मराठा शासक :भारत
मराठा शासक
शिवाजी एक योग्य शासक् था ा जिसमे अपने दादाजी व माँ के गुण समाहित थे
सलेहर युद्ध में शिवाजी ने मुगलों को पराजित किया था
1672 मे सलहर के युद्द में शिवाजी के पेशवा मोरोपंत त्रय्बकं पिगंले ने दक्षिण के मुगल सूबेदार बहादुर खां तथा गुजरात की संयुक्त सेना को पराजित किया था
पुरंदर की संधि 24 जून 1665 को पुरंदर की संधि जो मिर्जा राजा जयसिंह के साथ हुई थी और इसमें मनुची भी मौजूद था के पश्चात आगरा में जयपुर महल से अपने स्थान पर हमशकल हिरोजी को लिटा कर अपनी राजधानी रायगढ़ के लिए निकल गए थे शिवाजी और 1668 में औरंगजेब ने राजा की उपाधि प्रदान की
1674 मे काशी के विद्वान गंगा भट्ट ने रायगढ़ में राज्य अभिषेक करवाया इनका दूसरा राज्याभिषेक निश्चल पुरी गोस्वामी ने करवाया था
दरिया सारंग के नेतृत्व मे कोलाबा मे नौ सेना बेडे का गठन किया था ओर
अपना राज्य चार प्रांतों में विभाजित किया जिसमें उत्तरी प्रांत का नेतृत्व मोरोपंत त्रयबंक पिगंले , दक्षिण का अन्नाजी दत्तो, दक्षिणी पूर्वी का दंतोजी पंत थे यहाँ यह तथ्य उल्लेखित करना आवश्यक् है कि 1679 मे दंतो जी पंत के नेतृत्व में भू सर्वेक्षण करवाया था
1659 में बीजापुर के सेनापति अफजल खान व शिवाजी ने कृष्ण भास्कर व गोपीनाथ दूत आपस मे भेजे थे जिसमें बाद में शिवाजी ने अफजल खान का वध कर दिया था
हिरो जी फर्जंद
हिरोजी फर्जंद ने व्यक्ति जिसने शिवाजी को औरंगज़ेब के कैद में जयपुर महल से बाहर निकलने में मदद की थी मदारी मेहतर- औरंगजेब ने जब शिवाजी को आगरा में कैद कर लिया था तब इसी व्यक्ति की सहायता से शिवाजी आगरा से निकलकर रायगढ़ पहुंचे थे
शाह जी भोंसले देवगढ़ के निकट मराठा योद्धा मालो जी भोंसले का ठिकाना था मालो जी के पुत्र नहीं था, इससे दुखी हो कर मालो जी ने अपनी परेशानी मुस्लिम फकीर शाह शरीफ को बताई तो शाह शरीफ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया
समय बितने पर,मालो जी की पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया अहसानमंद मालो जी ने शाह शरीफ के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए अपने पुत्रों का नाम उनके नाम के अनुरूप शाह जी एवं शरीफ था शिवाजी इन्हीं शाह जी भोंसले के ज्येष्ठ पुत्र थे
इब्राहिम गार्दी - पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा सेना के तोपखाने का नेतृत्व इसी के द्वारा किया गया था
मुल्ला हैदर- यह शिवाजी का विश्वसनीय राष्ट्र सचिव था
शिवाजी द्वारा सूरत की प्रथम लूट 1664 की गई
शिवाजी द्वारा सूरत की प्रथम लूट के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी का सूरत का गवर्नर जाॅर्ज आक्सिडेंन था
शिवाजी ने अपनी राज्य को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा इसमें उत्तरी प्रांत का नेतृत्व में पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था वहीं दक्षिणी प्रांत अन्ना जी दंतोऔर दक्षिणी पूर्वी प्रांत दंताजी पंत के नियंत्रण में था
शिवाजी के प्रशासन में घुड़सवार सेना को पागा नाम से जाना जाता था इसमे दो प्रकार के सैनिक होते थे
बरगीर - वह मराठा घुड़सवार सैनिक जिन्हें राज्य की और से घोड़े प्रदान किए जाते थे।
सिलेदार- वह मराठा घुड़सवार सैनिक जिनके खुद के घोड़े होते थे
प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ था जिन्होंने 1719 में सेैयद बंधुओं के साथ मिलकर दिल्ली की गद्दी पर फर्रूखसियर के स्थान पर रफी दर जात को गद्दी पर बिठाया गया और साहू को दक्षिण का शासक मान लिया गया उन्हें दक्षिण में चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार दिया गया इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाला शासक रफी दर जात था
इस संधि को रिचर्ड टेंपल ने मराठों का मैग्नाकार्टा कहा था
बाजीराव प्रथम का यह कथन हमे वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिए शाखाएं तो स्वंय गिर जाएंगी बाजीराव प्रथम का यह कथन मुगल साम्राज्य के ताश की तरह बिखरते साम्राज्य के बारे में कहा थाा उन्होंने 1728 में पालखेड़ा के युद्ध में हैदराबाद के निजाम को पराजित किया और मुंशी शिव गांव की संधि की
1731 मे वारना की संधि के तहत शंभा जी द्वितीय ने बाजीराव पेशवा स्वीकार कर लिया
भोपाल युद्ध में निजाम को पराजित कर उसे दुरई सराय संधि के तहत मराठों को चंबल और मालवा का क्षेत्र मिल गया निजाम के उत्तराधिकारी नासिर जंग को दोबारा 1740 में पराजित कर उसे मूंगी पैठन की संधि के लिए विवश किया
1739 मे बसीन की संधि पुर्तगालियों के साथ की जिसमें जमुना जी के नेतृत्व में पुर्तगाली को पराजित किया था
पानीपत का तृतीय युद्ध
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था उस समय मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव था तथा युद्ध का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ के द्वारा किया गया
इस युद्ध में मराठा तोपखाने का नेतृत्व इब्राहिम गार्दी ने किया वही इमादुमुल्क जो मुगल वजीर था इन्होंने भी मराठों का समर्थन किया था
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तत्कालीन जाट शासक सूरजमल ने उन्हें इसका इतजार करने के लिए कहा था
सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को परामर्श दिया कि वह स्त्रियां तथा बच्चों जो सैनिकों के साथ थे झांसी अथवा ग्वालियर में ही छोड़ जाए परंतु उन्होंने उनकी बात को अनसुना नहीं दिया
सूरजमल ने मराठों को परंपरागत युद्ध पद्धति में ही लड़ने के लिए कहा लेकिन मराठा सरदारों के परस्पर द्वेष के कारण उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया जैसा कि सदाशिव राव भाऊ मल्हार राव होलकर को एक व्यर्थ वृद्ध पुरुष समझता था और मल्हार राव होलकर ने भी क्रुद्ध होकर युद्ध से पूर्व कहा था कि यदि शत्रु इस पुणे के ब्राह्मण को नीचा नहीं दिखाएगा तो हम से तथा अन्य मराठा सरदारों से ये लोग कपड़े धुल जाएंगे ! काशीराज पंडित :-
इस युद्ध हार का कारण मराठों की सुझबुझ का अभाव था जैसे मराठे ठंड मे लडने के लिए आदी नहीं थे वही अहमद शाह अब्दाली की सेना इसके लिए अभयस्त थी जदुनाथ सरकार :- महाराष्ट्र में संभवत कोई ऐसा परिवार न था जिसने कोई न कोई संबंध नहीं खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश हो गया दो मोती विलीन हो गए 22 सोने की मुहरे लुप्त हो गई और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती" इन्हीं पंक्तियों के माध्यम से एक व्यापारी ने बालाजी बाजीराव को पानीपत के युद्ध के परिणाम के बारे में बताया था
हुरडा सम्मेलन मराठों की लूटमार नीति ने उत्तरी भारत में उनके लिए दुशमन खडे कर दिए जिसका उदाहरण 17 जुलाई 1734 को हुरडा सम्मेलन में देख सकते हैं कि किस प्रकार समस्त राजपूतों ने एकत्र होकर मराठों के आक्रमणों को रोकने के लिए सम्मेलन का आयोजन किया हालांकि यह असफल रहा था
इस प्रकार कहा जा सकता है कि मराठों ने सूरजमल की सलाह को न मानकर पराजय अपनी झोली में डाल ली जिसका प्रत्यक्ष फायदा अंग्रेजों को मिला और भारत में उनका मुकाबला करने वाली कोई शक्ति नहीं रही इस युद्व के बादस अग्रेजो का मुकाबला करने वाला कोई नही रहा!
शिवाजी के अष्टप्रधान निम्नलिखित थे
पेशवा; – यह अष्ट प्रधान में सर्वोच्च पद था यह राजा और राज्य का प्रधानमंत्री था
अमात्य या मजूमदार :– यह राज्य की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता था न्यायधीश ;– यह मुख्य न्यायधीश होता था
सेनापति या सर-ए-नौबत; – सैनिक प्रधान, यह सेना की भर्ती संगठन रसद आदि के प्रबंधन का कार्य संभालता था
चिटनीस: – यह राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखता था
सुमन्त–: यह विदेशी मामलों का प्रभारी था
.पंडित राव :– यह विद्वानों एवं धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का दायित्व संभालता था!
वकयानवीस – यह सूचना, गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता जदुनाथ सरकार मैं शिवाजी को हिन्दू प्रजाति का अंतिम रचनात्मक प्रतिभा- सम्पन्न व्यक्ति और राष्ट्र निर्माता मानता हूँ।
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