भरतपुर जाट राजा चूड़ामण जाट (1695 से 1721ई.)
जाट राजा चूड़ामण जाट (1695 से 1721ई.) जाट मूलत एक कृषक व मेहनतकस जाति है जो कृषी में कुशलता और अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध रही है 18 वीं शताब्दी में जाटों द्वारा राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के पूर्व सिंधु नदी के तट से पंजाब ,उत्तरी राजस्थान और यमुना के उत्तर की ओर चंबल के पार ग्वालियर तक एक विशाल क्षेत्र में जाटों का निवास था. ! राजस्थान के पूर्वी भाग भरतपुर धौलपुर डीग आदि क्षेत्रों में जाट राजवंश का शासन था यहाँ जाट शक्ती का उत्थान औरंगजेब के शासनकाल में हुआ और औरंगजेब की नीतियों व कुछ आर्थिक कारणों को लेकर औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह आगरा, दिल्ली व मथुरा क्षेत्र में बसे जाटों ने किया ! माना जाता है कि भरतपुर का नाम भगवान श्री राम के भाई भरत के नाम पर रखा गया राम के भाई लक्ष्मण भरतपुर के जाट राजवंश के कुलदेवता है. जाट शासक चूड़ामण:- भरतपुर में स्वतंत्र जाट राजवंश का संस्थापक चूड़ामण को माना जाता है चूड़ामणि योग्य नेता और कुशल राजनीतिज्ञ था उसने अपनी अभूतपूर्व संगठन क्षमता, विलक्षण बुद्धि एवं रण चातुर्थे से अब तक चले आ रहे जाट आंदोलन में संजीवनी का संचार किया. चूड़ामन मथुरा आगरा के मुगल इलाकों में लूट मार कर मुगल शक्ति को झकझोर दिया चुरामन ने रसूलपुर को अपना कार्य क्षेत्र चुना !उसने राजपूतों से राहिरी तथा राजगढ़ के कस्बे छीन लिए !उसके बाद सोखेर, उज्जैन, सोगर, कासोट में अपने थाने कायम कर दिए! चूड़ामन की इन गतिविधियों से परेशान होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने आमेर शासक बिशनसिंह को चूड़ामन का दमन करने भेजा बिशन सिंह ने जाटों के एक शक्तिशाली सरदार ऊदा को अपने पक्ष में कर लिया व चूड़ामण की कुछ गाढियों पर भी आधिपत्य कर लिया पर उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली बिशनसिंह के चले जाने के बाद चूड़ामण पुन: खुद को शक्तिशाली बना लिया! 1704 ईस्वी में एक बार फिर उसने सिनसिनी ग्राम पर अधिकार कर लिया यद्यपि सिनसिनी पर उनका अधिक दिनों तक अधिकार नहीं रहा! 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात हुए उत्तराधिकारी के युद्ध में आजम की सेना की पराजीत सेना को चूड़ामण ने लूट लिया.! इसके बाद वह मुगल बादशाह बहादुर शाह की सेवा में उपस्थित हो गया बहादुर शाह ने भी खुश होकर उसे 1500 जात और 500 सवार की मंनसब प्रदान कर सम्मानित किया उसे दिल्ली आगरा शाही मार्ग पर नियंत्रण रखने का दायित्व भी सौंपा !चूड़ामण ने मुगल सूबेदार को 1708 ईस्वी के सांभर के युद्ध में राजपूतों को पराजित करने में मदद भी की! मुगल बादशाह जहाँदार शाह के समय चूड़ामण ने पुन: शाही राजमार्गों को लूटना प्रारंभ कर दिया ! फर्रूखसियर के समय जाट व मुगलों के संबंध बिगड़ गए फर्रूखसियर ने पहले आगरा के सूबेदार छबीला राम व बाद में खान-ए- दौरा को जाटों के दमन का काम सौंपा खान-ए- दौरा ने चूड़ामण को मुगल दरबार में उपस्थित होने के लिए राजी कर लिया 27 सितंबर 1713 ईस्वी को चूड़ामण मुगल दरबार में उपस्थित हुआ फर्रूखसियर ने उसे माफी देकर राव की उपाधि दी तथा बारामुला से सिकंदरा तक के शाही मार्ग की राहदारी की वसूली का अधिकार दे दिया! मगर कुछ समय बाद ही इसने लूटमार का रास्ता अख्तियार कर लिया चूड़ामण ने थून के किले का सुदृढ़ीकरण किया और अपने राज्य का विस्तार करते हुए! अलवर हिंडौन और बयाना क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर अपने थाने व गढि़या स्थापित कर ली ! मुगल बादशाह मोहम्मदशाह ने सवाई जय सिंह को भरतपुर क्षेत्र में चूड़ामण जाट का दमन करने भेजा 1729 ईस्वी में जयसिंह ने चूड़ामण को परास्त कर थून का किला छीन लिया! 1721 ईस्वी में चूड़ामण ने विष पीकर आत्महत्या कर ली कानूनगो के शब्दों में वह असफल देशभक्त और सफल विद्रोही था वह राजोचित सम्मान व पदवी से विभूषित नहीं हो पाया था मराठों की चालाकी व राजनीतिक दूरदर्शिता का उनके चरित्र में अनुपम समिश्रण देखा जा सकता है! चुरामन की मृत्यु के बाद उनके पुत्र मोहकम सिंह व भतीजे बदन सिंह के बीच उत्तराधिकारी संघर्ष छिड़ गया बदन सिंह नाराज होकर सवाई जय सिंह जयपुर के पास चला गया इसकी सहायता से वह शासक बना.
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