कच्छवाहा शासक मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम( 1621ईस्वी 1667 ईस्वी)
मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम( 1621ईस्वी 1667 ईस्वी) राजा जयसिंह प्रथम के पिता का नाम महासिंह माता का नाम दमयंती कवरं जो उदय सिंह की पोती थी भाव सिह की निसंतान मृत्यु होने पर मानसिंह प्रथम के जेष्ठ पुत्र जगतसिंह का पुत्र जय सिंह 11 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा. मान सिंह की मृत्यु 1614 के समय जयसिंह मात्र 2 वर्ष का था जय सिंह की माता दमयंती कवरं उसे लेकर दोसा चली गई उन्हें डर था कि कहीं आमेर के भावी शासक होनेे के कारण भाव सिंह उसे मरवाने न दे! भाव सिंह की मृत्यु हुई तब जयसिंह को दौसा से लाया गया! 23 दिसंबर 16 21 ईस्वी को आमेर का शासक बना!. यह कछवाह वशं के शासकों में सबसे अधिक समय तक गद्दी पर रहे उन्होंने 46 वर्ष तक आमेर का शासन किया इन्होंने तीन मूगल बादशाहों जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब की सेवा की ! मुगल बादशाह जहांगीर ने 3000जात व पंद्रह सौ सवारो का मनसब प्रदान किया.! अहमदनगर अभियान:-. जयसिंह के गद्दी पर बैठते ही जय सिंह को 1623 में अहमदनगर अभियान मलिक अंम्बर के विरुद्ध पर भेजा जहां इन्होंने अद्भुत साहस और वीरता का परिचय दिया 1625 इस्वी में जयसिंह ने दलेल खाँ पठान को पराजित किया जहांगीर की मृत्यु:- 1627 में जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां मुगल बादशाह बना शाहजहां ने जयसिंह प्रथम को 4000 जात व सवार का मनसब प्रदान किया.! जयसिंह प्रथम ने महावन के जाटों के विद्रोह का दमन किया 1629 ईस्वी. में उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रदेशों में उजबेगों के विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन किया! इसके बाद जय सिंह को बुरहानपुर भेजा गया जहां उन्होंने 1630 ईस्वी खानेजहां लोधी के विद्रोह का दमन किया 1636 ईस्वी में जयसिंह को शाहजहां के साथ बीजापुर और गोलकुंडा को दबाने दक्षिण भेजा जहां उसने वीरता का परिचय दिया. मिर्जा राजा की उपाधि:- 1637 ईस्वी को जय सिंह को मिर्जा राजा की पदवी देकर सूजा के साथ कंधार अभियान पर भेजा गया कंधार अभियान के दौरान जयसिंह ने शूजा के साथ मिलकर कंधार पर मुगलों का अधिकार कराया.! उत्तराधिकारी संघर्ष:- 1657 ईस्वी में शाहजहां बीमार पड़ा उनके पुत्रों में उत्तराधिकारी युद्ध छिड़ गया उस समय जयसिंह ने दारा शिकोह की तरफ से शाही सेना में लड़ते हुए शाहशूजा कि सेना को बहादुरपुर के विरुद्ध 24 फरवरी 1658 ईस्वी का नेतृत्व करते हुए पराजित किया ! बादशाह ने उनका मनसब बढ़ाकर 6000जात व सवार कर दिया.! धरमत का युद्ध:- 15 अप्रैल 1658 को धरमत के युद्ध में जयसिंह ने दारा शिकोह का साथ दिया इस युद्ध ने जोधपुर के शासक जसवंत सिंह शाही सेना के साथ था इसमें औरंगजेब की विजय हुई और शाही सेना बुरी तरह परास्त हुई.! सामुगढ़ का युद्ध:- 29 मई 1658 ईस्वी को सामुगढ़ की युद्ध में भी दारा की हार हुई दारा पराजित होकर भाग गया औरंगजेब को युद्ध में निर्णायक विजय मिली !इस संघर्ष में जयसिंह द्वारा दारा का साथ देने के कारण औरंगजेब नाराज था उत्तराधिकारी युद्ध में जब औरंगजेब जीत गया तो 25 जून 1658 को जयसिंह ने मथुरा पहुंचकर औरंगजेब से भेंट की और सहायता देने का आश्वासन दिया. दौराई का युद्ध:- औरंगजेब दारा के मध्य यह अंतिम युद्ध था अजमेर के निकट दौराई नामक स्थान पर मार्च 1659 इस्वी में हुए युद्ध में मिर्जा राजा जयसिंह ने औरंगजेब की सेना का हरावल का नेतृत्व किया इसमें दारा की हार हुई. पुरंदर की संधि:- जयसिंह की योग्यता और कूटनीति से प्रभावित होकर औरंगजेब ने इन्हें दक्षिण में मराठों के विरूद्ध भेजा !जय सिंह को सितंबर 1664 ईस्वी में 14000 की सेना देकर दक्षिण भारत में शिवाजी और संभाजी का दमन करने के लिए भेजा राजा जयसिंह ने पुरंदर के किले को घेर दिया शिवाजी ने सोचा मुगलो से अधिक संघर्ष करना आत्महत्या के समान होगा और राज्य का संपूर्ण विनाश हो जाएगा शिवाजी ने जय सिंह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया !11 जून 1665 ईस्वी को शिवाजी व मिर्जा राजा जयसिंह के मध्य संधि हुई शिवाजी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली! शिवाजी को मुगल दरबार सेवा से मुक्त रखा गया शिवाजी ने मुगलों से जीते 35 में से 23 किलो वापस सुपुर्द कर दिए.! पुरंदर की संधि जयसिंह की दूरदर्शिता व शक्ति की पराकाष्ठा थी. नोट :-प्रसिद्ध यूरोपीय यात्री मनुची संधि के समय मौजूद था शिवाजी को औरंगजेब के पास आगरा भेजा गया आगरा पहुंचने पर शिवाजी का आदर सत्कार करने की बजाय औरंगजेब ने उन्हें बंदी बना लिया शिवाजी को आगरा में राम सिंह की हवेली में कैद कर दिया गया जहां से शिवाजी फलों की टोकरी में बैठकर फरार हो गया.! औरंगजेब ने इनका आरोप मिर्जा राजा जयसिंह पर लगाया और उन्हें पुनः बंदी बनाने के लिए दक्षिण भारत के बीजापुर भेजा !जयसिंह प्रथम 20 नवंबर 1665 को आगरा से बीजापुर रवाना हुए 5 जनवरी 1666 को बीजापुर से आगरा रवाना हुए वहां से शिवाजी के पीछे बुरहानपुर के लिए रवाना हुए 2 जुलाई 1667 को रास्ते में बुरहानपुर में उनकी मृत्यु हो जाती है! इतिहास का जदुनाथ सरकार के शब्दों में जयसिंह की मृत्यु एलिजाबेथ के दरबार के सदस्य वाँल सिंघम की भांति हुई जिसने अपना बलिदान ऐसे स्वामी के लिए किया जो काम लेने में कठोर और मूल्यांकन में कृतघ्न था! मिर्जा राजा जयसिंह अपने समय का वीर ,साहसी ,दूरदर्शी और कूटनीतिज्ञ शासक था जयसिंह ने जयसिंहपुरा (औरंगाबाद )कस्बा बसाया आमेर के महलों का निर्माण करवाया !जयगढ़ का किला बनवाया हुआ बनारस में एक संस्कृत विद्यालय का भी निर्माण करवाया मिर्जा राजा जयसिंह को चौगान खेलों का संरक्षक कहा जाता है जयसिंह चरित्र की रचना इनके दरबारी कवि राम कवि ने की! कुलपति मिश्र जयसिंह के साथ दक्षिण अभियान में गया था जयसिंह की दक्षिण यात्रा व शिवाजी के बारे में विस्तृत विवरण लिखा है कुलपति मिश्र कवि बिहारी का भांजा था उसने लगभग 52 ग्रंथों की रचना की ! जयसिंह समेत अनेक भाषाओं का ज्ञाता व विद्वानों का सम्मान करने वाला था हिंदी का प्रसिद्ध कवि बिहारी उनके दरबारी कवि था जिसने बिहारी सतसई की रचना की !जय सिंह ने जिनके प्रत्येक दोहे पर 1 सर्वण मुद्रा व बिहारी को काली पहाड़ी की जागीर दी! जय सिंह के एक दरबारी कवि गोपाल तैलंग ने जय चंपू नामक संस्कृत काव्य लिखा नरोत्तम दास ने सुदामा चरित्र लिखा. इस प्रकार मिर्जा राजा जयसिंह एक वीर साहसी और कूटनीतिज्ञ शासक था. जिन्होंने मुगल साम्राज्य को बढ़ाने में उनकी रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
Post a Comment