राष्ट्रवाद का अर्थ प्रकृति व विशेषताएं Meaning and characteristics of nationalism
राष्ट्रवाद मध्य युग में पवित्र रोमन साम्राज्य ने राष्ट्रवाद की भावना को बाधित किया सामंतवाद भी राष्ट्रवाद के अनुकूल नहीं था पुनर्जागरण सुधारवादी आंदोलन ने अंग्रेजों को अपने राष्ट्र के बारे में चेैतन्य किया फ्रांस में फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रवाद की भावना जागृत की और उसके बाद राष्ट्रवाद को राजनीतिक शब्दावली ने गंभीरता से लिया जाने लगा 19वीं शताब्दी में जाॕन स्टुअर्ट मिल ने कहा कि स्वतंत्र सस्था और राष्ट्रवाद साथ साथ चल सकते हैं मैजिनी ने राष्ट्र को परिभाषित करते हुए कहा कि राष्ट्र से हमारा तात्पर्य इटली वासियों की पूर्णता से है जो अपने सामान्य भूतकाल से जुड़े हुए हैं और सम्मान कानूनों से शासित होते हैं उनके अनुसार राष्ट्र की एक रहस्यमई आत्मा होती है जो ईश्वर प्रदत होती है इसलिए राष्ट्र पूजनीय है राष्ट्रवाद के निर्माण में कई कारक रहे हैं जैसे- भौगोलिक एकता, समान ऐतिहासिक भूतकाल ,लोगों के समान हित, एक समान नृ जाति, समान भाषा ,समान धर्म समान राजनीतिक चेतना ,राष्ट्रवाद में प्रत्येक राष्ट्र आत्म निर्णय का अधिकार चाहता है स्वयं शासन करने का अधिकार चाहता है राष्ट्रवाद की अवधारणा आधुनिक अर्थ में फ्रांसीसी क्रांति के समय लोकप्रिय बनी हांन्स कोह्न ने सबसे पहले राष्ट्रवाद का विस्तृत अध्ययन किया उसके अनुसार राष्ट्रवादी मानसिक स्थिति है उसने अच्छे राष्ट्रवाद और बुरे राष्ट्रवाद में अंतर किया उनके अनुसार यह पश्चिम में और गैर पश्चिम राष्ट्रवाद में अंतर है जॉन प्लेमनेस्टज ने इसी प्रकार अपनी पुस्तक टू टाइप्स ऑफ नेशनलिज्म में सौम्य एवं नागरिक पश्चिम राष्ट्रवाद तथा दमनकारी और गैरउदारवादी गैर पश्चिम राष्ट्रवाद में अंतर किया है! राष्ट्रवाद की एक अन्य महत्वपूर्ण विचार अर्नेस्ट गैलनर ने कहा कि आधुनिक समाज में राष्ट्रवाद एक समाजशास्त्रीय आवश्यकता है मध्य युग में शासक को इस बात की आवश्यकता नहीं होनी थी कि वह शासित पर सांस्कृतिक सदृस्यता थोपे! परंतु आधुनिक समय कार्य तकनीकी होते जा रहे हैं और उनको समझने के लिए शिक्षा या कौशल की आवश्यकता होती है एक आधुनिक औद्योगिक समाज में सांस्कृतिक स्तर पर सदृशता की आवश्यकता होती है जिससे वैज्ञानिक प्रगति हो सके! इस कार्य के लिए राष्ट्रवाद की आवश्यकता होती है बेनेडिक्ट एंडरसन ने कहा कि 18वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद ने धर्म को राज्य के लिए एकता के सूत्र में प्रतिस्थापित कर दिया लोगों को एक काल्पनिक समुदाय की आवश्यकता होती है पहले यह धर्म था बाद में यह राष्ट्रवाद बन गया कल्पनिकता का अर्थ है एक समुदाय है जिसमें सबसे आमने सामने नहीं मिल सकते! राष्ट्रवाद तब तक बना रहेगा जब तक हमारे पास इसका कोई बेहतर काल्पनिक विकल्प नहीं आ जाता जो सबको एक समुदाय की भावना में जोड़ें सके! राष्ट्रवाद के उदय व बने रहने ने इतिहास और प्रगति के कई सार्वभौमिक आधुनिक सिद्धांतों सिद्व किया है मार्क्सवाद इतिहासकार एरिक हाॕब्सबोम भी यह मानता है कि मार्क्सवादी आंदोलन और राज्य भी केवल ऊपर से नहीं अपितु वास्तव में राष्ट्रवादी बनते जा रहे हैं और ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा जो इस प्रवृत्ति के भविष्य में रुकने की तरफ संकेत करें ! राष्ट्रवाद सर्वव्यापी है लेकिन इसे परिभाषित करना कठिन है बेनेडिक्ट एण्डरसन की परिभाषा वर्तमान समय में सबसे लोकप्रिय परिभाषा है इसके अनुसार एक मानव शास्त्रीय अर्थ में राष्ट्र की परिभाषा यह है कि यह एक काल्पनिक राजनीतिक समुदाय है अपनी कल्पना से यह आंतरिक रूप से सीमित एवं संप्रभु है यह एक कल्पना है क्योंकि इनके सदस्य कभी भी अपने साथी सदस्यों को नहीं जान सकते न मिल सकते हैं न उनके बारे में कुछ सुन सकते हैं लेकिन फिर भी हर एक के मस्तिष्क में समुदाय की भावना व प्रतिरूप होता है एडरसन के अनुसार राष्ट्रवाद की एक काल्पनिक समुदाय के रूप में परिभाषित करने की तीन विशेषताएं होती हैं सीमित, संप्रभु एवं एक समुदाय ! यह सीमित है क्योंकि इनकी एक सीमा है बड़े से बड़ा समुदाय की भी सीमा होती है और उनके आगे दूसरा राष्ट्र होता है क्योंकि विश्व में केवल एक ही राष्ट्र नहीं हो सकता राष्ट्रवाद का उदय ऐसे समय में हुआ जब दैव्य शासन का युग समाप्त हो गया और राज्य सम्प्रभू बन चुके थे राजा केवल राज्य का प्रमुख बन गया ऐसे समय में राष्ट्रवाद के आने पर राष्ट्र संप्रभु बन जाता है यह एक समुदाय के रूप में भी होता है क्योंकि कई प्रकार की असमानताएं के होते हुए भी राष्ट्रवाद समानता के सिद्धांत पर पनपता है दो शताब्दियों से अधिक समय से स्थापित एवं विकसित राष्ट्रवाद इसलिए अस्तित्व में है क्योंकि लाखों लोगों ने इस कल्पना के लिए अपने प्राण न्योछावर किए हैं और कुछ लोगों ने उनके लिए हत्याएं की हैं राष्ट्रवाद को अवधारणा के स्तर पर अन्य राजनीतिक अवधारणाओं जैसे स्वतंत्रता , अधिकार , संप्रभुता इत्यादि से कम महत्व व मान्यता मिली है क्योंकि इसको भी विश्लेषित करने के लिए हाॕब्स और रूसौ जैसे विचारक नहीं मिले है! दार्शनिक रूप से परिष्कृत व्याख्यान के अभाव के कारण राष्ट्रवाद की अवधारणा का उचित प्रयोग राजनीतिक विज्ञान में नहीं हो पा रहा है जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ यह दावा करता है कि वह विश्व के राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वास्तव में वह राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है नव उदारवाद के उद्देश्य राष्ट्रवाद राष्ट्रभक्ति या अन्धराष्ट्रीयता में परिणित हो गया है सोवियत यूनियन के विघटन और उससे बने नए राष्ट्रों के राष्ट्रीय निर्माण में अतिवादी राष्ट्रवाद पनप रहा है और सारे विश्व में फैल रहा है इससे राज्य के उदारवादी चरित्र को चुनौती मिल रही है राष्ट्रवाद पर एक महत्वपूर्ण विवाद भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण सामने आता है नागरिकता के भूभागीय सीमाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है और नागरिकता को भूभाग की सीमाओं से मुक्त कर वैश्विक स्तर पर परिभाषित करने की बात की जाती है और इसीलिए विश्व नागरिकता वाद की अवधारणा उदारवादी चिंतन में महत्वपूर्ण बनती जा रही है विश्व नागरिकता बाद के कई रूप हैं और उससे न्याय तथा संस्कृति के आधार पर विश्व नागरिकतावाद को दो भागों में विभाजित किया जाता है न्याय से संबंधित विश्व नागरिकतावाद:- न्याय के ऐसे किसी भी सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया जाता जो विशेष राष्ट्र या विशेष सुविधाएं को न्याय के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक मानता हो और इसीलिए यह समुदायवादी और राष्ट्रवादी अवधारणाओं की आलोचना करता है और न्याय के सफल क्रियाओं के लिए किसी सुसंगत सामाजिक समूह की आवश्यकता को नकारता है इस प्रकार यह अन्याय के क्रियान्वयन के लिए समाज के किसी विशिष्ट भाग को महत्वपूर्ण मानता है जैसे कि जॉन रॉल्स मूल संरचना को आवश्यक मानता है विश्व नागरिकतावादी न्याय के सिद्धांत को वैश्विक जनता पर क्रियान्वित करना चाहते हैं इसी प्रकार से इस सस्कृति से संबंधित विश्व नागरिकतावाद यह स्वीकार नहीं करता कि किसी व्यक्ति की अस्मिता उसके किसी सांस्कृतिक समूह के सदस्य होने पर ही नियत होती है उसके अनुसार किसी संस्कृति विषय से संबंधित होना और उसे निरंतर निभाए रखने को उस व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन माना जा सकता है संस्कृतिया गत्यात्मक होती है और वो न केवल समय के साथ परिवर्तित होती है अपितु वह अपने सदस्यों को यह स्वतंत्रता भी देते हैं कि वह समय के साथ अपनी सांस्कृतिक मूल्यों को संशोधित करें और इस प्रकार एक नई सांस्कृतिक संस्कृति को जन्म दे अगर कोई संस्कृति ऐसा नहीं करती तो वह कालातीत में लुप्त हो जाती है विश्व नागरिकता बाद का मूल मंत्र यह है कि प्रत्येक व्यक्ति पूरे विश्व का नागरिक है और उसका संबंध मार्था नुसबम के शब्दों में विश्वव्यापी मानवीय समुदाय से है यह दोनों प्रकार के विश्व नागरिकतावाद इस मूलभूत विचार को स्वीकार करते हैं और उनके दो स्वरूपों को प्रदर्शित करते हैं वैश्विक नागरिकता भूमंडलीकरण के सामाजिक पक्ष से संबंधित अवधारणा है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय अस्मिता को प्रमुख रूप सें चुनौती दी गई है वैश्विक नागरिकताकरण मुख्य रूप से राष्ट्रीय राज्यों में बढ़ते हुए संकट को प्रदर्शित करता है और यह संकट बहूत से कारणों से उत्पन्न हो रहे हैं जिसमें पर्यावरणीय कारण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आज पर्यावरण बचाने की वैश्विक चेतना पुरजोर तरीके से वैश्विक जनमत में परिणित हो गई है वैश्विक नागरिकता को मानवता के प्रति निष्ठा के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा नुसबोम (1996) के सटोईक वैश्विक नागरिकतावाद के अनुसार सार्वभौमिक मानवीय विवेक में निष्ठा सभी मानव समाज को एकता के सूत्र में बांधती है और उसने राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न गौण हो जाता है नुसबोम के अनुसार विश्व नागरिक कहां अपने प्रारंभिक निष्ठा मानवता के प्रति रखते हैं स्थानीय संबंध को जो कि वर्ग, प्रजाति ,जेन्डर, व्यवसाय या अन्य सामाजिक समूह से संबंधित हो उसे भी रख सकते हैं लेकिन इन द्वितिय स्तर के संबंधों में राष्ट्रवाद व राष्ट्र भक्ति सम्मिलित नहीं है क्योंकि उनके अनुसार राष्ट्रभक्ति व अन्धराष्ट्रभक्ति के मध्य बहुत अधिक दूरी नहीं है एंटोनी अपैया (1996) नुसबोम कि इस बात से सहमत नहीं है क्योंकि उनके अनुसार राष्ट्रवाद भावनाओं पर आधारित संबंध और तर्क व विवेक पर आधारित राष्ट्र के प्रति निष्ठा में भेद करते हैं और इसीलिए उनके सांस्कृतिक वैश्विक नागरिकतावाद में विचारधारा पर आधारित राष्ट्रवाद का कोई स्थान नहीं है ग्रामशी (1971)और अन्य वैश्विक नागरिकतावाद के विरोधी यह तर्क देते हैं कि हम एक अमूर्त मानवता कभी भी मूर्त राष्ट्र का स्थापन्न नहीं कर सकती ! प्रताप भानु मेहता(2000) दूसरी तरफ यह मानते हैं कि विश्व नागरिकता के मूल्य सार्वभौमिकता के नाम पर ऐतिहासिक रूप से संस्कृति विशेष पश्चिम संस्कृति के मूल्यों पर आधारित है तथा इस मूल्य निर्माण की प्रक्रिया में दूसरी संस्कृति के लोगों की सहभागिता दुष्कर है इस प्रकार विश्व नागरिकता की अवधारणा भी राजनीतिक अवधारणा की तरह विवादास्पद बन गई है इस प्रकार राष्ट्रवाद वर्तमान राजनीतिक अवधारणा में महत्वपुर्ण स्थान है!
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