जोधपुर रियासत: महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638ई. से1678ई.)
महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638ई. से1678ई.) जसवंत सिंह प्रथम का जन्म 26 दिसंबर 1626 ईस्वी में बुरहानपुर में हुआ 1638 ईस्वी में मुगल सम्राट शाहजहां ने जसवंत सिंह को खिलअत, जड़ाऊ ,जमधर, एवं टीका दिया उसे 4000 जात व 4000 मनसुख देकर मारवाड़ का शासक स्वीकार किया यह रस्म अदायगी आगरा में हुई आगरा से महाराजा जसवंत सिंह बादशाह के साथ दिल्ली और वहां से जमरूद गया इसी दौरान उनके मनसब में 1000 की वृद्वी कर 5000 जात 5000 सवार का मनसब प्रदान किया गया 30 मार्च 1640 को महाराजा जोधपुर पहुंचे जा अपनी गद्दी नशीनी का उत्सव मनाया 1648 इस्वी में जब शाह अब्बास ने कंधार घेर लिया तो महाराजा को मुगल सेना के साथ कंधार भेजा गया कंधार में महाराजा ने बड़ी वीरता का परिचय दिया इस अवसर पर बादशाह शाहजहां ने उनके मनसब की संख्या बढ़ाकर 6000 जात व 6000 सवार कर दी धरमत का युद्ध 1658 ईस्वी_ मुगल सम्राट शाहजहां ने के चारों पुत्र दारा शिकोह , शाहशुजा, औरंगजेब और मुराद के मध्य उत्तराधिकारी को लेकर 1658 व1659 ईस्वी_ में कई युद्ध लड़े गए इसमें से धरमत उज्जैन मध्य प्रदेश का युद्ध बड़ा प्रसिद्ध था ! जसवंत सिंह व अन्य अनेक राजपूत शासक शाही सेना की ओर से दारा शिकोह के पक्ष में लड़े तथा औरंगजेब के विपक्ष में लड़े लेकिन कासिंम खाॕन ने धोखा दिया जिससे शाही सेना की हार हुई कहा जाता है कि पराजित महाराजा जसवंत सिंह धरमत के युद्ध स्थल से लौटकर 4 दिन बाद 19 अप्रैल 1658 ईस्वी को जोधपुर पहुंचा! बर्नियर ,मनुची व खाफी खाँ के अनुसार महाराजा जोधपुर पहुंचे तो उदयपुरी रानी महारानी महामाया ने किले के द्वार बंद करवा कर कहलुआ भिजवा दिया कि राजपूत युद्ध से या तो विजय होकर लौटते हैं या वहां मर मिटते हैं महाराजा पराजय के बाद लौट नहीं सकते वह कोई अन्य व्यक्ति है यह कहकर वह सती होने को तैयारी करने लगी अंत में बताया जाता है कि रानी की मां ने उसे समझाया तब जाकर दरवाजा खोला इस कथा को श्यामलदास ने भी मान्यता प्रदान की है महारानी महामाया - यह जोधपुर नरेश जसवंत सिंह की पत्नी थी फ्रांस के मशहूर लेखक बर्नियर ने अपनी पुस्तक भारत यात्रा में महारानी महामाया का उल्लेख किया है कि एक बार जसवंत सिंह औरंगजेब की सेना से हारकर लौट आए तो उस वीरांगना ने किले के दरवाजे बंद करवा दिए उन्होंने कहा यह मेरा पति हो ही नहीं सकता पत्नी के व्यंग्य करने पर जसवंत सिंह पून: युद्ध क्षेत्र में चला गया जहां उन्होंने छत्रपति शिवाजी के साथ मिलकर मुगलों को भारत भूमि से निकाल देने की योजना बनाई किंतु इस योजना की भनक औरंगजेब को मिल गई और उसने इसे धूर्तत्तापूर्णक विफल कर दिया इधर महारानी भी मुगलों के विरुद्ध संगठन बनाने के प्रयास में लग गई देवराई/ दौराई का युद्ध मार्च 1659 ईस्वी- यह युद्ध अजमेर के निकट दोैराई नामक स्थान पर दारा शिकोह व औरंगजेब के मध्य लड़ा गया जिसमें औरंगजेब की विजय हुई बाद में औरंगजेब मुगल सम्राट बना आमेर के जयसिंह प्रथम के बीच बचाव से औरंगजेब व जसवंत सिंह के बीच मनमुटाव कम हो गया सम्राट औरंगजेब ने पुन: उनके किताब व मंनसब बहाल कर दिए 1659 ईस्वी में महाराजा जसवंत सिंह को गुजरात का सूबेदार बनाया गया महाराजा जसवंत सिंह को बाद में औरंगजेब ने शिवाजी के विरुद्ध युद्ध करने के लिए दक्षिण में भेजा जहां उन्होंने शिवाजी को मुगलों से संधि करने के लिए राजी किया तथा शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को मुअज्जम के पास लाए दोनों के मध्य शांति संधि करवाई 28 नवंबर 1678 को महाराजा का जमरूद( अफगानिस्तान) में देहांत हो गया महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के समय उनकी रानी गर्भवती थी परंतु जीवित उत्तराधिकारी के अभाव में औरंगजेब ने जोधपुर राज्य को मुगल साम्राज्य में मिला लिया जसवंत सिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा कि आज क्रुफ (धर्म् विरोध) का दरवाजा टूट गया है विद्यानुराग - महाराजा जसवंत सिंह विद्यानुरागी भी थे उन्होंने रीति और अलंकार का अनुपम ग्रंथ भाषाभूषण की रचना की इसके अलावा महाराजा ने अपरोक्ष सिद्धांत ,सार और प्रबोध चंद्रोदय नामक नाटक लिखे उनके दरबारी विद्वानों में सूरत मिश्रा, नरहरिदास, नवीन कवि बनारसी दास आदि थे जिन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की मुंहनोत नैंणसी महाराजा के दरबारी और चारण कवि थे जिन्होने नैंणसी री ख्यात तथा मारवाड़ रा परगना री विगत लिखी स्थापत्य कला - महाराजा ने अनेक तालाब व उद्यान बनवाए औरंगाबाद में जसवंतपुरा आबाद किया आगरे के निकट मुगल राजपूत शैली का कचहरी भवन बनाया रानी अतीरंग दे ने जान सागर तालाब बनवाया जिसे शेखावत जी का तालाब भी कहते हैं दूसरी रानी जसवंत दे ने राईकाबाग, कोट तथा कल्याण सागर तालाब बनवाया! तालाब के स्थान को रातानाडा कहते हैं रूपा धाय जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह की धाय माॕ थी उनके नाम पर एक बावड़ी मेड़ती दरवाजा के अंदर बनाई गई इस प्रकार जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह एक स्वाभिमान, स्वामी भक्ति शासक थे जिन्होंने मुगल साम्राज्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और शिवाजी व दक्षिण भारत की अन्य शक्तियों को औरंगजेब के विरुद्ध पनपने नहीं दिया
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