मारवाड़ का प्रताप राव चंद्रसेन (1562 ईस्वी से 1581 ईस्वी.)
मारवाड़ का प्रताप राव चंद्रसेन (1562 ईस्वी से 1581 ईस्वी.) राव चंद्रसेन का जन्म 16 जुलाई 1541 ईस्वी में हुआ इनके पिता का नाम मालदेव था! राव चंद्रसेन एक योग्य पिता का योग्य पुत्र था! राव चंद्रसेन की माता का नाम स्वरूप दे था जो मेवाड़ के जैतसिंह की पुत्री थी.! उपनाम:-. मारवाड़ का प्रताप/ प्रताप का अग्रगामी/ विस्मृत नायक/ भुला बिसरा राजा. मालदेव की मृत्यु के बाद 31 दिसंबर 1562 को चंद्रसेन मारवाड़ का शासक बना जिससे चंद्रसेन की दोनों बड़े भाई राम व उदय सिंह नाराज हो गए राम ने 1564 ईस्वी में अकबर की शरण में जाकर शाही सहायता मांगी अकबर भी इसी फिराक में था अकबर ने शीघ्र ही हुसैन कुली खां के नेतृत्व में अपनी सेना जोधपुर में भेजी. मई 1564 ईस्वी में जोधपुर के किले पर अकबर की सेना का अधिकार हो गया ! चंद्रसेन जोधपुर से भागकर भाद्राजून (जालौर) में शरण ली. इसके बाद चंद्रसेन को अपने भाई उदय सिंह से भी संघर्ष करना पड़ा दोनों के मध्य लोहावट (जोधपुर) में भिड़ंत हुई इसमें उदय सिंह को घायल होकर मैदान छोड़ना पड़ा. 1570 ईस्वी का अकबर का नागौर दरबार.:- अकबर 1570 ईस्वी में अजमेर की यात्रा पर आया अजमेर से अकबर 3 नवंबर 1570 को नागौर पहुंचा उस समय वहां अकाल पड़ा हुआ था उसने अकाल राहत कार्य के तहत नागौर दुर्ग में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया. अकबर ने नागौर दरबार आमेर के भारमल की सहायता से लगाया था. जिसमें बीकानेर के कल्याणमल व पुत्र राय सिंह, जैसलमेर के हर राय भाटी रणथंबोर के सुरजन हाड़ा ने यहां आकर अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली. मारवाड़ के तीनो भाई राव चंद्रसेन, राम व उदय सिंह अपनी अपनी स्थिति सुधारने वहां पहुंचे चंद्रसेन वहां अकबर का उनके भाइयों राम और उदय सिंह की ओर झुकाव देखकर नागौर दरबार छोड़कर वहां से चला गया. 1572 ने अकबर ने बीकानेर की रायसिंह को जोधपुर का अधिकारी नियुक्त किया. चंद्रसेन भाद्राजून व सिवाना में रहकर मुगल सेना का सामना किया अकबर ने चंद्रसेन को दबाने के लिए अपनी सेना भाद्राजून भेजी चंद्रसेन यहां से अपने भतीजे कल्ला के पास सोजत चला गया.! मुगल सेना पीछा करती सोजत आ गई चंद्रसेन वहां से सिवाना चला गया! रावल सुखराज, सुरजा तथा देवीदास चंद्रसेन के साथी थे मुगल सेना ने इन्हें भी जगह-जगह को खदेड़ा!. इसके बाद चंद्रसेन के विरूद्ध सिवाना में मुगल शक्ति लगा दी गई जिससे तंग आकर वह रामपुरा के पहाड़ों में चला गया इसके बाद चंद्रसेन पीपलूद और वहां से कांणूजा के पहाड़ों में चला गया और आसपास लूट कसोट आरंभ कर दी इससे मारवाड़ के लोग नाराज हो गए ऐसी स्थिति में उनसे मारवाड़ छोड़कर सिरोही और फिर डूंगरपुर और बांसवाड़ा में शरण लेनी पड़ी. पोकरण दुर्ग:- जनवरी 1576 में खराब आर्थिक स्थिति के चलते चंद्रसेन ने पोकरण दुर्ग को 100000 फदीये में जैसलमेर के हरराय भाटी को दे दिया. 11 जनवरी 1581 ईस्वी को सारण के पहाड़ों में सच्चियाप नामक स्थान पर चंद्रसेन की मृत्यु हो गई. चंद्रसेन की समाधि पर घोड़े पर सवार प्रतिमा व आगे 5 स्त्रियां उत्कीर्ण है अनुमान लगाया जाता है कि यह उनके साथ सती होने वाली रानियों का प्रतीक है!. विश्वेश्वर नाथ रैऊ ने चंद्रसेन की तुलना महाराणा प्रताप से की है जिसे प्रताप के समान ही मुग़ल शक्ति का सामना करना पड़ा और पहाड़ों में भटकने के बाद भी उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नही की! चंद्रसेन राजस्थान का पहला वीर था जिसने अकबर के विरूद्ध स्वाधीनता के लिए चुनौती दी. चंद्रसेन पहला राजपूत शासक था जिसने अपनी रणनीति में किलों के स्थान पर पहाड़ों में व जंगलों को प्राथमिकता दी!. चंद्रसेन की मृत्यु के बाद 1581 से 1583 ईस्वी के मध्य अकबर ने मारवाड़ को खालसा घोषित कर दिया!. 1583 ईस्वी में अकबर ने उदय सिंह को मुगल अधीनता में मारवाड़ का शासक बना दिया जो इतिहास में मोटा राजा उदयसिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ उदय सिंह मुगल अधीनता स्वीकार करने वाला मारवाड़ का प्रथम शासक था और मुगल राठौड़ वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाला भी प्रथम शासक था.!
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