राजस्थान किसान आंदोलन :बिजोैलिया किसान आंदोलन
राजस्थान के किसान आंदोलन राजस्थान में ब्रिटिश अधिपत्य के बाद अत्यधिक ऊंची लगान दरें ,राजशाही के बढ़ते खर्चों के कारण किसानों पर बोझ, लाग बाग, लाटा कुंता एवं बैठ बेगार में बढ़ोतरी एवं जबरदस्ती, किसानों का कर्ज चुकाने की स्थिति में होना एवं नगद व कठोर वसूली ,पैतृक भूमि से उन्हें बार-बार वंचित करना तथा सामंती अत्याचार और जुल्मों से असंतोष एवं पीड़ा में अत्यधिक वृद्वि की उन्हें आंदोलन करने पर मजबूर किया उन्हें सिर्फ एक कुशल नेतृत्व की आवश्यकता थी जो राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने प्रदान करें आंदोलन का बिगुल बजा दिया राजस्थान में कृषकों का यह आंदोलन बिजोैलिया से प्रारंभ हुआ और बेगू, बूंदी, अलवर, सीकर आदि सभी जगह फैल गया जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक बिजोलिया कृषक आंदोलन रहा मेवाड़ किसान आंदोलन- मेवाड़ राज्य में कुल कृषि भूमि का 87% भाग जागीरदारों के नियंत्रण में था जबकि कुल 13% भाग सीधे महाराणा के नियंत्रण में था किसान आंदोलन की शुरुआत मेवाड़ राज्य के बिजोलिया से मानी जाती है बिजोैलिया किसान आंदोलन (18 97 ईस्वी से लेकर 1941 ईस्वी )तक चला बिजोैलिया किसान आंदोलन भीलवाड़ा 18 97 ईस्वी से लेकर 1941 ईस्वी- भारत में एक संगठित किसान आंदोलन की शुरुआत का श्रेय मेवाड़ के बिजोैलिया क्षेत्र को जाता है बिजोैलिया मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था इस ठिकाने के संस्थापक अशोक परमार था जो मूल निवास स्थान गजनेर भरतपुर से राणा सांगा की सेवा में चितौड. आ गया वह राणा सांगा की ओर से 1527 ईस्वी में खानवा के युद्ध में लड़ा था राणा ने उसे ऊपरमाल की जागीर प्रदान की बिजोैलिया उक्त जागीर का सदर मुकाम था इस ठिकाने का क्षेत्रफल 100 वर्ग मील है जो 25 गांव में स्थित था संन 1921 में संपूर्ण ठिकाने की जनसंख्या 12000 थी संन 1931 में यहां की जनसंख्या 15000 थी जिसमें से 10,000 किसान थी किसानों की कुल जनसंख्या में से धाकड़ जाति के किसानों की जनसंख्या 6000 थी जो कुल किसान जनसंख्या का 60% था लाग बाग की संख्या निश्चित नहीं थी बिजोलिया के राव सवाई कृष्ण सिंह के समय बिजोलिया की जनता से 84 प्रकार की लाग बाग ली जाती थी सन 1922 में लाग बाग की संख्या 74 थी अनेंक लागतो के अलावा वहां की जनता से बेैठ बैगार भी ली जाती थी बिजोलिया की जनता अत्याचारों से तिलमिला उठी थी सन 1897 ईस्वी में ऊपरमाल की धाकड़ किसान गंगाराम धाकड़ के मृत्यु भोज के अवसर पर गिरधारीपुरा नामक ग्राम में सभी एकत्रित हुए इस मौके पर किसानों ने निर्णय किया कि किसानों की ओर से बेरीसाल के नान जी पटेल व गोपाल निवास के ठाकरी पटेल उदयपुर जाकर ठिकाने के जुल्मों के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करें तदनुसार दोनों पटेल उदयपुर पहुंचे 6 माह बाद महाराणा ने उनकी सुनवाई की और राजस्व अधिकारी हामिद हुसैन को शिकायतों की जांच के लिए बिजोलिया भेजा अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में किसानों की शिकायतों को सही बताया पर राज्य सरकार ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की इससे राव सवाई कृष्ण सिंह के हौसले बढ़ गए उसने उदयपुर जाने वाले नानजी और ठाकरी पटेल को ऊपरमाल से निर्वासित कर दिया किसानों का पहला प्रयास असफल रहा सन 1903 में राव सवाई कृष्ण सिंह ऊपरमाल की जनता पर चँवरी कर लागत लगाई इस लागत के अनुसार पट्टे के हर व्यक्ति को अपनी लड़की की शादी के अवसर पर ₹5 चँवरी कर के रूप में ठिकाने को देना पड़ता था विरोध स्वरूप किसानों ने लड़कियों की शादी करना स्थगित कर दिया पर राव सवाई कृष्ण सिंह के कान पर जूं तक नहीं रेंगी किसानों ने निश्चय किया कि जबतक चँवरी की लाकर समाप्त नहीं की जाती लगान में कमी नहीं की जाती है ठिकाने की भूमि पर खेती नहीं करेंगे और ठिकाने को लाग बाग नहीं देगे ठाकुर ने चँवरी की लागत आधी कर दी और लगान उपज के आदेश के स्थान पर 2 /5 ही लेने की घोषणा की उस जमाने में किसानों की यह एक अप्रत्याशित विजय थी! इस सफलता ने किसानों के भावी असहयोग व अहिंसात्मक आंदोलन की आधारशिला रखी सन 1906 में राव सवाई कृष्ण सिंह की मृत्यु हो गई उनके स्थान पर पृथ्वी सिंह बिजोलिया का स्वामी बना मेवाड़ राज्य के नियमों के अनुसार पृथ्वी सिंह को बिजोलिया का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से पूर्व उसे तलवार बंधाई के रूप में महाराणा को एक बड़ी धनराशि देनी थी पृथ्वीराज ने यह भार जनता पर डाल दिया उसने एक और लगान वृद्वि कर दी और दूसरी और तलवार बंदी की लागत लगा दी किसानों ने साधु सीताराम दास, फतेह करण चारण, व ब्रह्मा देव के नेतृत्व में राव की इस कार्रवाई का विरोध किया! सन 1913 ई. में ठिकाने की भूमि कर नही दिया ठाकुर ने कई किसान कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया इसी बीच 1914 ईस्वी में पृथ्वी सिंह की मृत्यु हो गई उसका पुत्र केसरिसिह नाबालिग था अतः मेवाड़ सरकार ने ठिकाने पर मूरसमात कायम कर दी राज्य सरकार की ओर से अमरसिंह राणावत को बिजोलिया ठिकाने का प्रशासक नियुक्त किया बिजोलिया के किसानों में गुर्जर क्रांतिकारी श्री विजय सिंह पथिक ने एक संघ 1916 ईस्वी में प्रवेश किया श्री विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूप सिंह था 1907 ईस्वी में प्रसिद्ध क्रांतिकारी सचिंद्र सान्याल और रासबिहारी बोस के संपर्क में आए तभी से क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लग गए बोस ने उन्हें राजस्थान में क्रांति का आयोजन करने के लिए खरवा के ठाकुर गोपाल सिंह के पास भेजा उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली और नाम भूप सिंह से बदलकर विजय सिंह पथिक रख लिया तभी से जीवन भर वे इसी नाम से जाने जाते रहे विजय सिंह पथिक का जुड़ना - विजय सिंह पथिक जी भाणा से मोही व मोही से चित्तौड़ पहुंच गए वहां उन्होंने हरिभाई किंकर द्वारा संचालित विद्या प्रचारिणी सभा से नाता जोड़ लिया इसी संस्था की एक शाखा साधु सीताराम दास ने बिजोलिया में स्थापित की थी यह संस्था उन्होंने डूंगर सिंह भाटी तथा ईश्वरदान आशिया के सहयोग से 1915 ईस्वी में स्थापित की विद्या प्रचारिणी सभा की वार्षिक जलसे में भाग लेने के लिए साधु जी चित्तौड़ आए साधु जी ने पथिक जी को बिजोलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व संभालने के लिए आमंत्रित किया पथिक जी तत्काल बिजोलिया पहुंच गए और उन्होंने उसे अपने कर्म भूमि बना लिया तभी माणिक्य लाल वर्मा पथिक जी के संपर्क में आए उन्होंने पथिक जी से प्रभावित होकर ठिकाने की सेवा से इस्तीफा दे दिया और विद्या प्रचारिणी सभा में मंत्री बन गए थे पथिक ने 1917 ई. को हरियाली अमावस्या के दिन बारिसाल गांव में ऊपरमाल पंच बोर्ड( किसान पंचायत बोर्ड )नाम से एक जबरदस्त सस्थां स्थापित कर श्री मन्ना पटेल इस पंचायत का सरपंच बना बाल गंगाधर तिलक ने किसानों की वीरता और संगठन से प्रभावित होकर न केवल अपने अंग्रेजी पत्र मराठा में बिजोलिया के बारे में एक संपादकीय लिखा था अपितु मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को भी पत्र लिखा कि मेवाड़ के राजवंश ने स्वतंत्रता के लिए बहुत बलिदान किए हैं आप सभी स्वतंत्रता के पुजारी हैं अतः आपके राज्य में स्वतंत्रता के उपासको को जेल में डालना कलंक की बात है इस समय बिजोलिया के किसान रूस की अक्टूबर 1917 की क्रांति से प्रेरित थे!पथिक जी, माणिक्य लाल वर्मा ,साधु सीताराम दास, भंवरलाल सुनार ,प्रेमचंद भील आदि नेताओं ने रूस में किसान मजदूर सता की स्थापना के समाचार बिजोलिया के किसानों ने प्रसारित कर रहे थे सरकार के गुप्तचरों को पथिक की गतिविधियों का पता चल गया अंग्रेजों के इशारे पर राज्य सरकार ने पथिक की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया इसकी सूचना पथिक जी को मिल गई थी इसलिए वह बिजोलिया छोड़कर भूमिगत होकर ऊमा जी के खेड़े में एक वीरान मकान में रहने लगा! ऊमा जी का खेड़ा किसान क्रांति का केंद्र बन गया पथिक भूमिगत होते हुए भी गांव-गांव घूमकर किसानों के संगठन को सुदृढ़ करने के लिए गतिशील था! किसानों से प्रथम विश्वयुद्ध के लिए चंदे के नाम पर धन लिया जा रहा था पथिक जी ने अब युद्ध के चंदे के विरोध में आवाज बुलंद की! सारा ऊपरमाल सत्याग्रह सम्बन्धी गीतों से गूंजने लगा गोविंदनिवास गांव के नारायण जी पटेल ने ठिकाने में बैगार करने से इंकार कर दिया इस पर ठिकाने के कर्मचारियों ने उसे पकड़ लिया और कैद में डाल दिया किसान पंचायत के आदेशानुसार किसानों के जत्थे बिजोैलिया पहुंचने लगे उनका नारा था इन्हे छोड़ दो या हमें जेल में डाल दो! लगभग 2000 किसान ठिकाने के दफ्तर के सामने एकत्रित हो गए ठिकाने के प्रशासक भयभीत हो गए उन्होंने नारायण जी पटेल को जेल से मुक्त कर दिया एक और वर्मा जी द्वारा रचित" पंछीड़ा" गाए जाने लगा दूसरी और प्रज्ञाचक्षु भंवरलाल स्वर्णकार भी अपनी कविताओं के माध्यम से गांव-गांव में अलख जगा रहे थे पथिक जी ने भी बिजोैलिया के आसपास के इलाकों में लोगों को देशभक्ति की भावना बढ़ाने के उद्देश्य से ही समय पर ऊपरमाल का डंका नाम से पंचायत का एक पत्र भी निकाला था पथिक जी ने देश भर में बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रचार की व्यवस्था की सूचना कानपुर से निकलने वाले प्रताप के संपादक श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के पास भेजी गई इसके साथ ही बिजोलिया के किसानों की ओर से राखी भेजी विद्यार्थी जी ने आन्दोलन का समर्थन करने का आश्वासन दिया उन्होंने अपने इस पवित्र आश्वासन को अन्त तक निभाया उन्होंने बिजोलिया किसान आंदोलन के समर्थन में क्रांतिकारी लेखों की श्रंखला प्रकाशित की प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि में मेवाड़ के जन आंदोलन का चित्रण किया गया है वह बिजोैलिया किसान आंदोलन का ही प्रतिबिंब है पथिक जी कांग्रेस के 1918 के अधिवेशन में शामिल होने के लिए दिल्ली गए पथिक जी के आदेशानुसार वर्मा जी व साधु जी अनेक प्रतिनिधियों को लेकर दिल्ली पहुंचे वहां उनकी मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी जी से हुई उनकें लौटते ही ठिकाने का दमन चक्र शुरू हो गया 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजोैलिया संबंधी प्रस्ताव रखा पथिक जी ने स्मृति पत्रों द्वारा भारत सरकार व मेवाड़ सरकार को ठिकानों के अत्याचारों से अवगत कराया उदयपुर राज्य सरकार ने अप्रैल 1919 में बिजोलिया किसान आंदोलन कार्यों की शिकायतों की सुनवाई करने के लिए एक आयोग बिजोलिया भेजा इस आयोग में ठाकुर अमरसिह, अफजलअली और बिंदु लाल भट्टाचार्य सदस्य थे आयोग ने सिफारिश की कि किसान कार्यकर्ताओं को जेल से छोड़ दिया जाए अनावश्यक लागते समाप्त कर दी जाए एवं बेगार प्रथा बंद कर दी जाए मेवाड़ सरकार ने आयोग की सिफारिशों पर कोई निर्णय नहीं लिया ठिकाने ने 200 प्रमुख किसानों को जेल में डाल दिया इसी संदर्भ में मदन मोहन मालवीय जी महाराणा से मिली परंतु उन्हें भी कोई सफलता नहीं मिली विजय सिंह पथिक जी का वर्धा जाना-( 1919 ईस्वी ) विजय सिंह पथिक जी महात्मा गांधी से मिलने के लिए सन 1919 में मुंबई गए महात्मा गांधी ने अपने सचिव महादेव देसाई को पथिक जी के साथ बिजोैलिया भेजा महात्मा गांधी ने किसानों की शिकायतें दूर करने के लिए महाराणा फतेह सिंह को एक पत्र भी लिखा पर कोई फल नहीं निकला पथिक जी की मुंबई यात्रा के समय यह निश्चय किया गया कि विजय सिंह पथिक जी के संपादकत्व में वर्धा में एक राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र निकाला जाए सन 1919 में वर्धा में राजस्थान केसरी का प्रकाशन शुरू हुआ पत्र के सहसंपादक श्री राम नारायण चौधरी व ईश्वरदान जी आशिया एवं व्यवस्थापक श्री हरिभाई किंकर तथा श्री कन्हैया लाल जी कल यंत्री नियुक्त किए गए पत्र की आर्थिक जिम्मेदारी सेठ जमनालाल बजाज ने उठाई उन्होंने पत्र का बड़ी खूबी से संचालन किया इस बीच बिजोलिया आंदोलन का संचालन वर्मा जी ने किया पथिक जी के प्रयत्नों से वर्धा में 1919 में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसे सन 1920 में अजमेर स्थानांतरित कर दिया सन 1920 में राजस्थान केसरी को अजमेर स्थानांतरित किया गया पथिक जी ने अब अजमेर को अपनी प्रवृत्तियों का केंद्र बनाया वहां से उन्होंने एक नया पत्र नवीन राजस्थान प्रकाशित किया इधर माणिक्य लाल वर्मा जी किसान आंदोलन को तीव्र बनाने में जुट गए राजपूताना मध्य भारत सभा के अधिवेशन में भी विजय सिंह पथिक ने बिजोैलिया का प्रश्न उठाया सभा ने भवानी दयाल की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की और बिजोलिया के किसानों के कष्टों की जांच का कार्य से सुपुर्द किया महाराणा नहीं चाहते थे कि कोई बाहर की एजेंसी बिजोलिया के मामले में हस्तक्षेप करें महाराणा ने उत्तर में लिखा कि वह एक कमीशन की नियुक्ति कर रहे हैं महाराणा ने तुरंत जांच आयोग की घोषणा की इस आयोग में ठाकुर राजसिंह बेदला, रमाकांत मालविए तथा तख्त सिंह मेहता को सदस्य बनाया गया यह आयोग बिजोलिया नहीं गया माणिक्य लाल की अध्यक्षता में 15 सदस्यों का एक प्रतिनिधि मंडल उदयपुर पहुंचा माणिक्य लाल ने किसानों की कठिनाइयों और उन पर किए जा रहे अत्याचारों का विस्तृत विवरण आयोग के सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत किया जांच आयोग ने किसानों की शिकायतों को सही माना और राज्य सरकार से सिफारिश की कि किसानों से अवैधानिक रूप से ली जा रही लागते और बैगार समाप्त कराई जाए महाराणा ने आयोग की सिफारिशों की ओर ध्यान नहीं दिया ब्रिटिश सरकार बिजोलिया किसान पंचायतों को बोल्शेविक रूस के कम्युनो का प्रतिरूप मानती थी वह आंदोलन को शक्ति से कुचलने के पक्ष में थी बिजोलिया के लोग एक दूसरे को काॕमरेड कह कर संबोधित करते थे 1920 में विजय सिंह पथिक अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजोलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई प्रदर्शनी का आयोजन किया गया गांधीजी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजोलिया के किसानों को हिजरत( क्षेत्र छोड़ने की) सलाह दी पथिक जी ने अपनाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि यह तो केवल हिजड़ों के लिए उचित है मर्दो के लिए नहीं ! राजस्थान सेवा संघ के नेतृत्व में आंदोलन:- 8 अक्टूबर 1921 को बिना कुंता किसानों ने फसल काट ली है बिजोलिया के आंदोलन का असर मेवाड़ के अन्य किसानों तथा सीमावर्ती राज्यों पर भी पड़ने लगा था इससे भारत सरकार भयभीत हो गई ब्रिटिश सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जिसमें ए.जी.जी हाॕलैंड ,उनके सचिव आगल्वी, मेवाड़ के ब्रिटिश रेजिडेंस विल्किसन ,मेवाड़ राज्य के दीवान प्रभाष चंद्र चटर्जी और राज्य के शायर हाकिम बिहारी लाल को रखा 4 फरवरी 1922 ईस्वी को यह समिति बिजोैलिया पहुंची किसान पंचायत बोर्ड की ओर से माणिक्य लाल वर्मा ने प्रतिनिधित्व किया हाॕलैंड के प्रयत्नों से ठिकानों और किसानों के बीच सम्मान पूर्वक समझौता हो गया 35 लागते माफ कर दी गई ठिकानों के जुल्मी कामदार हटा दिए गए किसानों पर चलाए गए मुकदमें उठा लिए गए जिन किसानों की जमीनें दूसरों के कब्जे में थी वह उन्हें पुनः सौंप दी गई दुर्भाग्य से समझौता ठिकानों की बदनियति के कारण टिकाऊ नहीं रह पाया :: सन 1923 में बिजोलिया के राव का विवाह हुआ इस विवाह में ठिकाना किसानों से बेकार लेना चाहता था तो ठिकाने व किसानों में फिर ठन गई !सन 1926 में ठिकाने में बंदोबस्त हुआ उसमें लगान की ऊंची दरें नियत की गई जनवरी 1927 में मेवाड़ के बंदोबस्त अधिकारी श्री ट्रेन्च बिजोलिया आये! ट्रेन्च ने किसी प्रकार पंचायत और ठिकाने में समझोैता तो करा दिया पर इनके थोड़े समय बाद ही मार्च 1927 में माणिक्य लाल वर्मा को जेल में डाल दिया गया ! बिजोलिया के किसान नए बंदोबस्त में निर्धारित लगान की ऊंची दरों से क्षुब्ध थे लगान की ऊंची दरें निर्धारित करने के विरोध में किसानों ने मई 1927 को अपनी अपनी जमीनों से इस्तीफे दे दिए ठिकानों ने जमीनों को नीलाम किया दुर्भाग्य से जमीनों को उठाने वाले भी मिल गए इससे किसान मात खा गए जमनालाल बजाज का नेतृत्व :- इस समय माणिक्य लाल वर्मा जी विजय सिंह पथिक जी और रामनारायण चौधरी के बीच भी गहरा मतभेद हो गया था परिणाम यह हुआ कि राजस्थान सेवा संघ छिन भिन्न हो गया और जमुनालाल बजाज इस आंदोलन का सर्वोसर्वा बना दिए गए अक्षय तृतीया 1931 ईस्वी को 4000 किसानों ने अपनी इस्तीफासुधा जमीनों पर हल चलाना आरंभ किया ठिकाने के कर्मचारी सेना व पुलिस के सिपाही तथा जमीनों के नए मालिक किसानों पर टूट पड़े किसानों ने शांति के साथ मार सहन की राज्यों ने किसानों के सत्याग्रह का मुकाबला करने के लिए बिजोलिया में सेना व पुलिस नियुक्त की बिजोलिया का मसला अखिल भारतीय रूप धारण कर चुका था सेठ जी जुलाई 1931 को उदयपुर पहुंचे और महाराणा व सर सुखदेव प्रसाद से मिले इस भेंट के फलस्वरुप एक समझौता हुआ जिसके अनुसार सरकार ने आश्वासन दिया कि माल की जमीन धीरे-धीरे पुराने बापीदारों को लौटा दी जाएंगी सत्याग्रही रिहा कर दिए जाएंगे 1922 के समझौते का पालन किया जाएगा मेवाड़ सरकार ने डेढ़ वर्ष बाद नवंबर 1933 को माणिक्य लाल वर्मा जी को रिहा कर दिया लेकिन मेवाड़ से निर्वासित कर दिया माणिक्य लाल वर्मा जी का पुनः नेतृत्व :- बिजोलिया आंदोलन का पटाक्षेप 44 वर्ष बाद सन 1941 को हुआ जब मेवाड़ में टी विजय राघवाचार्य प्रधानमंत्री बने उस समय मेवाड़ प्रजामंडल से पाबंदी उठाई जा चुकी थी और माणिक्य लाल वर्मा जी आदि प्रजामंडल के नेता मुक्त किए जा चुके थे राघवाचार्य के आदेश से तत्कालीन राजस्व मंत्री डॉ० मोहन सिंह मेहता बिजोलिया गए और माणिक्य लाल वर्मा जी व अन्य किसान नेताओं से बातचीत कर किसानों की समस्या का समाधान करवाया किसानों को अपनी जमीन वापस मिल गई माणिक्य लाल वर्मा जी के जीवन की यह प्रथम बड़ी सफलता थी देश के इतिहास में यह अपने ढंग का अनूठा किसान आंदोलन था जो राज्य की सीमाएं लांघ कर पड़ोसी राज्य में भी फैला इस आंदोलन न्यूज़ राजस्थान की रियासतों को एक नई चेतना प्रदान की! इन किसान आंदोलन ने यह सिद्ध किया कि अहिंसात्मक तरीके से भी शोषण एवं जुल्म से सफल संघर्ष किया जा सकता है इन आंदोलनों की सफलता इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि सामंतशाही को उनकी मांगों के सामने घुटने टेकने पड़े इन आंदोलनों ने न केवल राजस्थान की जनता में वरन संपूर्ण देश की जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने में असाधारण भूमिका निभाई यह जागृत किसान ही आगे जाकर सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन के अभिन्न अंग बने
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