भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(1773से1947 तक)
भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(1773से1947 तक)
स्वतंत्रता मिलने के साथ ही भारत के लिए एक संविधान की आवश्यकता महसूस हुई यहां इस को अमल में लाने के उद्देश्य से 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया और भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया यद्यपि संविधान और राजव्यवस्था की अनेक विशेषताएं ब्रिटिश शासन से ग्रहण की गई है तथापि ब्रिटिश शासन में कुछ ऐसी घटनाएं थी जिसके कारण ब्रिटिश शासन भारत में सरकार और प्रशासन की विधिक रूपरेखा निर्मित हुई इन घटनाओं ने हमारे संविधान और राजतंत्र पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1600ईस्वी में व्यापार करने के लिए आए महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा उन्हें भारत में व्यापार करने के अधिकार प्राप्त है
कंपनी का शासन 1773 से 1858
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
इस अधिनियम का अत्यधिक से संवैधानिक महत्व है
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम है
इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया इसकी सहायता के लिए चार सदस्य कार्यकारी परिषद का गठन किया गया बंगाल का पहला गवर्नर जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स है
इनके द्वारा मद्रास एवं मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन रहेंगे
इस अधिनियम के तहत कोलकाता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें मुख्य न्यायाधीश व तीन अन्य न्यायाधीश थे
इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार व भारतीयों से उपहार लेने पर प्रतिबंधित कर दिया गया
1781 का संशोधन अधिनियम
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की खामियों को ठीक करने के लिए ब्रिटिश संसद में 1781 में एक अधिनियम पारित हुआ जिसे बंदोबस्त कानून के नाम से जाना जाता है
इस कानूनी गवर्नर जनरल तथा काउंसलिंग को सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से मुक्त कर दिया
इस कानून में राजस्व संबंधी मामलों व वसूली से जुड़े मामलों को भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया
इस कानून में यह व्यवस्था की गई की प्रांतीय न्यायालयों की अपील गवर्नर जनरल इन काउंसलिंग के यहां दायर होगी न की सर्वोच्च न्यायालय में।
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
इस अधिनियम के तहत कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को पृथक पृथक कर दिया
नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति दी गई कि वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत के सभी नागरिक सैन्य सरकार व राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण व नियंत्रित करें
1786 का अधिनियम
1786 में लॉर्ड कार्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया उसने यह पद स्वीकार करते समय दो शर्ते रखी
उसे विशेष मामलों में अपनी काउंसलिंग के निर्णय को लागू करने या नहीं मानने का अधिकार हो
उसे सेनापति अथवा commander-in-chief का पद भी जाए
इन दोनों शर्तें को 1786 के कानून के प्रावधानों के रूप में जोड़ा गया
1793 का चार्टर कानून
इसमें लॉर्ड कार्नवालिस को दी गई काउंसलिंग के निर्णयों के ऊपर शक्ति को भविष्य के सभी गवर्नर जनरल तक विस्तारित कर दिया गया
इसमें भारत पर व्यापार के एकाधिकार को अगले 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया
इसमें यह व्यवस्था की गई कि बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों तथा उनके कर्मचारियों को भारतीय राजस्व में ऐसे ही भुगतान किया जाएगा
चार्टर कानून 1813
इस कानून में भारत के कंपनी के व्यापार एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया यानी भारतीय व्यापार को सभी ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोल दिया गया हालांकि चाय के व्यापार व चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को बहाल रखा गया
इस कानून के तहत ईसाई मिशनरियों को भारत आकर धर्म प्रचार की अनुमति दी गई
इस कानून के तहत भारत के ब्रिटिश इलाकों के लोगों के बीच पश्चिम शिक्षा के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था की गई
1833 का चार्टर अधिनियम
इस अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया जिसमें सभी नागरिक व सैन्य शक्ति निहित थी लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे
इस अधिनियम के तहत मद्रास में मुंबई के गवर्नरों को विधायी संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया गया
ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया है वह एक प्रशासनिक निकाय के रूप में बन गई
चार्टर एक्ट 1833 में सिविल सेवकों के लिए चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया हालांकि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया
1853 का चार्टर अधिनियम
इस अधिनियम में पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया
सिविल सेवकों की भर्ती व चयन हेतु खुली व्यवस्था का प्रारंभ किया गया सिविल सेवा भारतीयों के लिए भी खोल दी गई इसके लिए 18 54 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई
इस अधिनियम के तहत प्रथम बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया गवर्नर जनरल की परिषद में 6 नए सदस्यों में से 4 का चुनाव बंगाल मद्रास मुंबई आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकार द्वारा किया जाना था
ताज का शासन 1858 से 1947
1858 का भारत सरकार अधिनियम
18 57 की क्रांति के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया गया इसके लिए 18 58 में भारत सरकार अधिनियम लाया गया
इसके तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया
गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय थे
इस अधिनियम ने नियंत्रक बोर्ड और निदेशक कोर्ट समाप्त कर भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी
एक नए पद भारत के राज्य सचिव का सजृन किया गया जो ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था और ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदाई था
भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्य परिषद का गठन किया गया और इसका अध्यक्ष भारत सचिव को बनाया गया
1861 का भारत परिषद अधिनियम
इस अधिनियम के तहत भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई कुछ भारतीयों को गैर सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित किया गया जिनमें से बनारस के राजा पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया गया
बंगाल उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में 1862, 1866 और 1897 में विधान परिषद का गठन हुआ
इस अधिनियम के तहत वायसराय को आपातकाल में बिना काउंसलिंग की अनुमति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति मिल गई इस अध्यादेश की अवधि मात्र 6 माह होती थी
1892 का भारत परिषद अधिनियम
इस अधिनियम के तहत गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई
इस अधिनियम में विधान परिषदों के कार्यों में वृर्द्वी कर उन्हें बजट पर बहस करने व कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकृत किया गया
1909 का भारत परिषद अधिनियम
इस अधिनियम को मार्ले- मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है
केंद्रीय परिषद में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 की गई
इस अधिनियम के तहत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय की कार्यपरिषद का सदस्य बनाया गया सत्येंद्र प्रसन्न सिंहा वायसराय की कार्यपालिका परिषद में प्रथम भारत सदस्य थे उन्हें विधि सदस्य बनाया गया
इस अधिनियम ने पृथक निर्वाचन के आधार पर मुसलमानों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचक के जनक के रूप में जाना जाता है
इस अधिनियम में प्रेसिडेंट कॉरपोरेशन चेंबर ऑफ कॉमर्स विश्वविद्यालयों और जमीदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया
भारत शासन अधिनियम 1919
20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार यह घोषित किया कि उनका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदाई सरकार की स्थापना करना है
भारत शासन अधिनियम 1919 के समय भारत सचिव मॉन्टेग्यू किए थे जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे
इस अधिनियम में प्रांतीय विषय को दो भागों में विभक्त कर दिया गया हस्तांतरित और आरक्षित।
इस अधिनियम के तहत पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था का प्रारंभ हुआ
इस अधिनियम के तहत वायसराय की कार्यकारी परिषद में 6 सदस्यों में से 3 सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक है
संप्रदायिक निर्वाचक के तहत सिख, भारतीय ईसाइयों, आग्ल भारतीयों और यूरोपियों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की।
इस अधिनियम के तहत लंदन में भारत के उच्चायुक्त का कार्यालय खोला गया
इस कानून के तहत संपत्ति कर व शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया
इस अधिनियम के तहत एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया अतः 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया
पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया
इस अधिनियम की जांच के लिए 10 वर्ष बाद एक वैधानिक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया
साइमन कमीशन
ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1927 में नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 7 सदस्य वैधानिक आयोग का गठन की घोषणा की इस आयोग में सभी सदस्य ब्रिटिश थे इसलिए सभी दलों ने इनका बहिष्कार किया आयोग ने 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की। साइमन आयोग ने द्वैध शासन प्रणाली राज्यों में सरकारों का विस्तार ,ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना एवं सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को जारी रखने की सिफारिश की।
भारत शासन अधिनियम 1935
यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदाई सरकार के गठन के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम के तहत एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना जिसमें राज्य व रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया
इस अधिनियम में केंद्र व इकाइयों के बीच तीन सूचियां संघीय सूची 59 ,विषय राज्य सूची 54 विषय ,समवर्ती सूची 36 विषय के आधार पर बंटवारा किया गया अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दे दी गई।
इस अधिनियम के तहत प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर दिया गया तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ किया गया
इस अधिनियम के तहत केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का प्रारंभ हुआ
इस अधिनियम के तहत 11 राज्यों में से 6 में द्विसदनात्मक व्यवस्था प्रारंभ की गई
इस अधिनियम के तहत मताधिकार का विस्तार किया गया लगभग 10% जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया इसके अंतर्गत
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई इस अधिनियम के तहत हुआ
1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री कल इमीडीएटली ने घोषणा की कि 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा और सता भारतीयों के हाथों में सौंप दी जाएगी इस पर मुस्लिम लीग ने आंदोलन किया और भारत के विभाजन की बात की तब ब्रिटिश सरकार ने 3 जून 1947 को यह स्पष्ट किया कि 1946 में गठित संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान उस क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा जो इसे स्वीकार नहीं करेंगे उसी दिन 3 जून को 1947 को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना पेश की जिसे माउंटबेटन योजना कहते हैं।
माउंटबेटन योजना
भारत में ब्रिटिश राज समाप्त करें 15 अगस्त 1947 को विशेष संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया जाएगा
इसने वायसराय का पद समाप्त कर दिया
इससे शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया गया
इस अधिनियम के तहत नए संविधान बनने तक भारत का शासन भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत सरकार चलाने की व्यवस्था की
इस प्रकार 14 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत में ब्रिटिश शासन का अंत हो गया लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई 1946 में बनी संविधान सभा को स्वतंत्र भारतीय डोमिनियन की संसद के रूप में स्वीकार किया गया
कैबिनेट मिशन योजना द्वारा गए लाए गए प्रस्ताव के आधार पर नवंबर 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ जिसमें संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी इनमें से 296 सीट ब्रिटिश भारत तथा 93 सीट देसी रियासतों को आवंटित की गई थी हर प्रांत में देशी रियासत को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आवंटित की गई थी।
संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी इसके अलावा सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों द्वारा किया जाना था जिन का चुनाव एक सीमित मताधिकार के आधार पर किया गया संविधान सभा का चुनाव जुलाई अगस्त 1946 में हुआ जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 208 मुस्लिम लीग ने 73 और स्वतंत्र सदस्यों को 15 सीटें मिली।
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