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अरस्तु के राजनीतिक विचार: आदर्श राज्य क्रांति शिक्षा दास प्रथा पर विचार


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अरस्तू राजनीतिक विचारक, शिक्षाविद  थे। उनका जन्म 384 ईसा पूर्व में यूनान के स्टेजिरा नामक स्थान पर हुआ था। अरस्तु को यूनान के महान दार्शनिकों में से एक माना जाता है और उनका योगदान विभिन्न क्षेत्रों में हुआ है



अरस्तु यूनान में प्लेटो से शिक्षा ग्रहण  करने के लिए आया था प्लेटो की मृत्यु के बाद वह अकादमी  का अध्यक्ष बनना चाहता था लेकिन यूनानी नहीं होने के कारण अध्यक्ष न बन सका इसके बाद वह है एशिया माइनर चला गया ईरान के राजा  हर्नियस ने अरस्तु से प्रभावित होकर अपनी दत्तक पुत्री का विवाह किया और यहीं पर अरस्तु ने 158 देशों के संविधान का तुलनात्मक अध्ययन किया
अरस्तु आगमन पद्धति अपनाता है अर्थात अध्ययन की छोटी इकाई पर बल देता है


अरस्तु का राजनीतिक विचार बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने लोकतंत्र की संरचना तथा संचालन पर अपने विचार रखे हैं। 

अरस्तु एक उत्कृष्ट शिक्षाविद थे और उनका शिक्षा विचार भी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने शिक्षा को एक प्रक्रिया माना था


अरस्तु एक प्रख्यात राजनीतिक विचारक थे, जो एक अत्यंत विस्तृत जीवन और कार्यकाल के साथ नेतृत्व की दुनिया में काम किया था। अरस्तु का विचारधारा काफी व्यापक था और इसे उनकी लेखनी की गहराई में उल्लेखित किया जा सकता है। यहाँ हम उनके राजनीतिक विचारों को समझने के लिए एक छोटे से अंश को ध्यान में रखेंगे।

अरस्तु का राजनीतिक विचार था कि एक शक्तिशाली राष्ट्र के लिए राजनीति का मूल उद्देश्य जनता की सेवा करना होता है। वह इस मान्यता का पालन करते थे कि एक अच्छे राजनीतिक नेता को अपने नेतृत्व में अपने देश और जनता के हितों के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने जनता को समझाया कि राजनीतिक नेताओं को उनके सेवा करना होता है और उन्हें संगठित करना चाहिए ताकि उनकी मांगों का जवाब देने में आसानी हो।

अरस्तु का राजनीतिक विचार था कि एक शक्तिशाली राष्ट्र के लिए सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लाना जरूरी है

अरस्तु द्वारा लिखी गई कुछ पुस्तकें निम्नलिखित हैं

पॉलिटिक्स

निचोमैन एथिक्स

आन मेमोरी

हिस्ट्री ऑफ एनिमल्स

मेट्रोलॉजी

मेटा फिजिक्स

ओन स्लिप

एंन्थेस का सविधान

युदेमियन एथिक्स

The soal

Rehotic

अरस्तु की पुस्तक पॉलिटिक्स को बार्कर आठ भागों में बाटता है
पॉलिटिक्स के 8 भाग-


1-दास प्रथा व राज्य की प्रकृति संबंधी विचार

2-प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना

3-नागरिकता संबंधी विचार

4-सविधान का वर्गीकरण

5-क्रांति के कारण  

6-लोकतंत्र व धनिक तंत्र में विचार

7-अरस्तु के आदर्श राज्य संबंधी विचार  

8-शिक्षा संबंधी विचार







उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है "राजनीतिक विज्ञान" (Politics), जो उनकी सबसे प्रसिद्ध और अधिकांश उल्लेखनीय पुस्तक है। इस पुस्तक में, अरस्तु ने राजनीतिक विचार के बारे में विस्तृत विचारों को व्यक्त किया है। इसके अलावा, उनकी दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है "नैतिकता निकोमाकी" (Nicomachean Ethics), जो नैतिकता और धर्म के विषय में उनकी विस्तृत विचारधारा को प्रस्तुत करती है।

अरस्तु की दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक "आध्यात्मिकता के नौ दरवाजे" (The Nine Doors of Spiritual Change) है, जो धर्म, आध्यात्मिकता और जीवन के अन्य पहलुओं के विषय में है। उनकी दूसरी पुस्तकों में "मेटा फिजिका" (Metaphysics) और "रचनाशास्त्र" (Poetics) शामिल हैं।

अरस्तु की पुस्तकें उनके समय से लेकर आज तक महत्वपूर्ण है 

अरस्तु ने लिसियम नामक पाठशाला बनवाई 



अरस्तु जैसे राजनीतिक विचारक की दृष्टि से, विभिन्न देशों के साथ संबंध बहुत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि देशों के बीच संबंध न केवल अर्थव्यवस्था, सामाजिक और सांस्कृतिक तंत्रों को विकसित करने में मदद करते हैं बल्कि राजनीतिक संबंध भी विशेष महत्व रखते हैं।






वह अन्य देशों से संबंधों को बढ़ावा देने की भी बात करते हैं। उनकी राजनीतिक दृष्टि से, अन्य देशों से संबंध बनाने का मुख्य उद्देश्य अपने देश के आर्थिक विकास और उन्नयन के लिए नए विकल्पों की खोज करना होता है। इसके अलावा, अन्य देशों के साथ संबंध बनाने से राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अभिवृद्धि को भी प्राप्त करने में मदद मिलती है




महान राजनीतिक विचारक अरस्तु के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से हम सविधानों के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। अरस्तु ने विभिन्न देशों के सविधानों के तुलनात्मक अध्ययन करके उनके अनुकूलता और असंगतता के कारणों को समझने की कोशिश की। यह उन्हें देखने में मदद करता है कि किस प्रकार से विभिन्न सविधानों में विभिन्नताएं होती हैं और क्या समानताएं होती हैं। अरस्तु ने 158देशो के संविधानो का अध्ययन किया।





अरस्तु ने विभिन्न देशों के सविधानों के तुलनात्मक अध्ययन करके देखा कि अधिकांश सविधानों में कुछ महत्वपूर्ण संरचनात्मक तत्व समान होते हैं।




मैं अरस्तु को एक राजनीतिक विचारक के रूप में जानता हूँ जो भारतीय समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। उनकी विचारधारा काफी व्यापक थी जो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों पर आधारित थी।






अरस्तु का समाज विज्ञान और आर्थिक विचार बहुत सुव्यवस्थित था। उन्होंने समाज में संघर्ष के साधनों और समाज के संगठन के लिए विभिन्न विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने समाज में संघर्ष के साधनों में सबसे अहम माने गए समाज को संगठित करने को बताया। उन्होंने कहा कि समाज को एकता में जीतना चाहिए, जो समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष के बजाए समझौते और सहयोग के माध्यम से हो सकता है।




अरस्तु के दास प्रथा पर विचार-

अरस्तु के दास प्रथा एक ऐसी प्रथा है जो कई वर्षों से हमारी समाज में अपनी जगह बनाई हुई है। इस प्रथा में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के दास बन जाता है और उसके शासनाधीनता में रहता है। इस प्रथा का मूल उद्देश्य असंतुलित समाज के संतुलन को बनाए रखना था। अरस्तु के अनुसार युनानी लोगों को दास नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वे बुद्धिमान हैं।



जो मस्तिष्क से शून्य है वह दास है


अरस्तु दास प्रथा के समर्थन में तर्क देता है दास परिवार की सजीव संपत्ति है दास प्रथा प्राकृतिक है क्योंकि प्रकृति ने मनुष्य को दो प्रकार से बनाया है



दास प्रथा दास के लिए भी उपयोगी है क्योंकि जब वह बुद्धिमान के पास रहेगा तो अपनी बुद्धि का संचार होगा दास प्रथा से समाज का विकास होगा



दास प्रथा स्वामी के लिए उपयोगी है क्योंकि इससे स्वामी को अवकाश प्राप्त होगा


यह  विवेक के सिद्धांत पर अनुकूल है क्योंकि अधिक महत्वपूर्ण वस्तु का कम महत्वपूर्ण वस्तु पर नियंत्रण है


दास प्रथा से सैनिकों में वीरता की भावना आती है




बार्कर- दास प्रथा पर अरस्तु के विचार अलोकतांत्रिक अमानवीय और पूर्णता त्याग करने योग्य हैं।





अरस्तु के नागरिकता संबंधी विचार



अरस्तु ने पॉलिटिक्स के तीसरे भाग में नागरिकता संबंधी विचार प्रस्तुत किए हैं


1-सर्वप्रथम अरस्तु कहता है कि जन्म निवास अभियोग व्यापार नागरिकता के आधार नहीं हो सकते।



2-अरस्तु के अनुसार नागरिकता का आधार विधायी व न्यायिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी होना चाहिए


3 अरस्तु कहता है कि विधायी और न्यायिक कार्यों में भागीदारी वही कर सकता है जिसके पास अवकाश है


4-अरस्तु के अनुसार अवकाश उसी व्यक्ति को मिल सकता है जिसके पास पर्याप्त संपत्ति व दास है



5-इस प्रकार अरस्तू नागरिकता का आधार दास व संपत्ति को मानता है


अरस्तु के अनुसार वृद्व, बच्चे ,महिला और सुदखोर को नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।




अरस्तु के सविधान  संबंधी विचार




अरस्तु ने पॉलिटिक्स के चौथे भाग में संविधानों का वर्गीकरण किया है
अरस्तु के अनुसार सविधान राज्य और उनके अंगों के संगठन है जिसमें उनके शक्ति संबंधों को परिभाषित किया जाता है
अरस्तु तीन शासन की तीन श्रेष्ठ प्रणाली राजतंत्र ,कुलीन तंत्र व संवैधानिक तंत्र को बताता है जबकि निकृष्ट 3 शासन प्रणालियां निरंकुश तंत्र ,वर्ग तंत्र व लोकतंत्र को बताता है
श्रेष्ठतम शासन प्रणाली से संवैधानिक तंत्र को बताता है जिसे पोलिटीpolity भी कहता है



अरस्तु के राज्य संबंधी विचार


राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक विकास का सिद्धांत
अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक राजनीतिक प्राणी है राज्य मनुष्य की इसी प्रकृति का परिणाम है मनुष्य ने सर्वप्रथम अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए परिवार नामक संस्थान की स्थापना की तत्पश्चात गांव की स्थापना हुई इसके बाद कई गांवों को मिलाकर नगर राज्य की स्थापना हुई


राज्य के कार्य

1-बाहरी आक्रमणों से रक्षा करना

2-मनुष्य की भौतिक बौद्धिक  आवश्यकताओं की पूर्ति करना

3-सद्गुण पैदा करना राज्य की उत्पत्ति सुरक्षा के लिए हुई है सद्गुण के लिए वह बना हुआ है


राज्य व्यक्ति से पुर्व का संगठन-


अरस्तु का कहना है कि ऐतिहासिक दृष्टि से व्यक्ति पहले है परंतु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से राज्य पहले क्योंकि व्यक्ति पहले बड़ी वस्तु के बारे में फिर छोटी वस्तु के बारे में सोचता है इसी संदर्भ में अरस्तु का प्रसिद्ध कथन है पहले पूर्ण वृत की संकल्पना के बाद में अर्धवृत्त की संकल्पना की जाती है


अरस्तु के आदर्श राज्य संबंधी विचार-



अरस्तु पॉलिटिक्स के सातवें भाग में आदर्श राज्य संबंधी विचार लेते हैं इससे संवैधानिक तंत्र(polity) का नाम दिया गया

आदर्श राज्य की विशेषताएं


1-विधि का शासन

अरस्तु का कहना कि व्यक्ति भाई भतीजावाद से प्रभावित हो सकता है परंतु विधियां सबके साथ समान व्यवहार करती है व्यक्ति निरंकुश हो सकता है विधि नहीं है विधि का शासन श्रेष्ठ है


2-मध्यमवर्ग का शासन-

अरस्तु का कहना है कि उच्च वर्ग में विलासिता की प्रवृत्ति पाई जाती है निम्न वर्ग में तुच्छ अपराधों की प्रवृत्ति पाई जाती है और दोनों कभी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते जबकि मध्यम वर्ग नैतिकता के आधार पर जीवन व्यतीत करता है और इस पर उच्च व निम्न वर्ग दोनों विश्वास करते हैं इसलिए शासन की बागडोर मध्यमवर्ग को सौपनी  चाहिए।


3-स्वर्ण मध्यम शासन प्रणाली

अरस्तु का कहना है कि लोकतंत्र में संख्या तथा कुलीन तंत्र की शालीनता का समावेश होता है तो यह श्रेष्ठ मिश्रित शासन प्रणाली है


4-आदर्श राज्य के वर्ग

अरस्तु आदर्श राज्य में निम्न 6 वर्गों की बात करता है 

कृषक

 शिल्पी 

उत्पादक वर्ग 

योद्धा 

पादरी 

दार्शनिक वर्ग


अरस्तु के अनुसार राज्य की जनसंख्या मध्यम होनी चाहिए जनसंख्या ने तो 10 और न ही एक लाख हो।

21 वर्ष की मध्यम शिक्षा पद्धति का अरस्तू समर्थन करता है


अरस्तु निजी संपत्ति का समर्थन करता है अरस्तु का कथन है कि भू संपत्ति व्यक्तिगत हो सकती है लेकिन उपभोग सामूहिक होना चाहिए



अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार

अरस्तु पॉलिटिक्स के सातवें भाग  में क्रांति के रोकने के उपाय 
व 5 भाग में क्रांति के कारण बताता है

अरस्तु के अनुसार संविधान व सरकार में परिवर्तन ही क्रांति है।


अरस्तु क्रांति को अच्छा नहीं मानता इसलिए क्रांति को रोकने पर अधिक बल देता है इसीलिए अरस्तु को  रुढ़ीवादि यथा स्थितिवादी विचारक भी कहते हैं

अरस्तु के अनुसार क्रांति के निम्न कारण हो सकते हैं

सामान्य कारण

असमानता

अन्याय


विशेष कारण

लोभ पर आधारित शासन

घृणास्पद शासन

संविधान की अवहेलना

विदेशियों की उच्च पदों पर नियुक्ति

छोटी-छोटी घटनाओं की अवहेलना



विशेष व्यवस्था में विशेष कारण

1-राजतंत्र-विशिष्ट व्यक्ति का अपमान राजतंत्र में क्लेश या विवाद

2-निरंकुश तंत्र-घृणास्पद शासन

3-कुलीन तंत्र-शक्तिशाली वर्ग की संपत्ति छिन्ना

4-वर्ग तंत्र-गरीबों का शोषण

5-संविधानिक तंत्र-संविधान की अवहेलना 

6-लोकतंत्र-वाग्वीर (भाषण कला)



क्रांति को रोकने का उपाय


सामान्य कारण में क्रांति को रोकने में  समानता व न्याय की स्थापना करनी चाहिए
लोभ पर आधारित शासन न हो
विदेशियों के उच्च पद पर नियुक्ति न हो
छोटी-छोटी घटनाओं की अवहेलना ना हो
घृणास्पद शासन नहीं हो


7 मार्च 322 ईसा पूर्व  अरस्तु इस दुनिया को छोड़ कर विदा हो गए।

डनिग- प्लेटो आदर्शवादी है और अरस्तु तथ्यवादी है

मैक्सी अरस्तु को प्रथम राजनीतिक विचारक मानता है


एबन्स्टीन- अरस्तु प्लेटों में सुधार करने वाला है

मैक्सी -अरस्तु सबसे बड़ा प्लेटोवादी है।



इस प्रकार राजनीतिक शास्त्र के इतिहास में अरस्तु का राजनीतिक विचारक के रूप में एक अहम रोल है राजनीति शास्त्र के अध्ययन करने वाले सभी शिक्षार्थी अरस्तु का अध्ययन किए बिना आगे नहीं बढ़ सकते।






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