आर्य समाज और स्वामी दयानंद सरस्वती
आर्य समाज और स्वामी दयानंद सरस्वती उत्तरी भारत में हिंदू धर्म और समाज सुधार का कार्य आर्य समाज ने किया आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 ईस्वी में मुंबई में की थी बाद में 18 77 ईस्वी में इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 ईस्वी में काठियावाड़ गुजरात में मोरबी राज्य के टंकारा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ उनके पिता का नाम अंबाशंकर और माता का नाम यशोदाबाई था स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मूल शंकर था 24 वर्ष की आयु में मूल शंकर ने दंडी स्वामी पूर्णानंद से संन्यास की दीक्षा ली जिन्होंने मूल शंकर को दयानंद सरस्वती नाम दिया! बौद्विक जिज्ञासा में वे 21 वर्ष की आयु में घर से निकल गए और अगले 15 वर्षों तक देश के कोने कोने में घूमते रहे 18 60 ईस्वी में दयानंद सरस्वती मथुरा में अंधे स्वामी विरजानंद से भेंट की और वे उनसे प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए 1868 ईस्वी में दयानंद ने एकांकी सन्यास एवं आध्यात्मिक खोज का जीवन समाप्त कर दिया और सत्य, धर्म सुधारक एवं समाज सुधारक बन गए 18 73 ईस्वी में वे कोलकाता गए वहां बंगाल के कुछ प्रमुख सुधारको जैसे केशवचंद्र सेन ,ईश्वर चंद्र विद्यासागर आदि से भेंट की इस संपर्क में उनके भावी कार्यक्रम के लिए लाभकारी परिणाम हुआ ब्रह्मा समाज से प्रभावित होकर उन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार के लिए एक समाज संगठित करने का निर्णय लिया केशवचंद्र सेन की सलाह से उन्होंने अपने विचारों को संस्कृत के स्थान पर उत्तर भारत के लोकप्रिय भाषा हिंदी में व्यक्त करने का निर्णय लिया स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखी गई पुस्तकें निम्न है 1.सत्यार्थ प्रकाश 2. पाखंड खंडन 3.वेद भाष्य भूमिका 4.ऋग्वेद भाष्य 5.अद्वैत मत का खंडन 6. पंच महायज्ञ विधि 7.वल्लभाचार्य मत खंडन 8.गोैकरुणा निधि प्रारंभ में दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों का प्रसार शास्त्रार्थ और सामूहिक भोज आदि के माध्यम से प्रारंभ किया लेकिन बाद में उन्होंने पुस्तके लिखकर अपने विचारों का प्रतिपादन किया उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश जो हिंदी भाषा में लिखी गई थी मैं अपने मूल विचारों को व्यक्त किया इस ग्रंथ की रचना उन्होंने उदयपुर में की थी लेकिन सत्यार्थ प्रकाश का प्रकाशन अजमेर से किया गया दयानंद सरस्वती का विश्वास था कि स्वार्थी एवं अज्ञानी पुरोहितों ने पुराणों जैसे ग्रंथों के सहारे हिंदू धर्म को भ्रष्ट किया है उनके अनुसार वेद हिंदू धर्म का वास्तविक आधार है इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने नारा दिया वेदों की ओर लौटो हिंदू रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए उन्होंने मूर्ति पूजा बहुदेव वाद, अवतारवाद ,पशु बलि, श्राद्ध एवं झूठे कर्मकांड व अंधविश्वासों का विरोध किया जोधपुर की एक वेश्या नन्ही बाई द्वारा जहर दिए जाने के कारण 1883 ईस्वी में दीपावली के दिन स्वामी दयानंद सरस्वती की अजमेर में मृत्यु हो गई यह नन्ही बाई जोधपुर के शासक जसवंत सिंह द्वितिय की प्रेमिका थी नन्ही बाई ने राजकीय रसोइयों जगन्नाथ गोड मिश्र की मदद से दयानंद सरस्वती को जहर दिया आर्य समाज का ज्यादा स्थाई काम शिक्षा के क्षेत्र में हुआ 18 86 ईस्वी में लाहौर में दयानंद एंगलो वेैदिक स्कूल के संस्थापक हंसराज व लाला लाजपत राय थे की स्थापना की जो 18 89 ईस्वी में दयानंद एग्रो कॉलेज में बदल गया इस कॉलेज में पठन-पाठन पश्चिमी पद्धति से किया जाता था कुछ समय बाद समाज में फूट पड़ गई कुछ समाजों ने शिक्षा के लिए पश्चिमी पद्धति का विरोध किया और परंपरागत भारतीय पद्धति से शिक्षा देने के लिए 1902ईस्वी में हरिद्वार के नजदीक कांगड़ी में गुरुकुल विश्वविद्यालय की नींव रखी जिसमें स्वामी श्रद्धानंद व लेखराम प्रमुख थे दयानंद एग्लों कॉलेज या गुरुकुल कांगड़ी दोनों ही पद्धतियों में संस्थाओं में भारतीय संस्कृति की उपलब्धियों को उजागर करने और विद्यार्थियों के मन में आत्म गौरव और आत्मसम्मान भरने का प्रयास किया गया हिंदी भाषा के विकास की दिशा में आर्य समाज की भूमिका उल्लेखनीय है समाज की स्थापना के कुछ दिन बाद से उनके सिद्धांतों का प्रचार हिंदी भाषा में होने लगा दयानंद सरस्वती ने कभी विदेशी शासन का खुलकर विरोध नहीं किया फिर भी वह विदेशी शासन के पक्ष में कतई नहीं थे सत्यार्थ प्रकाश के 1883 के प्रमाणिक संस्करण में उन्होंने लिखा कोई कितना ही कहे परंतु स्वदेशी राज्य सर्वोपरि होता है और उन्होंने कहा कि विदेशी राज्य चाहे जितना अच्छा हो लेकिन वह सुखदायक नहीं हो सकता दयानंद सरस्वती को हिंदू लूथर भी कहा जाता है 18 82 ईस्वी में आर्य समाज ने गौरक्षणी सभा की स्थापना की एनी बेसेंट के अनुसार वे प्रथम भारतीय थे जिन्होंने कहा था कि भारत भारत वासियों के लिए है वैलेंटाइन शिरोल ने अपनी पुस्तक इंडियन अनरेस्ट में आर्य समाज को भारतीय अशांति का जनक कहा था दयानंद सरस्वती ने चार स्व की अवधारणा दी थी स्वराज्य स्वधर्म स्वदेशी स्व भाषा स्वराज शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दयानंद सरस्वती ने ही किया था आर्य समाज के लड़कों के लिए 25 वर्षीय लड़कियों के लिए 16 वर्ष विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की थी दयानंद सरस्वती के अनुसार तीर्थ यात्रा व्यर्थ है और अंधविश्वास को दर्शाती है समाज का कार्य आगे भी चलता रहा लेकिन कालांतर में इनकी अंतर्निहित कमियां स्पष्ट होने लगी और समाज में कुछ जन्मजात दोष थे इनका मुख्य नारा वैदिक युग में लोैट चलने का था मगर 19वीं और 20वीं शताब्दी में वैदिक जीवन में वापसी का संदेश तर्कसंगत नहीं था दूसरे वेदों के प्रमाणित होने और उसने पूर्ण विश्वास का उद्देश्य मानव विवेक के विरुद्ध था तीसरा इसके द्वारा चलाया गया शुद्धि आंदोलन भी धार्मिक रूप से कट्टर समुदाय में बदल रहा था इन सभी कारणों से आर्य समाज का दायरा सीमित हो गया था इस प्रकार आर्य समाज व दयानंद सरस्वती ने भारत के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना की भावना का विकास किया और हमारी पुरानी परंपराओं की अच्छाइयों से हमें अवगत कराया
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