गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज प्रथम
गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज प्रथम प्राचीन भारतीय इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश का बड़ा महत्व है इन्होंने उत्तर भारत की जो राजनीतिक शक्ति की कमी हो गई थी उसे पुनः स्थापित किया इस वर्ष के प्रतापी शासकों ने उत्तर भारत को मुस्लिम शक्ति को रोके रखा अग्निकुल के राष्ट्रकुल में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार था बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशिन दितिय किए एहोल अभिलेख में गुर्जर का उल्लेख सर्वप्रथम मिलता है आज हम गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज प्रथम के बारे में अध्ययन करें मिहिर भोज प्रथम इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था यह रामभद्र का पुत्र था इसकी माता अप्पा देवी थी उनका सर्वप्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है! इसकी तिथि 893 विक्रमी संवत है! इनका शासनकाल लगभग 836 ईस्वी से प्रारंभ हुआ और इसके शासनकाल की अंतिम तिथि 885 ई. है इनका सर्वाधिक प्रसिद्ध लेख ग्वालियर प्रशस्ति है जिसमे इस वंश उसके बारे में काफी जानकारी मिलती है इसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी कन्नौज को बनाया कश्मीर कवि कल्हण की राजतरंगिणी ने मिहिर भोज की उपलब्धियों का प्रकाश पड़ता है अरब यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया जिसने अरबो को रोक दिया था ग्वालियर अभिलेख में इसकी उपाधि आदिवराह मिलती है दौलतपुर अभिलेख में इसे प्रभास का गया परंतु इनके अपनी मुद्राओं पर आदिवराह की उपाधि उत्कीर्ण करवाई थी उसके समय में चांदी और तांबे के सिक्के थे जिस पर श्रीमदादिवराह अकिंत है! यह प्रतिहार वशं का ही नहीं वरन प्राचीन भारत वर्ष का एक महान शासक माना जाता है मिहिर भोज प्रथम की राजनीति को उपलब्धियां कालिंजर मंडल:- मिहिर भोज प्रथम ने कालिंजर पर अपना अधिकार कर वहां के चंदन नरेश जय शक्ति को पराजित किया था गुर्जरात्र:- इस प्रदेश में पून: अपना अधिकार स्थापित करने के लिए मिहिर भोज प्रथम को मंडोर के राजा बाउक का दमन करना पड़ता था आप पढ़ा था यह अनुमान जोधपुर अभिलेख पर आधारित है इस समय दक्षिण राजपूताना का चाहमान वंश मिहिर भोज प्रथम के अधीन था! कलचुरी वंश-: कहला अभिलेख का कथन है कि कलचुरी वंश के राजा गुणामबुद्धि देव को भोज ने भूमि प्रदान की थी अधिकांश विद्वानों के मतानुसार यह मिहिर भोज प्रथम था इसलिए हमें यह स्पष्ट हो जाता है कलचुरी वंश मिहिर भोज प्रथम के अधीन था गुहिल वंश :- चाटसु अभिलेख से यह प्रकट होता कि हंर्षराज गुहिल ने गोड नरेश को पराजित किया और पूर्वी भारत के राज्यों से कर वसूल किया भोज को उपहार स्वरूप घोङे दिए इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि गुहिल नरेश हंर्षराज मिहिर भोज के अधीन था ! हरियाणा :- 882 ई. के पिहोवा अभिलेख से यह सिद्ध होता है कि भोज के शासनकाल में कुछ व्यापारियों ने वहां के बाजार में घोड़ों का क्रय विक्रय किया था इस कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि हरियाणा पर भोज का अधिकार था !! राष्ट्रकूट से युद्ध :- अपने पूर्वजों की भाँति मिहिर भोज प्रथम को भी राष्ट्रकूट से युद्ध करना पड़ा इस बार युद्ध का श्री गणेश मिहिर भोज प्रथम ने किया उसने राष्ट्रकूट को पराजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया इस समय राष्ट्रकूट वंश के कृष्ण द्वितिय का शासन था! पालों से युद्ध:- मिहिर भोज को अपने समकालीन पाल नरेश देव पाल से भी युद्ध करना पड़ा! देवपाल पाल वंश का एक महान पराक्रमी राजा था और मै वह मिहिर भोज प्रथम की भांति भारतवर्ष में एक छत्र राज्य स्थापित करना चाहता था देव पाल के बाद उसके ऊपर अधिकारी नारायण पाल को भी मिहिर भोज प्रथम ने बुरी तरह परास्त किया राज्य का विस्तार-: मिहिर भोज ने अपने शौर्य से ने केवल अपने राज्य की रक्षा की वरन उनका और अधिक विस्तार किया उनका राज्य उत्तर से हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड तक और पूर्व में उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम में गुजरात और काठियावाड़ तक विस्तृत था इस राज्य में राजपूताना राज्य अधिकाश भाग सम्मिलित था राज्य का त्याग :- स्कंदपुराण के अनुसार मिहिर भोज प्रथम ने तीर्थ यात्रा करने के लिए राज्य का भार अपने पुत्र महेंद्र पाल को सौंपकर सिहासन त्याग दिया था! अरब यात्री सुलेमान :- 18 51 ईस्वी में सुलेमान अरब यात्री ने मिहिर भोज के संबंध में एक विवरण प्रस्तुत किया है उसको गुर्जर नरेश करता है इसका कथन है कि इस नरेश के पास एक विशाल सेना थी उसकी अश्व सेना भारत के किसी भी अन्य नरेश की सेना से बड़ी थी सुलेमान मिहिर भोज को इस्लाम का शत्रु बताता है और उसके साम्राज्य की प्रशंसा करता है उसके राज्य में सोने चांदी की बहुत सी खाने की और उसका राज्य चोरी डकैती से मुक्त था ! मिहिर भोज प्रथम का मूल्यांकन:- मिहिर भोज प्रथम की गणना भारत के महान सम्राटों में होती है उनके पिता रामभद्र के शासनकाल में प्रत्येक वर्ष की जो अवन्नति हुई थी उसका पूर्णतया निराकरण कर दिया उसने पालो व राष्ट्रकूटों से अपने साम्राज्य की रक्षा की यदि वह नहीं होता तो संभवतः मुसलमान उत्तर भारत में कुछ स्थानों पर अपना अधिकार कर लेते अपने साम्राज्य के विभिन्न भागों की रक्षा के लिए उसने योग्य सामंतों को नियुक्त किया इसमें गुणामबोदी देव, हर्षराज, व कक्कुक, बाउक विशेष रूप से उल्लेखनीय है आंतरिक शांति व सुरक्षा बनाए रखने तथा बाहरी आक्रमणों के विरुद्ध ने समृद्धि की रक्षा के लिए उसने एक विशाल सेना का समर्थन किया था इतिहासकारों ने उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की है
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