रियासतो में विधानमंडल का विकास जयपुर राज्य सरकार अधिनियम 1944
जयपुर रियासत में विधानमंडल का विकास भारत के संवैधानिक इतिहास के विकास में राजपूताना का विकास एक महत्वपूर्ण घटना है राजपूताना का निर्माण छोटी-बड़ी अनेक रियासतों से मिलकर हुआ ! इन रियासतो ने भारतीय संघ में मिलने के लिए 15 अगस्त को 1945 से पूर्व ही घोषणा कर दी! विधान परिषद के सजृन की प्रक्रिया राजस्थान के गठन के अंतिम चरण के दौरान शुरू हुई. जयपुर रियासत में राजनीतिक सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में 19 वी सदी के पाँचवे दशक के दौरान महाराजा रामसिंह द्वारा शुरू किए गए सुधारों को ध्यान में रखते हुए जयपुर राज्य को एक प्रगतिशील राज्य के रूप में माना जाता था! लेकिन राज्य के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में चल रही राजनीतिक गतिविधियों के प्रभाव से जयपुर राजा ने 1923 में एक विधान समिति के निर्माण का निर्णय लिया जो सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रकार के सदस्यों से मिलकर बनी थी! लेकिन यह अपनी उम्मीदों से खरी नहीं उतरी. सितंबर 1938 ईस्वी में जयपुर राज्य में नए मयुनीसिपल कानून के अंतर्गत चुनाव की घोषणा की गई अचानक यह जानकारी प्राप्त हुई कि जयपुर सरकार ने एक गुप्त सर्कुलर निकाला है जिसके अनुसार राज्य कर्मचारी अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देने के लिए स्वतंत्र नहीं रहे इतना ही नहीं यह भी ज्ञात होता है कि किस वोटर ने किसे वोट दिया यह भी गुप्त नहीं रखा जा सकता केंद्रीय सलाहकार बोर्ड महाराजा मानसिंह ने सार्वजनिक हित व महत्व के मामलों पर प्रतिनिधियों के माध्यम से जनता की राय जानने के लिए 1939 ईस्वी में केंद्रीय सलाहकार बोर्ड का गठन किया केंद्रीय सलाहकार बोर्ड 13 नाम निर्देशित व 35 गैर सरकारी सदस्यों से मिलकर बनाया गया सलाहकार बोर्ड चिकित्सा सुविधाएं, साफ-सफाई, लोक निर्माण, सड़कों व भवनों सार्वजनिक शिक्षा, ग्रामीण उत्थान, विपणन ,वाणिज्य एवं व्यापार से संबंधित मामलों पर सलाह दे सकता था! इसका उद्घाटन 18 मार्च 1940 को किया गया! 26 अक्टूबर 1942 को जयपुर महाराजा ने संवैधानिक सुधारों हेतु एक विशेष समिति का गठन किया है समिति के अध्यक्ष आर एन हिरण्णैया, खान साहब अल्ताफ अहमद खेैरी, जयपुर सरकार के विधि सचिव सरकारी सदस्य थे! इसके अलावा 17 गैर सरकारी सदस्य भी थे! समिति के सचिव ईश्वर दत्ता थे 2 अप्रैल 1943 को संवैधानिक सुधार समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की समिति ने अपनी रिपोर्ट में जो सुझाव दिए संक्षेप में इस प्रकार है- 1. एक विधानसभा स्थापित की जाए जो बजट पर विचार विमर्श कर सके कानून बना सकें! 2.जनहित से संबंधित प्रस्ताव पर बहस करके के प्रतिनिधि सभा का गठन किया जाए! जो मुख्यत ग्रामीण क्षेत्रों और निम्न वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व करे 3. समिति ने सुझाव दिया कि कार्यपालिका में कम से कम आधे मंत्री जनता द्वारा निर्वाचित विधानसभा के लिए है! 1 जनवरी 1944 की तिथि को जयपुर महाराजा ने घोषणा कर भावी संवैधानिक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की घोषणा की! घोषणा के आरंभ में महाराजा ने कहा कि उसके जीवन का परम लक्ष्य हर संभव प्रयास से राज्य की जनता की सुख समृद्धि के लिए प्रयत्न करना और राज्य का राजनीतिक विकास करना है! जयपुर राज्य सरकार अधिनियम 1944 जयपुर राज्य सरकार अधिनियम 1944 के अनुसार 1 जून 1944 को जयपुर प्रतिनिधि सभा व विधान परिषद का गठन किया जाएगा प्रतिनिधि सभा के सदस्यों की संख्या 145 रखी गई जिसमें से 120 निर्वाचित सदस्य तथा 5 मनोनीत सदस्य गैर सरकारी सदस्य थे तथा विधानसभा की 51 सदस्यों में से 37 सदस्यों का निर्वाचन द्वारा व 14 सदस्यों का मनोनयन द्वारा चयन किया जाएगा! इसका कार्यकाल 3 वर्ष रखा गया. प्रधानमंत्री क्रमश: प्रतिनिधि सभा व विधानसभा के उपसभापति के रूप में नियुक्त किया गया तथा साथ ही दोनों सदन और कार्यकारी परिषद के वरिष्ठ मंत्रियों दोनों के पदेन अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए उनका चुनाव संयुक्त मतदाता सूची के आधार पर होना था !मुस्लिम वर्ग के लिए भी सीटों का आरक्षण किया गया उम्मीदवारों के चुनाव में हिस्सा लेने के लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित की गई जैसे उम्मीदवारों का मतदाता सूची में नाम होना चाहिए और उसकी उम्र, शिक्षा व नागरिकता संबंधी प्रावधान किए गए विधायकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई और वे सदन की बैठकों के दौरान गिरफ्तार नहीं किए जा सकते! विधान परिषद को स्थगन प्रस्ताव पेश करने ,कानून बनाने सकल्प को पारित करने और प्रशन पूछने का अधिकार दे दिया गया! लेकिन यह महाराजा व राज्य की सेना के संबंध में कानून बनाने की शक्ति नहीं रखती थी दूसरे शब्दों में यह विषय विधान परिषद की शक्ति से परे थे! सन 1945 ईस्वी के चुनाव में जयपुर राज्य प्रजामंडल को कोई विशेष सफलता नहीं मिली प्रतिनिधि सभा में 125 सदस्यों में से प्रजामंडल के मात्र 27 सदस्य थे !इसी प्रकार विधानसभा के 51 सदस्यों में प्रजामंडल के केवल 3 सदस्य थे सितंबर 1945 में नए व्यवस्थापक मण्डल का उद्घाटन हुआ है उत्तरदायी सरकार की लक्ष्य की नीति के अनुसरण में मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री सहित पांच सदस्यों में एक-एक मंत्री की धारा सभा में बहुमत प्राप्त दल से नियुक्ति की गई! विधानसभा के दोनों सदनों में धर्म,व्यवसाय, जागीरदारों को इस ढंग से प्रतिनिधित्व प्राप्त की सता जनप्रतिनिधियों को दिया जाना संभव नहीं था! मार्च 1946 में टीकाराम पालीवाल ने विधानसभा में राज्य के उतरदायी शासन की स्थापना संबंधी प्रस्ताव पेश किया जो स्वीकृत हुआ! 15 मई 1946 को प्रजा मंडल के अध्यक्ष देवी शंकर तिवारी को राज्य मंत्रिमंडल में सम्मिलित कर लिया इस प्रकार जयपुर राजस्थान का पहला राज्य बना जिसने अपने मंत्रिमंडल में गैर सरकारी मंत्री नियुक्त किया! 10 मई 1947 ईस्वी को विधानसभा में प्रजामंडल के नेता दौलतमलभंडारी और इसी सभा के सरदारों के नेता गीजगढ़ ठाकुर कुशल सिंह को मंत्री बनाया गया! प्रजामंडल व राज्य सरकार के मध्य समझौता मार्च 1946 ईस्वी में जयपुर धारा सभा में स्वीकृत उत्तरदाई सरकार संबंधी प्रस्ताव का समुचित ध्यान रखते हुए राज्य का संशोधित विधान तैयार करने के लिए एक समिति 14 मई 1947 को नियुक्ति की गई एक ओर संशोधन समिति अपना कार्य कर रही थी तो दूसरी ओर राज्य सरकार ने प्रजामंडल से वार्ता आरंभ कर दी दोनों के बीच 3 माह तक वार्ता चलने के बाद संवैधानिक सुधारों संबंधी एक समझौता हो गया राज्य में उत्तरदाई शासन की स्थापना का निश्चय किया गया राज्य के प्रधानमंत्री वीपी कृष्ण आचार्य ने महाराजा की ओर से 1 मार्च 1948 को सवैधानिक सुधारों की घोषणा की इस घोषणा का सभी जगह स्वागत किया गया यह निश्चय किया गया कि मंत्रिमंडल को विकसित किया जाए और प्रधानमंत्री को छोड़ शेष मंत्री धारा सभा के समस्त दलों में से लिए जाए !प्रधानमंत्री को दीवान, मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव और मंत्रियों को सचिव कहा जाए तब मंत्रिमंडल में एक दीवान एक मुख्य सचिव व पांच सचिव होंगे यह सब वर्तमान विधान के अधीन एक उत्तरदाई मंत्रिमंडल की भांत्ति मिलकर कार्य करेंगे 28 मार्च 1948 को महाराजा ने वीटी कृष्णमाचारी को दीवान नियुक्त किया! हीरालाल शास्त्री को मुख्य सचिव बनाया! देवी शंकर तिवारी, दौलतमंद भंडारी और टीकाराम पालीवाल प्रजा मंडल की ओर से सचिव बने! गीजगढ़ के ठाकुर खुशाल सिंह और अजयराजपुरा के मेजर जनरल रावल अमर सिंह जागीरदारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सचिव थे भारत राजस्थान का निर्माण होने तक यहां लोकप्रिय मंत्रिमंडल बना रहा.
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