवित समाधि ले ली जहां उनकी बाड़ी बनी हुई है मुक्ति प्राप्ति हेतु इन्होंने निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना करने पर बल दिया उनके उपदेशों का संग्रह सिभूदडा तथा कोड़ो नामक ग्रन्थ मे मिलता है! जसनाथी संप्रदाय के 36 धर्म नियम है यह लोग रात्रि जागरण ,अग्नि नृत्य व निर्गुणी पद गायन करते हैं इस पंथ में लाल नाथ जी प्रसिद्ध संत हुए सिकंदर लोदी जसनाथी संप्रदाय से विशेष प्रभावित था उस समय जसनाथ जी को कतरियासर के पास भूमि पर दान की! लाल नाथ जी के अलावा चौखननाथ जी सवाईनाथ जी भी इसी संप्रदाय से संबंधित संत हुए थे इस संप्रदाय की प्रसिद्ध गद्दी कतरियासर में है जहां सिद्ध जसनाथ जी ने जीवित समाधि ली जसनाथ जी के समाधि स्थल होने के बाद उनके प्रमुख शिष्य जागोजी इस गद्दी पर बैठे इस तरह जसनाथ जी के अन्य प्रमुख शिष्यो में से हारो जी ने बमलू में, हासोजी ने लिखमादेसर में और पालो जी ने पूनरासर में और टोडरजी ने मालासर, बोयत जी ने पांचला सिद्धा में अपने स्थान पीठ स्थापित की गई जो संप्रदाय की उपपीठ कहलाते हैं इस प्रकार कतरियासर प्रधान पीठ के अलावा उपयुक्त पाँच उप पीठ हो गई इन स्थानों की गद्दी पर बैठते वे सिद्ध कहलाते हैं इन स्थानों के अलावा और भी कई गांवों में जसनाथ जी की बाड़िया है जिसे 84 बाड़िया प्रमुख हैं जसनाथ जी सिद्धो की जहाँ समाधिया बनी हुई है तथा जहां मंदिर बने हुए हैं वह स्थान बाड़ी कहलाता बाड़ी का दूसरा नाम आसन भी है सेवक के घर नगाड़ा निशान सहित जाकर तथा जसनाथ जी का जागरण देकर भेट लेने को फेरी कहते हैं सिद्धो के अलावा इस संप्रदाय में विरक्त संत भी होते हैं जो परमहंस कहलाते थे तथा अविवाहित रहते हैं प्रारंभ में इस संप्रदाय में दो प्रकार के मंडल थी दुग्धाहारी मंडली व परमहंस मंडली दुग्धाहारी मंडली के संत लिखमादेसर की बाड़ी में रहते थे खेत नाथ जी की मृत्यू के साथ यह मंडली समाप्त हो गई परंतु परमहंस मंडली के सन्त आज भी है इस संप्रदाय को मानने वाले दो प्रकार के लोग हैं पहले सिद्ध नाम से संबोधित किया जाते हैं का दूसरा वर्ग जसनाथी जाट कहलाते हैं इन दोनों वर्गों की मान्यता व धर्म पालन की परिपाटी में केवल इनके पहनावे में थोड़ा अंतर है सिद्ध वर्ग के लोग सिर पर भगवा रंग की पगड़ी बांधते हैं जो अपने जसनाथजी के मंदिरों की पूजा करते हैं कुछ लोग काली उनका धागा भी जो तीन विशेषताओं द्वारा गठित होता है गले में पहनते हैं जसनाथ जी जाट साधारण राजस्थान वेशभूषा में ही रहते हैं जसनाथी संप्रदाय भी मूर्ति पूजा का विरोध किया इस कारण उनके अनुयायी देवताओं की उपासना नहीं करते और न जसनाथ जी की मूर्ति बनाते हैं सिर्फ उनके नाम का स्थान गांव में बनाकर उसके ऊपर लंबी सी ध्वजा फरा देते हैं गोरखछन्दो जसनाथी की महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है समाधि वह मंदिर में मयूर पंख से बनी पंखियां ध्वजा तथा दो नगाडे़ रहते हैं जसनाथ जी ने बीकानेर के राव लूणकरणसर को कहा कि तुम्हारा राज्य जाळ वृक्ष में रहेगा तब से राज्य का अन्य प्रतीकों की तरह जसनाथ जी के रूप में जाळ वृक्ष को भी अपना राज्य प्रतीक माना बीकानेरी झंडे में वन गंगाशाही रुपए में जाळ वृक्ष उसको अंकित किया गया महाराजा गंगा सिंह ने एक बयान जारी किया कि समस्त सरकारी कार्यालयों में जाळ वृक्ष लगाया जाए और इसी उद्देश्य से लालगढ़ का महल में जाळ वृक्ष से घिरे हुए मैदान में बनाया गया है अग्नि नृत्य जसनाथ संप्रदाय में हवन व रात्रि जागरण का विशेष महत्त्व है रात्रि जागरण में अग्नि नृत्य का विशेष कार्यक्रम होता है जो इस संप्रदाय की अनूठी विशेषता है सिद्धू द्वारा अग्निकुंड में फते -फते करते हुए अंगारों पर नृत्य किया जाता है संप्रदाय का अधिक प्रचार भूतपूर्व बीकानेर जोधपुर जैसलमेर राज्य में है रुषतमजी सिद्धधारी पुरुष थे जिन्होंने दिल्ली जाकर मुगल सम्राट औरंगजेब को चमत्कार दिखाए जसनाथी की शिष्य परंपरा में कुछ महत्वपूर्ण संत हुए संत लाल दास जो बड़े विद्वान संत थे जिन्होंने अन्य ग्रंथों की रचना की जिसमें जीव समझोतरी नामक ग्रंथ जसनाथी जसनाथी में बहुत महत्वपूर्ण है सिद्ध रामनाथ का यशोगान पुराण का नाम तो जसनाथी संप्रदाय के लिए बाइबल का स्थान रखता है रुस्तमजी जसनाथी संप्रदाय को भारत में विख्यात करने वाले एकमात्र संत था इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जसनाथ जी ने सभी लोगों को जीव दया व पर्यावरण संरक्षण का उपदेश दिया अंधविश्वास मूर्ति पूजा का विरोध किया!
नाथ संप्रदाय के प्रभाव से जसनाथी संप्रदाय का विकास हुआ था परंतु वैष्णव धर्म से अधिक प्रभावित था इसी कारण यह वैष्णव धर्म का ही संप्रदाय ही माना जाता है जांभोजी के साथ क्षेत्र में जसनाथ जी भी उस समय के प्रसिद्ध सन्त था जिसका जन्म विक्रमी संवत 1539 को कार्तिक शुक्ला एकादशी शनिवार के दिन कतरियासर नामक गांव में हुआ यह हमीरजी नामक जाणी जाट व उनकी पत्नी रूपादे के पुत्र थे इसका नाम जसवंत रखा गया था जसनाथ जी 12 वर्ष के थे तब भागथली नामक जंगल में ऊंटो को ढूंढते समय इन्होंने विक्रमी संवत 1551 की आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ली थी उसमें गुरु गोरखनाथ ने दीक्षित करने के बाद इनका नाम जसनाथ रखा जसनाथ जी ने गोरखमालिया नामक स्थान पर निरंतर 12 वर्षों तक तप किया और साथ ही अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को जीव दया ,उत्तम चिंतन का उपदेश दिया जिसमें बमलू गांव के हारो जी ,व लालमदेसर के जीयोजी को आत्मचिंतन करने और बकरों की हत्या करने वाले कसाईयों को हिसा का मार्ग छोड़ कर अहिसा अपनाने का उपदेश दिया जसनाथ जी ने लोहापांगल नामक तांत्रिक का अभिमान चूर किया इन्होंने राव लूणकरण को बीकानेर राज्य की गद्दी प्राप्त करने का वरदान भी दिया व राव घड़सी का अभिमान चूर कर उन्हें ज्ञान प्राप्ति का उपदेश दिया अंत में विक्रमी संवत 1563 शुक्रवार को समस्त सेवक संघ को यथोचित आदेश उपदेश देकर 24 वर्ष की अवस्था में उन्होंने कतरियासर में जीवित समाधि ली! कुछ समय बाद इनकी अविवाहित पत्नी कॉललदे ने भी कतरियासर से पूर्व ही लगभग 1 मील दूर जीवित समाधि ले ली जहां उनकी बाड़ी बनी हुई है मुक्ति प्राप्ति हेतु इन्होंने निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना करने पर बल दिया उनके उपदेशों का संग्रह सिभूदडा तथा कोड़ो नामक ग्रन्थ मे मिलता है! जसनाथी संप्रदाय के 36 धर्म नियम है यह लोग रात्रि जागरण ,अग्नि नृत्य व निर्गुणी पद गायन करते हैं इस पंथ में लाल नाथ जी प्रसिद्ध संत हुए सिकंदर लोदी जसनाथी संप्रदाय से विशेष प्रभावित था उस समय जसनाथ जी को कतरियासर के पास भूमि पर दान की! लाल नाथ जी के अलावा चौखननाथ जी सवाईनाथ जी भी इसी संप्रदाय से संबंधित संत हुए थे इस संप्रदाय की प्रसिद्ध गद्दी कतरियासर में है जहां सिद्ध जसनाथ जी ने जीवित समाधि ली जसनाथ जी के समाधि स्थल होने के बाद उनके प्रमुख शिष्य जागोजी इस गद्दी पर बैठे इस तरह जसनाथ जी के अन्य प्रमुख शिष्यो में से हारो जी ने बमलू में, हासोजी ने लिखमादेसर में और पालो जी ने पूनरासर में और टोडरजी ने मालासर, बोयत जी ने पांचला सिद्धा में अपने स्थान पीठ स्थापित की गई जो संप्रदाय की उपपीठ कहलाते हैं इस प्रकार कतरियासर प्रधान पीठ के अलावा उपयुक्त पाँच उप पीठ हो गई इन स्थानों की गद्दी पर बैठते वे सिद्ध कहलाते हैं इन स्थानों के अलावा और भी कई गांवों में जसनाथ जी की बाड़िया है जिसे 84 बाड़िया प्रमुख हैं जसनाथ जी सिद्धो की जहाँ समाधिया बनी हुई है तथा जहां मंदिर बने हुए हैं वह स्थान बाड़ी कहलाता बाड़ी का दूसरा नाम आसन भी है सेवक के घर नगाड़ा निशान सहित जाकर तथा जसनाथ जी का जागरण देकर भेट लेने को फेरी कहते हैं सिद्धो के अलावा इस संप्रदाय में विरक्त संत भी होते हैं जो परमहंस कहलाते थे तथा अविवाहित रहते हैं प्रारंभ में इस संप्रदाय में दो प्रकार के मंडल थी दुग्धाहारी मंडली व परमहंस मंडली दुग्धाहारी मंडली के संत लिखमादेसर की बाड़ी में रहते थे खेत नाथ जी की मृत्यू के साथ यह मंडली समाप्त हो गई परंतु परमहंस मंडली के सन्त आज भी है इस संप्रदाय को मानने वाले दो प्रकार के लोग हैं पहले सिद्ध नाम से संबोधित किया जाते हैं का दूसरा वर्ग जसनाथी जाट कहलाते हैं इन दोनों वर्गों की मान्यता व धर्म पालन की परिपाटी में केवल इनके पहनावे में थोड़ा अंतर है सिद्ध वर्ग के लोग सिर पर भगवा रंग की पगड़ी बांधते हैं जो अपने जसनाथजी के मंदिरों की पूजा करते हैं कुछ लोग काली उनका धागा भी जो तीन विशेषताओं द्वारा गठित होता है गले में पहनते हैं जसनाथ जी जाट साधारण राजस्थान वेशभूषा में ही रहते हैं जसनाथी संप्रदाय भी मूर्ति पूजा का विरोध किया इस कारण उनके अनुयायी देवताओं की उपासना नहीं करते और न जसनाथ जी की मूर्ति बनाते हैं सिर्फ उनके नाम का स्थान गांव में बनाकर उसके ऊपर लंबी सी ध्वजा फरा देते हैं गोरखछन्दो जसनाथी की महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है समाधि वह मंदिर में मयूर पंख से बनी पंखियां ध्वजा तथा दो नगाडे़ रहते हैं जसनाथ जी ने बीकानेर के राव लूणकरणसर को कहा कि तुम्हारा राज्य जाळ वृक्ष में रहेगा तब से राज्य का अन्य प्रतीकों की तरह जसनाथ जी के रूप में जाळ वृक्ष को भी अपना राज्य प्रतीक माना बीकानेरी झंडे में वन गंगाशाही रुपए में जाळ वृक्ष उसको अंकित किया गया महाराजा गंगा सिंह ने एक बयान जारी किया कि समस्त सरकारी कार्यालयों में जाळ वृक्ष लगाया जाए और इसी उद्देश्य से लालगढ़ का महल में जाळ वृक्ष से घिरे हुए मैदान में बनाया गया है अग्नि नृत्य जसनाथ संप्रदाय में हवन व रात्रि जागरण का विशेष महत्त्व है रात्रि जागरण में अग्नि नृत्य का विशेष कार्यक्रम होता है जो इस संप्रदाय की अनूठी विशेषता है सिद्धू द्वारा अग्निकुंड में फते -फते करते हुए अंगारों पर नृत्य किया जाता है संप्रदाय का अधिक प्रचार भूतपूर्व बीकानेर जोधपुर जैसलमेर राज्य में है रुषतमजी सिद्धधारी पुरुष थे जिन्होंने दिल्ली जाकर मुगल सम्राट औरंगजेब को चमत्कार दिखाए जसनाथी की शिष्य परंपरा में कुछ महत्वपूर्ण संत हुए संत लाल दास जो बड़े विद्वान संत थे जिन्होंने अन्य ग्रंथों की रचना की जिसमें जीव समझोतरी नामक ग्रंथ जसनाथी जसनाथी में बहुत महत्वपूर्ण है सिद्ध रामनाथ का यशोगान पुराण का नाम तो जसनाथी संप्रदाय के लिए बाइबल का स्थान रखता है रुस्तमजी जसनाथी संप्रदाय को भारत में विख्यात करने वाले एकमात्र संत था इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जसनाथ जी ने सभी लोगों को जीव दया व पर्यावरण संरक्षण का उपदेश दिया अंधविश्वास मूर्ति पूजा का विरोध किया!
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