राज्य के नीति-निदेशक सिद्धात directive principles of state policy in hindi
संविधान के भाग 4 को ‘राज्य के नीति के निर्देशक तत्व’ शीर्षक दिया गया है। इसके अन्तर्गत अनुच्छेद 36-51 तक के अनुच्छेद शामिल हैं। संविधान का यह भाग आयरलैण्ड के संविधान से प्रभावित है। यहां यह तथ्य उल्लिखित करना आवश्यक है कि आयरलैंड के संविधान में उल्लेखित यह तत्व स्पेन के सविधान 1931 के "परिवार अर्थव्यवस्था व संस्कृति" शीर्षक से युक्त भाग 3 से प्रभावित हैं इसके माध्यम से संविधान राज्य को बताता है कि उसे सामाजिक तथा आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये नैतिक दृष्टि से किन पक्षों पर बल देना चाहिये। नीति निर्देशक तत्व योग्य नहीं है नीति निर्देशक तत्व आयरलैंड से प्रभावित है सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं नीति निर्देशक तत्व मूल अधिकार से व्यापक है नीति निर्देशक तत्व के बारे में विभिन्न विद्वानों के विचार
आईवर जेनिंग्स पुण्य आत्मा है नैतिक आक्षाएं हैं फेबियन समाजवाद की स्थापना करते हैं !
ऑस्टिन नीति निर्देशक तत्व सामाजिक क्रांति लाते हैं!
के सी व्हीयर:- संसद व न्यायपालिका में संघर्ष को बढ़ावा देते हैं ! पंडित जवाहरलाल नेहरू समाज में समाजवादी ढांचे की स्थापना करते हैं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं ! के एम पणिकर नीति निर्देशक तत्व सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं
अनुच्छेद 36राज्य को अनुच्छेद 12 के समान परिभाषित करता है जब तक कि संदर्भ अन्यथा परिभाषित न हो। यहाँ यह तथ्य उल्लिखित करना आवश्यक है इस भाग में राज्य का अर्थ भारत की सरकार व संसद, राज्य सरकार व विधानमंडल ,भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय व अन्य प्राधिकारी हैं अनुच्छेद 37इस भाग में निहित सिद्धांतों का अनुप्रयोग
अनुच्छेद 38-:यह राज्य को लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था सुरक्षित करने के लिए अधिकृत करता है।
अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा पालन की जाने वाली नीतियों के कुछ सिद्धांत। अनुच्छेद 39(A) समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता
अनुच्छेद 4०- ग्राम पंचायतों का संगठन
अनुच्छेद 41-कुछ मामलों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार। अनुच्छेद42 काम और मातृत्व अवकाश की न्यायसंगत और मानवीय स्थितियों का प्रावधान अनुच्छेद43श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी
अनुच्छेद43(क)_ उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी।
अनुच्छेद 43 (ख) सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
अनुच्छेद 44=
नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता अनुच्छेद45:- 0 से 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान। अनुच्छेद46 अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति ,और अन्य कमजोर वर्गों , शिक्षा और आर्थिक हितों ,को बढ़ावा देना। अनुच्छेद47-:पोषण के स्तर, जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य। अनुच्छेद48- कृषि और पशुपालन का संगठन। : अनुच्छेद 48(क) पर्यावरण का संरक्षण और सुधार और वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा। अनुच्छेद49राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और वस्तुओं का संरक्षण। अनुच्छेद50न्यायपालिका , कार्यपालिका कोअलग करना। अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना
राज्य के नीति-निदेशक सिद्धात
में संशोधन:
42वाँ संविधान संशोधन, 1976: इसमें नए निर्देश जोड़कर संविधान के भाग-IV में कुछ बदलाव किये गए:
अनुच्छेद 39(A):- गरीबों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना।
अनुच्छेद 43(A)-: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी।
अनुच्छेद 48(A)-: पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना।
44वाँ संविधान संशोधन, 1977: इसने धारा 2 को अनुच्छेद 38 में सम्मिलित किया जो घोषित करता है कि "राज्य आय व अवसर संबंधी असमानताओं को खत्म करने का प्रयास करेगा।"
यहाँ यह तथ्य उल्लिखित करना आवश्यक है कि 44वाँ संविधान संशोधन, 1977 से मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति के अधिकार को भी समाप्त कर दिया।
वर्ष 2002 का 86वाँ संशोधन अधिनियम: इसने अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु को बदल दिया और प्रारंभिक शिक्षा को अनुच्छेद 21(A) ( 6से14 वर्ष) तहत मौलिक अधिकार बना दिया।
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक के मध्य संघर्ष: -
चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य-: इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के बीच किसी भी संघर्ष के मामले में मौलिक अधिकार मान्य है
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1967): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि निदेशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिये भी संसद द्वारा मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (वर्ष 1973): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ (1967) के अपने फैसले को खारिज़ कर दिया और कहा कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह अपनी "मूल संरचना" को बदल नहीं सकता
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान के "मूल ढाँचे" को नहीं बदल सकती है। दोनो को एक दुसरे के पुरक बताया!
नीति निदेशक तत्वों की आलोचना के.टी शाह ने अतिरेक कर्मकांडी बताया और इसकी तुलना एक चैक से की जिसका भुगतान बैंक की अनुभूति पर संभव है नसीरुद्दीन ने कहा कि यह सिद्धांतों नववर्ष प्रस्ताव की तरह है जो जनवरी में टूट जाता है टीटी कृष्णमाचारी ने कहा कि भावनाओं का एक स्थाई कुड़ाघर है! आईवर जेनिंग्स इसे कर्मकांडी आकांक्षा कहते हैं यहा यह तथ्य उल्लेखित करना उचित है कि न्यायधीश एम. सी. छागला ने कहा कि इन सभी तत्वों का पूरी तरह पालन किया जाए तो हमारा देश के विश्व मे स्वर्ग् की भांति लगने लगेगा यहां यह तथ्य उल्लेखित करना आवश्यक है कि संविधान समीक्षा आयोग 2002 ने अपनी रिपोर्ट में "राज्य की नीति के निदेशक तत्व" की जगह "राज्य की नीति के निदेशक तत्व एव आयोजन" करने की अनुशंसा की थी !
पचायतीराज स्थानीय स्वशासन के तथ्य
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