जयपुर रियासत:कछवाहा वशं महाराजा भारमल (बिहारीमल)
जयपुर महाराजा भारमल (बिहारीमल) 1547 ईस्वी से 1575 ईस्वी :- भारमल के पिता का नाम पृथ्वीराज कछवाहा है माता का नाम बालाबाई था भारमल 50 वर्ष की उम्र में आमेर का शासक बना ! भारमल के शासक बनते ही दो विकट समस्याएं आई 1.आसकरण से निपटना 2.मीणाओं की समस्याएं आसकरण :-आसकरण आमेर से नागौर के सलीमशाह सूर की शरण में गया उसके सरदार हाजी खाँ पठान को आमेर पर आक्रमण के लिए अपने साथ ले आया भारमल ने हाजी खाँ पठान को काफी धन देकर अपनी ओर मिला लिया! हाजी खाँ पठान खने नारनोैल के हुमायू के सरदार मजनू खाँ को नारनौल से निकालने के लिए आक्रमण कर दिया! आसकरण के बाद पूरणमल कछवाहा का लड़का सूजा आमेर सिहासन के दावेदार के रूप में उठ खड़ा हुआ! सूजा मेवात के सरदार सरफुद्दीन की शरण में चला गया भारमल ने आसकरण को नरवर मध्य प्रदेश की रियासत देकर उसको संतुष्ट कर दिया अकबर से मुलाकात :- अकबर पानीपत के दूसरे युद्ध की विजय के बाद दिल्ली लौट आया तो मजनू खाँ ने अकबर को भारमल की सेवाओं व सहयोग से अवगत कराया अकबर ने भारमल को दिल्ली बुलाया दिसंबर 1556 इस्वी में भारमल मजनू खाँ की मदद से अकबर से पहली बार दिल्ली में मिला उसी समय अकबर जिस हाथी पर सवार था वह बिगड़ गया भारमल ने अपने साथियों के साथ अपने बाहुबल से बिगड़े हुए हाथी को नियंत्रित कर अकबर को प्रसन्न कर लिया सुलह ए कुल की नीति:- अकबर ने राजपूतों की वफादारी व ताकत के बारे में सोच कर उनको अपने अधीन करने के लिए सुलह ए कुल की नीति अपनाई थी सुलहकुल के तहत या तो उनको दोस्त बनाकर अधीन कर लिया जाए या उनका दमन कर दिया जाए अफगान विद्रोह को दबाने के लिए भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी जनजातियों को हराने के लिए व भारत में मुगल साम्राज्य की नींव को मजबूत करने के लिए अकबर ने राजपूतों से सहयोग व मित्रता की अपेक्षा की! अकबर 15 जनवरी 1562 इस्वी में दिल्ली से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जियारत करने अजमेर रवाना हुआ रास्ते में ढूंढाड़ क्षेत्र में रात्रि विश्राम के लिए रुका भारमल सांगानेर में चंगताई खाँ की मदद से 20 जनवरी 1562 को मिला और अधीनता स्वीकार कर ली उनके साथ उनका पुत्र भगवंत दास व पौत्र मानसिंह था! अकबर ने अजमेर से वापस लौटते समय सांभर कस्बे में 6फरवरी 1562 इस्वी को भारमल ने अपनी पुत्री हरखाबाई/ शाही बाई का विवाह अकबर के कर दिया जहाँगीर इसी हरखाबाई का पुत्र है अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाला, मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाला राजपूताने का पहला शासक भारमल था यह राज परिवार कछवाहा है मुगलों के साथ समर्पण व सहयोग की नीति का पालन करने वाला प्रथम राज्य आमेर था बरबथ शिलालेख:- बयाना भरतपुर में मुगल राजपूत वैवाहिक संबंधों का उल्लेख मिलता है इस शिलालेख का निर्माण मरियम उज़्ज़मानी हरखाबाई ने करवाया था! 10 फरवरी 1562 ईस्वी को हरकाबाई की विदाई के समय भारमल ने अपने पुत्र भगवंत दास व पौत्र मानसिंह को अकबर की सेवा में भेजा था अकबर ने भारमल को 5000 का मनसब, अमीर उल उमरा, राजा की उपाधि दी !यह शाही परिवार के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को दिया गया सर्वोच्च मनसब था ! 1570 ईस्वी का नागौर दरबार:- अकबर ने भारमल के सहयोग से 1570 ईस्वी में नागौर दरबार आयोजित किया भारमल ने बहुत ही सी शादियां की थी जिसमें से राजपूत वशं की दो पत्नियां थी बदन कंवर व चंपावत कंवर ! भगवंत दास अकबर ने इन्हें बांके राजा की उपाधि दी 27 जनवरी 1574 ईस्वी को भारमल की मृत्यु हो गई इस प्रकार राजस्थान में मुगलो की अधीनता स्वीकार करने वाली प्रथम रियासत आमेर थी!
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