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कम्फ्यूशियस का जीवन परिचय पुस्तकें राजनीतिक विचार


कम्फ्यूशियस(551-479ई.पू.)


मुझे महात्मा या महादानी कहलाने की आकांक्षा नहीं है। मैं तो अध्ययन से कभी संतुष्ट न होने वाला एक विद्यार्थी तथा अध्यापन से कभी न थकने वाला शिक्षक हूँ।"

                                                          कम्फ्यूशियस



जीवन परिचय

कम्फ्यूशियस चीन का महान दार्शनिक, विचारक व शिक्षक था। वह आज के चीन के शांटुग राज्य के लू नगर के त्साओ ग्राम में पैदा हुआ। इसका वास्तविक नाम 'कुर्डच्यू' (Kung Chiu) था पर इसके अनुयायी इसे 'कुर्ड फुले' कहा करते थे, जिसका तात्पर्य है- 'महान गुरु'

असाधारण प्रतिभा का धनी कन्फ्यूशियस 23 वर्ष की उम्र तक आते-आते गुरु कहलाने लगा। वह अपने शिष्यों के साथ शासन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, कला, साहित्य, दर्शन आदि अनेक विषयों पर विचार-विमर्श करने लगा।

कन्फ्यूशियस कहा करता था- "मुझे महात्मा या महादानी कहलाने की आकांक्षा नहीं है। मैं तो अध्ययन से कभी संतुष्ट न होने वाला एक विद्यार्थी तथा अध्यापन से कभी न थकने वाला शिक्षक हूँ।"

कन्फ्यूशियस भी प्लेटो की तरह एक 'आदर्श राज्य' की स्थापना करना चाहता था जो कि लोक-कल्याण व न्याय पर आधारित हो। उसने श्रेष्ठ मनुष्य के जीवन को तीन तत्त्वों का संयोग बताया जो बाद में चोरी संस्कृति के आधारभूत तत्त्व बने-

(1) जैन अर्थात् लोक कल्याण

(2) यी-औचित्य

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(3) ली-अनुष्ठान

कन्फ्यूशियस की रचनाएँ

(1) शू चिड़ (एनालैक्ट्स)- (विविध प्रसंग)

यह ऐतिहासिक दस्तावेजों का संग्रह है जिसमें राजवंशों के वृतान्त व नैतिकता के उपदेश है। इसी पुस्तक में उसकी 'महान योजना' अर्थात 'आदर्श व्यवस्था' का वर्णन है।

(ii) शी चिड़- गीत संग्रह

(m) ई चिड़ - ज्योतिष

(iv) छुन व छयू - बसन्त व शरद काल का इतिहास

अन्य पुस्तकें -

(1) ता सीमो इसका तात्पर्य है- 'महान शिक्षा'। यह पुस्तक कन्फ्यूशियस के शिष्य सांग द्वारा रचित है।

(3) स्वर्णिम मार्ग (The Golden Mean) कन्फ्यूशियस के पौत्र द्वारा रचित इस पुस्तक में 'मध्थाय मार्ग' को उत्तम मार्ग बताया गया है।

:: कन्फ्यूशियस के राजनीतिक विचार ::

(i) राज्य की दैवीय उत्पत्ति-

कन्फ्यूशियस राजतंत्र व सामंतवाद का समर्थक था। उसके अनुसार तीन सर्वोच्च शक्तियाँ है ईश्वर, राज्य तथा जनता। राजा, ईश्वर द्वारा बनाये गये कानूनों को जनता पर लागू करता है।

लेकिन कम्फ्यूशियस निरंकुश राजतंत्र का समर्थक नहीं था। वह शोषणकारी सामंतवाद व अत्याचारी निरंकुशतंत्र का विरोधी था। अन्यायपूर्ण राजव्यवस्था की आलोचना में वह कहता है- "अन्यायपूर्ण शासन शेर से भी भयानक होता है।"

वह शासकों पर परम्पराओं व नैतिक मूल्यों का नियंत्रण चाहता था। कौटिल्य की तरह ही वह कहा करता था- "जब राजा का आचरण उचित होगा, तभी व्यवस्था ठीक होगी तथा प्रजा का आचरण भी सुधेरगा।"- "अर्थात यथा राजा तथा प्रजा"

कन्फ्यूशियस राजा को स्वर्ग का प्रतिनिधि मानता था अर्थात् राज्य की 'दैवीय उत्पत्ति सिद्धांत'का समर्थक था; किन्तु वह दैवीय सिद्धांत के अनुसार राजा के असीमित अधिकारों का समर्थक नहीं था। कन्फ्यूशियस राजसिंहासन प्राप्ति का आधार वंशानुगत नहीं बल्कि गुणों को मानता था जो कि तत्कालीनचीन में एक क्रांतिकारी विचार था।

(ii) सशक्त केन्द्रीय सत्ता का पक्षधर-

तात्कालिक चीन में सामंतवाद का बोलबाला था। सारा देश विभिन्न प्रांतों व छोटे क्षेत्रों में बँटा था जो कि स्वायत्त सामंतों के नियंत्रणाधीन थे। ये सामंत शोषणकर्ता व भ्रष्ट थे। इन पर सर्वोच्च नियंत्रण का अभाव होने के कारण ये निरंकुश व अत्याचारी थे। अतः कन्फ्यूशियस इन सामंतों पर नियंत्रण के लिए 'एक शक्तिशाली केन्द्रीय व्यवस्था' को आवश्यक मानता था ताकि इनके निरंकुश व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकें तथा जनता को इनकी पाश्विक शक्तियों से संरक्षित किया जा सकें।

(iii) कन्फ्यूशियस का आदर्श राज्य (Ideal State)-

आदर्श राज्य में समस्त पदाधिकारी व जनता अपने-अपने स्वधर्म का पालन करेंगे। आदर्श राज्य की नींव में तीन तत्त्व होंगे-

(A) जैन (लोककल्याण)

(B) यी (औचित्य)

(C) ली (अनुष्ठान)

शासन को स्वधर्म पालन व कर्तव्यों पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह प्रजा के पिता तुल्य है। शासकों को 'नौ नियमों का पालन करना चाहिए जिसमें 'चारित्रिक विकास' प्रथम नियम है। • व्यक्ति अपने अन्यायी राजा का विरोध कर सकता है।शासक के लिए कठोरता आवश्यक है। 'जैसे को तैसा वाला' न्याय आवश्यक है। दुष्टता का बदला दुष्टता से दिया जाना चाहिए। इस प्रकार कन्फ्यूशियस एक 'यथार्थवादी व व्यावहारिक' है ना कि काल्पनिक (Utopian)

आदर्शवादी राज्य में परम्पराओं व अनुष्ठानों का विशेष स्थान होता है।इस राज्य में सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था होती है।

शासन के कुशल संचालन के लिए तीन चीजें आवश्यक है- पर्याप्त अन्न, पर्याप्त हथियार व जनता का विश्वास। प्रथम दो की बजाय तीसरा तत्त्व ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। जनता के विश्वास के बिना कुछ भी कायम नहीं रह सकता।

कन्फ्यूशियस 'श्रेणीतंत्रीय समाज व्यवस्था' का समर्थक था तथा असमानताओं को प्राकृतिक व ईश्वर प्रदत्त मानना था।

इसने परिवार व राज्य की सत्ता में कोई अंतर नहीं किया तथा कहा कि 'राज्य, राजा के परिवार का ही विस्तृत रूप है।'

(iv) कन्फ्यूशियस की शिक्षा योजना- महान शिक्षा

कन्फ्यूशियस महान विचारक व दार्शनिक होने के साथ-साथ एक महानतम शिक्षक भी था।

उसके शिक्षा सम्बंधी विचार उसके शिष्य सांग द्वारा रचित पुस्तक 'ता सीमो' अर्थात् 'महान शिक्षा' (The Great Learning) में मिलते हैं।

महान शिक्षा का एक ही उद्देश्य है- "व्यक्ति को पूर्णता की और लेकर जाना।" कन्फ्यूशियस की 'महान शिक्षा' व्यावहारिक है जिसमें व्यक्ति भावना व श्रद्धा से प्रेरित होने की बजाय 'बुद्धि व तर्क' से प्रेरित होता है।

कन्फ्यूशियस के अनुसार- शिक्षा, समस्त व्यवस्था में सुधार का मूल आधार है। "राष्ट्र कल्याण से पहले परिवार कल्याण, परिवार कल्याण से पहले व्यक्ति कल्याण, व्यक्ति कल्याण से पहले हृदय सुधार, हृदय सुधार से पहले मस्तिष्क शुद्धि, मस्तिष्क शुद्धि के लिए ज्ञानार्जन।" कन्फ्यूशियस

कन्फ्यूशियस सस्ती व सार्वजनिक शिक्षा के पक्षधर थे। वे केवल कुलीन वर्ग ही नहीं बल्कि पूरी प्रजा के लिए शिक्षा को आवश्यक मानते थे। इसके लिए उन्होंने खुद ने भी जनसाधारण के लिए अनेक पाठशालाएँ खोली थी। इस प्रकार उन्होंने शिक्षा पर कुलीन वर्ग के एकाधिकार को चुनौती दी।

कन्फ्यूशियस ने अपनी शिक्षा व्यवस्था में बारित्रिक व नैतिक विकास के लिए नीतिशास्त्र, भाषा, राजनीति तथा साहित्य पर विशेष बल दिया है।

(lV) कन्फ्यूशियस का 'रन' का सिद्धांत

कन्फ्यूशियस की पूरी विचारधारा चार तत्त्वों से मिलकर बनी है-

1. रन मानव सेवा

2. ई न्याय

3. ताजो नैतिकता

4. तेह सदाचार

. इनमें से 'रन' तत्त्व सबसे महत्त्वपूर्ण है। जिसका आशय है- 'मानव प्रेम' अर्थात 'मानव कल्याण' व सेवा ही सर्वोपरि है।

'रन सिद्धांत' को व्यवहार में लागू करने के लिए दो आधारभूत तत्त्व है

चुड़

श्याओं

चुड़ अर्थात् जो कार्य तुम औरों से करवाना चाहते हो उसे पहले स्वयं पूरा करो। श्याओं का तात्पर्य है- जो कार्य तुम स्वयं नहीं करना चाहते उसे दूसरों से करने के लिए भी मत कहो।

(vi) स्वर्णिम मार्ग (Golden Path) मध्यम मार्ग का सिद्धांत

अरस्तू से पूर्व कन्फ्यूशियस ने स्वर्णिम मध्यम मार्ग का सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

स्वर्णिम मार्ग (The Golden Path) पुस्तक, कन्फ्यूशियस के पोत्र 'त्से जे' द्वारा लिखित है। यह मुख्यतः नैतिक दर्शन की पुस्तक है।
नैतिकता की दृष्टि से कन्फ्युशियस मध्यम मार्ग का समर्थक था। उसके अनुसार "जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन ही 'स्वर्णिम मार्ग' है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए 'मध्यम मार्ग' अपनाया जाना चाहिए। नैतिक जीवन 'साम्य, सामंजस्य व संतुलन' पर आधारित होता है।"#कम्फ्यूशियस(551-479ई.पू.)

#कन्फ्यूशियस का आदर्श राज्य (Ideal State)

#स्वर्णिम मार्ग (Golden Path) मध्यम मार्ग का सिद्धांत।            

स्वतंत्रता का अधिकार






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