चौहानों का इतिहास शासक पृथ्वीराज तृतीय (1177 ईस्वी 1192.ईस्वी)
चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय (1177 ईस्वी 1192.ईस्वी)
अजमेर के चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय हुआ जिनका जन्म 1167 ईस्वी में गुजरात की तत्कालीन राजधानी अहिलपाटन में हुआ. इसमें 1177 ईस्वी के लगभग अपने पिता सोमेश्वर की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में अजमेर का सिहासन प्राप्त किया इनकी माता कर्पूर देवी ने बड़ी कुशलता से प्रारंभ में इनके राज्य को संभाला! मुख्यमंत्री कदम्बवास अत्यधिक वीर विद्वान व स्वामी भक्त था तथा सेनाध्यक्ष भुवनैकममल्ल कर्पूर देवी का संबंधी था! पृथ्वीराज ने प्रारंभिक वर्षों में अपने विरोधियों यथा चाचा परमगांग्य अपने चचेरे भाई नागार्जुन और भंडानको को समाप्त किया इससे उसका राज्य दिल्ली से अजमेर तक एक हो गया 1182 ईस्वी के आसपास पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेल परमार्दीदेव को हराकर वहां अपना अधिकार कर लिया विजय पृथ्वीराज पंजूनराय कों महोबा का उत्तराधिकारी नियुक्त कर लौट आया.! आल्हा उदल:- आल्हा और ऊदल महोबा के चंदेल शासक परमार्दीदेव के दो वीर सेना नायक थे जो अपने शासक से रूठ कर पड़ोसी राज्य में चले गए थे जब 1182 ईस्वी पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया तो परमार्दीदेव ने अपने दोनों वीर सेना नायकों के पास यह संदेश भिजवाया कि तुम्हारी मातृभूमि पर पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया है दोनों परमवीर सेनानायक पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध में वीरता से लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए तथा अपनी वीरता शौर्य और बलिदान के कारण इतिहास में अमर हुए.! चालुक्यों पर विजय गुजरात के चालुक्य और अजमेर के चौहानों के बीच दीर्घकाल से संघर्ष चला आ रहा था किंतु सोमेश्वर के शासनकाल में दोनों के नेतृत्व में मैत्री सम्बन्ध था पृथ्वीराज तृतीय के समय यह संघर्ष पुनः चालू हो गया पृथ्वीराज रासो के अनुसार संघर्ष का प्रमुख कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय और चालुक्य के नरेश भीमदेव द्वितिय दोनों आबू के शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह करना चाहते थे पृथ्वीराज रासो में संघर्ष का दूसरा कारण यह बताया कि पृथ्वीराज तृतीय के चाचा कान्हा ने भीमदेव द्वितिय के सात चचेरे भाइयों को मार दिया था इसलिए भीमदेव ने अजमेर पर आक्रमण कर नागौर पर अधिकार कर लिया तथा सोमेश्वर को मार डाला. युद्ध का वास्तविक कारण यह था कि चालूक्यों का राज नाडोल तथा आबू तक फैला हुआ था और पृथ्वीराज के राज्यों की सीमाएं नाडोल आबू को स्पर्श कर रही थी अतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था 1184 में दोनों पक्षों के बीच घमासान किंतु अनिर्णायक युद्ध हुआ और अंत में 1187 के आसपास चालूक्यों के महामंत्री जगदेव प्रतिहार के प्रयासों से दोनों में एक अस्थाई संधि हो गई.! चौहान गहड़वाल वैमनस्य:- दिल्ली को लेकर चौहानों में व गहड़वाल में वैमनस्य एक संभावित घटना बन गई !दिल्ली प्रश्न को लेकर विग्रहराज चतुर्थ और विजयचंद्र गहड़वाल में युद्ध हुआ था जिसमें विजयचंद्र को पराजित होना पड़ा था पृथ्वीराज की दिग्विजय की नीतियों व दिल्ली के मुद्दे पर पृथ्वीराज चौहान व जयचंद्र गहड़वाल के मध्य वैमनस्य अत्यधिक वढ़ गया दोनों ही महत्वकांक्षी शासक थे! इस वैमनस्य में पृथ्वीराज चौहान द्वारा जयचंद्र गहड़वाल की पुत्री संयोगिता के हरण ने ओर वृर्द्वि कर दी. ! संयोगिता:- पृथ्वीराज रासो के अनुसार संयोगिता जयचंद्र गहड़वाल की पुत्री थी पृथ्वीराज और संयोगिता में प्रेम था जिनकी अवहेलना जयचंद्र गहड़वाल ने की !जयचंद्र ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया जिसके साथ संयोगिता का स्वयंवर भी रचा था परंतु पृथ्वीराज को उसमें नहीं बुलाया गया उसने पृथ्वीराज को अधिक अपमानित करने के लिए उनकी लोहे की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर खड़ी कर दी! तो स्वयंवर का समय आया तो राजकुमारी ने अपने प्रेमी पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी चौहान राजा भी अपने सैन्य बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया और युक्ति से संयोगिता को उठाकर चल पड़ा संयोगिता को अजमेर ले जाकर उनके के साथ विवाह कर लिया!. संयोगिता की ऐतिहासिकता:- डॉक्टर त्रिपाठी, विश्वेश्वर नाथ रेऊ तथा डॉक्टर औझा संदेह प्रकट करते हैं और यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं कि यह संपूर्ण कथा काल्पनिक है डॉ दशरथ शर्मा, श्री सी. वी वैध संयोगिता के अपहरण की घटना को ऐतिहासिक माना इसी प्रकार राष्ट्रकूट शासक इंद्र जो चालूक्यों का सांमन्त था मंडप से चालूक्य राजकुमारी भगवान को बलात ले गया! चंद्रशेखर तथा अबुल फजल फजल ने संयोगिता की कथा को मान्यता दी पृथ्वीराज विजय मे वीर पृथ्वीराज को त्रिलोचना नामक अप्सरा जो राजकुमारी के रूप में अवतरित हुई थी प्राप्त होने के संकेत हैं.! तराइन के युद्ध 1191 ईस्वी में 1192 ईस्वी:- पृथ्वीराज के समय उत्तर पश्चिम भाग में गौर वशं का शासक था जिनके नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गोैरी था संन 1186 से 1191 ईस्वी तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ हमीर महाकाव्य के अनुसार सात बार ,पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार 8 बार ,पृथ्वीराज रासो में 21 बार का, प्रबंध चिंतामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी को पराजित होने का उल्लेख है! अंततः 1191 में मोहम्मद गोरी ने बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया वर्तमान करनाल हरियाणा के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी की भारी पराजय ही पृथ्वीराज के दिल्ली सामंत गोविंद राज ने अपनी बरछी के वार से मोहम्मद गोैरी को घायल कर दिया घायल गोैरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया पृथ्वीराज ने तबरहिंद पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसके बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया परंतु 1192 ईस्वी में वह तराइन के मैदान में आ धमका पृथ्वीराज के साथ उनके बहनोई मेवाड़ शासक समर सिंह दिल्ली के गवर्नर गोविंदराज भी थे इस युद्ध में पृथ्वीराज की बुरी तरह हार हुई तथा भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई. पराजित पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बना लिया पृथ्वीराज रासो के अनुसार बंदी पृथ्वीराज को गोैरी अपने साथ गजनी ले गया जहां शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन से पृथ्वीराज ने गौरी को मार डाला जबकि समकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेरपर शासन किया निजामी के कथन के पक्ष में एक सिक्के का भी संदर्भ दिया जाता है जिसमें एक तरफ मोहम्मद बिन शाम और दूसरी तरफ पृथ्वीराज नाम अंकित है इस तरह अजमेर एवं दिल्ली पर मोहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो गया! तराइन के युद्ध के बाद गोैरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविंद राज को अजमेर का प्रशासक नियुक्त किया था. ! पृथ्वीराज की पराजय के कारण:- पृथ्वीराज के पास विशाल सेना के होते हुए भी पराजित होने के अनेक कारण थे मिनहाज उस सिराज के अनुसार गोैरी की सेना सुव्यवस्थित थी पृथ्वीराज की सेना अव्यवस्थित थी जो उसकी हार का प्रमुख कारण था राजपूती सदा मरना जानते हैं लेकिन युद्ध कला में निपुण नहीं थे सामंती सेना की वजह से केंद्रीय नेतृत्व का अभाव होना, अच्छे लड़ाकू अधिकारियों का प्रथम युद्ध में काम आना भी पराजय का बहुत बड़ा कारण था सुबह-सुबह शौच आदि के समय असावधान राजपूत सेना पर आक्रमण करना ,अश्वपति प्रताप सिंह जैसे सामंतों का अपने स्वामी को हराने के भेद शत्रुओं को बताना भी हार का प्रमुख कारण था !प्रथम युद्ध को अंतिम युद्ध मानकर उपेक्षा का आचरण करना, उत्तर-पश्चिम सीमा की सुरक्षा का उपाय नहीं करना ,दिग्विजय नीति से राजपूत सरदारों को नाराज करना, फिर युद्ध के समय मोर्चा नही बनाने के लिए पृथ्वीराज जिम्मेदार था!. तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम:-. यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक टर्निंग प्वाइंट था जिसके फलस्वरूप भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई है और हिंदु सता का अंत हुआ आरसी मजूमदार के शब्दों में इस युद्ध से न केवल चौहानों की सतह का विनाश हुआ है अपितु पूरे हिंदू धर्म का विनाश ला दिया इसके बाद लूटपाट, तोड़फोड़, धर्म परिवर्तन, मंदिर मूर्तियों का विनाश आदि घृणित प्रदर्शन हुआ जिसे हिंदू कला व स्थापत्य का विनाश हुआ इस्लाम का प्रचार प्रसार ,फारसी शैली का आवागमन, मध्य एशिया से आर्थिक सांस्कृतिक संबंधों की स्थापना, वाणिज्य व्यापार एवं नगरीकरण का प्रसार इसके दूरगामी परिणाम थे जिसे इरफान हबीब नई शहरी क्रांति की संज्ञा देते हैं!. पृथ्वीराज तृतीय का मूल्यांकन:- पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट कहा जाता है यह राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध था पृथ्वीराज चौहान शाकंभरी के चौहानों में ही नहीं अपितु राजपूताना के राजाओ में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता था! उसने मात्र 11 वर्ष की आयु में अपनी प्रशासनिक व सैनिक कुशलता के आधार पर चौहान राज्य को सुदृढ़ कियां !अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए दिग्विजय की नीति से तुष्ट किया !न केवल अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया अपितु आंतरिक विद्रोह का दमन कर समूचे राज्य में शांति और व्यवस्था स्थापित करी! पृथ्वीराज चौहान ने अपने चारों ओर के शुत्रों का खात्मा कर दलपगुंल (विश्व विजेता) की उपाधि धारण की इस प्रकार अपने प्रारंभिक काल में शानदार सैनिक सफलता प्राप्त कर अपने आप को महान सेनानायक विजयी सम्राट सिद्ध कर दिखाया परंतु उनके शासन का दूसरा पक्ष भी था जिसमें उसकी प्रशासनिक क्षमता और रणकौशलता में कुछ त्रुटियां दृष्टिगत होती हैं उसमें कूटनीतिक सूझ बुझ की कमी थी वह राजनीतिक अहंकार से पीड़ित था उसकी दिग्विजय नीति से पड़ोसी शासक शत्रु बन गए थे !उसने मुस्लिम आक्रांताओं को गंभीरता से नहीं लिया ! न ही वह अपने शत्रु के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा खड़ा कर सका! संभवत तराइन के मैदान में हारने का प्रमुख कारण यही रहा! वह न केवल वीर साहसी, सैनिक प्रतिभाओं से युक्त तथा अतिथि विद्वानों व कलाकारों का आश्रयदाता था पृथ्वीराज रासो का लेखक चंद्रवरदाई ,पृथ्वीराज विजय का लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशााधर ,पृथ्वीराज भट्ट ,विश्वरूप ,विद्यापति गौड़ आदि अनेक विद्वान कवि और साहित्यकार उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे उसने शासनकाल में सरस्वती कंठाभरण नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था ऐसे अनेक विद्यालय मौजूद था जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त होता था! इस प्रकार वह एक महान विद्यानुरागी शासक था! डॉ दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को सुयोग्य शासक कहा ! उसने तारागढ़ नाम के दुर्ग को सुदृढ़ता प्रदान की ताकि अपनी राजधानी की शत्रुओं से रक्षा कर सके !उसने अजमेर का परिवर्धन कर मंदिर व महलों का निर्माण करवाया! राजस्थान के इतिहासकार डॉ दशरथ शर्मा उनके गुणों के कारणों से योग्य व रहस्मय शासक बताते हैं वह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुत था इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान राजपूतों के इतिहास में अपनी सीमाओं के बावजूद एक योग्य एवं महत्वपूर्ण शासक रहा! पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान युद्धों के वातावरण में रहते हुए चौहान राज्य की प्रतिभा को साहित्य, सांस्कृति क्षेत्र से पुष्ट किया!.
अजमेर के चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय हुआ जिनका जन्म 1167 ईस्वी में गुजरात की तत्कालीन राजधानी अहिलपाटन में हुआ. इसमें 1177 ईस्वी के लगभग अपने पिता सोमेश्वर की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में अजमेर का सिहासन प्राप्त किया इनकी माता कर्पूर देवी ने बड़ी कुशलता से प्रारंभ में इनके राज्य को संभाला! मुख्यमंत्री कदम्बवास अत्यधिक वीर विद्वान व स्वामी भक्त था तथा सेनाध्यक्ष भुवनैकममल्ल कर्पूर देवी का संबंधी था! पृथ्वीराज ने प्रारंभिक वर्षों में अपने विरोधियों यथा चाचा परमगांग्य अपने चचेरे भाई नागार्जुन और भंडानको को समाप्त किया इससे उसका राज्य दिल्ली से अजमेर तक एक हो गया 1182 ईस्वी के आसपास पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेल परमार्दीदेव को हराकर वहां अपना अधिकार कर लिया विजय पृथ्वीराज पंजूनराय कों महोबा का उत्तराधिकारी नियुक्त कर लौट आया.! आल्हा उदल:- आल्हा और ऊदल महोबा के चंदेल शासक परमार्दीदेव के दो वीर सेना नायक थे जो अपने शासक से रूठ कर पड़ोसी राज्य में चले गए थे जब 1182 ईस्वी पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया तो परमार्दीदेव ने अपने दोनों वीर सेना नायकों के पास यह संदेश भिजवाया कि तुम्हारी मातृभूमि पर पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया है दोनों परमवीर सेनानायक पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध में वीरता से लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए तथा अपनी वीरता शौर्य और बलिदान के कारण इतिहास में अमर हुए.! चालुक्यों पर विजय गुजरात के चालुक्य और अजमेर के चौहानों के बीच दीर्घकाल से संघर्ष चला आ रहा था किंतु सोमेश्वर के शासनकाल में दोनों के नेतृत्व में मैत्री सम्बन्ध था पृथ्वीराज तृतीय के समय यह संघर्ष पुनः चालू हो गया पृथ्वीराज रासो के अनुसार संघर्ष का प्रमुख कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय और चालुक्य के नरेश भीमदेव द्वितिय दोनों आबू के शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह करना चाहते थे पृथ्वीराज रासो में संघर्ष का दूसरा कारण यह बताया कि पृथ्वीराज तृतीय के चाचा कान्हा ने भीमदेव द्वितिय के सात चचेरे भाइयों को मार दिया था इसलिए भीमदेव ने अजमेर पर आक्रमण कर नागौर पर अधिकार कर लिया तथा सोमेश्वर को मार डाला. युद्ध का वास्तविक कारण यह था कि चालूक्यों का राज नाडोल तथा आबू तक फैला हुआ था और पृथ्वीराज के राज्यों की सीमाएं नाडोल आबू को स्पर्श कर रही थी अतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था 1184 में दोनों पक्षों के बीच घमासान किंतु अनिर्णायक युद्ध हुआ और अंत में 1187 के आसपास चालूक्यों के महामंत्री जगदेव प्रतिहार के प्रयासों से दोनों में एक अस्थाई संधि हो गई.! चौहान गहड़वाल वैमनस्य:- दिल्ली को लेकर चौहानों में व गहड़वाल में वैमनस्य एक संभावित घटना बन गई !दिल्ली प्रश्न को लेकर विग्रहराज चतुर्थ और विजयचंद्र गहड़वाल में युद्ध हुआ था जिसमें विजयचंद्र को पराजित होना पड़ा था पृथ्वीराज की दिग्विजय की नीतियों व दिल्ली के मुद्दे पर पृथ्वीराज चौहान व जयचंद्र गहड़वाल के मध्य वैमनस्य अत्यधिक वढ़ गया दोनों ही महत्वकांक्षी शासक थे! इस वैमनस्य में पृथ्वीराज चौहान द्वारा जयचंद्र गहड़वाल की पुत्री संयोगिता के हरण ने ओर वृर्द्वि कर दी. ! संयोगिता:- पृथ्वीराज रासो के अनुसार संयोगिता जयचंद्र गहड़वाल की पुत्री थी पृथ्वीराज और संयोगिता में प्रेम था जिनकी अवहेलना जयचंद्र गहड़वाल ने की !जयचंद्र ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया जिसके साथ संयोगिता का स्वयंवर भी रचा था परंतु पृथ्वीराज को उसमें नहीं बुलाया गया उसने पृथ्वीराज को अधिक अपमानित करने के लिए उनकी लोहे की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर खड़ी कर दी! तो स्वयंवर का समय आया तो राजकुमारी ने अपने प्रेमी पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी चौहान राजा भी अपने सैन्य बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया और युक्ति से संयोगिता को उठाकर चल पड़ा संयोगिता को अजमेर ले जाकर उनके के साथ विवाह कर लिया!. संयोगिता की ऐतिहासिकता:- डॉक्टर त्रिपाठी, विश्वेश्वर नाथ रेऊ तथा डॉक्टर औझा संदेह प्रकट करते हैं और यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं कि यह संपूर्ण कथा काल्पनिक है डॉ दशरथ शर्मा, श्री सी. वी वैध संयोगिता के अपहरण की घटना को ऐतिहासिक माना इसी प्रकार राष्ट्रकूट शासक इंद्र जो चालूक्यों का सांमन्त था मंडप से चालूक्य राजकुमारी भगवान को बलात ले गया! चंद्रशेखर तथा अबुल फजल फजल ने संयोगिता की कथा को मान्यता दी पृथ्वीराज विजय मे वीर पृथ्वीराज को त्रिलोचना नामक अप्सरा जो राजकुमारी के रूप में अवतरित हुई थी प्राप्त होने के संकेत हैं.! तराइन के युद्ध 1191 ईस्वी में 1192 ईस्वी:- पृथ्वीराज के समय उत्तर पश्चिम भाग में गौर वशं का शासक था जिनके नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गोैरी था संन 1186 से 1191 ईस्वी तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ हमीर महाकाव्य के अनुसार सात बार ,पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार 8 बार ,पृथ्वीराज रासो में 21 बार का, प्रबंध चिंतामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी को पराजित होने का उल्लेख है! अंततः 1191 में मोहम्मद गोरी ने बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया वर्तमान करनाल हरियाणा के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी की भारी पराजय ही पृथ्वीराज के दिल्ली सामंत गोविंद राज ने अपनी बरछी के वार से मोहम्मद गोैरी को घायल कर दिया घायल गोैरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया पृथ्वीराज ने तबरहिंद पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसके बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया परंतु 1192 ईस्वी में वह तराइन के मैदान में आ धमका पृथ्वीराज के साथ उनके बहनोई मेवाड़ शासक समर सिंह दिल्ली के गवर्नर गोविंदराज भी थे इस युद्ध में पृथ्वीराज की बुरी तरह हार हुई तथा भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई. पराजित पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बना लिया पृथ्वीराज रासो के अनुसार बंदी पृथ्वीराज को गोैरी अपने साथ गजनी ले गया जहां शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन से पृथ्वीराज ने गौरी को मार डाला जबकि समकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेरपर शासन किया निजामी के कथन के पक्ष में एक सिक्के का भी संदर्भ दिया जाता है जिसमें एक तरफ मोहम्मद बिन शाम और दूसरी तरफ पृथ्वीराज नाम अंकित है इस तरह अजमेर एवं दिल्ली पर मोहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो गया! तराइन के युद्ध के बाद गोैरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविंद राज को अजमेर का प्रशासक नियुक्त किया था. ! पृथ्वीराज की पराजय के कारण:- पृथ्वीराज के पास विशाल सेना के होते हुए भी पराजित होने के अनेक कारण थे मिनहाज उस सिराज के अनुसार गोैरी की सेना सुव्यवस्थित थी पृथ्वीराज की सेना अव्यवस्थित थी जो उसकी हार का प्रमुख कारण था राजपूती सदा मरना जानते हैं लेकिन युद्ध कला में निपुण नहीं थे सामंती सेना की वजह से केंद्रीय नेतृत्व का अभाव होना, अच्छे लड़ाकू अधिकारियों का प्रथम युद्ध में काम आना भी पराजय का बहुत बड़ा कारण था सुबह-सुबह शौच आदि के समय असावधान राजपूत सेना पर आक्रमण करना ,अश्वपति प्रताप सिंह जैसे सामंतों का अपने स्वामी को हराने के भेद शत्रुओं को बताना भी हार का प्रमुख कारण था !प्रथम युद्ध को अंतिम युद्ध मानकर उपेक्षा का आचरण करना, उत्तर-पश्चिम सीमा की सुरक्षा का उपाय नहीं करना ,दिग्विजय नीति से राजपूत सरदारों को नाराज करना, फिर युद्ध के समय मोर्चा नही बनाने के लिए पृथ्वीराज जिम्मेदार था!. तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम:-. यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक टर्निंग प्वाइंट था जिसके फलस्वरूप भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई है और हिंदु सता का अंत हुआ आरसी मजूमदार के शब्दों में इस युद्ध से न केवल चौहानों की सतह का विनाश हुआ है अपितु पूरे हिंदू धर्म का विनाश ला दिया इसके बाद लूटपाट, तोड़फोड़, धर्म परिवर्तन, मंदिर मूर्तियों का विनाश आदि घृणित प्रदर्शन हुआ जिसे हिंदू कला व स्थापत्य का विनाश हुआ इस्लाम का प्रचार प्रसार ,फारसी शैली का आवागमन, मध्य एशिया से आर्थिक सांस्कृतिक संबंधों की स्थापना, वाणिज्य व्यापार एवं नगरीकरण का प्रसार इसके दूरगामी परिणाम थे जिसे इरफान हबीब नई शहरी क्रांति की संज्ञा देते हैं!. पृथ्वीराज तृतीय का मूल्यांकन:- पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट कहा जाता है यह राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध था पृथ्वीराज चौहान शाकंभरी के चौहानों में ही नहीं अपितु राजपूताना के राजाओ में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता था! उसने मात्र 11 वर्ष की आयु में अपनी प्रशासनिक व सैनिक कुशलता के आधार पर चौहान राज्य को सुदृढ़ कियां !अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए दिग्विजय की नीति से तुष्ट किया !न केवल अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया अपितु आंतरिक विद्रोह का दमन कर समूचे राज्य में शांति और व्यवस्था स्थापित करी! पृथ्वीराज चौहान ने अपने चारों ओर के शुत्रों का खात्मा कर दलपगुंल (विश्व विजेता) की उपाधि धारण की इस प्रकार अपने प्रारंभिक काल में शानदार सैनिक सफलता प्राप्त कर अपने आप को महान सेनानायक विजयी सम्राट सिद्ध कर दिखाया परंतु उनके शासन का दूसरा पक्ष भी था जिसमें उसकी प्रशासनिक क्षमता और रणकौशलता में कुछ त्रुटियां दृष्टिगत होती हैं उसमें कूटनीतिक सूझ बुझ की कमी थी वह राजनीतिक अहंकार से पीड़ित था उसकी दिग्विजय नीति से पड़ोसी शासक शत्रु बन गए थे !उसने मुस्लिम आक्रांताओं को गंभीरता से नहीं लिया ! न ही वह अपने शत्रु के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा खड़ा कर सका! संभवत तराइन के मैदान में हारने का प्रमुख कारण यही रहा! वह न केवल वीर साहसी, सैनिक प्रतिभाओं से युक्त तथा अतिथि विद्वानों व कलाकारों का आश्रयदाता था पृथ्वीराज रासो का लेखक चंद्रवरदाई ,पृथ्वीराज विजय का लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशााधर ,पृथ्वीराज भट्ट ,विश्वरूप ,विद्यापति गौड़ आदि अनेक विद्वान कवि और साहित्यकार उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे उसने शासनकाल में सरस्वती कंठाभरण नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था ऐसे अनेक विद्यालय मौजूद था जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त होता था! इस प्रकार वह एक महान विद्यानुरागी शासक था! डॉ दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को सुयोग्य शासक कहा ! उसने तारागढ़ नाम के दुर्ग को सुदृढ़ता प्रदान की ताकि अपनी राजधानी की शत्रुओं से रक्षा कर सके !उसने अजमेर का परिवर्धन कर मंदिर व महलों का निर्माण करवाया! राजस्थान के इतिहासकार डॉ दशरथ शर्मा उनके गुणों के कारणों से योग्य व रहस्मय शासक बताते हैं वह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुत था इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान राजपूतों के इतिहास में अपनी सीमाओं के बावजूद एक योग्य एवं महत्वपूर्ण शासक रहा! पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान युद्धों के वातावरण में रहते हुए चौहान राज्य की प्रतिभा को साहित्य, सांस्कृति क्षेत्र से पुष्ट किया!.
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