PHD पर रोक नहीं लगा सकतीं UGC सिंघानिया विश्वविद्यालय बनाम यूजीसी
सिंघानिया विश्वविद्यालय बनाम यूजीसी : दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पास किसी भी विश्वविद्यालय को पीएचडी कार्यक्रम में प्रवेश देने से रोकने का अधिकार नहीं है। अदालत ने साफ किया कि यूजीसी अधिनियम, 1956 या उसके तहत बने नियमों में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है, जो विश्वविद्यालयों पर इस तरह का प्रतिबंध लगाने की शक्ति देता हो।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यूजीसी के नियम केवल पीएचडी डिग्री की न्यूनतम शैक्षणिक मानक और प्रक्रिया तय करते हैं। लेकिन अगर कोई विश्वविद्यालय इन नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके लिए न तो कोई विशेष दंड तय किया गया है और न ही यूजीसी को यह अधिकार दिया गया है कि वह विश्वविद्यालय को पीएचडी प्रवेश रोकने का आदेश दे सके।
यह फैसला सिंघानिया विश्वविद्यालय द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें विश्वविद्यालय ने यूजीसी के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे पाँच वर्षों (2025-26 से 2029-30 तक) पीएचडी प्रवेश पर रोक लगाने को कहा गया था। साथ ही, एक सार्वजनिक नोटिस भी जारी किया गया था जिसमें छात्रों और अभिभावकों को सलाह दी गई थी कि वे इस विश्वविद्यालय में पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला न लें।
अदालत ने यूजीसी का आदेश और सार्वजनिक नोटिस दोनों को रद्द करते हुए कहा कि यूजीसी का कार्य केवल विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक मानकों का समन्वय और निर्धारण करना है। अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सीधे तौर पर किसी विश्वविद्यालय को दंडित करने या उसके शैक्षणिक कार्यक्रम रोकने की अनुमति देता हो।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यूजीसी अधिनियम की धारा 12 केवल कॉलेजों की जांच और केंद्र सरकार की अनुमति से कुछ प्रतिबंध लगाने तक सीमित है। किसी विश्वविद्यालय को पीएचडी प्रोग्राम चलाने से रोकना, अधिनियम और नियमों की सीमा से बाहर है।
सिंघानिया विश्वविद्यालय बनाम यूजीसी
अंत में अदालत ने निष्कर्ष दिया कि 16 जनवरी 2025 को जारी किया गया आदेश वैधानिक प्रावधानों के विपरीत है, इसलिए यह अवैध है और निरस्त किया जाता है।
#ugc#PHD
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)
Singhania University

Post a Comment