राजस्थान का अण्डमान : जैसलमेर का किला
जैसलमेर का किला जैसलमेर जैसलमेर के किले का निर्माण 12 जुलाई 1955 को दुर्ग की नींव महारावल जैसल द्वारा रखी गई थी दुर्ग थोड़ा ही भाग बना था कि महारावल जैसल की मृत्यु हो गई थी इसके बाद उसके पुत्र शालीवाहन द्वितिय ने पूरा करवाया भाटियों की राजधानी लोद्रवा से जैसलमेर स्थानांतरित की गई इस किले का उपनाम गोरहरागढ़/ सोनारगढ़ /सर्वण गिरी जैसाण गढ़/ त्रिकूट गढ़ /राजस्थान का अंडमान/ रेगिस्तान का गुलाब/ गलियों का दुर्ग कहलाता है गोरहरागढ़ -गोरहरा नामक पहाड़ी पर निर्मित होने के कारण इसे गोरहरागढ़ कहा जाता है सर्वण गिरी/ सोनारगढ़/ सोनगिरी/ :- सूर्योदय व सूर्यास्त के समय पीले पत्थरों का सूरज की किरणों में चमकने के कारण इसे सर्वण गिरी कहा जाता है जैसाण गढ़:- किले के निर्माता के नाम में राजस्थान के लोक कवियों ने जैसाणगढ़ कहा! त्रिकूटगढ़:- त्रिभुजाकार पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे त्रिकूट पहाड़ी दुर्ग भी कहा जाता है इस दुर्ग के चारों ओर 99 विशाल बूर्ज बने हुए हैं इस दुर्ग का दौहरा परकोटा कमरकोट कहलाता है यह किला पीले पत्थरों से बिना सीमेंट , चुन्ने से निर्मित है यह धावन्य श्रेणी का दुर्ग है इसे बनने में लगभग 7 वर्ष लगे थे चित्तौड़गढ़ के पश्चात राजस्थान का दूसरा बड़ा लिंग फोर्ट है इस किले का क्षेत्रफल 8 हैक्टयर है यह एकमात्र किला है जिसके कुछ महलों की छत लकड़ी की बनी हुई है यह दुर्ग अपने अढा़ई साको व 99 बूर्जो के लिए प्रसिद्ध है दुर्ग पीले पत्थरों से बना होने के कारण सोने के समान प्रतीत होता है जैसलमेर किले के प्रवेश द्वार को अक्षय पोल कहते हैं इसके अलावा अन्य द्वार सूरजपोल, गणेशपोल ,हवा पोल है जैसलमेर के किले के प्रमुख महल रंगमहल :-महारावल मूलराज द्वितीय द्वारा निर्मित मोतीमहल :-महारावल मूलराज के द्वारा निर्मित गज विलास:- महारावल गज सिंह द्वारा 18 84 में निर्मित सर्वोत्तम विलास महल:- महारावल अखैसिह के शासन काल में निर्मित इस महल में नीली चौकियों व काँच का जड़ाऊ काम सुंदर व कलात्मक है अन्य महल जवाहर विलास, रनिवास ,कुंवरपदा, वेैरीसाल की बूर्ज आती है जैसलमेर किले में बने प्रमुख मंदिर लक्ष्मी नाथ का मंदिर :-महाराजा वेैरीसाल के शासन काल में निर्मित है यह मूर्ति मेड़ता से 1437 ईस्वी में लाई गई थी जैसलमेर के शासक श्री लक्ष्मी नारायण जी को जैसलमेर का शासक मानते हैं वह अपने को उसका दीवान मानते हैं रत्नेश्वर महादेव मंदिर:- महारावल वेैरीसाल इसका निर्माण अपनी रानी रत्ना के नाम से करवाया था सूर्य मंदिर:- महारावल वेैरीसाल ने रानी सूर्यकंवर के नाम से इस मंदिर का नाम करवाया था खुशाल राज राजेश्वरी मंदिर:- खुशाल सिंह ने करवाया था स्वांगिया देवी का मंदिर :-भाटी शासकों की कुलदेवी है टीकमराय मंदिर :- महारावल जगत सिंह द्वारा निर्मित है शांतिनाथ व कुथुनाथ जैन मंदिर, संभवनाथ जैन मंदिर यहां के प्रसिद्ध है पार्श्वनाथ व ऋषभदेव मंदिर अपने शिल्प व सौंदर्यीकरण आबू के जैन मंदिरों के समतुल्य है इस किले में 15 वी व 16 वी शताब्दी में निर्मित 8 जैन मंदिर स्थित है जैसलू कूआँ:- मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से इस कूए का निर्माण करवाया था हस्तलिखित ग्रंथों का भंडार:- जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार यहां पर ताड़ के पत्तों पर लिखी जाने वाली प्राचीनतम जैन पांडुलिपियों का दुर्लभ भंडार है जिस के संस्थापक जिनभद्र सूरी थे जैसलमेर के किले के प्रसिद्ध अढा़ई साके:- प्रथम साका:- 1311 ईस्वी आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी व यहां के शासक भाटी शासक मूलराज प्रथम के मध्य युद्ध हुआ कहा जाता है कि प्रथम साका के समय अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने 3 वर्ष तक घेरा डाले रखा घेरे के दौरान शासक रावल जैत सिंह का देहांत हो गया तब उसका पुत्र मूलराज प्रथम शासक बना मूलराज व कुंवर रतनसी( मूलराज का भाई) के नेतृत्व में केसरिया व महिलाओं ने जौहर किया गोपीनाथ शर्मा के अनुसार जैसलमेर का पहला साका 1312 ईस्वी में हुआ जैसलमेर का द्वितिय साका:- जैसलमेर का दूसरा साका कब हुआ इसको लेकर विद्वानों में मतभेद है लेकिन यह तय है कि यह साका राव दूदा के समय दिल्ली सल्तनत की सेना के साथ हुआ राव दूदा के समय जैसलमेर पर फिरोजशाह तुगलक का आक्रमण हुआ इससे राव दूदा व उसका भाई त्रिलोकसी भाटी जी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और महिलाओं ने जौहर किया तीसरा अर्द्व साका :-1550 ईस्वी राव लूणकरण व अमीर अली के मध्य हुआ जिसमें वीरों ने केसरिया किया लेकिन महिलाओं ने जोैैहर नहीं किया कंधार के अमीर अली ने राजच्युत होकर राव लूणकरण के यहां शरण ली अमीर अली ने षड्यंत्र रच कर राव लूणकरण से अनुरोध किया कि उनकी बैगमें रानियों व राज परिवार की अन्य महिलाओं से मिलना चाहती है आमिर अली ने स्त्रियों के वेश में अपने सैनिक किले के अंदर भेजने का प्रयास किया परंतु उनका भेद खुल गया तो भाटी योद्धाओं व अमीर अली के सैनिकों के मध्य घमासान युद्ध हुआ इसमें भाटियों की विजय हुई लेकिन राव लूणकरण वीरगति को प्राप्त हुए भाटियों की विजय होने महिलाओं ने जोैहर नहीं किया जैसलमेर के बारे में अबुल फजल का कथन है ऐसा दुर्ग जहां पहुंचने के लिए पत्थर के टांगे चाहिए यह दुर्ग दूर से देखने में ऐसा लगता है जैसे रेत के समुंदर में लंगर डाले जहाज खड़ा है 21 जून 2013 को इस किले को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया इस किले पर 2009 में ₹5 का डाक टिकट वह 2018 में ₹12 का डाक टिकट जारी किया गया सोनार किला नामक प्रसिद्ध निर्देशित सत्यजीत राय द्वारा इस किले पर फिल्म बनाई गई यहां के भाटी अपने आपको यदुवंशी कृष्ण के वंशज मानते हैं उत्तर भड़ किंवाड़:- यहां के भाटी शासकों को उत्तरी सीमा के रक्षक के रूप में उत्तर भड़ किंवाड़ कहा जाता है बादल विलास महल:' जैसलमेर में बना 5 मंजिला महल किले के अंदर नहीं है बाहर जैसलमेर शहर में स्थित है इन्हें सिलावटयों ने बनाकर 1884 इस्वी में महारावल बैरिशाल को भेंट किया जैसलमेर का किला दूर से देखने पर लंगर डाले हुए एक जहाज का आभास कराता है दुर्ग के चारों ओर घाघरा आकार का परकोटा बना हुआ है जिसे कमरकोटिया कहा जाता है मूलराज द्वितीय द्वारा बनवाए गए रंग महल व मोती महल जालियों के झरोखे में पुष्प लता का सुंदर अलंकरण के कारण दर्शनीय है गज विलास व जोहार विलास महल पत्थर के बारीक काम व जालियों की कटाई के लिए प्रसिद्ध है जैसलमेर के बारे में कहा जाता है कि यहां पत्थर के पैर ,लोहे का शरीर व काठ के घोड़े पर सवार होकर पहुंचा जा सकता है इसे राजस्थान का अण्डमान कहा जाता है!
Post a Comment