शेखावाटी का किसान आंदोलन
राजस्थान में किसान आंदोलन
राजस्थान में अग्रेजो के आधिपत्य के बाद ऊंची लगान दरें, राजशाही के बढ़ते खर्चों का किसानों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा !लाल बाग बैठ बेकार में बढ़ोतरी और जबरदस्ती किसानों का कर्ज चुकाने की स्थिति में होना और उनसे कठोर वसूली पत्र, भूमि से उसे बार-बार वंचित करना, सामंती अत्याचार और जुल्मों से असंतोष एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा अत्याचार से किसानों को आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा! राजस्थान में किसानों का आंदोलन बिजोलिया से प्रारंभ हुआ और वहां से वह सभी जगह फैल गया! शेखावाटी का किसान आंदोलन- सन 1918 ईस्वी में जयपुर राज्य के शेखावाटी क्षेत्र में चीरवा सेवा समिति गठित की गई !इस समाज सेवी संस्था का मूल उद्देश्य काल एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय गरीब ग्राम वासियों को राहत पहुंचाना तथा उनके दुख दर्द को दूर करना था राज्य में धन संपन्न व्यक्तियों को भी राजनीतिक एवं नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं थे उन्होंने सामंती व्यवस्थाओं के विरुद्ध ग्रामीण जनता को संगठित करना प्रारंभ कर दिया! चीरवा सेवा समिति के माध्यम से यह कार्य संपन्न किया जाने लगा !खेतड़ी के महाराजा ने समिति के नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया! अंत में मारवाड़ी व्यापारी संघ कोलकाता के हस्तक्षेप से उन्हें जेल से मुक्त किया गया! यह आंदोलन भूमि से संबंधित किसान आंदोलन तो नहीं था परंतु इस आंदोलन से शेखावटी के किसानों को उन पर हो रहे सामंती अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने की शक्ति व प्रेरणा मिली! सीकर किसान आंदोलन 1922 ईस्वी- अत्यधिक करो लाल बाग बैठ बेगार जुल्मों के विरूद्ध सीकर में जाट किसान खड़े हुए !वर्षा न होने के कारण सामंत कल्याण सिंह ने 25% कर बढ़ोतरी कर दी वह कठोरता से वसूली की! खुड़ी गांव व कुंदन गांव में वैब द्वारा व्यापक नरसंहार कराया गया! रामनारायण चौधरी ने तरुण राजस्थान समाचार पत्र में सीकर के किसानों के पक्ष में प्रभावी वातावरण उत्पन्न किया !रामनारायण चौधरी का यह कार्य राजस्थान और भारत तक ही सीमित नहीं रहा उसने लंदन में से प्रकाशित होने वाले डेली हेराल्ड नामक पत्र में पेश करके किसानों की समस्याओं के संदर्भ में लेख लिखे एवं इंग्लैंड में भी सीकर के किसानों के समर्थन में वातावरण तैयार करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया! उनके प्रयासों से मई 1925 में इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्य मिस्टर पैट्रिक लॉरेंस ने सीकर के किसानों के मामले में प्रश्न पूछा! इस प्रकार कुंदन गांव हत्याकांड इतना विभित्स था कि आंदोलन का मामला न केवल भारत की सेंट्रल असेंबली में उठा बल्कि यह इंग्लैंड में हाउस ऑफ कॉमंस में भी उठा ! अखिल भारतीय जाट महासभा के सहयोग एवं सहायता से 1931 में सीकर के जाटों ने राजस्थान जाट क्षत्रिय सभा की स्थापना कर सामंती जुल्मों अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया! 25 अप्रैल 1935 को जयपुर राजस्थान राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कुंदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी देवी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया. पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई जिसमें 4 किसान चेतराम टिकुराम तुलसाराम तथा आशाराम शहीद हो गए और 175 को गिरफ्तार किया गया इस वीभत्स हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज एक बार फिर ब्रिटिश संसद में सुनाई दी 1935 ईस्वी के अंत तक किसानों की अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में सरदार हरलाल सिंह ,नेतरामसिंह गौरीर,पन्ने सिंह ,हरुसिह पलसाना, गोरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भेरूपुरा, लेखराम कसवाली आदि सम्मिलित थे अंततः जयपुर राज्य की मदद से लगान में कमी व भूमि बंदोबस्त करने का पर आंदोलन समाप्त हो गया. प्रजापति महायज्ञ पलसाना:- भरतपुर के जाट नेता देशराज ने सीकर शेखावटी के जाट किसानों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को प्रेरित किया और उसने एक नई चेतना उत्पन्न की जाटों को संगठित करने के उद्देश्य से देशराज ने सितंबर 1933 ईस्वी में पलथाना में एक सभा का आयोजन किया जिसमें सीकर मे महायज्ञ कराने का निर्णय लिया गया इस महायज्ञ की तैयारी के लिए सीकर में एक दफ्तर खोला गया! बसंत पंचमी 20 जनवरी 1934 को सीकर मे योगचार्य पंडित खेमराज शर्मा की देखरेख में यज्ञ किया! यज्ञ की समाप्ति के बाद किसान यज्ञपति कुंवर हुकम सिंह को हाथी पर बैठाकर जुलूस निकालना चाहते थे राव राजा ने महायज्ञ आदेश की सवारी के लिए आज्ञा देने से इंकार कर दिया! महायज्ञ के समय किसानों द्वारा दिए गए भाषणों में ठिकानों की नीति की कटु आलोचना की गई ठिकाने के राजा ने जाट महासभा के सचिव चंद्रभान को गिरफ्तार कर 6 सप्ताह की जेल भेज दिया तथा ₹51 का जुर्माना लगा दिया 18 फरवरी 1934 को 260 किसानों का एक शिष्टमंडल महाराजा से मिलने और मांग पत्र प्रस्तुत किया. प्रसिद्ध किसान नेता छोटूराम ने जयपुर महाराजा को तार द्वारा सूचित किया कि एक किसान को कुछ हो गया तो अन्य स्थानों पर भारी नुकसान होगा और जयपुर राज्य को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे अंततः किसानों की जिद के आगे सीकर ठिकाने को झुकना पड़ा और सीकर ठिकाने ने जुलूस के लिए सजा सजाया हाथी प्रदान किया! 7 दिन तक चलने वाले इस यज्ञ कार्यक्रम में स्थानीय लोगों सहित उत्तर प्रदेश, पंजाब, लोहारू पटियाला, हिसार जैसे स्थानों से लगभग 300000 लोग उपस्थित हुए !बीसवीं शताब्दी में राजपूताना में होने वाला सबसे बड़ा यज्ञ था! रावराजा का दमनचक्र चलता रहा बड़ी संख्या में किसान गिरफ्तार किए गए! झुंझुनू किसान आंदोलन:- 1925 ईस्वी में पंडित मदन मोहन मालवीय के मुख्य आतिथ्य में जो उन्होंने अखिल भारतीय जाट सम्मेलन हुआ पंडित जी के ओजस्वी वक्तव्य से प्रभावित होकर झुंझुनू जाट पंचायत की स्थापना की गई !1932 ईस्वी में झुंझुनू जाट महासभा अधिवेशन हुआ जिसमें तय किया गया कि किसान और नेता अपने साथ हथियार रखे ताकि उन्हें कमजोर नहीं समझा जाए लोगों ने रिवाल्वर, बंदूक , व बर्छिया रखना प्रारंभ कर दिया! 1938 ईस्वी तक इस क्षेत्र में हथियारों का प्रदर्शन करना आम बात बन गई 11 मार्च 1938 को झुंझुनू में वृहत महिला सम्मेलन बुलाया गया. सन 1939 ईस्वी में सेठ जमनालाल बजाज को जयपुर की सीमा पर गिरफ्तार करके उन्हें आगरा भेज दिया गया तो शेखावटी क्षेत्र के किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए झुंझुनू को सैनिक छावनी में बदल दिया गया 15 मार्च 1939 को झुंझुनू शहर में सरदार हरलाल सिंह गिरफ्तारी दी! झुंझुनू ने पुलिस ने पासविकता का नंगा नाच किया झुंझुनू में रक्त की नदियां बह निकली जब यह सरकार पूरे देश में मिले तो पूरा देश स्तब्ध रह गया इतना होने पर भी जयपुर नरेश मानसिंह पर असर नहीं हुआ !उसने 19 मार्च 1941 को झुंझुनू का दौरा किया पंचपाना के सरदारों ने जयपुर नरेश का महानायक की तरह स्वागत किया स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही यह आंदोलन समाप्त हो गया ! चिड़ावा किसान आंदोलन- सीकर की तरह शेखावाटी क्षेत्र की अन्य जागीरदार भी किसानों पर अत्याचार करने में पीछे नहीं रहे संग 1922 ईस्वी में मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने चिड़ावा में अमर सेवा समिति की स्थापना की मास्टर प्यारेलाल गुप्ता उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले का रहने वाला था तथा चिड़ावा का गांधी कहलाता था खेतड़ी नरेश अमर सिंह ने मास्टर प्यारेलाल गुप्ता सहित समिति के 7 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया इससे खेतड़ी में हाहाकार मच गया इन सातों सदस्यों को घोड़ों के पीछे बांधकर घसीटा गया! 30 मील तक की यत्रंणा देने के बाद इन सदस्यों को खेतड़ी की जेल में ठूंस दिया गया! जहां वे 3 दिन तक बिना जल के बेहोश पड़े रहे चिड़ावा अत्याचार की सूचना पूरे देश में बिजली की तरह फैल गई! चांदकरण शारदा तत्काल चिड़ावा पहुंचे और लोगों को इन अत्याचारों के विरुद्ध तन कर खड़े रहने का आह्वान किया सेठ जमनालाल बजाज सेठ घनश्याम दास बिड़ला तथा सेठ वेणी प्रसाद डालमिया आदि नेताओं ने पुरजोर तरीके से राजा को कठोर चिट्ठियां लिख कर कड़ा विरोध जताया! पूरे 23 दिन तक खेतड़ी में हाहाकार मचा रहा अंत में सभी कैदियों को छोड़ दिया गया! कटराथल कृषक आंदोलन:- शेखावटी क्षेत्र में महात्मा गांधी के 1921 के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर हरलाल सिंह ने किसानों को संगठित करने और चेतना जागृत करने हेतु किसान पंचायतों का गठन किया शेखावटी क्षेत्र में पंडित तारकेश्वर शर्मा ,सरदार हरलाल सिंह , श्री घासाराम चौधरी ,नेतराम आदि ने किसान सभा गठित की जिसमें पूरजोर व प्रभावी तरीके से किसानों के पक्ष को रखकर किसान आंदोलन को प्रभावी बनाया शेखावाटी में ग्राम कटराथल में अप्रैल 1934 में किसान सभा के नेता हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी के नेतृत्व में हजारों जाट महिलाओं ने किसान आंदोलन में भाग लिया एवं मांग पत्र प्रस्तुत किया! प्रथम महिला सम्मेलन कटराथल:- शेखावाटी के सीहोर के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास गांव में जाट महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी के नेतृत्व में एक विशाल सम्मेलन महिला सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें लगभग 10000 महिलाओं ने भाग लिया इस सम्मेलन में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाएं थी श्रीमती उतमा देवी, श्रीमती रमा देवी ,श्रीमती फूलन देवी, श्रीमती दुर्गा देवी शर्मा! ठाकुर देशराज की पत्नी श्रीमती उतमा देवी के ओजस्वी भाषण ने महिलाओं में साहस का संचार किया! जयसिंह पुरा हत्याकांड 21 जून 1934 डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईशवरीसिह ने जयसिंहपुरा में खेत जोत रहे किसानों पर हमला किया तथा अंधाधुंध गोलियां बरसाई! जिसमें कई किसान मारें गये! संपूर्ण जयपुर रियासत में जयसिंहपुरा शहीद दिवस मनाया गया ईश्वरसिंह और उनके साथियों पर मुकदमा चलाया गया तथा उन्हें कारावास की सजा हुई जयपुर राज्य में यह प्रथम मुकदमा था जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलाना संभव हुआ! किस प्रकार शेखावाटी क्षेत्र में यह आंदोलन आजादी तक यूं ही चलते रहे!
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