कालीबंगा सभ्यता और संस्कृति प्राप्त वस्तुएं एवं स्थल
सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता सिंधु नदी हिमालय पर्वत से निकलकर पंजाब तथा सिंध प्रदेश में बहती हुई अरब सागर में मिलती है इस नदी के दोनों तटों पर तथा उनकी सहायक नदियों के तटों पर जों सभ्यता विकसित हुई उसे सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है यह कांस्य कालीन सभ्यता थी इसका काल ईसा से 2300वर्ष पूर्व से लेकर ईसा से 1750 वर्ष पूर्व तक माना जाता है राजस्थान में इस सभ्यता के अवशेष कालीबंगा, रंग महल आदि से प्राप्त हुए हैं हनुमानगढ़ किले की दीवार के पास खुदाई करने पर रंग महल जैसे ठीकरों के साथ-साथ एक कुषाण राजा हुविष्क का सिक्का भी मिला है जो इस बात की पुष्टि करता है कि यह भारतीयों का यह किला कुषाण कालीन टीले पर बना हुआ है कालीबंगा सभ्यता हनुमानगढ़:- प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किलोमीटर दक्षिण में कालीबंगा सभ्यता है यह सुनियोजित नगर प्रबंध, सुरक्षा प्राचीर, विकसित जल निकास व्यवस्था, तत्कालीन जल संग्रहण व संवर्धन की व्यवस्था, लिपि, मुद्रा, बाट एवं माप एवं विशेष प्रकार के मिट्टी के पात्र अन्य संस्कृतियों से अलग पहचान देते हैं कालीबंगा में पूर्व हड़प्पा कालीन, हड़प्पा कालीन तथा उत्तर हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं वर्तमान में यहां घग्गर नदी बहती है खुदाई के दौरान मिली काली चूड़ियों के टुकड़ों के कारण इस स्थान को कालीबंगा कहा जाता है क्योंकि पंजाबी में बंगा का अर्थ चुडी़ होता है कालीबंगा का उत्खनन इस स्थान का पता पुरातत्व विभाग के निदेशक ए .एन. घोष ने 1952 में लगाया !संन 1961 से 69 तक 9 सत्रों में बी. के .थापर जे .वी. जोशी व बी.बी. लाल के निर्देशन में इस स्थल की खुदाई की गई कालीबंगा स्वतंत्र भारत का वह पहला पुरातात्विक स्थल है जिसका स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्खनन किया गया तत्पश्चात रोपड़ का उत्खनन किया गया था हरियाणा के राखीगढ़ी व गुजरात में धोलावीरा के बाद राजस्थान में कालीबंगा देश का तीसरा सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल है कालीबंगा के टीलों की खुदाई के दौरान जो भिन्न-भिन्न कालों की सभ्यताएं प्राप्त हुए हैं पहला भाग :-2400 ईस्वी पूर्व से लेकर 2250 ईस्वी पूर्व का है दूसरा भाग:- 2200 ईस्वी पूर्व से लेकर 1700 ईस्वी पूर्व का है कालीबंगा के हड़प्पा कालीन शहर को कालक्रम के आधार पर दो चरणों प्रथम प्राक हड़प्पा कालीन है तथा द्वितीय चरण विकसित हड़प्पा कालीन में विभक्त किया गया है उत्खनन में प्राक हड़प्पा कालीन का1. 6 मीटर मोटा सांस्कृतिक जमाव प्राप्त हुआ है इस काल के लोगों में समचतुर्भुज आकार रक्षा प्राचीर के अंदर अपने आवासों का निर्माण किया है जिसकी लंबाई उत्तर दक्षिण में 250 मीटर तथा पूर्व से पश्चिम में 180 मीटर है इसका निर्माण कच्ची मिट्टी के ईटो (30 × 20 × 10) सेमी से किया गया है इस रक्षा प्राचीर को दो चरणों में बनाने के प्रमाण मिले हैं प्रारंभ में यह दीवार1. 9 मीटर चौड़ी थी जिसे बाद में 3-4 मीटर चौड़ा किया गया रक्षा प्राचीन के अंदर और बाहर दोनों ओर से मिट्टी का लेप किया गया है इस काल में आबादी अपेक्षाकृत छोटी रक्षा प्राचीर के अंदर ही सीमित थी यह लोग कच्ची ईंटों के मकानों में रहते थे भवनों के निर्माण में रक्षा प्राचीर के समान ही समानुपातिक आकार 3 :2 : 1 ईटो का प्रयोग किया जाता था मकानों की नालियां ,शौचालय, भट्टिया व कुछ संरचना में पक्की ईंटों का भी प्रयोग किया जाता था कालीबंगा से प्राप्त विभिन्न वस्तुएं उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह पता चलता है कि कि इस काल में मकानों को 5 उपकरणों से निर्मित किया जाता था प्रथम चरण के लोग एक विशेष प्रकार की पात्र परंपरा का प्रयोग करते थे इस प्रकार के पात्र सर्वप्रथम राजस्थान के सौंथी नामक पुरास्थल से प्राप्त हुए हैं जिनके नाम पर इन्हें सौंथी मृदभाण्ड नाम दिया गया है कालीबंगा में प्राप्त हड़प्पा कालीन मृदभाण्ड को उनके आकार बनावट तथा मुख्य तो उनके रंग के आधार पर 6 उपभागों में विभाजित किया गया है इन चरण के मुख्य पात्र प्रकारो में विभिन्न प्रकार के घड़े, तस्तरिया, लघु पात्र एवं कटोरे प्रमुख हैं इनके बाहरी भाग को लेप द्वारा कर अलंकृत किया गया है अलंकरण के लिए लाल धरातल पर काले रंग का स्थानीय पशु पक्षियों का चित्रण बहुतायत में मिलता है यहां से एक दुर्ग ,बैलनाकार मोहरे, अलंकृत ईटो का प्रयोग,ताँबे के बैल, जूते हुए खेत, सड़के ,बस्ती ,गोल कुआं, नालियाॕ, मकानों व धनी लोगों के आवासों के अवशेष प्राप्त हुए हैं कालीबंगा से सात अग्निवैदिकाए प्राप्त हुई है यदि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता की दो राजधानियां माना जा सकता है तो दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा को सिंधु सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा जा सकता है कालीबंगा का एक फर्श पूरे हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां अलंकृत ईटो का प्रयोग किया गया है इस पर प्रतिच्छेदी वृत का अलंकरण है गंदे पानी को निकालने के लिए विशेष प्रकार के गोलाकार भांड होते थे जिसे एक दूसरे के ऊपर लगाकर रखा जाता था जिससे चारों ओर पानी न फेैल कर जमीन में सूख जाए !मकानों की छत भी मिट्टी से बनी हुई होती थी जिसको लकड़ी की बल्लियों से बनाया जाता था छतों को कवेलू से नहीं ढ़का जाता था मकानों में चूल्होंं के अवशेष मिले हैं जिन्हे सत्तह के ऊपर और नीचे बनाया जाता था नीचे वाले चूल्हे के ईंधन देने व धुआँ निकालने के विशेष प्रकार के छिद्र रखे जाते थे पूर्व हड़प्पा कालीन स्थल जूते हुए खेतों के अवशेष भी प्रकाश में आए हैं यह खेत सुरक्षा प्राचीर के बाद पूर्व- दक्षिण भाग में मिला है संस्कृत साहित्य में उल्लेखित बहुधान्यदायक क्षेत्र यही था घग्गर नदी के बाएं किनारे पर स्थित खेत तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पुर्व के हैं उल्लेखनीय बात यह है कि संसार भर में उत्खनन से प्राप्त खेतों में यह पहला ख़ेत है इस ख़ेत में दो तरह की फसलों को एक साथ उगाया जाता था कम दूरी के साचों में चना व अधिक दूरी के साथ साचों में सरसों बोयी जाती थी जैसा आज भी कालीबंगा के आसपास के खेतों में होता है खेत में ग्रीड़ पैटर्न की गर्तधारियों के निशान थे यह 2 तरह के निशान एक दूसरे के समकोण पर बने हुए थे विकसित हड़प्पा चरण में विशिष्ट लोगों के निवास हेतु मुख्य प्रासाद तथा साधारण जनता के लिए निम्न प्रसाद का निर्माण किया गया है जो एक दूसरे से 40 मीटर चौड़े मार्ग द्वारा विभाजित है इस चरण में निर्मित मुख्य प्रासाद आकार में समचतुर्भुज आकार हैं जिसकी उत्तर दक्षिण भुजा 240 मीटर तथा पूर्व पश्चिम की भुजा 120 मीटर है रक्षा प्राचीर को सुदृढ़ करने के लिए चौकोर बूर्ज भी बनी है जिसके निर्माण में दो आकार की ईटे थी 40 × 20 ×10 सेमी और 30 × 15 × 7. 5 सेमी का प्रयोग किया गया है जिसका अनुपात4:2:1 मिलता है इस प्रसाद के दक्षिण भाग को ओर अधिक सुरक्षित बनाने के लिए दो ओर बूर्ज बनी है मुख्य प्रासाद के प्रवेश हेतु उत्तर दक्षिण दिशा में दो द्वार हैं जिसका उत्तरी भाग अभिजात्य वर्ग के निवास के लिए उपयुक्त होता है मुख्य प्रासाद की भांति निम्न प्रासाद भी मूल योजना में समचतुर्भुज आकार एवं पूर्व में स्थित है इसकी लंबाई पूर्व पश्चिम में 240 मीटर तथा उत्तर दक्षिण में 360 मीटर है कालीबंगा में मिली लिपि व प्रतिमाएं कालीबंगा उत्खनन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी है कि इसमें सिंधु लिपि की पहचान करने का प्रयास में एक ठोस दिशानिर्देश किया है यहां से प्राप्त एक सिंधु लिपि युक्त मृदभांड पर लिपि की ओवरलैपिंग ने यह सिद्ध कर दिया कि यह लिपि दाहिने से बाएं ओर लिखी जाती है कालीबंगा क्षेत्र में मिट्टी से बना हुआ कुत्ता ,भेडि़यो, चूहा और हाथी की प्रतिमाएं मिली है पक्षी प्रतिमाओं में कालीबंगा में मिली पंख फैलाए बगुले की प्रतिमा अधिक महत्वपूर्ण है कालीबंगा में तीन मानव कृतिया भी मिली है जो भगनावस्था में है कालीबंगा क्षेत्र में मिट्टी से बनी हुई सर्वाधिक मुद्राएं एवं मोहरे मिली है आयताकार मृण्य मुद्राओं पर मानव कृतिया उत्कृत है जो परस्पर जोर आजमाइश करती हुई प्रतीत होती है कालीबंगा से मिली माटी की वृषभाकृति तो कलाकौशल की दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय है इस वृषभ की यह विशेषता है कि इसका सिर इस तरह बनाया गया है कि आवश्यकता अनुसार उसे धड़ से अलग किया जा सकता है उसे पुनः धड़ से जोड़ा जा सकता है कालीबंगा से प्राप्त बेलनाकार मोहरे मेसोपोटामिया की मोहरो जैसी है छेद किए हुए किवाड़ व सिंध क्षेत्र के बाहर मुद्रा पर व्याघ्र का अंकन एकमात्र इसी से स्थल से मिले हैं यहां पर बच्चे की खोपड़ी मिली है जिसमें 6 छेद हैं इससे जल कपाली या मस्तिक शोध की बीमारी का पता चलता है यहां से भूकम्प के प्राचीन प्रमाण भी मिले हैं यह माना माना जाता है कि संभवत यह घग्गर नदी के सूखने से कालीबंगा का विनाश हुआ राजस्थान सरकार ने कालीबंगा से प्राप्त पूरा अवशेषों के संरक्षण हेतु वहां एक संग्रहालय की स्थापना की इस प्रकार कालीबंगा सभ्यता से हमारे इतिहास को जानने में हमें हमें अत्यधिक मदद मिलती है राजस्थान के इतिहास में कालीबंगा सभ्यता का स्थान महत्वपूर्ण है
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