मार्क्सवादी वाद:विश्लेषणात्मक मार्क्सवाद(analytical marxism) जी ए कोहेन एवं जॉन एल्स्टर
विश्लेषी मार्क्सवाद(analytical marxism) 1970 के दशक में मार्क्सवाद के एकेडमिक पक्ष को मजबूत करने के लिए एक नए प्रकार के वाद का जन्म हुआ जिसे विश्लेषी मार्क्सवाद कहा जाता है यह इस विश्वास से उत्पन्न हुआ कि मार्क्सवाद एक जीवित बौद्विक परंपरा है और जिसके अंतर्गत वैश्विक जीवन को समझने और व्यथित करने का आधार मजबूत है और उसे नए संन्दर्भ मैं नए प्रकार के दृष्टिकोण के साथ प्रयुक्त किया जाना चाहिए जिससे कि समाज का विश्लेषण सही प्रकार से हो सके ! 1979 जी ए कोहेन एवं जॉन एल्स्टर व कई अन्य विचारको ने लंदन में एक बैठक आयोजित की जिसमें समसामयिक मार्क्सवाद के सैद्धांतिक पक्ष की चर्चा की यह बैठक प्रतिवर्ष होने लगी और धीरे-धीरे इसमें एक मूल समूह उत्पन्न हुआ जो इस मीटिंग के प्रति प्रतिबद्ध था! जिसे मार्क्सवाद के सिद्धांत पक्षों के आधार पर बनने वाले निष्कर्षों को विश्लेषी मार्क्सवाद का नाम दिया! सबसे पहले 1986 में इस समूह द्वारा प्रकाशित लेखन एनेलेक्टिकल मार्किसज्म एडिटेड बाय जॉन रोमर कैंब्रिज (1986) सामने आया इस अवधारणा का सबसे पहले जॉन एल्स्टर ने 1980 के लगभग प्रयोग करना आरंभ कर दिया इस समूह मे जी ए कोहेन एवं जॉन एल्स्टर,जॉन रोमर ,रॉबर्ट ब्रेन फिलीपी वान प्राजीस, रॉबर्ट बेडरविन, इत्यादि शामिल थे विश्लेषण मार्क्सवाद की प्रतिबद्धता मुख्य चार प्रस्थापना से है जिससे इनको वैचारिक विश्व में विशिष्टता मिलती है 1.पारस्परिक वैज्ञानिक मानदंड के प्रति प्रतिबद्धता! जो शोध करने के सिद्धांत और व्यवहार में प्रयुक्त होती है! 2.व्यवस्थित प्रत्ययीकरण के महत्व को आवश्यक मानना! विशेष रूप से उन अवधारणाओं को जो मार्क्सवादी सिद्धांत के मूल को प्रदर्शित करते हैं इसमें अवधारणाओं की परिभाषाओं की स्पष्टता और उन्हे प्रयुक्त करने के लिए आवश्यक अंतर प्रत्यय संबंधों की तार्किकता आवश्यक है ! 3.प्रत्ययो के आपसी संबंधों को निरूपित करने के लिए उठाए जाने वाले प्रत्येक चरण की स्पष्टता और विशेष विवरण के प्रति प्रतिबद्धता! 4.आदर्शात्मक एवं विवेचनात्मक सिद्धांतों के अंतर्गत व्यक्ति के उद्देश्य पूर्वक कार्य को महत्व देना! यह नहीं कहा जा सकता कि यह सब बातें विश्लेषी मार्क्सवाद के जन्म से पूर्व मार्क्सवाद में मौजूद नहीं थी लेकिन इनको महत्व पहली बार विश्लेषी मार्क्सवाद में मिला है यह मानता है कि मार्क्सवाद एक उचित सामाजिक विज्ञान का निर्माण करता है क्योंकि यह विज्ञान की सभी शर्तों को पूरा करता है! यह विज्ञान को परिभाषित करते हुए एक वास्तविक दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं! और जिसकी अनुसार विज्ञान किसी भी प्रघंटना में अंतर्निहित यंत्र विन्यास को इंगित करता है जो उस प्रघंटना का अनुभव इंद्रियों को कराता है! और ऐसा करने के लिए जिस पद्वति का प्रयोग किया जाता है वह पूर्णतया वस्तुनिष्ठ आनुभाविक वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए जी ए कोहेन की पुस्तक "कार्ल मार्क्स: ए थ्योरी ऑफ हिस्ट्री एंड डिफेंस"( 1978) के प्रकाशन के बाद ही विश्लेषी मार्क्सवाद का आरम्भ माना जाता है उसने ऐतिहासिक भौतिकवाद की पुनः संरचना की और माना कि वह समाज में विश्लेषण का सर्वाधिक उपयुक्त दर्शन में और साधन है !उनका यह तर्क था कि यह पूर्णतया वैज्ञानिक है !और इनमें प्रत्येक प्रत्यय की वैज्ञानिकता प्रमाणित की जा सकती है! अगले तीन दशकों तक विश्लेषी मार्क्सवाद के इस मूलभूत धारणा को स्वीकार करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में इनका सफलतापूर्वक प्रयोग किया आर्थिक सिद्धांत में रोमर एवं वान प्राजीस, दर्शन में एल्स्टर,जी ए कोहेन और इतिहास में ब्रेनर, अंतरराष्ट्रीय संबंध के सिद्धांत मे रोमर, वर्गों के सिद्धांत में राइट व वान प्राजीस इत्यादि विचारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया ! विश्लेषी मार्क्सवाद ने मार्क्सवाद को समसामयिकी बनाने के साथ-साथ ऐसे सार्वभूत विषय का विश्लेषण किया है और नई प्रकार की प्रणाली विज्ञान का उपयोग किया कि वह मार्क्सवादी और गैर मार्क्सवादी दोनों क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय सिद्व हुआ!
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