राजस्थान के वीर और 1857 की क्रान्ति
18 57 के विद्रोह का तत्कालीन कारण चर्बी लगा कारतुसों का प्रयोग करना माना जाता है ब्रिटिश सरकार ने 1857 में सैनिकों को प्रयोग के लिए ब्राउन बेस के स्थान पर एनफील्ड राइफल का प्रयोग शुरू करवाया जिसमें कारतूस लगाने से पूर्व दांत से चर्बी का खोल उतरना पड़ता था क्योंकि कारतूस में गाय और सुअर दोनों की चर्बी भी लगी थी इसलिए हिंदू और मुसलमान दोनों भड़क उठे परिणामस्वरूप 18 57 के विद्रोह की शुरुआत हुई! चर्बी वाले कारतूसों को लेकर पहली घटना 29 मार्च 18 57 को बैरकपुर की छावनी में घटी जहां 34 वी रेजीमेंट के मंगल पांडे नामक एक सिपाही ने चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग से इन्कार करते हुए अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग व लेफ्टिनेंट जनरल हयुसन की हत्या कर दी! मंगल पांडे गाजीपुर का रहने वाला था और 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई! भारतीय स्वतंत्रता हेतु प्रथम सशस्त्र विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में 20 एन. आई .एस. व 3 एल . सी की पैदल टुकड़ी ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से इंकार कर विद्रोह की शुरुआत की इस सैनिक विद्रोह के नेता बख्तखान थे 11 मई 1857 को मेरठ के विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को भारत का सम्राट और विद्रोह का नेता घोषित कर दिया तत्पश्चात विद्रोह देश के विभिन्न भागों में तेजी से फैला अन्य भागों की तरह राजस्थान में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी क्रांति के प्रतिक के रुप में कमल व रोटी था यह एक गांव का चौकीदार दूसरे गांव पहुंचाता था 18 57 के विद्रोह के समय राजस्थान में 6 सैनिक छावनियां थी राजस्थान में सबसे पहले विद्रोह की शुरुआत नसीराबाद छावनी के विद्रोह से हुई राजस्थान में 18 57 की क्रांति के प्रमुख केंद्र राजस्थान में 18 57 की क्रांति के प्रमुख केंद्र नसीराबाद का विद्रोह राजस्थान में क्रांति का आरंभ नसीराबाद में हुआ नसीराबाद में 15 व 30 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री भारतीय तोपखाने के साथ व मुंबई लांसर्स के सैनिक विद्यमान थे! 28 मई 18 57 को 15 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने दिन के 3:00 बजे विद्रोह की शुरुआत कर दी तोपखाने पर अधिकार कर लिया अंग्रेज मेजर प्रिचार्ड ने नसीराबाद छावनी में मौजूद सैनिकों को बागियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के आदेश दिए किंतु सैनिकों ने ये आदेश मानने से इनकार कर दिया और मुंबई लांसर्स अंग्रेजों की वफादार रही मेजर स्पोटिसवुड तोपखाने की ओर आगे बढ़ा किंतु वह गोली लगने से वह गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई कर्नल न्यबरी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए लेफ्टिनेट लाॕक व कप्तान हार्डी बुरी तरह घायल हो गए धीरे-धीरे सभी सैनिक विद्रोही हो गए ! मेरवाड़ा लांसर्स ने ब्रिटिश अधिकारियों व उनके परिवारों के रक्षा की नसीराबाद छावनी तथा बाजार को लूटने के बाद नसीराबाद के विद्रोही सेैनिक नई दिल्ली के लिए कूच कर गए 18 जून 18 57 को यह सेैनिक दिल्ली पहुंचे तथा उन्होंने उस अंग्रेज पलटन का पीछे से आक्रमण किया जो दिल्ली का घेरा डाले हुए इस युद्ध में अंग्रेज सेना हार गई दिल्ली में बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह बना दिया गया तथा उसने विद्रोही सैनिकों के नाम फरमान जारी किए जोधपुर नरेश ने अंग्रेज अधिकारियों को जोधपुर आने का निमंत्रण दिया इस पर अंग्रेज अधिकारी अपने परिवार के साथ जोधपुर आ गए कर्नल पेन्नी का मार्ग में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया नीमच विद्रोह नसीराबाद के बाद 18 57 की क्रांति नीमच में प्रज्ज्वलित हुई 2 जून को कर्नल अबोट ने हिंदू और मुसलमान सैनिकों को गंगा और कुरान की शपथ दिलाई कि वे ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहे हैं कर्नल अबोट ने भी बाइबल को हाथ में लेकर शपथ ली थी जिससे वह अपने अधीन सैनिकों का पूर्ण समर्थन प्राप्त कर सकें परंतु 3 जून 18 57 को रात्रि 11:00 बजे भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया उन्होंने तोपखाने पर अधिकार कर के छावनी को घेर लिया था उसमें आग लगा दी इस समय खबर आई कि मेवाड़ पॉलिटिकल एजेंट शावर्स सेना लेकर आ रहे हैं विद्रोही सैनिकों ने लूट का माल लेकर बैंड बजाते एक छावनी से कूचॕ किया! सिपाहियों ने देवली पहुंचकर वहां की छावनी को भी लूटा यहां के विद्रोही सिपाही टोक व कोटा होते हुए दिल्ली पहुंचे और दिल्ली के क्रांतिकारियों से मिलकर अंग्रेज सेना पर आक्रमण किया !शावर्स की सहायता के लिए मेवाड़ का ए. जी.जी जॉर्ज लॉरेंस भी आ गया किंतु क्रांतिकारी दिल्ली कूच कर चुके थे ! नीमच के लगभग 40 अंग्रेज, जिसमें औरतें और बच्चे सम्मिलित है इधर-उधर जंगल में भटकते भूखे प्यासे भटकते हुए डूंगला गांव पहुंचे जहां उनका रुगाराम नामक एक किसान ने उसे शरण दी इस बीच पोलिटिकल एजेंट शावर्स मेवाड़ी सेना के साथ पहुंच गया उसने इन अंग्रेज औरतों और बच्चों को सुरक्षित उदयपुर पहुंचा दिया महाराणा ने उन्हें पिछोला झील में बने जग मंदिर में रखा और राज्य की ओर से सुरक्षा का कड़ा प्रबंध किया गया ! 12 अगस्त 18 57 को नीमच द्वितिय कैवेलरी के कमांडर कर्नल जेक्सन की सूचना के आधार पर की भारतीय सेना में विद्रोह होने वाला है उनकी योजना समस्त यूरोपीय अधिकारियों की हत्या करने की है यूरोपीय सैनिकों को बुला भेजा ! इस घटना में नीमच स्थित भारतीय सैनिकों को उत्तेजित कर दिया उत्तेजना में एक यूरोपीय सिपाही की हत्या कर दी गई व्लियेयर किसी यूरोपीय की बंदूक से घायल हो गए सैनिक ने कर्नल जैक्सन के आदेश को पालन करने से इनकार कर दिया है यहां तक कि यूरोपीय अधिकारियों के मध्य भी आदेश दिए जाने संबंधी वाद विवाद उठ खड़े हुए ! तय किया गया कि नीमच के क्रांतिकारियों को दबाने के लिए ओर सैनिकों को बुलाया जाए परंतु इसी बीच उदयपुर की सहायता से क्रान्ति को दबा दिया गया! आऊवा का विद्रोह- एरिनपुरा स्थित अंग्रेज छावनी में जोधपुर लीजन का सदर मुकाम था लीजन में 600 घुड़़सवार व 14 00 पैदल सैनिक थे! लीजन के 90 सैनिक अभ्यास हेतु माउंट आबू गए हुए थे माउंट आबू मे ए. जी .जी. का ग्रीष्मकालीन मुकाम था 23 अगस्त 1857 को जोधपुर लीजन के दफेदार मोती खाँ और सूबेदार शीतल प्रसाद एवं तिलकराम के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया ! क्रांतिकारी नेताओं के आदेशानुसार चलो दिल्ली मारो फिरंगी के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े! रास्ते में आउवा मुकाम आ गया वहां के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत ने क्रांतिकारीओं का नेतृत्व स्वीकार करना स्वीकार किया! आसोपा ,अलनियावास, गूलर, लांबिया, बन्तावास ,रुदावास के जागीरदार भी अपनी अपनी सेना के साथ क्रांतिकारियों से आ मिले! ठाकुर कुशाल सिंह के मेवाड़ के सलूम्बर और कोठारिया जागीरदारों को भी क्रांति में शामिल होने का आह्वान किया इन जागीरदारों की क्रांतिकारियों के साथ सहानुभूति थी पर यह सहानुभूति सक्रिय सहयोग में नहीं बदल सकी हो सकता है इन जागीरदारों ने क्रांतिकारियों की रसद व नगद में थोड़ी बहुत सहायता की हो जो भी हो क्रांतिकारी सेना की संख्या 6000 तक पहुंच गई थी ! राजपूताना के ए .जी .जी लॉरेंस को जब क्रांतिकारियों का आउवा के जमाव का पता चला तो उसने जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए लिखा जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह ने अपने किलेदार अनार सिंह पवार व फौजदार राजमल लोढ़ा के नेतृत्व में 10000 सैनिकों व घुड़सवार व 12 तोपे आउवा रवाना की इस फौज के साथ लेफ्टिनेंट हीथकोट भी सम्मिलित था और सितंबर 18 57 को बिथोडा़( पाली) नामक स्थान पर दोनों सेनाओं में कड़ा मुकाबला हुआ राज्य की सेना की हार हुई यह समाचार जब ए .जी .जी लॉरेंस के को मिले तो वह अजमेर से सेना लेकर चेैलावास नामक स्थान पर पहुंच गया दोनों पक्षों में युद्ध हुआ क्रांतिकारी फिर भी विजय हुए युद्ध के दौरान मेैक मेसन मारा गया और क्रांतिकारियों ने उसका सिर धड़ से अलग कर आउवा में घुमाया और बाद में उसे किले के दरवाजे पर टांग दिया लॉरेंस वहां से भागकर अजमेर पहुंच गया! क्रांतिकारियों ने रिसालदार अब्दुल अली, अब्दुल अली खान, शेर मोहम्मद बक्स, हिंदू और मुसलमान सिपाहियों के नाम पर मारवाड़ और मेवाड़ की जनता से अपील की कि वे हर संभव सहायता करें ठाकुर कुशाल सिंह ने भी मेवाड़ के प्रमुख जागीरदार ठाकुर समंदर सिंह से ब्रिटेन के विरुद्ध सहायता देने का प्रस्ताव किया ठाकुर को आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह पूलनियावास के ठाकुर अजीत सिंह, बोगावा के ठाकुर जोध सिंह ,बांता के ठाकुर पेमसिंह, बसवाना के ठाकुर चांदसिंह तुल गिरी के ठाकुर जगत सिंह ने दिल्ली सम्राट से सहायता लेने के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया क्रांतिकारी आसोपा ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली रवाना हुई नारनोल पर अंग्रेजी सेना ने उन्हें करारी मात दी ठाकुर शिवनाथ सिंह मारवाड़ लौट गए उन्होंने अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया उनकी जागीर जप्त कर ली गई और आसोपा ठाकुर शेखावाटी में लूटमार करते उन्हें अपनी जागीर से निकाल दिया गया इधर चेैलावास के युद्ध में लॉरेंस की हार के समाचार गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को मिले तो उन्होंने पालनपुर व नसीराबाद से बड़ी सेना कर्नल होम्स के नेतृत्व में हुआ भेजी क्रांतिकारी की जीत की आशा न देख ठाकुर कुशाल सिंह मारवाड़ में लूटमार करते हुए मेवाड़ चले गए उन्होंने कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहां शरण ली अंत में 8 अगस्त 1860 को उन्होंने नीमच ने अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया मेजर टेलर की अध्यक्षता में एक कमीशन ने उनके खिलाफ जांच की उन्हें 10 नवंबर 1860 में रिहा कर दिया गया पर महाराजा जोधपुर ने उन्हें जागीर का एक बड़ा भाग जप्त कर लिया कोटा में विद्रोह :- राजस्थान में सन 18 57 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोटा का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है! कोटा में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष राजकीय सेना व आमजन ने किया कोटा के पोलिटिकल एजेंट मिस्टर बर्टन था कोटा में जय दयाल व मेहराब खान लोगों ने क्रांति की भावना भर रहे थे उन्होंने 15 अक्टूबर 1857 की क्रांति का बिगुल बजा दिया वह रेजिडेंसी को घेर पोलिटिकल एजेंट मिस्टर बर्टन उसके दो पुत्रों व डा० सैलडर काटम की हत्या कर दी क्रांतिकारियों ने मिस्टर बर्टन का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे सारे शहर में प्रदर्शन किया कोटा के महाराव राम सिंह के महल के अंदर नजरबन्द कर कोटा राज्य पर अधिकार कर लिया 30मार्च 1858 में जनरल राॕबटर्स की सेना ने कोटा पर अधिकार हो गया ! जय दयाल व मेहराब खान को फांसी दे दी गई करौली के महारावल मदन पाल की सेना भी मेजर जनरल राॕबटर्स के साथ थी 6 महीने के क्रांतिकारियों के कब्जे रहने के बाद कोटा पुन: महाराज को प्राप्त हो गया इस प्रकार कोटा में सर्वाधिक व्यापक क्रांति हुई ! धौलपुर में क्रांति:- धौलपुर के गुर्जर नेता देवा ने लगभग 3000 अपनी जाति के लोग एकत्रित कर लिए थे 9 जुलाई 1857 को उन्होंने इरादत नगर की तहसील व राज्य खजाने से ₹2,00000 लूट लिए अक्टूबर अट्ठारह सौ सत्तावन में ग्वालियर और इंदौर में क्रांतिकारियों ने मिलकर धौलपुर राज्य की सीमा में प्रवेश किया धौलपुर राज्य में क्रांतिकारियों ने लूटपाट की धौलपुर नरेश भगवंतसिंह विद्रोही सैनिकों द्वारा घेर लिए गए मार डालने की धमकी दी गई उसे भारी दबाव के कारण क्रांतिकारियों की मांगे स्वीकार करनी पड़ी राव रामचंद्र व हीरालाल के नेतृत्व में लगभग 4000 क्रांतिकारी आगरा की तरफ पलायन कर गए आगरा पर आक्रमण करते समय विद्रोहियों ने धौलपुर राज्यों की तोपों का ही प्रयोग किया धौलपुर के शासक दिसंबर 1857 तक पूर्ण तक शक्तिहीन बना रहा अंत में पटियाला की सेना के धौलपुर शासक की प्रार्थना पर 2000 सैनिक धौलपुर पहुंचे उन्होंने धौलपुर नरेश को क्रांतिकारियों से मुक्ति दिलाई और राज्य में पूर्ण व्यवस्था स्थापित की ताँत्या टोपे का राजस्थान में आवागमन
ताँत्या टोपे पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी डनाना साहब का स्वामी भक्त सेवक था! 18 57 की क्रांति में ग्वालियर में विद्रोही नेता था तथा ताँत्या सर्वप्रथम 8 अगस्त 1857 को भीलवाड़ा में आया वहां 9 अगस्त को उनका कूआड़ा नामक स्थान पर जनरल रोबटर्स की सेना से युद्ध हुआ किंतु से पीछे हटना पड़ा! दिसंबर1857 को पुन: मेवाड़ आये तथा 11 दिसंबर 18 57 में उनकी सेना ने बांसवाड़ा जीता वहां से प्रतापगढ़ पहुंचे जहां मेंजर राँक की सेना ने उन्हें परास्त किया इसके पश्चात जनवरी 1858 को टोंक पहुंचे टोंक में मेजर ईडन विशाल सेना लेकर आया और क्रांतिकारी टोंक छोड़कर नाथद्वारा चले गए ताँत्या टोपे नरवर के जागीरदार मान सिंह नरूका की सहायता से नरवर के जंगलों में पकड़ लिया 7 अप्रैल 1859 को फांसी दे दी गई ! वह राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों के सहयोग प्राप्त करने की अपेक्षा से राजस्थान आए थे लेकिन यहां पर उन्हें वहां अच्छी सफलता नहीं मिली अन्यथा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होता सितंबर 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया और दिल्ली के लाल किले पर अंग्रेजी आधिपत्य स्थापित हो गया इस प्रकार देश की गुलामी से मुक्त कराने का प्रथम प्रयास विफल रहा! 1857 की क्रांति की असफलता के कारण राजा महाराजाओं का अंग्रेजों को भरपूर सहयोग देना
बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह क्रांति में अंग्रेजों की सहायता देने में अग्रणी था वह राज्य की सेना के 5000 घुड़सवार व पैदल सैनिक लेकर पंजाब के हांसी, सिरसा, हिसार जिलों में पहुंच गया राजस्थान के राजाओं में बीकानेर ही अकेला राज्य था जहां का शासक से अपनी सेना लेकर बाहर अंग्रेजों की सहायता की जयपुर के महाराजा ने क्रांति के दौरान अंग्रेजों की तन, मन, धन से सहायता की जिसकी पर क्रांति के अंत में अंग्रेज सरकार ने जयपुर को कोटपुतली का परगना स्थाई रूप से दे दिया ! अलवर के महाराजा बन्ने सिंह ने आगरा के किले में घिरे हुए अंग्रेजों की स्त्रियों बच्चों की सहायता के लिए अपनी सेना व तोपखाना भेजा ! धौलपुर के महाराजा भगवत सिंह अंग्रेजों का वफादार था अक्टूबर 1857 में ग्वालियर और इंदौर से लगभग 5000 विद्रोही सैनिक धौलपुर राज्य में घुस गए विद्रोहियों ने 2 महीने तक राज्य पर अपना अधिकार बनाए रखा दिसंबर में पटियाला की सेना ने धौलपुर पहुंचकर विद्रोहियों को सफाया किया ! करौली के महाराव मदनपाल ने क्रांति के दौरान कोटा के महाराव को विद्रोहियों के चुंगल से मुक्त कराने के लिए अपनी सेना भेजकर ब्रिटिश सरकार की खैरनवाजी का परिचय दिया इस के उपलक्ष में करौली जैसी छोटी सी रियासत के राजा को अंग्रेजों ने 17 तोपों की सलामी व जी. सी .आई की उपाधि से विभूषित किया राजस्थान के अन्य राज्य जैसलमेर, सिरोही, बूंदी, जयपुर शाहपुरा, डूंगरपुर के साथ सभी क्रांति में अंग्रेजों के वफादार रहे ! विद्रोह में राजाओं के सहयोग के बारे में लॉर्ड कैनिंग ने कहा कि राजाओं ने तूफान में तरंग का कार्य नहीं किया होता तो हमारी किश्ती बह जाती! जॉन लॉरेंस ने कहा कि यदि विद्रोहियों में एक भी योग्य नेता होता तो हम सदा के लिए हार जाते हैं अर्थात विद्रोह में एक भी योग्य नेता नहीं था जो सफलतापूर्वक संचालन कर सकता था क्रांतिकारियों में रणनीति व कूटनीति में दक्ष सेनानायकों का अभाव था क्रांतिकारियों के पास धन रसद व हथियारों की कमी थी क्रांति के प्रमुख केंद्र कुछ थे जैसे नसीराबाद, नीमच ,कोटा, एरिनपुरा, धोलपुर जोधपुर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस केंद्रों पर क्रांतिकारियों के मध्य समय अंतराल अधिकतम है इसमें आवश्यक समन्वय का भी अभाव था जो क्रांति को दबाने के लिए पर्याप्त था ! नसीराबाद के क्रांतिकारी सीधे दिल्ली चले गए यह दिल्ली में न जाकर अजमेर मुख्यालय जाते तो वहां स्थित शस्त्रागार को कब्जा कर लेते थे शायद क्रांति का स्वरूप कुछ और होता है प्रिचार्ड ने अपनी पुस्तक द मयूनिटी इन राजस्थान में विचार व्यक्त किया कि यदि अजमेर पर क्रांतिकारियों के अधिकार हो जाता तो राजस्थान के शासक उनके सहयोगी बन जाते अतः हम कह सकते हैं कि 1857 की क्रांति के असफल होने के बाद भी लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और अंग्रेज सरकार को भी अपनी रणनीति बदलने पर विवश होना पड़ा 1857 की क्रांति के फलस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन भारत पर से समाप्त हो गया और भारत पर नियंत्रण ब्रिटिश सम्राट का हो गया पंचायतीराज
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