व्यवहारिक मार्क्सवादी :- वी आई लेनिन(1870-1924 )
मार्क्सवाद मार्क्स के चिंतन के पश्चात बहुत से विचारको ने मार्क्स के चिंतन को आधार बनाकर अपने विचारों को आगे बढ़ाया उनमें से कई विचारक राजनीतिक विचारधाराओं के जनक बने! बहुत से विचारको ने मार्क्स के विचारों में सैद्धांतिक संशोधन प्रस्तुत किए तथा कई अन्य लोगों ने उसके विचारों के आधार पर क्रांति कर व्यवहार में मार्क्सवाद को स्थापित करने के लिए मार्क्स के विचारों में संशोधन किया उनमें से कई विचारको ने अपना मौलिक चिंतन भी प्रस्तुत किया मार्क्सवाद के नाम पर सबसे पहले क्रांति रूस में हुई वहां 70 वर्षों तक मार्क्सवादी राज्य बना रहा इस व्यवहारिक राज्य के सिद्धांत निर्माण में कई विचारकों का योगदान था जिसमें लेलिन टोट्रस्की स्टालिन आदि प्रमुख है जिन्होंने मार्क्स के विचारों में संशोधन कर मार्क्सवादी राज्य की स्थापना की ! व्यवहारिक मार्क्सवाद :- वी आई लेनिन(1870-1924 ) वी आई लेनिन ने सबसे पहले मार्क्सवादी विचारों के आधार पर एक राज्य की स्थापना की !मार्क्स के आदर्श को प्राप्त करने का प्रयास किया लेनिन का यह प्रयोग लगभग 70 वर्ष तक पृथ्वी पर बना रहा और उसके पश्चात नव उदारवाद के प्रभुत्व के कारण वह प्रयोग असफल हुआ लेकिन कार्ल मार्क्स के विचारों को साकार रूप देने के लिए उसने विचारों में कुछ संशोधन किया रूस में जिस समय लेनिन ने अपनी क्रांति आरंभ की उनकी स्थितिया मार्क्स के विचारों के अनुरूप एक सामंतवादी परिस्थितियां थी और मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत के अनुसार इतिहास के प्रति विकास में सामंतवाद के पश्चात पूंजीवाद का आवागमन होना था और पूंजीवाद के पश्चात साम्यवाद का ! लेकिन लेनिन सीधे सामंतवाद से साम्यवाद की तरफ देश को ले जाना चाहता था और इसके लिए उसे अपनी साम्यवादी विचारधारा में कुछ संशोधन करने पड़े जो उनके जीवन के अनुभवों पर आधारित है इन संशोधनों के आधार पर ही लेनिन रूसी क्रांति 1917 में सफलतापूर्वक कर पाए और पहली बार एक साम्यवादी राज्य की स्थापना की इस क्रांति में राजनीतिक दल की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण थी और इसलिए लेनिन ने राजनीतिक दल के संगठन कार्य और विचारधारा के सैद्धांतिक पक्ष पर काफी कुछ लिखा "व्हाट इज टू बी डन" लेनिन की राजनीतिक दल के बारे में लिखी गई पुस्तक है इस पुस्तक में लेनिन ने अपने राजनीतिक आंदोलन के विकास को बाटा और अन्य क्रांतिकारियों और आंतकवादी समूह में कार्य विधियों की आलोचना की! लेनिन ने अन्य सभी विचारधाराओं की प्रमुख आलोचना यह थी कि यह श्रमिक वर्ग के नेतृत्व को सही प्रकार से परिभाषित नहीं कर पाए और व्यवहार में लागू नहीं कर पाए! सामंतवाद और धनी वर्ग के विरूद्ध संघर्ष में श्रमिकों को जिस प्रकार के नेतृत्व की आवश्यकता है उसका अभाव था !और लेनिन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया जो बाद की घटनाओं ने सही सिद्ध किया कि केवल उसका राजनीतिक दल ही इस नेतृत्व को प्रदान करने में समर्थ है अपनी पुस्तक में लेनिन ने अपने दल के कार्यक्रमों नीतियों विचारों को भी विवेचित किया! वह मानता था कि एक सफल राजनीतिक दल के लिए उनकी उपस्थिति सारे रूस में होनी चाहिए ना कि केवल चुने हुए शहरों में! क्योंकि यह पुस्तक राजनीतिक आंदोलन के सैद्धांतिक पक्ष को उजागर करती है इसलिए लेनिन ने सभी रूढी़वादी मार्क्सवादी से भी सहमति बनाई यह उनका अंतिम प्रकाशन था जिस पर अन्य मार्क्सवादियो ने सहमति दी! इसके पश्चात उसका विरोध होना आरंभ हो गया प्लेखनेव और मारकोव लेनिन की तानाशाही की आलोचना की! रोजा लक्जमबर्ग ने लेनिन के विचारों पर आलोचनात्मक लेख लिखे इसी प्रकार टोट्रस्की ने भी बाद में लेनिन से अलग हो गए! लेकिन 1905 तक बोल्शेविक, मेनशेविक में मूलभूत अलगाव पैदा नहीं हुआ था क्रांति सफल होने के पश्चात लेनिन ने अपनी पुस्तक में दिए गए विचारों पर भी अधिक महत्व नहीं दिया क्योंकि वह दूसरे रास्ते पर चल पड़ा था इस नए रास्ते में राजनीतिक दल के प्रजातांत्रिक केंद्रीकरण के विचार को जन्म दिया जिससे 1906 लेनिन के राजनीतिक दल के ने स्वीकार किया था 1905 में असफल क्रांति के पश्चात बोल्शेविक व मैनशेविक के मध्य मतभेद होने आरंभ हो गए धीरे-धीरे लेनिन निरंकुशवाद प्रवृत्तियों को प्रदर्शित करने लगा जो उनके अनुसार राजनीतिक विचारधारा के सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यकता था प्रजातांत्रिक केंद्रीकरण के विचार के अनुसार एक राजनीतिक दल की निर्णय प्रक्रिया की आरंभिक स्थिति में प्रजातांत्रिक होनी चाहिए इसमें सबसे निचले स्तर पर पार्टी के नीति संबंधी निर्णय लेने के पुर्व एक स्वतंत्र बहस होनी चाहिए जिसमें सभी प्रकार के मतों को उचित स्थान दिया जाए इस प्रकार से लिए गए विभिन्न मतों को ध्यान में रखकर उसमें ऊपरी स्तर पर राजनीतिक दल में प्रतिवेदन दिया जाए और इस प्रकार प्रत्येक स्तर पर निर्णय का परीक्षण हो और अंत में वह केंद्रीय समिति के पास पहुंचे जिसमें राष्ट्र विचारधारा और सामाजिक हित को ध्यान में रखते जो निर्णय लिया जाए उसको राजनीतिक दल के सभी सदस्यों पर कठोरता से क्रियान्वित किया जाए एक बार केंद्रीय समिति द्वारा निर्णय लेने के पश्चात उस पर किसी प्रकार की टीका टिप्पणी की इजाजत नहीं होती और उसको राजनीतिक दल का विचार व नीति मानकर उसे क्रियान्वित का कार्य संगठित रूप से किया जाता है इस प्रकार इस ने एक निर्णय लेने का आरंभ प्रजातांत्रिक तरीके से होता है और निर्णय लेने के पश्चात यह तानाशाही पूर्ण तरीके से क्रियान्वित होता है इस विचार का मुख्य आधार यह है कि प्रजातांत्रिक दल होने से निर्णय का क्रियान्वयन सही प्रकार से नहीं होता इसके उसकी क्रियान्वयन में कठोरता बरतनी आवश्यक है लेनिन ने क्रांति संबंधी अपने विचार भी नवीन तरीके से दिए थे अपनी पुस्तक स्टेट एंड रिवॉल्यूशन में लेनिन ने क्रांति के महत्व, उनके कार्यक्रम और राजनीतिक दल की उसकी भूमिका को विवेचन किया था क्रांति संबंधी उनके विचार टोट्रस्की से मेल नहीं खाते तो स्थाई क्रांति की बात करता है लेनिन यह मानता है कि बुर्जआ आंदोलन होने के साथ ही समाजवाद के लिए प्रयास आरंभ होने चाहिए! वह टोट्रस्की की आलोचना इस बात पर करता है कि टोट्रस्की ऐतिहासिक युग की विभिन्नताओ को नहीं समझ पाया और उसे यूरोप और रुस स्थिति को समान समझा जबकि यूरोप में बुर्जआ क्रांति बहुत पहले हो चुकी है और रूस में बुर्जआ क्रांति होने का समय है इस कारण टोट्रस्की यह नहीं समझ पाया कि क्रांति का बुर्जआ चरित्र क्या होता है और किस प्रकार से उस क्रांति को समाजवादी क्रांति में परिवर्तित किया जाए लेनिन ने एक अन्य विचार साम्राज्यवाद के संदर्भ में दिया उनका यह मानना था कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद की अंतिम अवस्था है और उसने पूंजीवाद का चरित्र बदल दिया जिससे पूंजीवाद मोनोपोली पूंजीवाद बन गया उसने अपनी पुस्तक इंपिरियलिज्म द हाईएस्ट स्टेज ऑफ़ केपीटलाइज्म में विस्तार से पूंजीवाद के नए स्वरूप को विवेकचित किया लेनिन अपने विचारों में ब्रिटिश उदारवादी हाॕब्सन, इल्फर्डी एव बुखारिन से प्रभावित हुआ उसने माना कि आर्थिक कारणों से विकसित देशों में बाजार की खोज और नए वित्तीय निवेश के अभाव में साम्राज्यवाद की नीति को बल मिला है और वह यह भी मानता था कि साम्राज्यवाद के से अतिरिक्त धन कमाया जाता है उनका उपयोग श्रमिक वर्ग द्वारा उच्च वर्ग को खरीदने में किया जाता है जिससे क्रांति की संभावनाएं कम हो सके! लेनिन ने क्रांति की आवश्यकता में साम्राज्यवादी की गलत नीतियों को बहुत महत्वपूर्ण माना है उनके अनुसार साम्राज्यवाद के कारण ही प्रथम विश्व युद्ध हुआ और अगर तुरंत क्रांति न की गई तो रूस और अन्य देश अराजकता और भुखमरी के शिकार हो जाएंगे लेनिन ने राज्य संबंधी अपने विचार अपने पुस्तक "स्टेट एंड रिवॉल्यूशन" में विवेचित किये है कोलिटी के अनुसार यह पुस्तक लेनिन का राजनीतिक चिंतन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान है इस पुस्तक का जन्म लेनिन के बुखारिन के साथ हुए विवाद की स्थिति में है जिसमें क्रांति के पश्चात राज्य की भूमिका के बारे में विवाद हुआ था! बुखारिन मानता था कि श्रमिक क्रांति के पश्चात राज्य को समाप्त हो जाना चाहिए जबकि लेनिन ने कहा कि राज्य की संस्था की आवश्यकता शोषक का शोषण करने के लिए है लेनिन राज्य को परिभाषित ही इस प्रकार करता है कि वह बल का एक विशेष संगठन है यह हिंसा का संगठन है जो विशेष वर्ग के दमन में काम आता है लेनिन यह मानता है कि क्रांति के पश्चात राज्य विघठित होने की संभावना बढ़ जाती है वह इसे बनाए रखने के पक्ष में था! लेकिन उनके उद्देश्य को परिवर्तित करके वह मानता है कि राज्य की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता वह एक शोषण करने वाली संस्था है क्रांति के पश्चात भी इसके स्वभाव को नहीं बदला जा सकता !लेकिन इनका उपयोग जो क्रांति इसके पूर्व शौषक वर्ग ,पूंजीवादी वर्ग और बुर्जुआ वर्ग का था क्रांति के पश्चात उसका शोषण करने के लिए किया जा सकता है और यह तब संभव है जब क्रांतिकारी दल इस पर नियंत्रण करें और इसका उपयोग शोषक वर्ग का शोषण करने में करे! लेनिन ने व्यवहार में भी ऐसा करने का प्रयास किया कालांतर में राजनीतिक दल और राज्य में अंतर करना असंभव हो गया! इस प्रकार लेलिन प्रथम मार्क्सवादी विचारक था जिसने मार्क्सवादी राज्य की स्थापना की!
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