आहड़ सभ्यता और संस्कृति ताम्रवती नगरी
राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण का कार्य 1871 ईस्वी में सर्वप्रथम प्रारंभ करने का श्रेय ए. सी .एल .कार्लाइल को जाता है। आहड़ सभ्यता उदयपुर आहड़ सभ्यता का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी /तांबावती/ आघाटपुर / आघाट दुर्ग/ धूलकोट( आहड़ नदी के किनारे स्थित टीला का स्थानीय नाम धूलकोट )था) एच डी सौंकलिया ने इसका नाम बनास संस्कृति दिया ग्रामीण संस्कृति की सभ्यता/ मृतकों का टीला भी इसे कहा जाता है इस सभ्यता का सर्वाधिक उत्खन्न एच डी सौंकलिया ने करवाया यह सभ्यता उदयपुर शहर के निकट आयड़/आहड़ नदी के किनारे थी! यह सभ्यता 4000 वर्ष पुरानी 1900-1200 ईस्वी पूर्व ताम्रपाषाण सभ्यता है इसकी शुरुआत प्रथम खोज अक्षय कीर्ति व्यास 1953 ईस्वी में की इसके बाद में रतन चंद्र अग्रवाल 1956 ईस्वी में खोज की इनका उत्खन्न वी.एन.मिश्र व एच डी सौंकलिया 1961 ईस्वी में किया उत्खनन के समय राजस्थान सरकार द्वारा विजय कुमार व पी सी चक्रवर्ती को भी नियुक्त किया गया था यहां पर उत्खनन के अनेंक स्तर प्राप्त हुए थे प्रथम स्तर पर स्फटिक पत्थरो की अधिकता थी द्वितीय स्तर पर तांबे ,काँसे व लोहे के उपकरण मिले हैं तृतीय स्तर पर मृदभांड मिले हैं आहड़ सभ्यता के निवासी काला पत्थर(शिष्ट पत्थर) से मकान की नींव भरते थे यह पत्थर आहाड़ के पास बहुतायत में उपलब्ध है मकानों की दीवारें धूप में सुखाई ईटों व पत्थरों से बनाते थे मकान के सामने की दीवार सफाई से चिकनी जाती थी यहां के अधिकतम मकान आयताकार व बड़े आकार के थे बड़े कमरों में बांस की पड़दी लगाकर उस पर मिट्टी चढ़ाकर छोटे कमरे में परिणित किया जाता था मकानों की छत पर बांस बिछाकर उस पर मिट्टी का लेप किया जाता था मकानों की फर्श चिकनी मिट्टी में पीली मिट्टी मिलाकर बनाई जाती थी मकानों से पानी निकालने की वैज्ञानिक पद्धति थी जिसमें 15 से 20 फुट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें मिट्टी के घड़ों को एक के ऊपर एक रखकर पानी सूखने का शोषण पात्र बनाया जाता था यह पद्धति चक्रकूप पद्धति कहलाती थी आहड़ वाले कृषि करते थे यहां के लोग अन्न पका कर खाते थे आधुनिक देहरादून के लंबे चावलों की तरह उच्च कोटि के चावल आहड़ में होते थे मकानों में 2/ 3/6/ चूल्हें मिले हैं जो पितृसत्तात्मक व संयुक्त परिवार होने के प्रमाण है यहां पर बेैल की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं जिसे पुराविदों ने बनासियल बुल टेराकोटा की संज्ञा दी है यहां शव को कपड़ों में आभूषण सहित गाड़ते थे जो इनकी मृत्यु के बाद ही जीवन की अवधारणा का समर्थक होने का प्रमाण था शव का सिर उत्तर की तरफ रखा जाता था यहां से तांबे गलाने की भट्टियाॕ मिली है यहां पर तांबे के काफी उपकरण मिले हैं तांबे की मुद्राएं ,चूड़ियां, चाकू, तांबे की कुल्हाड़ी, बर्तन व अन्य उपकरण मिले हैं यहां यह तथ्य उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि आहड़ सभ्यता के लोग चांदी से अपरिचित थे यहां से 26 किस्म के मणिये व धूपदानियाॕ मिली है आहड़ में ताॕबे की 6 यूनानी मुद्राएं व तीन मोहरे मिली है एक मुद्रा पर त्रिशूल दूसरी तरफ यूनानी देवता अपोलो दिखाया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि आहड़ का व्यापार विदेशों में भी होता था यह मुद्रा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की है इन मुद्राओं पर यूनानी भाषा में लेख लिखा हुआ है यहां अनाज रखने के बड़े मृदभांड मिले हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में गोरे व कोठे कहा जाता था उत्खनन में मिट्टी के बर्तन सर्वाधिक मिले हैं जो आहड़ को लाल काले मृदभांड संस्कृति का प्रमुख केंद्र सिद्ध करते हैं जिसमें लाल ,काले व भूरे रंग के मृदभांड व बाट ,माप के उपकरण भी मिले हैं छपाई के ठप्पे आहड़ में मिले हैं जिसके रंगाई व छपाई का उन्नत होने का अनुमान लगाया जाता है आटा पीसने की चक्की भी आहड़ सभ्यता से मिली है एक नारी की खंडित मूर्ति भी मिली है जो कमर से नीचे लहंगा पहने हुए हैं आहड़ सभ्यता में बिना हत्थे का जल पात्र भी मिला है ऐसे जलपात्र ईरान व बलूचिस्तान में भी मिले हैं आहड़ सभ्यता में लोहे का प्रवेश भी हो चुका था यहां से लोहे के 79 उपकरण, कुल्हाड़ी, चाकू, अंगूठी आदि मिले हैं आहड़ सभ्यता के नीचे के कालखंड को काल खंड प्रथम कहा जाता है जो ताम्र युगीन सभ्यता का द्योतक है तथा ऊपर के कालखंड वह कालखंड द्वितिय कहा जाता है जिससे आहड़ वासी तांबे के साथ-साथ लोहे के उपकरणों का भी प्रयोग करने लगे थे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृतिक प्रकोप से आहड़ सभ्यता विध्वंस हुई इस सभ्यता के लोग उत्तर पूर्वी और दक्षिण पूर्व की ओर बढ़े तथा गिल्लूड़ राजसमंद व भगवानपुरा जैसे स्थान नए बनाये गए आहड़ सभ्यता से उत्खन्न स्थल को मृतकों का टीला/ महासतियों का टीला भी कहा जाता है यहां पर एक 40 फीट गहरे गड्ढे से इनके 8 बार बसने 8 बार उजड़ने के प्रमाण मिले हैं आहड़ क्षेत्र में 40 तांबे की खाने थी जिससे तांबा निकाला जाता था भारत और राजस्थान के इतिहास को जानने के लिए आहड़ सभ्यता एक महत्वपूर्ण स्रोत है
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