गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय
अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार शासक थे जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण ही गुर्जर प्रतिहार कहलाये
प्राचीन भारतीय इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश का बड़ा महत्व है हर्ष की मृत्यु के पश्चात उतरी भारत की जो राजनीति एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी उसे पुनः स्थापित करने के लिए सफल प्रयत्न किया इनके प्रतापी शासको ने उत्तरी भारत के अधिकांश भाग को बहुत समय तक अपने अधीन रखा यही नहीं दीर्घकाल तक इन्होने सिंधु प्रदेश से आगे बढ़ती हुई मुस्लिम शक्ति को रोके रखा और उत्तर भारत में उसका विस्तार नहीं होने दिया इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहार शासको ने छठी सदी से लेकर 12वीं सदी तक आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया महान विजेता होने के साथ-साथ प्रतिहार नरेश साहित्य प्रेमी कलाप्रेमी धर्मालु शासक थे! परिणाम स्वरुप उनके शासन काल में भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी उन्नति हुई नीलकुंड, राधनपुर, देवली ग्राम, शिलालेख में प्रतिहारो को गुर्जर कहा गया है स्कंद पुराण में गुज्जर का उल्लेख किया गया है अरबी यात्रियों ने जुर्ज लिखा अल मसूदी गुर्जर प्रतिहार को अल गुर्जर कहा राजा को बोरा कह कर पुकार था जो संभवत है आदि वराह का शुद्ध उच्चारण है गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय राजा बना इनकी माता का नाम सुंदरी देवी था इसने 795 ई. से लेकर 833 ई तक शासन किया इन्होने 38 वर्षों के शासन में प्रतिहार राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को जीतकर अपनी राजधानी बनाया उनका दरबार भी नागावलोक का दरबार कहलाता था उसने संपूर्ण उत्तर भारत पर विजय प्राप्त की जिसमे उनके के सामंत गूहिलों व चहमानों ने पूरा पूरा साथ दिया राष्ट्रकूट नरेश का आक्रमण करना इसके शासनकाल में दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय नेतृत्व में उत्तर भारत पर आक्रमण किया और नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया अपने उत्तर भारत के अभियान में नेतृत्व में बंगाल के पाल नरेश धर्मपाल को भी पराजित किया तत्पश्चात वहां अपने राज्य वापिस चला गया कन्नौज से गोविन्द तृतीय के वापस चले जाने के पश्चात नागभट्ट द्वितीय ने अपनी शक्ति से कन्नौज पर आक्रमण किया कन्नौज नरेश चक्रायुद्ध को पराजित किया नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया नागभट्ट द्वितीय की विजय का वर्णन गवालियर अभिलेख में मिलता है नागभट्ट द्वितीय की जीत के परिणाम स्वरूप कन्नौज प्रतिहार राज्य की राजधानी बन गया पालों से युद्ध कन्नौज का राजा चक्रायुद्ध पाल नरेश धर्मपाल के संरक्षण में राज्य कर रहा था रास्ते में उनकी पराजय की सूचना पाते ही धर्मपाल ने नागभट्ट द्वितीय के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी परंतु युद्ध में धर्मपाल नागभट्ट द्वितीय से पराजित हुआ और बंगाल भाग गया चाकसू अभिलेख के अनुसार शंकरगंज ने गौड नरेश को हराया और समस्त विश्व को जीतकर अपने स्वामी को समर्पित कर दिया इस प्रकार नागभट्ट द्वितीय कन्नौज के आयुध वश बंगाल के पाॕलवश को पराजित करके उत्तरी भारत में अपनी धाक जमा ली बकुला अभिलेख मे उसे परमभटटारक महाराजाधिराज परमेश्वर कहा गया है ग्वालियर अभिलेख का कथन है कि जिस प्रकार पंतगे अग्नि में जलते हैं उसी प्रकार अन्य शासक नागभट्ट द्वितीय की ओर खीचे चले आए इसी अभिलेख का कथन है कि नागभट्ट द्वितीय ने निम्नलिखित देशों को अपने अधिकार में ले लिया उनमें से काठियावाड़ ,मालवा मध्य प्रदेश, किरात हिमालय प्रदेश का भाग, तरुष्क पश्चिम भारत में मुस्लिम राज्य थे! डॉक्टर त्रिपाठी ने यह निष्कर्ष निकाला कि नागभट्ट के साम्राज्य में कम से कम राजपूताने का कुछ भाग, उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग, मध्य भारत उत्तरी काठियावाड़ और कौशांबी और दक्षिणपुर्वी प्रदेश सम्मिलित है मुसलमानों की पराजय मुसलमानों की पराजय का साक्ष्य प्रबंध कोष नामक ग्रंथ में मिलता है इनके अनुसार चाहमान नरेश गोविंद राज ने सुल्तान बेग वारिस को हराया गोविंद राज नरेश नागभट्ट का सामन्त था बेग वारिस सिन्ध का मुसलमान गवर्नर था मुसलमानों के विरुद्ध नागभट्ट द्वितीय के संघर्ष का प्रमाण खुमान रासो नामक ग्रंथ में मिलता है इस प्रकार गुर्जर प्रतिहार शासको में नागभट्ट द्वितीय एक महान शासक था उन्होंने सर्वप्रथम कन्नौज को जीतकर अपनी राजधानी बनाया और संपूर्ण उतर भारत पर विजय प्राप्त की यहां यह तत्व उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि नागभट्ट द्वितीय मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र रामभद्र सिहासन पर बैठा उनके शासनकाल में प्रतिहारो की अवंन्ति हुई नागभट्ट द्वितीय ने 833ईस्वी मे गगा नदी मे कुदकर आत्महत्या कर ली नागभट्ट द्वितीय एक महान शासक था more:- https://politicalrajasthan.blogspot.com/2022/09/blog-post_9.html
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