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बांग्लादेश आरक्षण विवाद तख्तापलट और बांग्लादेश की स्थिति से भारत पर प्रभाव


बांग्लादेश आरक्षण विवाद:-

बांग्लादेशियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के आरक्षण के खिलाफ आंदोलन तख्तापलट तक पहुंच गया... पाकिस्तान बांग्लादेश में तो वैसे ही फौज हावी रही है आरक्षण का औचित्य ही ग़लत है...बहुत ज्यादा आरक्षण का बंटाधार किसी भी देश में तख्तापलट करवा सकता है जब बेरोजगारो को सिस्टम से कोई उम्मीद न बचे...

बांग्लादेश में 1971से 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू  था। इसमें कई बार बदलाव के बाद 2012 से इसमें आखिरी बार बदलाव हुआ तब 56% कोटा था। इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 10%, महिलाओं के लिए 10%, अल्पसंख्यकों के लिए 5% और 1% विकलांगों को दिया गया।

2018 में 4 महीने तक छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम खत्म कर दिया था।
5 जून 2024 को हाईकोर्ट ने सरकार को पहले जैसे आरक्षण देने का आदेश दिया। इसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। सरकार ने इसे सख्ती से कुचलने की कोशिश की लेकिन ये और तेज होता चला गया।

इसके बाद बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 56% आरक्षण देने के  ढाका हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। आरक्षण को 56% से घटाकर 7% कर दिया। इसमें से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को 5% कोटा और एथनिक माइनॉरिटी, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग को 2% कोटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 93% नौकरियां मेरिट के आधार पर मिलेंगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी छात्रों का गुस्सा कम नहीं हुआ।


बांग्लादेश की स्थिति से भारत पर प्रभाव:-


बांग्लादेश में तख्तापलट और भारत 

अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट सेक्रेटरी डॉनल्ड लू 2023 की जनवरी में अपने बांग्लादेश दौरे पर थे। लू साहब अमेरिका की साउथ और सेंट्रल एशिया नीति के लिए ज़िम्मेदार हैं। इंटेलीजेंस और डिप्लोमेट सर्किल में लू की पहचान रिजीम चेंज गेम के मास्टर की है। डॉनल्ड लू की ख्याति आप इस तरह से समझ सकते हैं कि चलते लोकसभा चुनाव में वो चेन्नई में थे और इसने भारतीय इंटेलीजेंस कम्युनिटी को भयंकर असहज कर दिया था। 

बहरहाल, US की पिछले दौर में बांग्लादेश में दिलचस्पी बढ़ी है। इसकी दो बड़ी वजहें। पहली, बांग्लादेश की चीन से बढ़ती करीबी। चीन ने बांग्लादेश के इंफ़्रा प्रॉजेक्ट्स में हैवी इन्वेस्टमेंट किए हैं। दूसरी तरफ़ वो बांग्लादेश को सम्मरीन सहित हर तरीक़े के हथियार दे रहा है। यूएस बांग्लादेश को अपनी लिस्निंग पोस्ट बनाना की फ़िराक़ में था, जहां से वो चीन और भारत पर एक साथ नज़र रख सके। इसके लिए यूएस ने बांग्लादेश को क्वाड में सीट भी ऑफर की थी, जिसे शेख़ हसीना से स्वीकार नहीं किया। अमेरिका की दिलचस्पी की दूसरी, बांग्लादेश की स्ट्रेट्जिक लोकेशन। 

पिछले दौर में शेख़ हसीना की ऑपोजिशन को दबाने की नीति ने पानी इतना गंदला कर दिया कि यूएस मच्छीमारी के लिये पहुँच गया। शेख़ हसीना को सत्ता से बाहर करने की योजना यहीं से बन गई थी। यहां से डॉनल्ड लू की भूमिका की शुरुआत होती है।

योजना के मुताबिक़ मुख्य विपक्षी पार्टी BNP सहित तमाम दूसरी राइट विंग पार्टियों ने चुनाव के दौरान केयरटेकर गवर्नमेंट की माँग की। मतलब शेख़ हसीना चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे और उनकी जगह केयरटेकर गवर्नमेंट ले। लेकिन शेख़ हसीना को 2008 दौर याद था। उन्होंने यह बात नहीं मानी। आख़िरकार CIA के इशारे पर BNP और दूसरी बड़ी अपोजिशन पार्टियों ने चुनाव में भाग नहीं लेने का ऐलान कर दिया। अमेरिका की योजना थी कि वो चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी की बात कह कर बांग्लादेश में हस्तक्षेप करेगा और अपनी फ़ेवरेबल रिजीम खड़ी करेगा। 

लेकिन भारतीय और चीनी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इस चाल को अंजाम पर नहीं पहुँचने दिया। R&AW और चीन की MSS ने मिलकर छोटी-छोटी पार्टियों का एक गठबंधन यूनाइटेड फ़्रंट खड़ा किया और चुनाव प्रक्रिया को पूरा करवाया। CIA और जमात-ए-इस्लामी के ज़रिए चल रहा ISI का पूरा ऑपरेशन पूरी तरह फेल रहा। 

CIA का यह अनफिनिश्ड बिजनस था अब जाकर पूरा हुआ है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम योद्धाओं के परिवारों को मिलने वाला आरक्षण बांग्लादेश की एक बड़ी फ़ॉल्टलाइन है। पहले भी इसके ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन हो चुके हैं। लेकिन इस बार CIA ने बड़े तरीक़े से इसे साधा। मई में डॉनल्ड लू फिर से बांग्लादेश गए। विकास और आपसी सहयोग की बात हुई। ठीक इसके बाद बांग्लादेश में भारत के ख़िलाफ़ एक मेजर डिसइन्फ़ॉर्मेशन कैंपेन चलाया गया। शेख़ हसीना को भारत का एजेंट बताया गया। और आख़िर में एक सिविल अनरेस्ट के ज़रिए तख्तापलट। 

इस पूरे ऑपरेशन का तरीक़ा आपको यूक्रेन के ऑरेंज रेवल्यूशन या अरब स्प्रिंग की याद दिलाता है। 

भारत के लिए बांग्लादेश में इंटरवीन करने की नैतिक मजबूरी है। शेख़ हसीना भारत की दो पीढ़ी से दोस्त रही हैं। दूसरी तरफ़ मणिपुर में अस्थिरता फैलाने वाले संगठन कुकी नेशनल आर्मी का प्रमुख पीएस हाओकीप घोषित रूप से CIA का ऑपरेटिव है। यह संगठन भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के चिटगांव हिल्स में सक्रिय है। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, भारत अपने बग़ल के देश में अमेरिका की कठपुतली सरकार नहीं सहन कर सकता। पूरे नार्थ-ईस्ट और बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा का सवाल है।


1 बांग्लादेश में आंतरिक अशांति भारत में अशांति, विरोध प्रदर्शन जैसे मुद्दों को बढ़ावा देगी जो भारत में आंतरिक तौर पर भी सांप्रदायिक मुद्दे भी उभार सकती है।

2 भारत बांग्लादेश संबंध निश्चित तौर पर प्रारम्भिक रूप में नकारात्मक तरीके से प्रभावित होंगे क्योंकि अस्थिर सरकार या सेना का नियंत्रण संबंधों को गति नहीं देकर विराम देगा।

3 बांग्लादेश में भारत के निवेश योजना, साझा कार्यक्रम आदि पर नकारात्मक प्रभाव आएगा।

4 बांग्लादेश की अशांति भारत में अवैध घुसपैठ और शरणार्थी समस्या को बढ़ावा देगी।

5 बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना का परम्परागत झुकाव भारत के प्रति रहा है तो उनका पद से हटना संबंधों को कमजोर करेगा, साथ ही शेख हसीना का भारत में शरण लेना भी भारत के प्रति बांग्लादेशी नेतृत्व को सशंकित करेगा।

6 कमजोर बांग्लादेश सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ेगा जो भारत पर दवाब के जैसे देखा जा सकता है।

7 कमजोर बांग्लादेश में आतंकवादी घटनाएं पुनः पनप सकती हैं जो भारतीय सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाएगा।

8 चीन का बांग्लादेश में बढ़ा हुआ हस्तक्षेप भी भारत की विदेश नीति के लिए नवीन चुनौती बन सकता है।

9 दक्षिण एशिया में भारत का बिग ब्रदर सिंड्राम जिसे दक्षिण एशिया के देश नकारात्मक रूप से देखते हैं उस आवाज को और पहचान मिलेगी क्योंकि बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना लम्बे समय से भारत समर्थक मानी जाती रही हैं।

10 सार्क के भविष्य के साथ साथ BIMSTEC,  आदि के भविष्य पर भी एक तरह का प्रश्न चिन्ह तो फिलहाल लग ही गया है।


मुहम्मद युनुस को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री चुना गया है। 

मुहम्मद युनुस को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार और 2000 में भारत सरकार द्वारा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।  बांग्लादेश चटगांव यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रहे मुहम्मद युनुस बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के बानी हैं। जिसकी बुनियाद उन्होंने 1983 में रखी थी। 

मुहम्मद युनुस वही शख़्स हैं जिन्होंने 2007 में तख़्ता पलट के दौरान आर्मी की सिफ़ारिश के बावजूद बांग्लादेश का केयर टेकर प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। 

बांग्लादेश की सियासी और धार्मिक तंज़ीम/पार्टी जमाअत-ए-इस्लामी की स्टूडेंट्स विंग (जमाअत शिविर) ने मुहम्मद युनुस के नाम का प्रस्ताव रखा था। इस बैठक में तमाम सियासी पार्टियों के रहनुमा और सेना के तीनों चीफ़ और कोटा मूवमेंट को लीड करने वाले (प्रतिबंधित जमाअत शिविर) स्टूडेंट्स लीडर थे।

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