संसदात्मक शासन प्रणाली व अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में अन्तरDifference between parliamentary system of government and presidential system of government
Difference between parliamentary system of government and presidential system of government
संसदात्मक शासन प्रणाली
संसदात्मक शासन प्रणाली एक ऐसी शासन व्यवस्था है, जिसमें सरकार का गठन संसद (विधायिका) द्वारा होता है और यह सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है। इस प्रणाली में कार्यपालिका (सरकार) और विधायिका (संसद) आपस में जुड़ी होती हैं। यह प्रणाली भारत, ब्रिटेन, कनाडा और कई अन्य देशों में अपनाई गई है।
संसदात्मक शासन प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ:
1. प्रधानमंत्री का चुनाव:
इस प्रणाली में प्रधानमंत्री का चुनाव आमतौर पर संसद के सदस्यों में से होता है। आमतौर पर वह व्यक्ति प्रधानमंत्री बनता है, जिसका अधिकतम समर्थन संसद में होता है (अर्थात् वह एक पार्टी के प्रमुख होते हैं या गठबंधन के प्रमुख होते हैं)।
प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल (कॅबिनेट) बनता है, जो सरकार का संचालन करता है।
2. मंत्री परिषद (कैबिनेट):
मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री होते हैं, जो संसद के सदस्य होते हैं। मंत्रिमंडल सरकार के निर्णय लेने और कार्यों को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
मंत्रिमंडल के सदस्य प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार के विभिन्न विभागों का संचालन करते हैं।
मंत्री संसद के प्रति जवाबदेह होते हैं और अगर संसद का विश्वास खो देते हैं तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ता है।
3. कार्यपालिका और विधायिका का संबंध:
संसदात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका (प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल) और विधायिका (संसद) का घनिष्ठ संबंध होता है। संसद के पास सरकार को गिराने का अधिकार होता है। अगर संसद का विश्वास सरकार में नहीं रहता, तो उसे पद से हटा दिया जाता है।
यह प्रणाली सरकार को संसद के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण बनाती है। प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल संसद द्वारा चुने जाते हैं और अगर उन्हें संसद से विश्वास मत नहीं मिलता तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ता है।
4. राष्ट्रपति या सम्राट की भूमिका:
संसदात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति या सम्राट का पद एक औपचारिक और सम्मानजनक होता है। वास्तविक कार्यकारी शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के पास होती है।
हालांकि, राष्ट्रपति या सम्राट का कार्य संविधान के तहत होता है, लेकिन वह अधिकतर एक प्रतीकात्मक भूमिका निभाते हैं।
5. संसदीय चुनाव:
संसद में चुनाव के माध्यम से सदस्यों का चयन किया जाता है। ये चुनाव आमतौर पर जनता द्वारा होते हैं।
सरकार का गठन उन नेताओं द्वारा किया जाता है, जिनके पास संसद में बहुमत होता है।
6. स्थायित्व और लचीलापन:
संसदात्मक प्रणाली में सरकार का स्थायित्व चुनावों के आधार पर निर्भर करता है। अगर सरकार को संसद का समर्थन नहीं मिलता है तो वह गिर सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री अपने गठबंधन को बनाए रखने के लिए संसद में बार-बार समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करता है, जिससे यह प्रणाली लचीली बन जाती है।
भारत में संसदात्मक शासन:
भारत में संसदात्मक शासन प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल सरकार चलाते हैं और राष्ट्रपति की भूमिका संविधान के अनुसार औपचारिक रहती है। भारत में संसद दो सदनों में बाँटी गई है: लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (उपरी सदन)। लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं, जबकि राज्यसभा के सदस्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं।
संसदात्मक शासन प्रणाली के लाभ:
उत्तरदायित्वपूर्ण सरकार: सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सरकार जनता के हित में काम करे।
लचीलापन: इस प्रणाली में अगर सरकार का विश्वास खो जाता है तो उसे हटाया जा सकता है, जिससे जनमत के अनुसार सरकार बदलने की प्रक्रिया आसान होती है।
कार्यकारी और विधायिका का तालमेल: प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को संसद का समर्थन प्राप्त होता है, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली प्रभावी होती है।
संसदात्मक शासन प्रणाली के नुकसान:
स्थायित्व की कमी: सरकार को संसद का समर्थन प्राप्त नहीं होने पर गिर सकती है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
अल्पकालिक सरकार: गठबंधन सरकारों के कारण कभी-कभी सरकार के लिए अपने निर्णयों को लागू करना कठिन हो जाता है।
इस प्रकार, संसदात्मक शासन प्रणाली सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से जवाबदेह बनाती है और विधायिका और कार्यपालिका के बीच बेहतर तालमेल बनाए रखती है।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली (Presidential System)
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली (Presidential System) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति (प्रेसिडेंट) को कार्यपालिका (Executive) का प्रमुख माना जाता है। इस प्रणाली में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है और वह अपनी सरकार का प्रमुख होता है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका के बीच स्पष्ट विभाजन होता है और दोनों एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ:
1. राष्ट्रपति का चयन:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा होता है, न कि विधायिका द्वारा। राष्ट्रपति पूरे देश का प्रमुख होता है और उसका कार्यक्षेत्र व्यापक होता है।
राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता है और वह अपने कार्यकाल के दौरान विधायिका से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
2. स्वतंत्र कार्यपालिका और विधायिका:
इस प्रणाली में कार्यपालिका (राष्ट्रपति और उनके मंत्री) और विधायिका (संसद) पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। कार्यपालिका को विधायिका से कोई नियंत्रण नहीं होता, और विधायिका को कार्यपालिका से कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल का चयन करते हैं, लेकिन उसे संसद से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती।
3. राष्ट्रपति का अधिकार:
राष्ट्रपति के पास विस्तृत कार्यकारी शक्तियाँ होती हैं। वह सरकार के प्रमुख होते हैं, और उनके पास सेना, विदेश नीति, प्रशासन और कानून लागू करने की शक्तियाँ होती हैं।
राष्ट्रपति न केवल कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं, बल्कि उनका पद राज्य का प्रमुख भी होता है। वह देशों की बाहरी और आंतरिक नीतियों का निर्धारण करते हैं।
4. मंत्री परिषद (कैबिनेट):
राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल का चयन करते हैं, जो राष्ट्रपति के फैसलों को लागू करता है। मंत्रिमंडल के सदस्य राष्ट्रपति के अधीन काम करते हैं, लेकिन उन्हें संसद से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती।
मंत्रिमंडल के सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, और वे उनके साथ नीतियाँ निर्धारित करते हैं।
5. निर्वाचन:
राष्ट्रपति का चुनाव आमतौर पर आम चुनाव के माध्यम से होता है, और उसकी अवधि संविधान द्वारा निर्धारित होती है। यह चुनाव अक्सर चार या पांच साल में एक बार होते हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव में अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवार भी होते हैं, और चुनाव आमतौर पर दो-चरणीय (प्रारंभिक चुनाव और अंतिम चुनाव) होते हैं।
6. विधायिका का कार्य:
विधायिका (संसद) स्वतंत्र रूप से कार्य करती है और यह राष्ट्रपति के निर्णयों को चुनौती दे सकती है, लेकिन कार्यपालिका (राष्ट्रपति और मंत्री परिषद) को हटाने के लिए उसे कठोर प्रक्रियाएँ अपनानी पड़ती हैं, जैसे महाभियोग प्रक्रिया।
विधायिका का कार्य कानून बनाना और राष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्यों की निगरानी करना होता है, लेकिन वह कार्यपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
7. स्थायित्व और उत्तरदायित्व:
राष्ट्रपति का पद एक निर्धारित कार्यकाल के लिए होता है (जैसे, 4 या 5 साल)। अगर राष्ट्रपति को संसद या जनता का समर्थन नहीं भी मिलता, तो उसे अपना कार्यकाल समाप्त करने से पहले हटाया नहीं जा सकता।
कार्यकाल समाप्त होने के बाद राष्ट्रपति नए चुनावों में फिर से चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो सकता है, यदि वह दोबारा चुना जाए।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के उदाहरण:
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): अमेरिका में राष्ट्रपति एक साथ राज्य का प्रमुख और सरकार का प्रमुख होते हैं। उनका चुनाव हर चार साल में होता है और उन्हें विधायिका से स्वतंत्र अधिकार होते हैं।
ब्राजील: ब्राजील में भी अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है, जिसमें राष्ट्रपति जनता द्वारा चुने जाते हैं और कार्यपालिका का प्रमुख होते हैं।
मेक्सिको: मेक्सिको में भी राष्ट्रपति का चुनाव जनता करती है और कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्रपति ही होता है।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लाभ:
1. स्थायित्व: चूंकि राष्ट्रपति का कार्यकाल निर्धारित होता है, इसलिए सरकार का स्थायित्व बना रहता है। अगर राष्ट्रपति को संसद का समर्थन नहीं भी मिलता है, तो उसे अपना कार्यकाल समाप्त होने तक पद से नहीं हटाया जा सकता।
2. स्पष्ट नेतृत्व: राष्ट्रपति का चयन सीधे जनता द्वारा होता है, जिससे लोगों को स्पष्ट नेतृत्व मिलता है।
3. स्वतंत्रता: कार्यपालिका और विधायिका के बीच स्पष्ट विभाजन होने से दोनों अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं और किसी का भी दूसरे पर अत्यधिक प्रभाव नहीं होता।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के नुकसान:
1. कार्यपालिका और विधायिका के बीच संघर्ष: चूंकि कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र होती हैं, कभी-कभी उनके बीच टकराव और संघर्ष उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से जब दोनों के पास अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा हो।
2. अवसरवादी निर्णय: राष्ट्रपति के पास व्यापक शक्तियाँ होती हैं, लेकिन कभी-कभी उनका निर्णय सिर्फ अपने या पार्टी के हित में हो सकता है, जो जनता के लिए हानिकारक हो सकता है।
3. लचीलापन की कमी: इस प्रणाली में अगर राष्ट्रपति जनता या संसद का विश्वास खो देता है, तो उसे पद से हटाना मुश्किल होता है। यह राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली एक मजबूत और स्थिर नेतृत्व प्रदान करती है, जिसमें राष्ट्रपति को कार्यपालिका का प्रमुख होने का अधिकार प्राप्त होता है। हालांकि, यह प्रणाली कभी-कभी विधायिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष उत्पन्न कर सकती है, और सरकार में लचीलापन की कमी हो सकती है।
अध्यक्षात्मक शासन और संसदात्मक शासन दोनों शासन प्रणालियाँ हैं, लेकिन इनमें कई महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। ये अंतर उनके कार्यप्रणाली, नेतृत्व संरचना, और सरकार के गठन के तरीकों में पाए जाते हैं।
अध्यक्षात्मक और संसदात्मक शासन प्रणाली के मुख्य अंतर:
उदाहरण:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली: संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ब्राजील, मेक्सिको।
संसदात्मक शासन प्रणाली: भारत, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया।
निष्कर्ष:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं और वह स्वतंत्र रूप से काम करता है, जबकि संसदात्मक शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को संसद के प्रति जवाबदेह होना पड़ता है। दोनों प्रणालियाँ अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ लोकतांत्रिक शासन को चलाती हैं, लेकिन उनमें कार्यपालिका और विधायिका के बीच के संबंध और शक्तियों का वितरण अलग होता है।
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