माइकल वाल्जर की समानता की अवधारणा न्यायपूर्ण युद्ध का सिद्धांत (Just War Theory)
माइकल वाल्जर
मानव समुदाय एक वितरणात्मक समुदाय है।" वाल्जर
:: जीवन परिचय ::
माइकल वाल्जर एक प्रसिद्ध अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक व समुदायवादी (Communitarian) विचारक है। इनका जन्म 3 मार्च, 1935 को न्यूयार्क, अमेरिका में हुआ। इनको समकालीन उदार समुदायवाद का प्रतिनिधि विचारक माना जाता है। वाल्जर 1962-66 तक प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे तथा बाद में उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। हावर्ड विश्वविद्यालय में इनकी रॉबर्ट नॉजिक के साथ पूंजीवाद व समाजवाद को लेकर लम्बी बहस चली। इन्होंने रॉबर्ट नॉजिक की पुस्तक Anarchy, State and Utoipa' (1974) के तर्कों का खण्डन करने के लिए अपनी पुस्तक 'Spheres of Justice' (1983) लिखी।
"मानव समुदाय एक वितरणात्मक समुदाय है।" वाल्जर
मुख्य रचनाएँ
(1) Just and Unjust Wars इस पुस्तक में इन्होंने 'न्यायपूर्ण युद्ध का सिद्धांत' (Just War Theory) दिया है। पुस्तक का पूरा नाम है- 'Just and Unjust Wars: A Moral Argument with Historical Illustrations
(1) Spheres of Justice: A Defense of Pluralism and Equality-1983 इस प्रसिद्ध कृति में वाल्तर ने 'वितरणात्मक न्याय के बहुलवादी क्षेत्र' तथा 'सरल समानता व जटिल समानता' की अवधारणा दी है।
(Ⅲ) Interpretation and Social Criticism-1987
(IV) Thick and Thin: Moral Argument at Home and Abroad-1994
(v) On Toleration-1997
(vi) Pluralism, Justice and Equality-1998 (बहुलवाद, न्याय व समानता)-इस पुस्तक के लेखक डेविड मिलर व माइकल वाल्जर है।
(VII) Towards a Global Civil Society-1998 वाल्तर इसके संपादक है।
(viii) Politics and Passion: Towards a More Egalitarian Liberalism (राजनीति और भावावेगः अधिक समतावादी उदारवाद की ओर)-2004 इस पुस्तक में वाल्तर ने उदारवाद की इस मान्यता पर प्रहार किया है कि मनुष्य अपने राजनीतिक निर्णयों में पूर्ण विवेक व तर्कबुद्धि (Reason) का प्रयोग करते है तथा भावावेग से पूर्णतः मुक्त होते हैं। वाल्ज़र का मानना है कि व्यक्ति जब अपने राजनीतिक आदशों के संदर्भ में निर्णय करता है तो वह तर्कबुद्धि व भाववेग दोनों का प्रयोग करता है।
(IX) Arguing About War-2003
(x) The Paradox of Liberation: Secular Revolutions and Religious Counter Revolutions-2016 इस पुस्तक में वाल्जर ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के तीन देशों भारत, इजरायल व अल्जीरिया की चर्चा की है, जिन्होंने अपने यहाँ लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष राजनीति की शुरुआत की थी; पर कुछ दशक बाद ही मार्मिक पुनरुत्थानवादी (यथा-हिन्दू, यहूदी, इस्लाम) यहाँ हावी हो गये। इन धार्मिक समूहों ने यहाँ के समाजों की जकड़ लिया। वाल्कर ने इस संदर्भ में अमेरिका की स्थायी धर्म निरपेक्ष प्रवृत्ति की प्रशंसा भी की है।
(xi) A Foreign Policy for the Left -2018
इन पुस्तकों के अलावा वाल्वर 'Dessent' व 'The New Republic' पत्रिकाओं के संपादक भी रह चुके है।
वाल्जर की प्रमुख अवधारणाएँ
(1) वितरणात्मक न्याय का समुदायवादी बहुलवादी सिद्धांत
(a) सरल समानता व जटिल समानता
(im) एकाधिकार व प्रभुत्व
(iv) न्याय संगत युद्ध (Just War Theory)
(v) गन्दे हाथ (Dirty Hands)
:: समुदायवादी-बहुलवादी न्याय सिद्धांत ::
(Communitarian Pluralist Justice Theroy)
माइकल वाल्तर समकालीन चिंतन के अन्तर्गत 'न्याय के समुदायवादी सिद्धांत' (Communitarian Theory of Justice) का प्रमुख विचारक है। वाल्तर का न्याय का समुदायवादी सिद्धांत 'उदारवादी-बहुलवादी' (Liberal Pluralist) मान्यता पर आधारित है। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Spheres of Justice' (न्याय के प्रयोग क्षेत्र) में यह सिद्धांत दिया है। इस सिद्धांत की मुख्य मान्यता यह है कि न्याय का कोई विश्वजनीन (Universal) या एकल (Singular) नियम नहीं हो सकता। सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामाजिक वस्तुओं के वितरण (Distribution of Social Goods) के लिए भिन्न-भिन्न मानदण्ड (Criteria) निश्चित करने होंगे। सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय व राजनीतिक न्याय के लिए अलग-अलग नियम बनाने होगें।
न्याय से वाल्जर का तात्पर्य "वितरणात्मक न्याय' से है पर उसका स्वरूप 'बहुलवादी' है। वाल्जर के अनुसार "एक विशिष्ट समाज में न्याय के सिद्धांत अपने स्वरूप में बहुलवादी होते हैं... विभिन्न सामाजिक वस्तुएँ, विभिन्न के साथ विभिन्न कारणों के लिए वितरित होनी चाहिए।" प्राथमिक व मूल वस्तुओं का ना तो एक समूह होता है और ना ही योग्यता या आवश्यकता जैसे वितरण के एक नियम बल्तर की न्याय की बहुलवादी मान्यता के तीन आयाम है-
विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न अर्थ
वितरण की विभिन्न कसौटियाँ
वितरण की विभिन प्रक्रियाएँ
(1) विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न अर्थ
(Different Goods and their Different Meanings)
वाल्जर का मानना है कि वितरणात्मक न्याय से सम्बंध रखने वाली सभी वस्तुएँ सामाजिक वस्तुएँ है। पर इन सामाजिक वस्तुओं की संख्या निश्चित नहीं की जा सकती है जैसा कि रॉल्स ने सामाजिक प्राथमिक बस्तुओं की एक निश्चित सूची दी है, वैसी सूची देना संभव नहीं है।
जहाँ सामाजिक वस्तुओं की संख्या निश्चित नहीं है। वहीं विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न अर्थ है। एक ही चीज का मूल्यांकन विभिन्न स्थानों या विभिन्न समय पर विभिन्न प्रकार से किया जाता है। कहीं कपड़े तन डकते हैं; तो कहीं फैशन का प्रतीक है। कहीं रोटी भूखा पेट भरती है। तो कहीं कूड़ेदान में डाली जाती है। ऐसी स्थिति में कपड़े या रोटी सार्वभौमिक सामाजिक वस्तु की सूची में कैसे शामिल होगी?
वितरण की न्याय-संगतता व अन्याय संगतता उस विशिष्ट वस्तु के सामाजिक अर्थ से सापेक्ष रूप से जुड़ी होती है। यह न्याय संगतता व अन्याय संगतता समय व परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है। उत्तर वैदिक काल में चतुष्वर्ण व्यवस्थानुसार पद व सम्मान का बंटवारा न्याय संगत था जबकि आज नहीं है। न्याय का जी अर्थ प्लेटो या अरस्तू के समय था, वह आज नहीं है।
(2) वितरण की विभिन्न कसौटियाँ-
वितरण का कोई एक मान्य सिद्धांत नहीं है। राजनीतिक शक्ति के वितरण के जो नियम है वे नियम घन, प्रेम, सामाजिक सम्मान या अन्य बस्तुओं के वितरण के नहीं हो सकते। उदारवादी जहाँ वितरण के लिए 'योग्यता' को कसौटी मानते हैं वहीं समाजवादी 'आवश्यकता' को कसौटी मानते हैं। योग्यता व आवश्यकता के अलावा जन्म, रक्त, मित्रता, राजनीतिक आस्था आदि अन्य कसौटियाँ भी हो सकती है। फिर भी वाल्यार ने वितरण की तीन कसौटियाँ महत्त्वपूर्ण मानी है-
(A)स्वतंत्र विनियम
धन के वितरण की कसौटी
(B) योग्यता
→ प्यार, प्रभाव, पद, कलात्मक कार्य, सम्मान आदि के वितरण का आधार
(C) आवश्यकता
→भौतिक (रोटी, कपड़ा, मकान) के अलावा अभौतिक वस्तुएँ भी इसमें आ जाती है।
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उदारवाद का वितरण का सूत्र है 'प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार, माक्र्सवादियों का सूत्र है- 'प्रत्येक को उसकी आवश्यकता के अनुसारः समुदायवादी वाल्जर ने सूत्र दिया- 'प्रत्येक को उसकी सामाजिक स्वीकृत आवश्यकता के अनुसार।'
(3) वितरण की विभिन्न प्रक्रियाएँ (Different Process of Distribution)
चूंकि सामाजिक वस्तुएँ विभिन्न है। अतः उनके वितरण की प्रक्रिया भी अलग-अलग होगी। सर्वसुलभ वस्तुओं के बँटवारे को जो प्रक्रिया होगी, उसे पुलर्भ वस्तुओं यचा सम्मान, पद आदि पर लागू नहीं किया जा सकता। मूलभूत वस्तुओं (रोटी, कपड़ा, मकान) आदि के बंटवारे की प्रक्रिया समान हो सकती है, पर उच्च तकनीकी पदों के वितरण का समान बँटवारा नहीं किया जा सकता है।
:: समानता की अवधारणा (Concept of Equality)::
वाल्जर ने समानता को दो भागों में बाँटा है
सरल समानता (Simple Equality)
(Complex Equality)
↓
धन, सम्पत्ति आदि लाभों का समान वितरण
एकसार मानदण्ड (योग्यता या आवश्यकता के अनुसार)
प्रभुत्व (Dominance) का कारण
जटिल समानता
वस्तुओं व अन्य मूल्यावान तत्त्वों (ख्याति, सम्मान, प्रेम, राजनीतिक पद, कलात्मक वस्तुओं का तर्कसंगत बंटवारा)
भिन्न-भिन्न सामाजिक क्षेत्रों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए वितरण (जैसे कि परिवार में प्यार, बाजार में धन आदि तत्त्वों का वितरण उपयुक्त होगा)
एकाधिकार (Monopoly) की उत्पत्ति
सरल समानता
सरल समानता एक ऐसी आदर्शवादी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी पूर्वाग्रह के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान समझा जाता है। पर यह स्थिति अस्थिर होती है। पूँजीवादी राज्य में आर्थिक समानता लाने के लिए अगर हम राज्य के बल के द्वारा धन का समान वितरण कर दें तो एक बार तो समानता आ जायेगी पर थोड़े समय बाद देखेंगे की वापस असमानता आ गयी क्योंकि कुछ ने धन को व्यर्थ खर्च कर दिया, कुछ ने अच्छी जगह विनियोग (Invest) कर खूब धन बना लिया। इस प्रकार सरल समानता को बनाये रखने के लिए राज्य को निरन्तर हस्तक्षेप करना होगा तथा एकाधिकार व प्रभुत्व के नये रूपों को रोकना होगा। किन्तु राज्य अगर निरन्तर हस्तक्षेप करेगा तो राज्य प्रभुत्त्वकारी हो जायेगा तथा वह अन्य वस्तुओं पर एकाधिकार करेगा। इस विरोधाभास के सम्बंध में वाल्सर ने कहा है- "सरल समानता की विडम्बना यह है कि निजी विशेषाधिकार व असमानता का उपचार केवल राज्यवाद है और राज्यवाद से बचने का एकमात्र तरीका निजी विशेषाधिकार है।" सरल समानता का नियम किसी सामाजिक वस्तु जैसे (आय या सम्पदा) को एकसार मानदण्ड (Uniform Criterion) यथा योग्यता या आवश्यकता के अनुसार सब लोगों में समान रूप से बाँट देने की माँग करता है। यह नियम सरल आदिम समाजों में तो संभव था पर अगर जटिल समाजों में राज्य इस नियम को लागू करेगा तो वह सर्वसत्तावादी व निरंकुश हो जाएगा।
जटिलता समानता (Complex Equality)
वाल्तर अपनी प्रसिद्ध कृति 'Spheres of Justice' (1983) में लिखते हैं कि आधुनिक जटिल समाजों में 'जटिल समानता' की स्थापना करना आवश्यक है। जटिल समानता के तहत विभिन्न सामाजिक वस्तुओं का बँटवारा विभिन्न प्रक्रिया व विभिन्न मानदण्डों के अनुसार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इस समानता के तहत केवल आय व सम्पत्ति का ही वितरण नहीं करना होता; अपितु प्रेम, सौहार्द्र, पद, ख्याति, सम्मान जैसे दुर्लभ साधनों को भी बाँटना होता है। इन साधनों का वितरण केवल बाजार या व्यवसाय जगत में ही नहीं करना होता बल्कि राजनीति, प्रशासन, परिवार, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में भी करना होता है। अगर तर्कसंगत वितरण किया जाए तो सभी व्यक्तियों को उचित हिस्सा मिलेगा। किसी को अगर अधिक धन मिलेगा तो दूसरे को अधिक सामाजिक सम्मान मिलेगा जो धन की कसर पूरी कर देगा। किसी को राजनीतिक या प्रशासनिक पद मिल जाएगा तो उसकी धन व सामाजिक इज्जत वाली कमी पूरी हो जाएगी। इस प्रकार समानता 'बहुलवादी न्याय' पर आधारित है। जटिल समानता के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न सामाजिक वस्तुएँ सामाजिक जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न आधार पर बाँटी जाती है। उदाहरण स्वरूप राजनीति, शिक्षा के क्षेत्र में धन का प्रभुत्त्व स्थापित नहीं होने चाहिए। पुरुष प्रधानता का क्षेत्र सैन्य के लिए उपयुक्त है, इसे परिवार, व्यवसाय व राजनीतिक पद के लिए लागू नहीं करना चाहिए। स्नेह सम्बंध परिवार में तो ठीक है पर उच्च अधिकारियों द्वारा विभिन्न पदों की नियुक्ति में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार 'जटिल समानता' का सिद्धांत यह मानकर चलता है, कि भिन्न-भिन्न सामाजिक वस्तुएँ सामाजिक के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वितरण के लिए बनी है। न्याय का उद्देश्य इस वितरण के तर्कसंगत आधार का जीवन पत्ता लगाना है।
जटिल समानता की स्थापना के लिए वाल्जर ने नई समाज व्यवस्था के रूप में 'विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक समाजवाद' (Decentralized Democratic Socialism) की परिकल्पना की है।
एकाधिकार, प्रभुत्व व सापेक्ष स्वायत्ता
सरल व जटिल समानता को समझने के लिये एकाधिकार व प्रभुत्व की अवधारणाओं को भी समझना होगा। एकाधिकार का तात्पर्य है किसी व्यक्ति का किसी एक वस्तु पर एकाधिकार अगर वह व्यक्ति इस एकाधिकार द्वारा अन्य वस्तुओं को भी नियंत्रित करता है तो इससे प्रभुत्व की स्थिति उत्पन्न होगी। उदाहरण- अगर किसी व्यक्ति के पास खूब धन है और इस धन के द्वारा वह बाजार के अलावा राजनीति, परिवार, कला व शिक्षा आदि क्षेत्रों पर भी नियंत्रण स्थापित करता है, तो यह प्रभुत्व है।
जब सरल समानता स्थापित करने की कोशिश की जाती है तो राज्य व राजनीतिक शक्ति के प्रभुत्व की स्थापना होती है। इस प्रभुत्व से बचने के लिए जटिल समानता की स्थापना की जानी चाहिए क्योंकि जटिल समानता के तहत किसी एक क्षेत्र में एकाधिकार की स्थिति हो सकती है पर उस एकाधिकार का उपयोग अन्य सामाजिक वस्तुओं व क्षेत्रों के नियंत्रण के लिए नहीं होगा।
प्रभुत्व की स्थिति के समाधान के लिए वाल्ज़र ने 'न्याय के क्षेत्रों की सापेक्ष स्वायत्तता' पर बल दिया है। जिसका तात्पर्य है सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्र एक दूसरे से स्वायत्त होंगे। शैक्षणिक व राजनीति क्षेत्र, बाजार से अलग होंगे तो धनिक लोग इन क्षेत्रों में अपने विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएँगे। अगर आजार राजनीति, धर्म व जाति से स्वायत्त होगा तो यहाँ बिना भेदभाव के सबको समान अवसर मिलेंगे।
न्यायपूर्ण युद्ध का सिद्धांत (Just War Theory)
बाल्जर ने अपनी पुस्तक- Just and Unjust War (1977) में न्यायपूर्ण युद्ध का सिद्धांत दिया है। इस सिद्धांत में युद्ध को नैतिक आचरण की कसौटी पर कसा गया है। किन परिस्थितियों में कानून, नीतिशास्त्र तथा नैतिक सिद्धांत युद्ध व आक्रमण को न्यायसंगत ठहराते हैं। इस सम्बंध में वाल्ज़र ने 'आक्रामकता का सिद्धांत' दिया है। 'आक्रामकता के सिद्धांत' के अन्तर्गत कोई राज्य अगर दूसरे राज्य की या उसकी क्षेत्रीय एकता के विरुद्ध बल प्रयोग करता है या बल प्रयोग की धमकी देता है तो यह आपराधिक कार्य है। ऐसी स्थिति में स्वयं की रक्षा के लिए युद्ध न्यायसंगत है।
गंदे हाथ (Dirty Hand)
गंदे हाथ की अवधारणा बहुत पुरानी है। शेक्सपीयर के नाटक मैकबेथ में, लेडी मैकबेथ अपराधबोध से ग्रस्त है तथा मानती है कि उसके हाथ गन्दे व खून से लथपथ है। ज्यां पाल सार्त्र के नाटक 'डर्टी हँड्स' (1948) से यह शब्द प्रसिद्ध हो गया। वाल्तर ने इस शब्दावली का प्रयोग नैतिक दर्शन व राजनीतिक व्यावहारिकता के मध्य अन्तर्विरोध को दिखाने के लिए किया है। वाल्जर अनुसार, विकट परिस्थितियों पा सर्वोच्च आपातकाल (Emergency) में राजनीतिक पदाधिकारी अपने समुदाय को बचाने के लिए अनैतिक कार्यों को करने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। अपने समुदाय की रक्षा के लिए वे अपने हाथ गन्दे कर लेते हैं अर्थात् अनैतिक कार्य भी कर लेते हैं। वाल्ज़र ने इस सम्बंध में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन द्वारा जर्मन शहरों पर बमबारी कर निर्दोष लोगों की हत्या का मुद्दा उठाया है।
:: नवकाण्टवादी उदारवाद व समुदायवाद ::
1970 के बाद उदारवादी राजनीति सिद्धांत ने मार्क्सवादी आलोचना से बचने के लिए स्वयं को उपयोगितावादी मान्यताओं से दूर करना आरंभ कर दिया था। ऐसा विशेषकर अमेरीकन विचारकों ने किया। अमेरीकन राजनीतिक दार्शनिकों ने इस हेतु जर्मन आदर्शवादी दार्शनिक इमानुएल काण्ट के चिंतन का प्रयोग किया।
नवकाण्टवादी उदारवाद का प्रमुख विचारक जॉन रॉल्स है। रॉल्स ने उदारवाद को नैतिक आधार प्रदान के लिए काण्ट के नैतिक दर्शन को मुख्य आधार बनाया है। रॉल्स के अलावा नवकाण्टवादी विचारकों में ड्वोर्किन, इजाया बर्लिन व रॉबर्ट नॉजिक को भी शामिल किया जाता है।
नवकाण्टवादी विचारकों के 'पद्धतीय व्यक्तिवादी सिद्धांतों को चुनौती देने हेतु समुदायवाद आगे आया। समुदायवाद सामान्य शुभ (Common Good) पर बल देने वाला वह सिद्धांत है जो व्यक्तिगत कल्याण को सामान्य कल्याण का ही हिस्सा मानता है। समुदायवाद समाज को ऐसा सूर्य मानता है जिससे व्यक्तिगत शुभ की विभिन किरणें निकलती है। यह उदारवाद की तरह व्यक्तिगत शुभों के जोड़ को समाज का शुभ नहीं मानता।
अरस्तू, रूसो तथा हेगेल जहाँ समुदायवादी थे, वही समकालीन समुदायवाद का प्रणेता अमिताई एटिजिओनी को माना जाता है। अन्य समुदायवादी विचारक हैं- चार्ल्स टेलर, माइकल वाल्ज़र मेंकिटायर रोबटो उगर व माइकल सेण्डल आदि। ये विचारक मुख्यतः अरस्तू व हेगेल से प्रभावित है। जहाँ मेकिण्टायर व चार्ल्स टेलर पर अरस्तू का प्रभाव है, वहीं माइकल सेण्डल पर हेगेल के विचारों का प्रभाव है।
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