गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पति,शासक,साम्राज्य,कला और संस्कृति
गुर्जर प्रतिहार वंश राजपूत शासकों में गुर्जर प्रतिहार वंश बहुत ही शक्तिशाली राजवंश रहा है! गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने कला, संस्कृति व सैन्यसचांलन का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया !आठवीं शताब्दी के मध्य भारत के प्रमुख शक्ति के रूप में उभर कर सामने आए! गुर्जर प्रतिहार को मूर्तिकला व मंदिरों के संरक्षण के रूप में जाना जाता है! गुर्जर प्रतिहारों ने अरब आक्रमणकारियों को भारत में आने से रोके रखा जिससे उनकी ख्याती चारों ओर फैल गई गुर्जर प्रतिहार शासकों के बदौलत ही कन्नौज शहर भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापार ,शिक्षा ,कला व संस्कृति का केंद्र उभरकर सामने आया! सभी देसी व विदेशी लेखक उनके साम्राज्य को अल गुर्जर के नाम से संबोधित करते हैं जो गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के विशालता, प्रतिहार शासकों की शक्ति और प्रतिष्ठा को अंकित करते हैं गुर्जर प्रतिहार शासकों के शिलालेखों के अलावा मूर्तियां और मंदिरों व स्मारक उनके साम्राज्य की विशालता प्रदान करते हैं गुर्जर प्रतिहार वंश गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन 6वी से लेकर 12वीं शताब्दी तक रहा है आठवीं से दसवीं शताब्दी के दौरान राजस्थान में गुर्जर प्रतिहार वंश शक्तिशाली रहा! इस वंश का शासन राजस्थानी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तरी भारत में फैला हुआ था! प्रारंभ में इसकी शक्ति का मुख्य केंद्र मंडोर व भीनमाल थे! राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारो के दो प्रमुख केंद्र मंडोर व भीनमाल रहे हैं! गुर्जर प्रतिहार शब्द दो शब्दों के योग से बना है गुर्जर शब्द गुर्जरात्रा प्रदेश मरूप्रदेश का एक अंश का प्रतीक है प्रतिहार शब्द किसी जाति या पद का प्रतीक है (प्रतिहार- जो मैं राजा के महलों के बाहर रक्षक का कार्य करते थे) इस प्रकार प्रतिहार शक्ति द्वारा गुर्जरात्रा प्रदेश शासित करने के कारण गुर्जर प्रतिहार वंश का उद्भव हुआ! डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा के अनुसार छठी शताब्दी के मध्य तक राजस्थान नाम का न तो कोई राज्य था और न कोई इकाई! उस समय मरु प्रदेश का एक भाग गुर्जरात्रा प्रदेश कहलाता था गुर्जरात्रा प्रदेश पर प्रतिहार शासन कर रहे थे इसलिए उन्हें गुर्जर प्रतिहार नाम से संबोधित किया जाने लगा! बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के एहोंल अभिलेख में गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक हर्ष चरित्र में गुर्जरों का वर्णन किया है ह्वेनसांग चीनी यात्री ने गुर्जर प्रदेश की राजधानी( पीला मोलों )भीनमाल को बताया है अपनी पुस्तक सी यू की में गुर्जर प्रतिहार शब्द का संबोधन किया है! डॉ रमेश चंद्र मजूमदार :- प्रतिहार शब्द का प्रयोग मंडोर की प्रतिहार जाति के लिए हुआ है क्योंकि प्रतिहार अपने आप को लक्ष्मण का वंशज मानते हैं लक्ष्मण भगवान राम की सेवा में एक प्रतिहार का कार्य करते थे !इसलिए वे लोग प्रतिहार कहलाए कालांतर में गुर्जरात्रा प्रदेश पर प्रशासन करने से गुर्जर प्रतिहार कहलाए प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारो ने 6 शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया! राष्ट्रकूट और पाल वंश के राजाओं के शिलालेख में तथा अरब यात्रियों के वृतांत में प्रतिहारो को गुर्जर शब्द के साथ जोड़कर संबोधित किया गया चंदेल वंश के शिलालेखों में भी गुर्जर प्रतिहार शब्द का उल्लेख है बाउक का मंडोर का शिलालेख 837 ईस्वी के अनुसार गुर्जर प्रतिहारो का अधिवेशन मारवाड़ में लगभग 6 वी शताब्दी के द्वितीय चरण में हो चुका था पंम्पा की कृति विक्रमार्जुन विजय में प्रतिहार महिपाल को गुज्जर राज कहा गया है डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने प्रतिहारो को जाति न मानकर पद से संबंधित माना है इस पद से उस व्यक्ति का बोध होता है जो राज दरबार या राज महल के द्वार रक्षक के रूप में सेवा करें शिलालेखों में नागभट्ट प्रथम को राम का प्रतिहार लिखा गया है गुर्जर प्रतिहार शैली:- आठवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी के मध्य उत्तर भारत में मंदिर व स्थापत्य निर्माण की जिस शैली का विकास हुआ वह शैली महामारु शैली या गुर्जर प्रतिहार शैली कहलाई इस शैली में बने अधिकाशं मंदिर सूर्य या विष्णु भगवान को समर्पित हैं 10 वीं व 11वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार शैली का पूर्ण विकास देखने को मिलता है ! गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति :- -नीलकंठ, देवली, राधनपुर करडाह अभिलेखों में प्रतिहारों को गुर्जर -प्रतिहार कहा गया मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख में प्रतिहार शासक वत्सराज को विशुद्ध क्षत्रिय बताया गया है अरब यात्री:- अरब यात्रियों ने गुर्जरों को जुर्ज या अल गुर्जर शब्द का प्रयोग किया है अलमसूदी ने प्रतिहारों को अल गुर्जर व प्रतिहार राजा को बोरा कह कर पुकारा है मिस्टर जैकसन ने मुंबई गजेटियर में गुज्जर को विदेशी माना है डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने प्रतिहारो को क्षत्रिय बताया है जॉर्ज कैनेडी ने प्रतिहारो को ईरानी मूल का बताया है डॉक्टर भंडारकर ने भी इसे विदेशी बताया है कनिघम ने कुषाणवंशी बताया है पाश्चात्य इतिहासकारों ने प्रतिहारो को गुर्जर माना है जो कि विदेशी हूणो के साथ भारत आए स्मिथ स्टेनफ़ोनी ने इसे हूणवंशी बताया है प्रतिहारो ने स्वयं को राम के भाई लक्ष्मण का वशंज माना है प्रतिहारो का मूल स्थान :- बाउक के मंडोर शिलालेख व कक्कुक के घटियाला शिलालेखों में इनका मूल स्थान गुर्जरात्रा प्रदेश (पश्चिम राजस्थान) माना जाता है कुछ विद्वान प्रतिहारो का मूल स्थान मंडोर को मानते हैं स्मिथ ह्वेनसाग के वर्णन के अनुसार प्रति हारों का मूल स्थान आबू पर्वत के उत्तर-पश्चिम में श्रीमाल अथवा भीनमाल को मानते हैं कुछ अन्य विद्वान इनका मूल स्थान उज्जैन को भी मानते हैं गुर्जर प्रतिहारो की शाखाएं :- प्रतिहारों की अनेक शाखाएं थी महणौत नैंणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है जिसमें से मंडोर ,भीनमाल, उज्जैन ,कन्नौज, राजौरगढ़ व भड़ौच के प्रतिहार ज्यादा प्रसिद्धि है !गुर्जर प्रतिहार मंडोर में स्थित चामुंडा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं गुर्जर प्रतिहारो की प्रमुख शाखाएं निम्नलिखित है- 1.मण्डोर शाखा (सबसे प्राचीन ) 2.भीनमाल शाखा 3.कन्नौज शाखा मंडोर की शाखा:- गुर्जर प्रतिहारो की सभी शाखाओं में यह सबसे प्राचीन थी हरीशचंद्र:- उपनाम रोहिलद्वि/ प्रतिहारो का गुरु /गुर्जर प्रतिहारो का आदि पुरुष /प्रतिहार वंश का संस्थापक/ गुर्जर प्रतिहार का मूल पुरुष ! घटियाला का शिलालेख:-( जोधपुर 837 ईस्वी से 861 ईस्वी के है) घटियाला शिलालेखों के अनुसार 6 शताब्दी के द्वितीय चरण में हरिश्चंद्र नाम का एक ब्राह्मण विद्वान था इसे रोहिलद्वि भी कहा जाता था इस की दो पत्नियां थी एक ब्राह्मण वशं से वह दूसरी क्षत्रिय कुल से थी! ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न संतान ब्राह्मण प्रतिहार व क्षत्रिय रानी से उत्पन्न संतान क्षत्रिय प्रतिहार कहलाए क्षत्रिय रानी भद्रा से 4 पुत्र हुए ! चारों पुत्रों ने मिलकर मंडलपुर (मंडोर) को जीता और उनके चारों ओर प्राचीर का निर्माण करवाया तथा गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की! रज्जिल :- हरिश्चंद्र के बाद मंडोर की वशावली रज्जिल से शुरू होती है इसने मंडोर को राजधानी बनाकर राजसूय यज्ञ किया रज्जिल ने रोहिसकूप नगर में महामंडलेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया इसी कारण इनके दरबारी ब्राह्मण नरहरी ने इन्हें राजा की उपाधि दी नरभट्ट :- यह रज्जिल का उत्तराधिकारी था इसे पील्लीपणी की उपाधि की गई रोहिषकूप नगर घटियाला में विष्णु मंदिर बनवाया नागभट्ट प्रथम :- यह बड़ा ही महत्वकाक्षी शासक था इनको नाहड़ नाम से पुकारा गया !उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया मरू प्रदेश में मेड़ता को जीता इसमें मंडोर से हटाकर मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया यहां यह तथ्य उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि कन्नौज को राजधानी नागभट्ट द्वितीय ने बनाया था! शिलूक:- भोज की तीन पीढ़ी के बाद चंदूक़ का पुत्र शिलूक मंडोर के प्रतिहार वंश के दसवें शासक के रूप में गद्दी पर बैठा इसने वल्लभ मंडल के देवराज भाटी को हराया तवन क्षेत्र पर भी अपना अधिकार कर लिया! इसने सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया ! झोट प्रतिहार :- यह शिलूक का पुत्र था इसने गंगा में जाकर मुक्ति प्राप्त की प्रतिहारों में से यह एकमात्र वीणा वादक शासक था झोट के बाद उसका पुत्र भिल्लादित्य राजा बना! भिल्लादित्य के बाद उसका पुत्र कक्क राजा बना! भिल्लादित्य:- भिल्लादित्य ने अपना राज्य छोड़कर हरिद्वार में जाकर अपनी देह त्यागी! कक्क:- यह भिल्लादित्य का पुत्र था कक्क व्याकरण, ज्योतिष का ज्ञाता एवं कवी था इसने मुंगेर में गौड़ों को प्राप्त किया! यह नागभट्ट 11 का प्रमुख सामंत था इसने बंगाल में धर्मपाल के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया बाउक:- इसने 837 इस्वी में मंडोर में विष्णु मंदिर की प्रशस्ति लगवाई जिसमें मंडोर के प्रतिहारों की नामावली दी गई है इसने मंडोर पर आक्रमण करने वाले राजा मयूर को हराया कक्कुक:- यह बाउक का सौतेला भाई था है कक्कुक ने 2 विजय स्तंभ का निर्माण करवाया जिसमें से एक मंडोर और दूसरा रोहिन्सकूप (जोधपुर) में है इसने 861 इस्वी में दो शिलालेख लगवाए प्रथम शिलालेख - इसमें कक्कुक प्रतिहार को न्याय प्रिय, जनहित संपादन कर्ता, दुष्टों को दंड देने वाला, दीनों का रक्षक, वीर तथा साहसी शासक बताया है कक्कुक की लोकप्रियता का प्रभाव गुजरात, वल्ल, लाट, मांड, शिव, मालानी व पचपदरा तक विस्तारित बताया गया है द्वितिय शिलालेख:- रोहिन्सकूप (घटियाला) को आभीरो के उपद्रव से मुक्त करवाकर रोहिन्सकूप में महाजनों को बसाया और व्यापार में वृद्धि की ! कक्कुक के पश्चात मंडोर पर प्रतिहार शासकों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती है मंडोर के 1154 ईस्वी का सहजपाल चौहान का एक लेख मिला है जिसमें मंडोर पर चौहानों का प्रभुत्व होना उल्लेखित है यहां यह तथ्य उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि 1395 ईस्वी में प्रतिहारो की इन्दा शाखा ने मंडोर दुर्ग चूड़ा राठौड़ को दहेज में दे दिया इस घटना के साथ ही मंडोर के प्रतिहारों के राजनीतिक विस्तार का इतिहास समाप्त हो गया भडौ़च के प्रतिहार :- सातवीं व आठवीं शताब्दी के कुछ दान पत्रों से यह पता चलता है कि भडौ़च और उसके आसपास के क्षेत्रों में गुर्जर प्रतिहारो का शासन था इन दान पत्रों में इनको सामंत व महामंत्री कहा गया इससे यह अनुमान होता है कि यह स्वतंत्र शासक नहीं होकर किसी अन्य राजा के सामंत के रूप में कार्य करते थे डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यह मंडोर के प्रतिहार व गुजरात के चालुक्यों के सामंत थे भडौ़च के गुर्जरों की राजधानी नांदीपुरी थी भडौ़च में गुर्जर प्रतिहार राज्य का संस्थापक दद्द प्रथम था! दद्द द्वितिय:- यह भडौ़च के गुर्जरों का शक्तिशाली शासक था वल्लभी के शासक ध्रुवसेन द्वितिय ने हर्षवर्धन से पराजित होने के बाद दद्द द्वितिय के पास ही शरण ली थी ! जयभट्ट चतुर्थ:- यही इस शाखा का अंतिम शासक था इसके पश्चात प्रतिहारों की इस शाखा का शासन समाप्त हो गया था भीनमाल ,उज्जैन ,कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार गुर्जर प्रतिहार शासकों के संबंध में प्राप्त शिलालेखों व साहित्यिक स्रोतों से उनकी विभिन्न राजधानियों के विवरण व शासनकाल मिलते-जुलते नामों के कारण इन शासकों के क्रमबद्ध इतिहास की जानकारी नहीं मिलती भीनमाल शाखा :- नागभट्ट प्रथम( 730 ईस्वी से 760 ईस्वी) :- नागभट्ट प्रथम को भीनमाल जालौर शाखा का संस्थापक माना जाता है यह मंडोर शाखा से ही था नागभट्ट प्रथम को नागावलोक व इसके दरबार को नागावलोक दरबार कहा जाता था इसने सबसे पहले भीनमाल को चामुंडा से जीता तथा अपनी राजधानी बनाया फिर इतने आबू ,जालौर को विजित किया तथा उज्जैन को भी अपनी राजधानी बनाया !नागभट्ट प्रथम को राष्ट्रकूट शासक दंती दुर्ग से पराजित होना पड़ा कक्कुर व देवराज:- नागभट्ट के बाद उसका भतीजा कक्कुर गद्दी पर बैठा और उसने विजय स्तंभ का विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया यह राजस्थान का दूसरा विजय स्तंभ था यहां यह तथ्य उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि राजस्थान का प्रथम विजय स्तंभ समुद्रगुप्त द्वारा बयाना में भीमलाट है उसके बाद उसका भाई देवराज गद्दी पर बैठा! देवराज को अवंती का शासक कहा जाता है उनकी रानी भूमिका देवी ने वत्सराज को जन्म दिया वत्सराज( 783 ईस्वी से 795 ईस्वी) इसे प्रतिहार राज्य की नींव डालने वाला शासक कहा जाता है ओसिया व दौलतपुर अभिलेखों के अनुसार वत्सराज ने भण्डी जाति को हराकर उसने राज्य पर अधिकार कर लिया वत्सराज के समय ही कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष प्रारंभ हुआ जो लगभग 150 वर्ष तक चला इस संघर्ष का प्रारंभ गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज ने किया था वत्सराज प्रतिहार जब जालौर का शासक बना उस समय जालौर पर अरब आक्रमण कारी लूट कर ले जाते थे इस कारण वत्सराज प्रतिहार स्वयं को सुरक्षित स्थान की तलाश में था वत्सराज ने कन्नौज के शासक इंद्रायुध को हराकर उस पर कब्जा कर लिया यह बात पाल वंश के शासक धर्मपाल को पसंद नहीं आई उसने वत्सराज को हराने के लिए जालौर पर आक्रमण कर दिया लेकिन इस युद्ध में वत्सराज प्रतिहार विजय हुआ इसके बाद वत्सराज की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने जालौर पर आक्रमण किया जिसमें वत्सराज की हार हुई !उध्दोतन सूरी ने अपनी प्रसिद्ध ग्रंथ कुवलय माला की रचना वत्सराज के समय जालौर में ही की थी हरिवंश पुराण जिनसेन सूरी भी वत्सराज के समय की रचना है वत्सराज शैव मत का अनुयाई था इन्होंने ओसियां जोधपुर में एक सरोवर तथा महावीर स्वामी का मंदिर बनवाया जो कि पश्चिम भारत का प्राचीनतम जैन मंदिर माना जाता है नागभट्ट 11( 795 ईस्वी से 833 ईस्वी) यह गोविंद तृतीय से हारा :-नागभट्ट 11 ने 806 से 808 ईस्वी के मध्य राष्ट्रकूट वंश के शासक गोविंद तृतीय युद्ध किया जिसमें नागभट्ट 11 की हार हुई इसने चक्रायुद्ध को हराया नागभट्ट सेकंड ने अपने साहस कभी नहीं खोया जब गोविंद3 वृद्व हो गया और अपनी घरेलू समस्याओं में फँस गया तो इसका फायदा उठाते हुए नागभट्ट 11 ने कन्नौज के शासक चक्रायुद्ध को 816 इस्वी में परास्त कर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया इस प्रकार नागभट्ट 11 से प्रतिनिधित्व के शासनकाल से प्रतिहारों की कन्नौज शाखा का आरंभ हुआ उसने मुंडेर के युद्ध में धर्मपाल को हराया इसके बाद नागभट्ट 11 ने परम भट्ठारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की! ग्वालियर लेख के अनुसार नागभट्ट 11 ने मध्य प्रदेश, मालवा ,उत्तरी काठियावाड़, किरात प्रदेश, वत्स, कौशांबी , मुस्लिम आक्रांताओं को पराजित किया ! बुचकला के लेख अनुसार नागभट्ट 11 ने विष्णु मंदिर व शिव मंदिर बनवाया जो वर्तमान में शिव व पार्वती मंदिर के रूप में विख्यात है 23 अगस्त 833 ईस्वी को नागभट्ट 11 ने गंगा में जल समाधि ले ली थी रामभद्र (833 से 836 ईस्वी ) नागभट्ट द्वितीय के पुत्र रामभद्र के समय मंडोर के प्रतिहार स्वतंत्र हो गए तथा अन्य कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल नहीं की रामभद्र को पालों के विरुद्ध हार का सामना करना पड़ा था रामभद्र की हत्या उसी के पुत्र मिहिर भोज ने की मिहिर भोज( 836 से 885 ईस्वी) उपनाम- भोज प्रथम /आदीवाराह/ प्रभास पाटन/ प्रतिहारो का सबसे शक्तिशाली शासक! मिहिर भोज अपने पिता रामभद्र की हत्या करके शासक बना था इसलिए उसे पर प्रतिहारो में पितृहन्ता कहा जाता है प्रतिहारो में वह अपने समय का उत्तरी भारत में सबसे शक्तिशाली शासक था वराह अभिलेख 836 ईस्वी का है उसमें मिहिर भोज के बारे में जानकारी मिलती है ग्वालियर अभिलेख मिहिर भोज के समय में का सबसे प्रसिद्ध अभिलेख ग्वालियर प्रशस्ति है इसमें कोई तिथि अंकित नहीं है इसकी लिपी ब्राह्मी भाषा संस्कृत है इस अभिलेख में इस की उपाधि आदिवराह का वर्णन मिलता है दौलतपुरा अभिलेख में इसे प्रभास कहा गया है अरब यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बनाया जिसने अरबों को रोक दिया था सुलेमान ने मिहिर भोज को अरबों का अमित्र तथा इस्लाम का शत्रु बताया था मिहिर भोज के समय राष्ट्रकूट शासक कृषण सेकंड व कालिंजरा के जयशक्ति चंदेल को नर्मदा के तट पर हराया राष्ट्रकूट शासक कृष्ण सेकंड को हराकर मालवा को छिना इसने पाल वंश के देव पाल को भी हराया पाल वंश के विग्रहपाल को हराकर इस ने कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया स्कंद पुराण के अनुसार मिहिर भोज ने तीर्थ यात्रा करने के लिए शासन कार्य अपने पुत्र महेंद्र पाल को सौप पर सिहासन त्याग दिया! महेंद्र पाल प्रथम (893 से 909 ईस्वी) यह मिहिर भोज का पुत्र था किसका उपनाम रघुकुल चूड़ामणि / निर्भय नरेश /निर्भय नरेंद्र/ महिपाल/ महेन्द्रा युद्ध /परम उद्धारक परमेश्वर था पाल राष्ट्रकूट प्रतिहारो में संघर्ष के समय पाल व राष्ट्रकूट की संयुक्त सेना को हराने वाला प्रथम शासक था कवी राजशेखर ने अपने ग्रंथ विद्शाल भंजिका मे नरेश महेंद्र पाल को रघुकुल तिलक कहां है! भोज2( 910 ईस्वी से 913 ईस्वी) महेंद्रपाल फर्स्ट के पश्चात उसका पुत्र भोज11 राजा बना लेकिन महेंद्र पाल की मृत्यु के बाद उसकी पुत्रों में उत्तराधिकारी संघर्ष प्रारंभ हो गया था! महिपाल प्रथम( 913 से 943 ईस्वी) राजशेखर ने महिपाल प्रथम को आर्यावर्त का महाराजाधिराज व रघुकुलमुकुट मणि के नाम से पुकारा है इसके सिहासन पर बैठते ही राष्ट्रकूट वशं के इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया महिपाल 1 हारकर कन्नौज से भाग गया लेकिन राष्ट्रकूटो के वापस चले जाने पर चन्देलत नरेश हर्ष की सहायता से पुन: कन्नौज पर अधिकार कर लिया महिपाल प्रथम के समय अलमसूदी अरब यात्री भूगोलवेत्ता भारत आया था और उसने प्रतिहारो को अल गुर्जर प्रतिहार राजा को बोरा कहा था अपनी पुस्तक महजूल जुहाब में अपना यात्रा वृतांत और भौगोलिक टिप्पणियां लिखे हैं महेंद्र पाल 11( 945 से 948 इस्वी) महिपाल प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महेंद्र पाल 11 शासक बना! इन की रानी का नाम प्रज्ञाधना था देव पाल( 948 से 953 ईस्वी) यह अत्यंत निर्बल शासक था इसके समय चंदेल नरेश यशोवर्मन अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था विनायक पाल( 953 से 955 ईस्वी ) 954 के खजुराहो अभिलेख में इसका नाम प्राप्त होता है यह महेंद्र पाल11 का पुत्र था महिपाल 11( 955 से 960 ईस्वी) 955 के बयाना अभिलेख में महिपाल 11 के लिए महाराजाधिराज महिपाल देव का प्रयोग किया गया है विजयपाल( 960 से 990 ईस्वी) उनके समय में गुजरात के चालूक्य राजा ने अपने आप को स्वतंत्र बना लिया था राज्यपाल (990-1018 ई.) विजयपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राज्यपाल 990ई. राजगद्दी पर बैठा उसके समय में मोहम्मद गजनवी ने कन्नौज पर 1018 ईस्वी में आक्रमण किया राज्यपाल डर कर कन्नौज छोड़कर भाग गया !राज्यपाल की कायरता के कारण भारतीय राजाओं चंदेल शासक गड के पुत्र विद्याधर चंदेल ने संघ बनाकर राज्यपाल पर आक्रमण कर मार डाला त्रिलोचन पाल :- राज्यपाल के बाद त्रिलोचन पाल नामक शासक का वर्णन मिलता है यशपाल:- यह प्रतिहार वंश का अंतिम शासक (1036 ईस्वी ) था 11वीं शताब्दी के अंत में गढ़वाल शासक चंद्रदेव ने कन्नौज पर अधिकार कर गढ़वाल वंश की स्थापना की अलवर के राजौरगढ़ से 960 ईस्वी का एक शिलालेख मिला है जो राजौरगढ़ के प्रतिहार शासन की सूचना देता है राजौरगढ़ के प्रतिहार कन्नौज के रघुवंशी शासकों के सामंत थे गुर्जर प्रतिहारो के पतन के कारण :- 1.प्रतिहारों के सामंतों तथा परिवारों के व्यक्तियों में फूट! 2.पाल ,राष्ट्रकूट व अरबो से लगातार संघर्ष से सैनिक क्षमता का ह्वास होना 3.प्रतिहारो की निर्बलता का लाभ उठाकर गुहिल, राठौड़, चौहान व भाटी आदि क्षेत्रीय संगठन हानिकारक सिद्ध हुए 4. मोहम्मद गजनवी का भारत पर आक्रमण! इन सभी कारणों के बावजूद भी गुर्जर प्रतिहारो ने लगभग 400 वर्षो तक अरबों से भारत की रक्षा की! गुर्जर प्रतिहारो को भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है!
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