संत मावजी डूंगरपुर: निष्कलंक संप्रदाय
संत मावजी डूंगरपुर: निष्कलंक संप्रदाय भारत के राज्य राजस्थान में प्राचीन काल से ही अनेक संत हुए जिन्होंने राज्य के समाज के लिए अनेक जन उपयोगी कार्य किए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कार्य किए अंधविश्वास मिटाने के क्षेत्र में अनेक कार्य किए. उन्ही संतो में से दक्षिणी राजस्थान में एक संत मावजी के नाम से हुआ! जिन्होंने अछूत कहीं जाने वाली जातियों को अपने संप्रदाय में सम्मिलित किया और आदिवासियों में अंधविश्वास मिटाया! संत मावजी ने दक्षिणी राजस्थान में घूम-घूम कर आदिवासियों को जागृत किया! संत मावजी संत मावजी का जन्म साबला ग्राम ब्राह्मण कुल में संवत् 1771 माघ शुक्ला पंचवी बुधवार को हुआ! इनके पिता का नाम दालम ऋषि तथा माता का नाम केसरबाई था! जब इनकी अवस्था 12 वर्ष की थी तो यह घर छोड़कर माही और सोम नदी के संगम पर एक गुफा में तपस्या करने लगे इसी स्थान पर संवत् 1784 मांस शुक्ला एकादशी गुरुवार को ही ज्ञान प्राप्त हुआ और उसी दिन वहां पर बेणेश्वर नामक नामक की स्थापना की! जिसका एक पंथ सा बन गया जिसे निष्कलंक यानी निकलंग संप्रदाय कहते हैं!. इस तरह से यह संप्रदाय वर्ण भेद व वर्ग भेद से रहित शुद्ध सात्विक सरल जीवन जीने का उपदेश देने वाला भक्ति का मार्ग था! मावजी ने 4 विवाह किए थे जिसमें पहला और तीसरा विवाह ब्राह्मण लड़कियों से दूसरा एक राजपूत की लड़की से व चौथा एक पटेल की विधवा स्त्री से होना बताया गया है उनकी पत्नियों के नाम बखत देवी, मनु देवी, रूपा देवी और साहू देवी था! मावजी की इन स्त्रियों से कुल 5 संतानें हुई जिसमें बखत देवी से उद्यानंद ,मनुदेवी से नित्यानंद ,रूपा देवी से देवानंद व कमलानंद तथा पुत्री कमल कुवंरी पैदा हुई इनके स्वर्गवास उदयपुर जिले के शेरपुर गांव में संवत 1801 माघ शुक्ला पूर्णिमा को हुआ था! वे गाय चराने जाते तब आसपास के खेतों में गाय अनाज खा लेती थी तो किसानों उसे डांट देते !मावजी तत्काल गायों से जुगाली करवाते थे और सारा अनाज खेत में बिखर जाता था उसकी ऐसी आश्चर्यजनक बातों के कारण उन्हें लोग मावजी गाड़ा कहते थे बेणेश्वर धाम की स्थापना सोम माही जाखम नदियों की त्रिवेणी संगम पर नवराटपुरा में मावजी ने करवाई! इनका प्रमुख मंदिर व पीठ माही नदी के तट पर साँवला गांव में है ये वहां श्री कृष्ण किए निष्कलंक अवतार के रूप में प्रतिष्ठित हैं !संत मावजी भारतीय संत परंपरा के उन संतों में आते हैं जिन्होंने निर्गुण और सगुण का समन्वय कर सहज भक्ति से शुरू मार्ग की प्रतिष्ठा की! लसोड़िया आंदोलन संत मावजी ने अछूतों का आदर किया. लसोड़िया आंदोलन लसाडा ,बालोद, शेषपुर, पूंजपुर, डूंगरपुर, धोलागढ़ ,मासा पुनाली और सलूंबर आदि गांव में अछूतों के लिए आंदोलन कर संबल प्रदान किया उन्होंने अंधविश्वास से बचने के लिए आदिवासियों को तैयार किया !विधवा विवाह प्रचलित किया उन्होंने धोलागढ़ के एकांतवास में 72 लाख 96000 छंदो से पांच बड़े ग्रंथों की रचना की जिसे चोैपड़ा कहते हैं जो हस्तलिखित हैं !यह छपी हुई पुस्तक नहीं है इनको केवल दीपावली पर ही मंदिर में दर्शन के लिए रखते हैं इसमें ज्ञान शिक्षा के अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाएं वर्णित है रासलीला का इसमें विशेष उल्लेख है ! चोैपड़ो की दूसरी विशेषता भविष्यवाणियां है जिसमें आने वाले युग की झलक है! इन चोैपड़ा की भाषा हिंदी मिश्रित बागड़ी है बिना भेदभाव के भगवान की पूजा करने वाले मावजी का पंथ निष्कलंक संप्रदाय के नाम से जाना जाता है! उन्होंने जनसाधारण की भाषा में श्रीमद् भागवत की कृष्ण लीलाओं को आदिवासी समाज में प्रचारित किया !मावजी ने जाति प्रथा को समाप्त करने एवं अंतर जाति विवाह को बढ़ावा देने के लिए ब्राह्मण के अलावा एक राजपूत एवं एक पाटीदार कन्या से विवाह किया! मावजी के अनुयायी हो जाने के बाद अछूत लोग साध कहलाए जिससे जिनका समाज में सम्मानजनक स्थान बना! निष्कलंक संप्रदाय मावजी द्वारा प्रतिपादित पंथ निष्कलंक संप्रदाय के अनुयायी अपने को विष्णु संप्रदाय के अंतर्गत ही मानते थे !मावजी विष्णु के कलि्क अवतार माने जाते हैं मावजी व उनके निष्कलंक संप्रदाय का उद्देश्य मानव जाति के दुराचरणों एव पाप कर्मों से उद्भभवित्त कलंक को धो कर निष्कलक व पाप रहित समाज की स्थापना करना है! जिसमें अछूतों, पतितो के व भीलों का उद्धार करना, भगवान की भक्ति करना, अंधविश्वासों को मिटाना, मद्ध मास का परित्याग करना, समाज में व्याप्त समस्त कुरीतियों को मिटाना, कन्या विक्रय का विरोध ,सादा जीवन बिताना और सहयोग की भावना जागृत करना है! सामान्यतः इस संप्रदाय के भगत सफेद वस्त्र धारण करते थे मस्तक पर चंदन का टीका और गले में तुलसी की माला पहनते हैं तथा जो भी आपस में मिलते हैं तो जय महाराज का कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. संप्रदाय में आराधना पद्धति इस संप्रदाय में भगवान निष्कलंक की आराधना की एक विशेष पद्धति अपनाई जाती है उसे नियमानुसार ही संपादित किया जाता है इसमें भक्त लोग सुबह 4:00 बजे उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर अपने इष्ट देव को जगाने हेतु प्रभातिया नामक भजन गाते हैं इसके बाद भगवान को स्नान कराकर कुमकुम, अक्षत, पुष्प ,दूध से सेवा अर्चना कर उनकी आरती उतारते हैं और शंखनाद करते हैं !फिर भगवान को झूले में बैठाकर झूलाते हैं !बाद में करीब 10:00 बजे भगवान को भोग लगाया जाता है और आरोगणा नामक गीत गाया जाता है भोग के बाद भगवान को हाथ मुंह धुलवाया जाता है और करीब 12:00 बजे उन्हें झूले में सुला कर झूलाया जाता है संध्या काल में उनकी पुन: आरती की जाती है और भजन गाए जाते हैं रात्रि के करीब 10:00 बजे भगवान को पुन: सुलाकर झूला देकर भजन गीत आदि का कर सुला दिया जाता है इस पद्वति में कुछ-कुछ पुष्टिमार्गीय की झलक है! संप्रदाय के मंदिर:- डूंगरपुर जिले के साबला नामक ग्राम में संप्रदाय की प्रमुख पीठ है और यह निष्कलंक भगवान यानी मावजी की शंख ,चक्र ,गदा और पद्म सहित घोड़े पर सवार चतुर्भुज मूर्ति है! यह दो मंजिला के देवालय काष्ट कला का अद्भुत नमूना है साबला मंदिर के अलावा डूंगरपुर राज्य में पूंजपुर ,बेणेश्वर वमाशा और ढालावाला मेवाड़ राज्य में शेषपुर बांसवाड़ा राज्य में पालोदा गांव में निष्कलंक भगवान के मंदिर है. पूंजपुर का मंदिर मावजी की पत्नी साहू देवी द्वारा बनवाया गया था शेषपुर मावजी का समाधि स्थल है मावजी के विचारों का प्रचार करने हेतु उनकी पुत्रवधू जन कवंरी ने माही ,सोम, जाखम के संगम पर बेणेश्वर धाम पर सर्वधर्म समन्वयवादी मावजी का मंदिर संवत 1850 में सागवाडी पर बनवायाा जहां मावजी ने अपने जीवन का अधिकांश समय प्रार्थना तपस्या प्रवचन में व्यतीत किया था! इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके प्रवेश द्वार जैन मंदिर जैसा, गोमटी बौद्ध धर्म जैसी, मीनारें मस्जिद जैसी, आकार गिरजाघर जैसा है और मूर्ति भगवान विष्णु सी है! रासलीला:- इस संप्रदाय में रासलीला को बड़ा महत्व दिया जाता है संत मावजी ने रासलीला रचाकर प्रेम लक्ष्मण शक्ति का प्रदर्शन कर सर्वथा एक नूतन और विशिष्ट भक्ति की रीति को अमर कर दिया. इस प्रकार मावजी ने अनेंक जनोपयोगी कार्य किए!
निष्कलंक संप्रदाय की स्थापना
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