लुईस अल्थ्यूजर :संरचनात्मक मार्क्सवाद का अर्थ इतिहास व्याख्या
संरचनात्मक मार्क्सवाद मार्क्स के चिंतन के पश्चात बहुत से विचारकों नें मार्क्स के चिंतन के आधार पर अपने विचारों को आगे बढ़ाएं और अनेक राजनीतिक विचारक बहुत सी राजनीतिक विचारधाराओं के जनक बने! कइयों ने मार्क्स के राजनीतिक विचारों में संशोधन किया और कई विचारको ने मार्क्स के विचारों के आधार पर क्रांति कर व्यवहार में मार्क्सवाद स्थापित करने का प्रयास किया तो आज हम संरचनात्मक मार्क्सवाद के बारे में अध्ययन करेंगें! फ्रांस में 1960 के दशक में संरचनात्मक मार्क्सवाद लोकप्रिय बना जिसने हीगेलियन मार्क्सवाद का विरोध किया है इसके अंतर्गत उच्चतर औद्योगिक समाज की प्रकृति को समझकर बुर्जुआ और श्रमिक वर्ग की स्थिति पर विचार किया गया यह मूलत: संरचनावाद के दर्शन को मार्क्सवाद के मूलभूत प्रस्थापनाओं को समझने का एक प्रयास था संरचनावाद का जन्म भाषा विज्ञान में साॕसर व जेकोब्सन जैसी भाषा वैज्ञानिकों के द्वारा हुआ लेवी स्ट्रॉस ने इनका उपयोग आदिम समाज के अध्ययन में किया और लेकन तथा फुको संरचनावाद का उपयोग मनोविज्ञान विज्ञान व ज्ञानशास्त्र में किया संरचनावाद की धारणा यह है कि मानव समाज में परिवर्तनों को जानने के लिए यह आवश्यक है कि हम यह समझे कि यह परिवर्तन मनुष्य के चैतन्यकृत्य के द्वारा कम व अचेैतन्य संरचनाओं के द्वारा अधिक होता है और इसलिए एक विचारक को समाज की बारीकियों को जानने के लिए समाज में निहित अचेतन संरचनाओं को जानना आवश्यक है जो मनुष्य की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं 1960 के दशक में संरचनावाद के प्रभाव से मार्क्सवाद भी अछूता नहीं रहा और इसलिए मार्क्स के लेखन का भी संरचनावादी दृष्टिकोण से अध्ययन किया गया जिसमें सबसे महत्वपूर्ण विचारक लुई अल्थ्यूजर था लुई अल्थ्यूजर लुई अल्थ्यूजर ने मार्क्स की मानवतावादी व्याख्या जो लुकाच, सार्त्र, ग्राम्सी द्वारा की गई उनको अस्वीकृत किया तथा हीगलवादी मार्क्सवाद को भी अस्वीकृत किया लुई अल्थ्यूजर इस प्रश्न से अपना चिंतन आरंभ करते हैं कि मार्क्स की व्याख्या किस प्रकार से की जाए उसने के अनुसार मार्क्स का लेखन एक सुसंगत लेखन नहीं है हालांकि इसमें इतिहास की वैज्ञानिक व्याख्या है लेकिन उनको समझने के लिए भी हमें विश्लेषणात्मक तरीका अपनाना होगा और इतिहास के पूर्व चिंतनों के संदर्भ में इसे समझना होगा इसके लिए यह भी आवश्यक है कि प्रयुक्त अवधारणा को पुनर्भाषित किया जाए तथा उन्हें आपस में नए प्रकार से संबंधित किया जाए जिससे कि समाज की अवधारणात्मक स्थापित हो सके लुई अल्थ्यूजर के अनुसार कैपिटल मार्क्स का सबसे बड़ा ग्रन्थ है और अगर हमें मार्क्स के चिंतन को समझना है तो हमें कैपिटल की सही व्याख्या करनी होगी उनके अनुसार मार्क्स के पूर्ववर्ती लेखन में जो मानवतावाद परिलक्षित होता है वह युवा मार्क्स का चिंतन है और उनके पश्चात मार्क्स के चिंतन में एक ज्ञान मिंमासात्मक ब्रेक आता है उसके पश्चात का चिंतन परिपक्व मार्क्स का चिंतन है जिससे हम मार्क्सवादी चिंतन के नाम से जानते हैं लुई अल्थ्यूजर ने एक नई अवधारणा ज्ञान मिंमासात्मक ब्रेक की दी है जिनकी तुलना थॉमस कुन की पैराडाइम की अवधारणा से की जा सकती है लुई अल्थ्यूजर के अनुसार मार्क्स के पूर्ववर्ती लेखन और बाद का लेखन दो अलग-अलग प्रकार की समस्याओं से संबंधित है उनके अनुसार एक प्रोब्लेमेट्रिक एक विशेष थीम के वस्तुनिष्ठ आन्तंत्रिक संदर्भित अवस्था को इंकित करता है मार्क्स के पूर्ववर्ती चिंतन में हीगल का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है इसलिए वह अलगाव इत्यादि अवधारणा को अधिक महत्व देता है उसके बाद के लेखन में इतिहास के वैज्ञानिक आधार दृष्टिगोचर होता है जो कि मार्क्सवादी चिंतन का आधार है सैद्धांतिक स्तर पर हम ज्ञान मिंमासात्मक ब्रेक की बात करते हैं लेकिन व्यवहार में मार्क्स की रचनाओं पर भी इसे लागू करना कठिन है क्योंकि ऐसा नहीं है कि मार्क्स के पूर्ववर्ती लेखन केवल हीगलवादी से प्रभावित है इसीलिए तो लुई अल्थ्यूजर यह तर्क देता है कि मार्क्स के लेखन का अध्ययन लाक्षणिक होना चाहिए और उसे अबोध और स्पष्ट तरीके से अध्ययन कर उनका अर्थ प्राप्ति नहीं हो सकता! एक लक्षणिक अध्ययन का अर्थ है कि हम उनके लेखन में मानवतावादी एवं अनुभवादी प्रवृत्तियों को नकार दें और स्व और वस्तुनिष्ठता व आत्मनिष्ठा, अमूर्त और मूर्त इत्यादि धारणाओं को एक दूसरे के विपरीत मानते हुए स्वीकार न करें क्योंकि ऐसा अलगाव से लेखन पूरी तरह से समझ में नहीं आता! वह मानता है कि विषय के ज्ञान को विशेष से अलग करना आवश्यक है और ज्ञान का स्वरूप इतना संलिष्ट होता है कि वह किसी एक प्रकार की अवधारणा का प्रयोग कर प्राप्त नहीं किया जा सकता
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