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संत ऑगस्टाइन के राजनीतिक,धार्मिक विचार व दो नगरों का सिद्धांत Political, religious views of Saint Augustine and the theory of two cities

 संत ऑगस्टाइन के राजनीतिक,धार्मिक विचार व दो नगरों का सिद्धांत

संत ऑगस्टाइन


संत ऑगस्टाइन के राजनीतिक विचार "The City of God" (ईश्वर का नगर) में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किए गए हैं। उनका दृष्टिकोण राजनीति और धर्म के संबंध को लेकर काफी विशिष्ट था, और उनका विश्वास था कि धार्मिक और भौतिक संसार के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। संत ऑगस्टाइन के राजनीतिक विचारों में कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. ईश्वर का राज्य और पृथ्वी का राज्य:

संत ऑगस्टाइन ने अपनी कृति "The City of God" में दो प्रकार के राज्यों का विचार प्रस्तुत किया:

ईश्वर का राज्य (The City of God): यह आध्यात्मिक राज्य है, जो धार्मिक उद्देश्य और ईश्वर के अधीन होता है। यह राज्य आस्था, प्रेम, और धर्म का पालन करता है और यह शाश्वत है।

पृथ्वी का राज्य (The City of Man): यह भौतिक राज्य है, जो दुनिया की सामाजिक और राजनीतिक संरचना का प्रतीक है। यह अस्थायी है और इसे शासकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो समय-समय पर मानव स्वार्थ और पापों से प्रभावित होते हैं।





उनके अनुसार, ईश्वर का राज्य सर्वोच्च और स्थायी है, जबकि पृथ्वी का राज्य अस्थायी और परिवर्तनशील है। उनका मानना था कि मनुष्य की प्राथमिकता ईश्वर के राज्य में होनी चाहिए, क्योंकि यह राज्य सच्ची मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।

2. राज्य का उद्देश्य:

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, राज्य का मुख्य उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था और न्याय को बनाए रखना है। हालांकि, वह मानते थे कि राज्य को धार्मिक उद्देश्यों के अधीन होना चाहिए और इसका काम सिर्फ दुनिया के मामलों तक सीमित नहीं होना चाहिए। राज्य की शक्ति को हमेशा ईश्वर की इच्छा के अनुरूप चलाया जाना चाहिए।

3. धर्म और राजनीति का संबंध:

संत ऑगस्टाइन ने धर्म और राजनीति के बीच एक स्वतंत्रता का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि धर्म का कार्य आत्मिक मुक्ति और ईश्वर की उपासना करना है, जबकि राजनीति का कार्य सामाजिक और भौतिक व्यवस्था को बनाए रखना है। हालांकि, वह यह भी मानते थे कि दोनों का उद्देश्य एक दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से कार्य करना चाहिए।

4. "दो तलवारों का सिद्धांत":

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, धर्म और राजनीति की शक्तियाँ दो अलग-अलग हैं, लेकिन उनके बीच एक संतुलन होना चाहिए। एक तलवार धार्मिक (आध्यात्मिक) मामलों से संबंधित होती है, जो चर्च और ईश्वर के मार्गदर्शन का प्रतीक है, जबकि दूसरी तलवार भौतिक (राजनीतिक) मामलों से संबंधित होती है, जो राज्य और शासकों की शक्ति का प्रतीक है। हालांकि, वह मानते थे कि भौतिक तलवार का उपयोग केवल न्याय और शांति बनाए रखने के लिए किया जाना चाहिए और यह हमेशा धार्मिक सिद्धांतों से मेल खाना चाहिए।

5. राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप:

संत ऑगस्टाइन ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप होना चाहिए, अर्थात, राज्य और चर्च दोनों को अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में काम करना चाहिए। हालांकि, वह यह मानते थे कि राज्य को धर्म से प्रेरित होना चाहिए, लेकिन राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और धर्म को राज्य की राजनीति से अलग रखना चाहिए।

6. राज्य और युद्ध:

संत ऑगस्टाइन ने "सिद्धांत युद्ध" (Just War Theory) की शुरुआत की थी, जिसमें यह कहा गया कि युद्ध केवल तब किया जाना चाहिए जब उसे न्यायसंगत कारणों (जैसे कि आत्मरक्षा या असहमति के निवारण) के लिए किया जाए। उनका मानना था कि युद्ध के दौरान धर्म और नैतिकता का पालन करना चाहिए और युद्ध की स्थिति में भी भगवान की इच्छा को सर्वोपरि रखना चाहिए।

7. मनुष्य की स्वच्छंद इच्छा और राज्य:

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा (free will) होती है, लेकिन उनका मानना था कि मनुष्य अपने पापों से मुक्त नहीं हो सकता और उसे ईश्वर की कृपा की आवश्यकता होती है। उनका यह भी कहना था कि भले ही मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा हो, लेकिन उसे सच्चे मार्गदर्शन के लिए धर्म का पालन करना चाहिए, और राज्य को ऐसे लोगों की दिशा में कार्य करना चाहिए जो ईश्वर की इच्छा को समझते हैं।

निष्कर्ष:

संत ऑगस्टाइन का राजनीतिक दृष्टिकोण यह था कि धर्म और राजनीति के बीच एक संतुलन होना चाहिए, लेकिन ईश्वर का राज्य हमेशा सर्वोच्च होना चाहिए। राज्य का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था और शांति बनाए रखना था, लेकिन इस कार्य में उसे धार्मिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। उनके विचारों का प्रभाव मध्यकालीन युग में राजनीतिक और धार्मिक विचारधाराओं को आकार देने में महत्वपूर्ण था।

संत ऑगस्टाइन (Saint Augustine) के विचार धार्मिक, दार्शनिक और नैतिकता से संबंधित थे, जो उनके जीवन और उनके लेखों में प्रमुखता से व्यक्त होते हैं। उनके विचारों का प्रभाव मध्यकालीन यूरोप के धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण पर गहरा पड़ा। यहाँ संत ऑगस्टाइन के कुछ प्रमुख विचार दिए जा रहे हैं:

1. ईश्वर और विश्वास का महत्व

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, ईश्वर का प्रेम और विश्वास मानव जीवन का केंद्रीय उद्देश्य है। उनका मानना था कि ईश्वर से प्रेम करना और विश्वास रखना ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है। उन्होंने कहा, "भगवान से प्रेम करना और अपने पड़ोसी से प्रेम करना सबसे बड़ा आदेश है।"

2. आत्मा की सच्चाई और आत्म-ज्ञान

ऑगस्टाइन ने कहा कि आत्म-ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। "अपने आप को जानो" (Know thyself) का सिद्धांत उन्होंने अपने जीवन में अपनाया था। वह मानते थे कि आत्मा का सही रूप समझने से ही किसी व्यक्ति को भगवान को जानने का मार्ग मिलता है।

3. अनुग्रह (Grace) और मुक्त इच्छा

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, अनुग्रह (Grace) वह दिव्य सहायता है, जिसके बिना कोई व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। उनका मानना था कि मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा (free will) होती है, लेकिन केवल ईश्वर की अनुग्रह से ही वह सही दिशा में जा सकता है।

4. गुनाह और पाप

उन्होंने पाप (Sin) के विषय में विस्तार से विचार किया और यह कहा कि सभी मनुष्य पापी होते हैं, क्योंकि आदम और हव्वा के द्वारा उत्पन्न मानवता में पाप का संक्रमण हो चुका था। उनके अनुसार, पाप का निवारण केवल ईश्वर के अनुग्रह से संभव है।

5. "दो तलवार का सिद्धांत"

संत ऑगस्टाइन ने "दो तलवारों का सिद्धांत" (Theory of the Two Swords) प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बताया कि धर्म और राजनीति अलग-अलग पहलू हैं। एक तलवार धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों का प्रतिनिधित्व करती है (यह चर्च से संबंधित है), जबकि दूसरी तलवार भौतिक और राजनीतिक मामलों का प्रतिनिधित्व करती है (यह राज्य से संबंधित है)। उनका मानना था कि दोनों तलवारों को सही ढंग से और एक दूसरे के साथ संतुलित रूप से काम करना चाहिए।

6. समाज और राज्य

संत ऑगस्टाइन ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "The City of God" में यह स्पष्ट किया कि दुनिया में दो प्रकार के राज्य होते हैं: एक ईश्वर का राज्य (The City of God) और दूसरा पृथ्वी का राज्य (The City of Man)। ईश्वर का राज्य आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों के लिए है, जबकि पृथ्वी का राज्य भौतिक और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए है। उनके अनुसार, ईश्वर का राज्य स्थायी और शाश्वत है, जबकि पृथ्वी का राज्य अस्थायी है।

7. आध्यात्मिक जीवन और पवित्रता

संत ऑगस्टाइन का मानना था कि इंसान को पवित्रता और आत्म-निर्वासन की ओर बढ़ना चाहिए। वह मानते थे कि मनुष्य के भीतर के विकारों को समाप्त करना और ईश्वर की इच्छा के अनुरूप जीवन जीना ही सच्ची पवित्रता है।

8. सिद्धांतों की वास्तविकता

उन्होंने विश्वास किया कि सिद्धांत केवल उस समय तक सही होते हैं जब वे वास्तविकता से मेल खाते हैं। उनके विचारों में जीवन के अनुभवों और ईश्वर की वास्तविकता के बीच संबंध को समझने की कोशिश थी।

संत ऑगस्टाइन के विचारों ने ईसाई धर्म और पश्चिमी दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी शिक्षाओं ने मध्यकालीन विचारधारा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

संत ऑगस्टाइन का "दो तलवार का सिद्धांत" (Theory of the Two Swords) एक महत्वपूर्ण धार्मिक और राजनीतिक विचार है, जिसे उन्होंने अपने प्रसिद्ध कार्य "The City of God" में प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के तहत उन्होंने धर्म और राजनीति के बीच के संबंध को समझाने की कोशिश की।

यह सिद्धांत दो मुख्य पहलुओं पर आधारित था:

1. धार्मिक तलवार (Spiritual Sword): यह तलवार ईश्वर के आध्यात्मिक राज्य (God's Kingdom) का प्रतीक है। संत ऑगस्टाइन के अनुसार, यह तलवार चर्च (ईसाई धर्म) का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और लोगों को ईश्वर की शिक्षाओं के अनुसार जीने के लिए प्रेरित करना है। यह तलवार धार्मिक अधिकार और प्रभुता को दिखाती है, और इसके तहत पापों से मुक्ति और सही आचरण का मार्गदर्शन दिया जाता है।

2. भौतिक तलवार (Temporal Sword):
यह तलवार पृथ्वी के राज्य (Earthly Kingdom) का प्रतीक है, जो दुनिया के राजनीतिक और सामाजिक मामलों से संबंधित है। यह तलवार राज्य और शासकों के हाथ में होती है, और इसका उद्देश्य शांति, न्याय और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना है। भौतिक तलवार का उपयोग हिंसा और बल का सहारा लेकर समाज को संरक्षित करने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग सही तरीके से और भगवान की इच्छा के अनुसार करना आवश्यक है।

संत ऑगस्टाइन के अनुसार, इन दोनों तलवारों का कार्य अलग-अलग था, लेकिन उन्हें एक दूसरे के साथ संतुलित रूप से कार्य करना चाहिए था। धार्मिक तलवार का उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और सही आस्थाओं का पालन कराना था, जबकि भौतिक तलवार का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था और न्याय को बनाए रखना था। हालांकि, वह यह भी मानते थे कि भौतिक तलवार का उपयोग केवल उचित और धार्मिक उद्देश्यों के लिए होना चाहिए, और धार्मिक अधिकार को हमेशा उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

इस सिद्धांत का उद्देश्य यह था कि धार्मिक और भौतिक दोनों क्षेत्रों के नेताओं को अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए काम करना चाहिए, और ईश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए।

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