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प्लेटो (428 ई.पू से 347 ई.पू) शिक्षा योजना, न्याय, दार्शनिक राजा ,साम्यवाद

प्लेटो (428 ई. पू. 347 ई. पू.)


जीवन परिचय :

> प्लेटो का जन्म 428 ई. पू. में एथेन्स के एक कुलीन परिवार में हुआ। प्लेटो के पिता का नाम एरिस्टोन था जो एथेन्स के अंतिम राजा कार्डस के वंशज थे तथा माता का नाम पेरिक्टियानी था जो एथेन्स के प्रसिद्ध कानूनविद् सोलन की वंशज थी।

> पेरिक्टियानी के भाई चार्मिडिस और चाचा क्रिटियास उन तीस निरंकुशों में थे जो पेलोपोनेशियन युद्ध के बाद, एथेन्स पर शासन कर रहे थे।

> प्लेटो के दो भाई थे ग्लूकॉन व एडीमेण्टस तथा एक बहन थी पोटोनी

> प्लेटो का वास्तविक नाम एरिस्टोक्लीज था लेकिन बलिष्ठ शरीर तथा चौड़े कंधे होने के कारण उसका नाम प्लेटो पड़ा।

> प्लेटो के जन्म के समय एथेन्स और स्पार्टा के बीच पैलोपोनेशियन युद्ध चल रहा था। एथेन्स का समाज व्यक्तिवादी तथा जनतांत्रिक था तथा यह सृजनशील और साहित्यिक क्रियाकलापों में आगे था जबकि स्पार्टा का समाज सैन्यवादी था।

पैलोपोनेशियन युद्ध

431 ई. पू. 404 ई. पू. तक प्राचीन यूनान के दो बड़े नगर राज्यों एथेन्स तथा स्पार्टा के बीच लगातार 28 वर्ष तक लड़ा गया युद्ध जिसमें अंत में एथेंस की हार हुई।

> अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के बाद प्लेटो 407 ई. पू. में सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात की मृत्यु के समय तक उसका शिष्य बना रहा।

> 404 ई. पू. में एथेन्स में प्लेटो के संबंधियों के नेतृत्व में कुलीन तंत्रीय क्रांति हुई। इसी समय प्लेटो ने राजनीति में सक्रिय भाग लिया। क्रांति के परिणामस्वरूप क्रिटियास के नेतृत्व में तीस आततायियों का शासन स्थापित हुआ। आठ माह के इस शासन के उपरांत एथेन्स में जनतंत्र की स्थापना हुई। > 399 ई. पू. में सुकरात की मृत्युदण्ड की सजा के बाद प्लेटो एथेन्स से अन्यत्र कहीं चला गया तथा लगभग 12 वर्ष तक अज्ञातवास में रहा।


सोफिस्ट


> प्राचीन यूनान में सोफिस्ट ऐसे भ्रमणशील शिक्षक थे जो धन लेकर शिक्षा प्रदान करते थे तथा इसी पारिश्रमिक के सहारे इनका जीवनयापन होता था।

> सोफिस्ट विचारक, यूनान के नगर निवासी न होकर विदेशी नागरिक थे। इन्हें उस समय मेटिक्स कहा जाता था

जबकि यूनानी लोग स्वयं को हेलिनेक' कहते थे।

> सोफिस्ट विचारकों का कार्य इच्छुक लोगों से धन प्राप्त कर उन्हें वाक्पटुता तथा तर्क शास्त्र की शिक्षा देना था।

> चूंकि एथेन्स में शिक्षा प्रदान करने का कार्य राज्य का कार्य नहीं था बल्कि परिवार की जिम्मदारी थी, अतः एथेन्स में सोफिस्ट विचारक बाहुल्य में रहते थे।

प्रमुख सोफिस्ट विचारक प्रोटेगोरस, गोर्जियास, थ्रेसीमेकस।

> सुकरात तथा प्लेटो ने सोफिस्ट विचारकों के भौतिकवादी तथा सापेक्षता व संशयवादी दर्शन की आलोचना की। प्लेटो ने कई सोफिस्ट विचारकों के नाम से अपने संवाद लिखे जैसे प्रोटेगोरस व गोर्जियास आदि। सोफिज्म दर्शन के प्रमुख विचार निम्नलिखित थे-

> ज्ञान की सापेक्षता में विश्वास :

सोफिस्ट विचारक ज्ञान की निरपेक्षता में विश्वास नहीं रखते थे बल्कि संशयवादी दृष्टिकोण रखते हुए ज्ञान की सापेक्षता में यकीन करते थे। इनका मानना था कि परम सत्य या अंतिम सत्य जैसी कोई वस्तु नहीं होती अर्थात् कोई भी विचार, नियम, सिद्धांत अथवा संकल्पना सर्वमान्य नहीं हो सकती बल्कि समय, काल, स्थान व परिस्थिति अनुसार ये परिवर्तित होती है। कोई एक विचार जो आज प्रासंगिक तथा उचित है, वही विचार भविष्य में अप्रासंगिक एवं अनुचित हो सकता है। इसके अतिरिक्त कोई एक ही विचार दो अलग-अलग जगह पर समान रूप से उचित नहीं हो सकता। इसका अर्थ है कि ज्ञान अथवा सत्य सापेक्ष होता है।

> व्यक्तिवादी तथा मानववादी :

सोफिस्ट विचारकों को प्रथम व्यक्तिवादी विचारक माना जाता है क्योंकि ये विचारक मानववादी थे। इनके अनुसार मानव सृष्टि के मूल में है तथा प्रकृति की समस्त वस्तुएँ मानव के लिए है। अतः मनुष्य के अध्ययन के लिए सर्वोत्तम विषयवस्तु स्वयं मनुष्य ही है।

सोफिस्ट विचारक प्रोटेगोरस के अनुसार, "मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदण्ड है।"

> भौतिकवादी :

सोफिस्ट भौतिकवादी विचारधारा के समर्थक थे। इनका मानना था कि विचार तथा प्रत्यय की बजाय पदार्थ अधिक महत्वपूर्ण है।

> राज्य एक कृत्रिम संस्था :

सोफिस्ट विचारकों का मानना था कि राज्य प्राकृतिक तथा स्वाभाविक संस्था नहीं है बल्कि मानव द्वारा निर्मित कृत्रिम संस्था है जिसे मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए सामाजिक समझौते द्वारा निर्मित किया है।

तीस का शासन (Rule of the Thirty):

पेलोपेनोशियन युद्ध (431-404 ई. पू.) में एथेन्स की हार के बाद 404 ई. पू. में एथेन्स में तीस लोगों के समूह का शासन स्थापित हुआ। ये तीस लोगों का समूह कुलीनतंत्र का समर्थक था तथा स्पार्टा की सैन्यवादी शासन प्रणाली तथा योद्धा समाज का समर्थक था। अतः इस समूह ने एथेन्स में निरंकुश शासन करते हुए लोकतंत्र के समर्थक लोगों का सफाया करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप एथेन्स के लगभग 5% लोग मारे गए। उनकी क्रूर व दमनकारी नीति के कारण इसे 'तीस अत्याचारियों का शासन' कहा जाता है। हालांकि यह शासन मात्र आठ माह तक ही रहा। क्रिटियास इस समूह का नेता था। सुकरात तथा प्लेटो को इस शासन के समर्थक के रूप में माना जाता है। इस शासन की समाप्ति के बाद एथेन्स में लोकतंत्र स्थापित हुआ। तीस अत्याचारियों का समर्थन तथा लोकतंत्र का विरोध करने के कारण सुकरात को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई।

> 386 ई. पू. में प्लेटो एथेन्स वापस लौटा तथा इसी वर्ष एथेन्स में एकेडमी नामक विद्यालय की स्थापना की।

> अपने दार्शनिक शासक के विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए प्लेटो ने अपने मित्र डियोन के निमंत्रण पर सिराक्यूज की दो बार (367 ई. पू. और 361 ई. पू.) यात्राएँ की तथा वहाँ के शासक डायोनिसियस द्वितीय को दार्शनिक शासक के रूप में प्रशिक्षित करने का प्रयास किया लेकिन प्लेटो के दोनों बार के प्रयास असफल रहे। अपने इन्ही अनुभवों के कारण अपनी वृद्धावस्था में प्लेटो व्यावहारिक विचारों की तरफ झुका तथा अपनी अंतिम पुस्तक 'द लॉज में व्यावहारिक विचार प्रस्तुत किए। 

> 347 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में प्लेटो की मृत्यु हो गई।

एकेडमी :

> प्लेटो द्वारा 386 ई. पू. में स्थापित शिक्षणालय।

> 522 ई. में रोमन सम्राट जस्टिनियम ने इसे बंद करवा दिया।

अकादमी के प्रवेश द्वार पर यह लिखा था कि "यहाँ कोई भी बिना रेखागणित के प्रवेश न करे।" (Medeis Ageometros Eisito / मेडिस एजियोमेट्रोस आइसिटो)

> एकेडमी अपनी तरह की पहली संस्था नहीं थी क्योंकि उससे पूर्व ऐसी अन्य संस्थाएं भी थी जैसे 520 ई. पू. में स्थापित क्रोटोना का पाइथागोरियन स्कूल तथा 392 ई.पू. का इसोक्रेट का स्कूल।
जन्म स्थान- एथेन्स

पिता - एरिस्टोन (राजा कार्डस के वंशज)

माता- परिक्टियनी (सोलन वंश से)

गुरु- सुकरात

मूल नाम- एरिस्टोक्लीज (बलिष्ठ शरीर तथा कंधे चौड़े होने के कारण उनका नाम प्लेटो पड़ा)

स्कूल- अकादमी (386 ई.पू.)

प्लेटो द्वारा लिखित ग्रंथ :

प्लेटो के कुल ग्रंथों की संख्या 36 या 38 मानी जाती है, जिनमें से 28 ग्रंथ प्रमाणिक है। इन सभी 28 ग्रन्थों का बर्नेट द्वारा ऑक्सफॉर्ड से प्रकाशन हुआ है। इन ग्रंथों में से कुछ प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित है-

1. रिपब्लिक (386 ई. पू.)

2. स्टेट्समैन (360 ई. पू.)

3. लॉज (347 ई. पू.)

4. मीनो
5. क्रीटो

6. फीडो
7. अपोलोजी
8. सिम्पोजियम
9. गोर्गियास
10. प्रोटोगोरस
11. चार्मिडिज
12. फिल्बस
13. एंथीफ्रोक
14. इयोन
15. लाइसिस
16. एंथीडिमस

17. क्रिटिलस

18. हिपियास MY

19. मेनेक्सिनस

ACA प्लेटो की रचनाएँ संवाद शैली (Dialugue) में लिखी हुई है।

20. टीनियस एटलांटिस

रिपब्लिक

> प्लेटो का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसे उसने 50 वर्ष की आयु में लिखा।
 उपनाम Concerning Justic (न्याय से संबंधित)
इस ग्रंथ के कुल 10 भाग है।
 इसका सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद 1871 में बेजामिंन जॉवेट ने किया।
 यह ग्रंथ संवाद शैली में लिखा गया है।
प्रमुख पात्र सुकरात (प्रधान पात्र), सेफालस, पॉलिमॉर्कस, थ्रेसीमेकस, ग्लुकॉन व एडीमेंटस।
 इस ग्रंथ में प्लेटो ने न्याय, शिक्षा, साम्यवाद, आदर्श राज्य तथा दार्शनिक राजा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है।
रिपब्लिक की विषयवस्तु अत्यन्त व्यापक है। इसके अन्तर्गत जीवन के समस्त पक्षों पर दृष्टिपात किया गया है।

> रिपब्लिक का केन्द्रीय विषय सदमानव तथा उसके सजीवन की समस्याओं पर विचार करना है कि सदजीवन कैसे प्राप्त किया जा सकता है और इसी समस्या के समाधान में प्लेटो ने इसमें आदर्श राज्य का निरूपण किया है।

> रूसो "रिपब्लिक राजनीति शास्त्र का ग्रंथ न होकर शिक्षाशास्त्र पर कभी भी लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है।"

> बार्कर - "यह कहना आसान है कि रिपब्लिक काल्पनिक है, बादलों में नगर है, एक सूर्यास्त के दृश्य के समान है जो सांय एक घण्टे के लिए रहता है, तत्पश्चात् अंधकार में विलीन हो जाता है परंतु रिपब्लिक 'कही नहीं का नगर नहीं है। यह यथार्थ परिस्थितियों पर आधारित और वास्तविक जीवन को मोड़ने या कम से कम प्रभावित करने के लिए है।"

> बार्कर "रिपब्लिक राजनीति विज्ञान या न्याय शास्त्र का ग्रन्थ नहीं है। यह राजनीति और न्याय शास्त्र दोनों का ग्रंथ है एवं इन दोनों से भी अधिक यह मानव जीवन के पूर्ण दर्शन के प्रतिपादन का प्रयास है।"

> बेंजामिन जॉवेट "प्लेटो के अन्य ग्रन्थों में अन्यत्र कहीं भी इससे अधिक तीखा व्यंग्य, परिहास, परिकल्पनाएँ एवं नाटकीयता नहीं मिलती है।"

> नेटलशिप "रिपब्लिक केवल एक दार्शनिक कृति मात्र न होकर सामाजिक और राजनीतिक सुधारों पर लिखा गया एक ग्रन्थ भी है।"

> सेबाइन "रिपब्लिक कोई ऐसा विशेष ग्रन्थ नहीं है जो राजनीति या नैतिकता या अर्थशास्त्र या मनोविज्ञान से ही संबंधित हो। इसमें ये सभी शामिल है और इनके अलावा कला और शिक्षा और दर्शन भी।"

> रियासत भारत के राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने प्लेटो की रिपब्लिक' का रियासत नाम से उर्दू में अनुवाद किया। 

> प्लेटो की रिपब्लिक का प्रभाव अनेक विचारकों पर दिखाई देता है। कई विचारकों की रचनाएँ रिपब्लिक से प्रेरित है जिनमें प्रमुख हैं -
• थॉमस मूर की पुस्तक यूटोपिया
• फ्रांसिस बेकन की पुस्तक द न्यू एटलांटिस
• फ्रातोमारसो कम्पनेला की पुस्तक द सिटी ऑफ सन
रिपब्लिक में निम्नलिखित तीन प्रकार के राज्यों का उल्लेख है जो निरंतर उत्तरोतर चरणों में आदर्श राज्य का रूप ग्रहण करेंगे -

1. स्वस्थ्य राज्य (The Healthy State) -

इस राज्य में उत्पादक वर्ग महत्वपूर्ण होता है। इसमें भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वाधिक महत्व रखती है। इस राज्य को 'सुअरों की नगरी (City of pigs) कहा गया है।

2. विलासप्रिय राज्य (The Luxurious State) -

इस राज्य में सैनिक वर्ग महत्वपूर्ण होता है। इसमें सैनिक वर्ग खोजी कुत्तों की तरह होते है जो नए राज्यों पर जीत के लिए निरंतर युद्धरत रहते हैं तथा वहाँ से प्राप्त धन से विलासपूर्ण जीवन जीते हैं।

3. न्यायपूर्ण राज्य (The Just State) -

इस राज्य में दार्शनिक वर्ग महत्वपूर्ण होता है जो अपने विवेक के प्रयोग से शासन का संचालन करता है। प्लेटो के अनुसार वह राज्य आदर्श राज्य है।

स्टेट्समैन

> इस ग्रन्थ की रचना संभवत 367 ई. पू. से 361 ई. पू के बीच की गई।
> इस समय तक प्लेटो कुछ हद तक व्यावहारिक ज्ञान की महता के प्रति आकर्षित हो रहा था। इसीलिए इस ग्रन्थ में रिपब्लिक की कल्पनाशीलता का अभाव है।
> इस रचना में प्लेटो ने राज्यों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।
इस रचना में 'संभावित राज्य' का वर्णन किया है।

लॉज
> पात्र मेगिलस (स्पार्टा निवासी)
क्लीनियस (क्रीट निवासी)
अनाम (एथेन्स वासी) यह लॉज का मुख्य वक्ता है। यह ग्रन्थ में प्लेटो के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है।
> इस ग्रंथ के 12 भाग हैं।
> प्लेटो द्वारा लिखा गया अंतिम ग्रंथ।
> प्लेटो द्वारा लिखित आकार की दृष्टि से सबसे बड़ा ग्रंथ।
> इस पुस्तक में नोक्ट्ररल काउंसिल (Nucturalhal Council) का उल्लेख है।

> प्लेटो ने इसे वृद्वावस्था में लिखा जिसमें उसने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए कानून के शासन पर बल दिया। इस ग्रंथ में प्लेटो ने 'उपादर्श राज्य' अथवा 'द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य' का खाका प्रस्तुत किया। इस राज्य के लिए प्लेटो मैग्नीशिया शब्द प्रयुक्त करता है।

अन्य पुस्तकें

> मीनो में प्लेटो सर्वप्रथम न्याय पर विचार व्यक्त करता है एवं न्याय के लिए यूनानी शब्द 'दिकायसून/डिकॉयजनी' (Dikaiosyne) का प्रयोग करता है। इस पुस्तक में ज्ञान के स्वरूप की चर्चा की गई है।

> फीडो में सुकरात की मृत्यु का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। इसमें आकार / प्रत्यय का सिद्धांत दिया गया है तथा आत्मा व अनश्वरता का जिक्र किया गया है।

> द अपोलॉजी में सुकरात के मुकदमें का काल्पनिक और व्यंग्यात्मक वर्णन है। सुकरात पर नास्तिकता और युवाओं को पथभ्रष्ट करने के आरोप लगाते हुए यह अपेक्षा की गई कि सुकरात माफी मांगे। गांधीजी ने इस पुस्तक का 'सत्यवान' नाम से गुजराती भाषा में अनुवाद किया था।

> सिम्पोजियम में प्लेटो ने भौतिक प्रेम व सौन्दर्य के प्रति लगाव का वर्णन किया।

> चार्मिडिस/चारमाइडिस में आत्मज्ञान का विचार प्रस्तुत किया गया तथा सुकरात के स्वयं को जानो के विचार की CADEMY व्याख्या की गई।

> फिल्बस में प्लेटो नैतिकता और अच्छे जीवन पर विचार व्यक्त करता है।

> क्रीटो में राजनैतिक जिम्मेदारी और अधिकार के प्रश्न पर विचार किया गया।

प्लेटो पर प्रभाव

सुकरात (470 ई. पू.)

1. सद्गुण ही ज्ञान है।
2. ज्ञान तथा मत में अंतर।
3. ज्ञान की निरपेक्षता
4. संवाद शैली
5. दृष्टान्तों का प्रयोग
6. शासन एक कला है।

मैक्सी के अनुसार "प्लेटो में सुकरात पुनर्जीवित हो उठा।"

प्लेटो सुकरात के प्रति इतना अधिक ऋणी था कि उसने रिपब्लिक में लिखा कि "मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं यूनानी के रूप में पैदा हुआ बर्बर के रूप में नहीं, स्वतंत्र जन के रूप में पैदा हुआ दास के रूप में नहीं, पुरुष के रूप में पैदा हुआ स्त्री के रूप में नहीं और सबसे बड़ी बात यह कि मैं सुकरात के युग में पैदा हुआ।"

पाइथागोरस (570 ई. पू. 495 ई. पू.)

1. गणित का महत्व

2. पारलौकिक जगत में विश्वास

3. मानव आत्मा की अमरता

4. लैंगिक समानता

5. दार्शनिक शासक का विचार

हेराक्लाइटस (544 ई. पू.-484 ई. पू.)

1. लौकिक जगत की अस्थिरता तथा परिवर्तनशीलता

2. प्रकृति की एकरूपता

3. विश्व की व्यवस्था के नियमों की अनुल्लघंनीयता


प्लेटो की अध्ययन पद्धति

1. निगमनात्मक पद्धति (Deductive method)

इस पद्धति में निष्कर्ष पहले निकाल लिए जाते हैं तथा बाद में उन निष्कर्षों को विभिन्न तर्कों के माध्यम से सिद्ध किया जाता है। यह पद्धति नियम से उदाहरण की ओर तथा सामान्य से विशिष्ट की ओर चलती है।

2. द्वन्द्वात्मक पद्धति (Dialectical method)
इस पद्धति को वार्तालाप शैली या संवाद शैली भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसी तर्क के विरूद्ध लगातार प्रश्न उठाए जाते हैं तथा तर्क तथा संवाद के माध्यम से असत्य अंश को समाप्त कर सटीक निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। इस पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग सुकरात ने किया।
3. सादृश्यता/अनुरूपता पद्धति (Analogy method) -

इसके अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं अथवा घटनाओं को दृष्टान्तों के माध्यम से समझाया जाता है। अतः इसे साम्यावस्था अथवा दृष्टान्त शैली भी कहा जाता है।
प्लेटो ने गुफा के दृष्टान्त से आकृति सिद्धांत को स्पष्ट किया है। ठीक इसी तरह प्लेटो ने दार्शनिक राजा के लिए गडरिया चिकित्सक तथा मोची, सैनिक वर्ग के लिए प्रहरी कुत्ते और उत्पादक वर्ग के लिए मानव पशु के दृष्टान्तों का प्रयोग किया। धातु सिद्धांत के तहत शासक वर्ग, सैनिक वर्ग तथा उत्पादक वर्ग के लिए क्रमशः स्वर्ण, चांदी तथा तांबे के रूपक का प्रयोग इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।

4. उद्देश्य परक पद्धति (Teleological method)

इस पद्धति के अनुसार प्रत्येक कार्य का एक उद्देश्य होता है यह पद्धति कार्य-कारण पद्धति पर आधारित है जिसके अनुसार प्रत्येक घटना के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। इसे प्रयोजनमूलक पद्धति भी कहा जाता है। प्लेटो तथा अरस्तू दोनों ही सोद्देश्यक परक पद्धति का प्रयोग करते है।

5. ऐतिहासिक पद्धति (Historical method) -

प्लेटो की पद्धति ऐतिहासिक पद्धति है। प्लेटो ने विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं के आधर पर अपने निष्कर्षों को सिद्ध करने का प्रयास किया। प्लेटो ने Statesman तथा Laws में इस पद्धति का अधिक प्रयोग किया।

6. दार्शनिक पद्धति (Philosophical method)

प्लेटो को राजनीतिक दर्शन का पिता कहा जाता है। प्लेटो ने निगमनात्मक पद्धति तथा वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया।
अपनी दार्शनिक पद्धति से प्लेटो ने आदर्श राज्य को स्थापित करने का विचार प्रतिपादित किया।

गुफा की सादृश्यता (Allegory of the Cave):-

प्लेटो ने गुफा के उदाहरण के माध्यम से दृश्य जगत (मत) तथा अदृश्य जगत (ज्ञान) की व्याख्या की है। प्लेटो गुफा के अंदर का दृश्य प्रकट करता है। यह गुफा मानव के कद की ऊँचाई की एक दीवार से बीचों-बीच दो भागों में विभाजित है। दीवार के एक तरफ कुछ लोग उसी दीवार से पीठ के बल जंजीरों से इस प्रकार जकड़े हुए हैं कि वे बिना हिले डुले सिर्फ सामने की तरफ गुफा की दीवार को ही देख सकते हैं। दीवार के दूसरी ओर एक स्थान पर आग जल रही है। दीवार तथा आग के बीच संकरा रास्ता हैं जिससे कुछ लोग सिर पर वस्तुएं तथा मूर्तियां लेकर गुजर रहे हैं। आग के प्रकाश के कारण उन वस्तुओं की परछाई (प्रतिच्छाया) गुफा की उस दीवार पर पड़ती है जो कैदियों के सामने है। वे कैदी जो बाहरी विश्व से पूर्णतः अनजान है, इन परछाईयों को ही वास्तविक वस्तु समझते है क्योंकि इन लोगों ने अपने जन्म से इन्ही परछाइयों को देखा है तो वे इन्हें ही वास्तविक समझ लेते हैं जबकि यह भ्रम है। प्लेटो इस दृष्टांत से यह स्पष्ट करता है कि ठीक इसी प्रकार हम भी इस दृश्य जगत में दिखाई देने वाली वस्तुओं को ही वास्तविक समझ लेते हैं जबकि ये वास्तविक नहीं बल्कि केवल भ्रम मात्र होती हैं। यह ज्ञान का पहला स्तर है जिसमें सब कुछ अनुमान तथा कल्पनाओं (Imagination) पर आधारित होता है। इन बन्दी व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को जंजीरों से मुक्त किया जाता है तो यह व्यक्ति जब गुफा के अंदर के संपूर्ण दृश्य को देखता है तो उसे गुफा के अंदर आग, वस्तुएँ तथा उनकी प्रतिच्छाया का सम्पूर्ण दृश्य दिखाई देता है। तब उसका पूर्व का भ्रम टूटता है। यह ज्ञान की दूसरी अवस्था है। लेकिन यह सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि अभी भी वह प्रतिकृतियों तथा मूर्तियों को ही वास्तविक समझता है जो कि असल में वास्तविक नहीं होती। इस अवस्था का ज्ञान उसके विश्वास (Belief) पर आधारित होता है।
प्लेटो के अनुसार उसके बाद उस व्यक्ति को जबरदस्ती गुफा के बाहर ले जाया गया। जबरदस्ती इसलिये क्योकि वह व्यक्ति अपनी विचारधारा तथा विश्वास की इन धारणाओं के विरूद्ध किसी अन्य बात को स्वीकार करने के लिये सहमत नहीं है। उस बंदी व्यक्ति के गुफा से बाहर जाने पर जब वह बाहर की दुनिया को देखता है तब उसे वास्तविक वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है तथा गुफा के अंदर के भ्रम को समझ पाता है, जिसे अब तक वो वास्तविक समझता था। वह उस प्रतिकृतियों के भ्रम से बाहर निकलकर वास्तविक ज्ञान का सामना करता है तथा उसकी भीतरी आंखे खुल जाती है। उसे इन दोनों जगत के बीच विभाजित रेखा का ज्ञान हो जाता है।
अब वह प्रतिकृतियाँ नहीं बल्कि वास्तविक वस्तुएँ देखता है। अब वह पेड़ की प्रतिकृति नहीं बल्कि लहलहाता हुआ वास्तविक पेड़ देखता है। इस अवस्था में उसके दिमाग में वस्तुओं की पहचान बन जाती है। यह ज्ञान की तीसरी अवस्था है जब व्यक्ति के मस्तिष्क में वस्तुओं के विचारों के मानक व मापदण्ड स्थिर हो जाते हैं। ज्ञान का यह रूप विचारों (Thought) तथा तार्किकता (Reasoning) पर आधारित होता है।
तत्पश्चात् ज्ञान की चौथी अवस्था आती है जब ज्ञान की प्रत्यय आधारित समझ (Understanding) विकसित होती है और व्यक्ति अदृश्य जगत (Intelligible World) का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। यह ज्ञान की सर्वोच्च अवस्था है। यह ज्ञान शाश्वत तथा निरपेक्ष ज्ञान है।
अब वह व्यक्ति अन्य बंदी व्यक्तियों को भी ज्ञान प्राप्ति हेतु गुफा से बाहर लाना चाहता है। अतः वापस गुफा में जाता है तथा उन बंदी व्यक्तियों को वास्तविक स्थिति बताने की कोशिश करता है लेकिन अपनी धारणाओं के विरूद्ध बंदी व्यक्ति उसकी बातों को नहीं सुनते तथा बहुत ज्यादा प्रयास करने पर वे उसकी हत्या तक कर देते है।
प्लेटो ने इस उदाहरण को वास्तविक घटना से जोडते हुए सुकरात का उदाहरण दिया जिसे वास्तविक ज्ञान का प्रचार करने के कारण अपने प्राण गवाने पड़े। प्लेटो के मतानुसार उस ज्ञानी व्यक्ति को इस अज्ञानी विश्व में ज्ञान के प्रसार हेतु शक्ति देना आवश्यक है क्योंकि शक्ति के अभाव में वह अज्ञानी लोगों को ज्ञान के दर्शन नहीं करवा सकता। प्लेटो ने इसी धारणा के आधार पर दार्शनिक राजा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है जिसके तहत् उसने इसे सर्वशक्तिशाली बनाकर अपने विवेक द्वारा शासन संचालन का कार्य सौंपा।

प्लेटो द्वारा प्रयुक्त शब्दावली -
• आकृति सिद्धांत,
गुफा की सादृश्यता,
प्रतिच्छाया,
भीतरी आँखें,
विभाजित रेखा।



प्लेटो का न्याय सिद्धांत


> न्याय प्लेटो के रिपब्लिक का मूल विषय है, इसीलिए रिपब्लिक का उपनाम 'न्याय से संबधित' (Concernig Justice) है। न्याय को ग्रीक भाषा में 'Dikaiosyne' कहा जाता है।

> प्लेटो ने सबसे पहले उस समय प्रचलित न्याय के तत्कालीन सिद्धांतों का खण्डन किया।

1. न्याय का परम्परागत सिद्धांत :-
इस सिद्धांत के प्रवर्तक सेफालस और पॉलीमाकर्स हैं।
सेफालस के अनुसार, "सत्य बोलना, शब्द और कार्य में ईमानदार होना तथा ऋण चुकाना ही न्याय है।" पॉलीमाकर्स के अनुसार, "मित्र के प्रति अच्छा व्यवहार तथा शत्रु के प्रति बुरा व्यवहार करना ही न्याय है।"
> प्लेटो ने सेफालस के कथन का खण्डन इस आधार पर किया है कि कई अवसरों पर सच बोलना हानिकारक हो सकता है। अतः ऐसे वक्त सच बोलना न्यायपूर्ण नहीं हो सकता जब उस सच को छिपाना बेहतर तथा लाभकारी हो जैसे किसी सैनिक द्वारा दुश्मन सेना को सत्य बोलकर अपने देश की सुरक्षा के भेद बता देना न्याय नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार ऋण चुकाने को न्याय की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता जैसे पागल व्यक्ति को उसका हथियार वापस लौटाना न्याय नहीं हो सकता।

> प्लेटो ने पॉलीमाकर्स के कथन का खण्डन इन आधारों पर किया है कि मित्र की सहायता का अर्थ झूठ बोलना और चोरी जैसे कार्यों का समर्थन करना भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त मित्र और शत्रु की पहचान मुश्किल है। एक मित्र वास्तव में मित्र नहीं भी हो सकता है। न्याय मानव का उच्च गुण है और न्यायप्रिय व्यक्ति किसी को हानि नहीं पहुंचा सकता। न्याय का अर्थ जैसे को तैसा नहीं है। इसका संबंध केवल दो व्यक्तियों के संबंध मात्र से नहीं है।

2. न्याय का उग्रवादी / क्रातिकारी सिद्धांत :-
इस सिद्धांत का प्रतिपादन थ्रेसीमेकस ने किया। उसके अनुसार-
1. "शक्तिशाली का हित ही न्याय है।"
2. "अन्याय न्याय से श्रेष्ठ है।"
प्लेटो ने इस विचार का भी इस आधार पर खण्डन किया कि न्याय शक्तिशाली की ताकत नहीं है क्योंकि शासक का कर्त्तव्य जनहित की सेवा है। शासक की स्थिति डॉक्टर या शिक्षक या गड़रिए के समान होती है। इसके अतिरिक्त न्याय आंतरिक होता है, बाहा नहीं। न्याय का यह सिद्धांत व्यक्तिवादी विचारधारा पर आधारित है जबकि न्याय समष्टीवादी विचार है।
3. न्याय का व्यवहारवादी सिद्धांतः-

> इस सिद्धांत के प्रवर्तक ग्लुकॉन व एडीमैन्टस हैं।
ग्लुकॉन के अनुसार, "न्याय भय का शिशु है।"
> अर्थात् न्याय दुर्बल लोगों के हितों की रक्षा के लिए किए गए समझौते का परिणाम है।
इस विचारधारा के अनुसार न्याय की स्थापना भय के कारण है तथा यह कमजोर लोगों की आवश्यकता है जिन्होनें अपनी सुरक्षा के लिए राज्य की स्थापना की तथा कानून बनाए अर्थात् व्यक्ति अपनी इच्छा से न्यायपूर्ण नहीं होते बल्कि आवश्यकता के लिए न्यायपूर्ण होते है। इस सिद्धांत के अनुसार कानून मजबूत और कमजोर के बीच एक समझौता होता है जिसके तहत शक्तिशाली कमजोर पर हमला न करने और कमजोर अन्याय सहन न करने का वादा करता है।
यह विचार हॉब्स के विचार से साम्यता रखता है।

> ये सभी सिद्धांत न्याय को बाह्य, व्यक्तिगत और कृत्रिम मानते हैं जबकि प्लेटो के अनुसार न्याय आत्मा के अंदर की वस्तु है।

प्लेटो ने उपरोक्त तीनों सिद्धांतों को नकारते हुए न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित किया। प्लेटो के अनुसार "न्याय आत्मा का गुण तथा मन की आदत है।"

तीन आत्माओं का सिद्धांत :

प्लेटो के अनुसार आत्मा के तीन तत्व होते है-

1. ज्ञान (Reason)

प्रधान सद्गुण

2. मनोवेग (Spirit)



3. तृष्णा (Appetite)

इन तीनों तत्वों के आधार पर आत्मा में तीन सद्गुण होते है।

तत्त्व

1. ज्ञान- विवेक



2. मनोवेग- साहस


3. तृष्णा- संयम

सद्गुण

> प्लेटो के अनुसार आत्मा में तीनों गुण समान मात्रा में नहीं पाये जाते बल्कि उनमें से कोई एक सद्गुण प्रधान सद्गुण होता है तथा अन्य दो सदगुण गौण सदगुण होते हैं।

> प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपनी आत्मा में इन तीनों सद्‌गुणों का उचित समन्वय करते हुए प्रधान सदगुण की पहचान करना तथा उस सदगुण के अनुरूप कार्य करना ही व्यक्तिगत न्याय है।
प्लेटो के अनुसार छोटे अक्षरों की तुलना में बड़े अक्षर अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसी प्रकार न्याय का अर्थ व्यक्ति के स्तर की तुलना में राज्य के स्तर पर अधिक स्पष्ट होता है।
आत्मा के प्रधान सद्‌गुण के सिद्धांत को समाज पर लागू करते हुए प्लेटो ने समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया है।

प्लेटो के अनुसार, "राज्य व्यक्ति का वृहद रूप है।"

> आत्मा के इन तीन सदगुणों के आधार पर समाज में भी तीन वर्ग पाये जाते हैं। जिस व्यक्ति में जो सद्‌गुण प्रधान होता है वह व्यक्ति उसी वर्ग में शामिल हो जाता है। इस प्रकार प्लेटो का समाज सावयव समाज है।

> इस आधार पर प्लेटो ने समाज में निम्नलिखित वर्ग बताये है-

प्रधान सद्गुण।                 सामाजिक वर्ग
    विवेक                    दार्शनिक शासक वर्ग।   स्वर्ण
साहस।                          सैनिक वर्ग।         चाँदी
संयम।                          उत्पादक वर्ग।         ताँबा

> प्लेटो ने शासक वर्ग तथा सैनिक वर्ग दोनों को अभिभावक वर्ग (Guardian Class) में शामिल किया है।

> प्रत्येक वर्ग द्वारा अपने प्रधान सद्‌गुण के अनुसार अपने वर्ग के कार्य करना तथा समाज में अन्य वर्गों के साथ सामंजस्य बनाये रखना ही सामाजिक न्याय है।

सेबाइन के अनुसार, 'न्याय एक बंधन है, जो समाज को एक साथ बाँधकर रखता है।"
प्लेटो के अनुसार, "राज्य का जन्म चट्टानों या बलूत के वृक्षों से नहीं बल्कि उसमें बसने वाले नागरिकों के चरित्र  होता है।"

> अहस्तक्षेप का सिद्धांत- 

केवल अपने वर्ग के लिए निधारित कार्य करते हुए दूसरे वर्ग के कार्यों में हस्तक्षेप न करना। समाज के तीनों वर्ग केवल अपने लिए निर्धारित कार्य करेंगे तथा दूसरे वर्गों के कार्य में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे क्योंकि प्रत्येक वर्ग के लिए निर्धारित कार्य उस वर्ग के सदगुण के अनुरूप हैं। अतः यदि कोई वर्ग किसी अन्य वर्ग के कार्य में हस्तक्षेप करता है तो इसका अर्थ है कि वह अपनी प्राकृतिक व स्वाभाविक योग्यता के विरूद्ध कार्य करता है। उत्पादक वर्ग द्वारा रक्षा संबंधी कार्य में हस्तक्षेप अनुचित होगा क्योंकि सैन्य कार्य सैनिक वर्ग अधिक कुशलता से कर सकता है। अतः ऐसा हस्तक्षेप प्रकृति विरुद्ध है।

> कार्य विशेषीकरण का सिद्धांतः-
अपने प्रधान सद्गुण के अनुरूप केवल अपने लिए निर्धारित कार्यों को उच्च स्तर की दक्षता प्राप्त करने तक करना। यह सिद्धांत श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण पर आधारित है। समाज के प्रत्येक वर्ग का निर्धारण प्रधान सदगुण के आधार पर हुआ है। अतः सदगुण की विशिष्टता के अनुरूप ही उस वर्ग को वही कार्य दिया जाए ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुरूप श्रेष्ठतम कार्य कर सके। इसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्टता को उजागर करना है
जिससे कि समाज को लाभ मिले। इसका उद्देश्य कार्य की सर्वश्रेष्ठता को प्राप्त करना है, किसी कार्य को ऊँचा या नीचा समझना नहीं। इसका लाभ यह है कि जब कोई व्यक्ति दूसरे वर्ग के कार्य में हस्तक्षेप किए बिना अपना विशिष्टीकृत कार्य करेगा तो वह अपने उस कार्य विशेष में उच्चतम स्तर की गुणवत्ता तथा विशेषज्ञता प्राप्त कर लेता है जिसका लाभ पूरे समाज को मिलता है।

> परस्पर सामंजस्य का सिद्धान्त :

आत्मा के तीनों सदगुणों में परस्पर कोई विरोध नहीं पाया जाता बल्कि तीनों सदगुणों के मिलने से ही आत्मा का निर्माण होता है। अतः इन तीनों सदगुणों के आधार पर निर्मित समाज के इन तीनों वर्गों में कोई अन्तर्विरोध नहीं पाया जाता। तीनों वर्गों में सामंजस्य बनाकर कार्य करना ही न्याय है।

प्लेटो के अनुसार, "न्याय मानवीय आत्मा का गुण व मन की आदत है।"

सेबाइन के अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति को उसका हक दिलाना ही न्याय है।"

एम. बी. फोस्टर के अनुसार, "जिसे हम नैतिकता कहते हैं, वही प्लेटो के लिए न्याय है।"

न्याय का अर्थ है: विशेषज्ञता व उत्कृष्टता

अर्थात् एक व्यक्ति, एक कार्य, एक वर्ग-एक कर्त्तव्य के रूप में न्याय अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपनी आत्म प्रवृत्ति, सदगुणों के अनुसार कार्य करना, प्रत्येक वर्ग द्वारा अपने निर्धारित कार्य में विशेषज्ञता हासिल करना तथा दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करना ही न्याय है।

सी. एल. वेपर इसे उपयुक्त प्रावधान (उत्पादक वर्ग), उपयुक्त संरक्षण (सैनिक वर्ग), उपयुक्त नेतृत्व (दार्शनिक राजा) का नाम देता है 

धातु सिद्धांत: प्लेटो के मतानुसार ईश्वर ने शासक वर्ग को सोने, सैनिक वर्ग को चाँदी तथा उत्पादक वर्ग को ताँबे से निर्मित किया है।

> प्लेटो न्याय को 'आंतरिक न्याय' के रूप में मानता है, जिसमें तीनों वर्ग केवल अपने लिए निर्धारित कर्त्तव्यों का पालन करे तथा किसी दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप ना करे।

> इन तीनों सद्‌गुणों के उचित सामंजस्य के आधार पर प्लेटो के अनुसार चौथे तथा सर्वोच्च सद्‌गुण 'न्याय' की स्थापना हो जाती है।

चार सद्गुण -

1. विवेक
2. साहस
3. संयम
4. न्याय (सर्वोच्च सद्गुण)

विशेषताएँ

1. प्लेटो का न्याय नैतिक न्याय है, कानूनी न्याय नहीं। यह न्याय आत्मा का विषय है, न्यायपालिका का विषय नहीं है।

2. प्लेटो का न्याय बाह्य न्याय नहीं है बल्कि आंतरिक न्याय है। इसका संबंध दूसरों के साथ किए गए व्यवहार से नहीं है बल्कि अपने लिए निर्धारित कर्त्तव्यों के पालन से है।

3. प्लेटो के न्याय का स्वरूप सावयव है। इसका अर्थ है कि आत्मा के तीनों सदगुण आपस में एकाकी नहीं है बल्कि आपस में जुड़े हुए हैं। इसी क्रम में समाज के तीनों वर्ग भी विरोधी नहीं बल्कि आपस में सामंजस्य बनाए हुए हैं।

4. आत्मा के तीन सदगुणों के अनुसार प्रधान सदगुण के आधार पर समाज में नागरिकों के तीन वर्ग हैं। 5. समाज के ये तीनों वर्ग परस्पर सामंजस्य बनाए रखते हुए सामाजिक एकता को मजबूत करते हैं।

6. तीन वर्गों में सदगुण के आधार पर कार्य विभाजन किया गया है। शासक वर्ग शासन संचालन का कार्य सैनिक वर्ग रक्षा संबंधी कार्य उत्पादक वर्ग आर्थिक क्रियाओं का संचालन

7. तीनों ही वर्ग अपने कार्य में विशिष्टता का गुण रखते है क्योंकि उनमें यह कार्यक्षमता उनके सदगुण के अनुरूप है।

8. तीनों ही वर्ग केवल अपना-अपना कार्य करते है तथा दूसरे वर्ग के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करते क्योंकि अनुचित हस्तक्षेप का अर्थ अन्याय होगा।

9. प्लेटो के न्याय का स्वरूप वितरणवादी है। इसमें प्रत्येक वर्ग के लिए कार्य विभाजन कर कार्य का वितरण कर दिया

प्लेटो का यह न्याय दर्शन भारतीय वर्ण व्यवस्था से काफी साम्यता रखता है। दोनों में ही समाज के कार्य विभाजन के आधार पर वर्गों का निर्धारण किया गया है तथा केवल अपने वर्ग हेतु निर्धारित कार्य करने का प्रावधान किया गया है।
बार्कर के अनुसार, "न्याय प्लेटो के विचार का मूल आधार रहा है।"
गैटेल के अनुसार, "न्याय की धारणा प्लेटो के राजनीति दर्शन की पराकाष्ठा है।"
ईबन्स्टीन के अनुसार, "प्लेटो के न्याय सम्बन्धी विवेचन में उसके राजनीतिक दर्शन के समस्त तत्व शामिल है।"
न्याय का रचना प्रकल्पमूलक सिद्धांत (Architectonic Theory of Justic)
> एम. बी. फोस्टर ने अपनी पुस्तक Masters of Political Thought: From Plato to Machiavelli में प्लेटो के न्याय को रचना प्रकल्पमूलक न्याय की संज्ञा दी है, जिसमें वह भवन निर्माण के दृष्टांत के माध्यम से न्याय की व्याख्या करता है।
> जिस प्रकार भवन निर्माण में अलग-अलग कार्यों को करने वाले अलग-अलग व्यक्ति बिना एक-दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप किए केवल अपना कार्य उच्च स्तर की दक्षता के साथ करते हैं तो उन कार्यों के सामजस्य के परिणामस्वरूप एक शानदार भवन का निर्माण होता है। ठीक इसी प्रकार न्याय, विवेक, साहस व संयम के बीच उचित सामंजस्य बनाए रखता है जिसके परिणामस्वरूप जो राज्य अस्तित्व में आता है, वह राज्य आदर्श राज्य होता है।

न्याय सिद्धान्त की आलोचना:

1. प्लेटो की न्याय की धारणा कानूनी धारणा न होकर नैतिक धारणा है।
2. अत्यधिक एकीकरण पर बल
3. आंतरिक न्याय को महत्व प्रदान किया गया है, जबकि वर्तमान में न्याय का स्वरूप बाह्य स्वरूप प्रचलित है।
4. न्याय सिद्धान्त में कर्त्तव्यों को प्रधानता, व्यक्तिगत अधिकारों को नहीं।
5. निरंकुश शासन का समर्थन।
6. भेदभावपूर्ण
8. सामाजिक संघर्ष की संभावना।
7. व्यक्ति विरोधी ।
9. कार्यविभाजन संभव नहीं।
10. न्याय की धारणा एकपक्षीय।
11. राज्य के हित में व्यक्ति

कार्ल पॉपर ने अपनी पुस्तक "The Open Society and its Enemies" में प्लेटो के न्याय को 'स्वप्नदर्शी न्याय' कहा
है।

डॉ. भीमराव अंबेडकर प्लेटो के समाज को तीन वर्गों में बांटकर उनमें कार्य विभाजन के इस सिद्धांत का विरोध करते हैं। उनके अनुसार इससे समाज में श्रेणीबद्धता, शोषण तथा भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।

सेबाइन के अनुसार, "प्लेटो का सामाजिक वर्गीकरण प्राचीन भारत के कठोर जातीय वर्गीकरण से मिलता जुलता था" लेकिन प्लेटो के दर्शन में वर्ग तथा जातियाँ नहीं थी क्योंकि सदस्यता उत्तराधिकार में नहीं मिलती थी।

प्लेटो न्याय की स्थापना करने हेतु दो उपाय बताता है।
1. सकारात्मक उपाय शिक्षा व्यवस्था
2. नकारात्मक उपाय साम्यवाद

प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत

> प्लेटो के अनुसार शिक्षा नैतिक सुधार के माध्यम से मानव को बदलने का हथियार है। इससे समाज में व्यक्ति की भूमिका बेहतर होती है और नए समाज का निर्माण होता है। अतः प्लेटो ने रिपब्लिक में व्यापक शिक्षा प्रणाली पर विस्तृत विचार व्यक्त किए।

> रूसो के अनुसार रिपब्लिक शिक्षा पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है।

> प्लेटो अपने आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना हेतु सकारात्मक तथा आध्यात्मिक साधन के रूप में शिक्षा का सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

> प्लेटो का मानना है कि शिक्षा एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर उसकी भीतरी आंखे खोलती है जिसके परिणामस्वरूप मानव मस्तिष्क वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझ सकता है।

> तत्कालीन समय में एथेन्स तथा स्पार्टा नगर राज्यों में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था को समन्वित कर प्लेटो ने 'शिक्षा सिद्धांत' का प्रतिपादन किया।

एथेन्स निजी शिक्षा व्यवस्था, बौद्धिक व दार्शनिक शिक्षा पर जोर स्पार्टा सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था, शारीरिक व सैनिक शिक्षा पर बल, स्त्री-पुरूष को समान शिक्षा प्लेटो ने इन दो विरोधी मॉडलों में संतुलन पैदा करने की कोशिश की। उसने अपनी शिक्षा प्रणाली में एंथेस की सृजनात्मकता, उच्च बौद्धिक क्षमता क्षमता और और व्यक्तिगत व्यक्तिगत मूल्यों मूल्यों को का प्रयास किया। LA को स्पार्टा के नागरिक प्रशिक्षण तथा सैन्य शिक्षा से मिलाने EM

प्लेटो की शिक्षा योजना :-

प्लेटो की शिक्षा योजना जन्म से 50 वर्ष की आयु तक चलने वाली लम्बी प्रक्रिया है जिसे निम्नलिखित दो भागों में बांटा जा सकता है- प्रारम्भिक शिक्षा और उच्च शिक्षा।

> प्लेटो की शिक्षा योजना आयु आधारित योजना है जिसके प्रारंभिक 20 वर्ष की आयु तक प्रारंभिक शिक्षा तथा 20 वर्ष
से 50 वर्ष की आयु तक उच्च शिक्षा होगी।

> जहाँ प्रारंभिक शिक्षा हमें आसपास के वातावरण के प्रति संवेदी बनाती है, वहीं उच्च शिक्षा सत्य की खोज में सहायता करती है तथा कठोर परिश्रम और अनुशासन के गुणों का विकास करती है।

A. प्रारम्भिक शिक्षा:-

> प्रारम्भिक शिक्षा जन्म से 20 वर्ष की आयु तक चलने वाली शिक्षा है। इस 20 वर्षीय पाठ्यक्रम में 18 वर्ष की आयु तक की शिक्षा के बाद दो वर्ष की अनिवार्य सैनिक शिक्षा भी शामिल है। शिक्षा की यह व्यवस्था केवल अभिभावक वर्ग तक ही सीमित है।

जन्म से 20 वर्ष तक।

यह प्रारंभिक शिक्षा सैद्धांतिक और व्यावहारिक अनुभव विकसित करती है तथा नैतिकता और सौन्दर्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करती है। यह शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाती है।
शैशवावस्था से युवावस्था तक की शिक्षा केवल अभिभावक वर्ग के लिए।

> इस प्रारम्भिक शिक्षा को प्लेटो ने तीन खण्डों में विभाजित किया

1. जन्म से 6 वर्ष की आयु तक

इस चरण में शिक्षा का स्वरूप अनौपचारिक शिक्षा रखा जाए जिसमें नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा के माध्यम से बच्चे का प्रारम्भिक विकास किया जाए।

> इस अवस्था में बच्चों को देवताओं तथा महान व्यक्तियों की कहानियाँ बतानी चाहिए ताकि उनका नैतिक विकास हो। उन्हें मृत्यु से डराना नहीं चाहिए जबकि वास्तविक युद्ध भूमि में ले जाना चाहिए ताकि उनमें साहस की भावना का विकास हो।

> प्राथमिक शिक्षा के इस चरण में संगीत और व्यायाम की शिक्षा शामिल है ताकि व्यक्ति के नम्म्र और कठोर पक्षों को

2. 6-18 वर्ष की आयु तक -

बौद्धिक तथा शारीरिक शिक्षा पर बल।

मिलाकर एक समन्वयपूर्ण व्यक्ति का निर्माण हो। शारीरिक शिक्षा भावनाओं और इच्छाओं को स्थिरता प्रदान करके मस्तिष्क के लिए शरीर को तैयार करती है। संगीत तर्क की छिपी शक्ति को विकसित कर भावनाओं को नम्र बनाती है और सही विचार का झुकाव पैदा करती थी। कविता, संगीत और कला सही काम करने का रुझान पैदा करते है। इससे हर व्यक्ति बिना अतिवादी बने अपना काम करता है। इस प्रकार सरलता, न्याय सिद्धांत और सादे जीवन की आदत पड़ती है। इसके अतिरिक्त प्लेटो ने कठोर भोजन नियंत्रण की सलाह दी है।
3. 18-20 वर्ष की आयु तक-

> 18 वर्ष की आयु तक की नैतिक, बौद्धिक तथा शारीरिक शिक्षा के उपरांत आगामी दो वर्ष तक सैनिक शिक्षा दी जाएगी जिसमें कठोर अनुशासन का पालन करते हुए अपव्यय पर पाबंदी लगाकर आत्मा को मजबूत किया जाएगा। दो वर्षीय सैनिक शिक्षा लोगों को मजबूत कर राज्य की सेना तैयार करेगी।

> 20 वर्ष तक की शिक्षा के उपरांत एक परीक्षा होगी जिसमें असफल विद्यार्थी सैनिक वर्ग में शामिल होंगे तथा सफल विद्यार्थी आगे की शिक्षा प्राप्त करेगें।

B. उच्च शिक्षाः-

> प्रारम्भिक शिक्षा में उत्तीर्ण कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थियों को ही इसमें प्रवेश मिलेगा।

> शिक्षा का यह चरण 20 वर्ष की आयु से 50 वर्ष की आयु तक चलेगा अर्थात् शिक्षा की यह अवस्था युवावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलेगी। उच्च शिक्षा केवल दार्शनिक वर्ग के लिए ही लागू होगी। उच्च शिक्षा के इस तीस वर्षीय पाठ्यक्रय के तीन स्तर हैं-

20 से 50 वर्ष तक

युवावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलने वाली शिक्षा। केवल दार्शनिक वर्ग के लिए।

1. 20-30 वर्ष तक बीस वर्ष से तीस वर्ष की आयु तक के इस दसवर्षीय पाठ्यक्रम में गणित, रेखागणित, खगोलशास्त्र तथा संगीत की शिक्षा दी जाएगी। गणित शुद्ध सत्य की खोज में शुद्ध बुद्धि का प्रयोग है। इसके अतिरिक्त गणित का व्यावहारिक महत्व भी है। योद्धाओं को अंकों का ज्ञान जरूरी है ताकि सेनाओं की व्यूह रचना की जा सके। रेखागणित कार्य नीति के तरीकों तथा स्थितियों के चुनाव में मदद करती है। खगोलशास्त्र और संगीत मस्तिष्क के विकास में सहयोगी है तथा तर्कशक्ति को बढ़ाते हैं। इस प्रकार उच्च शिक्षा मुक्त अनुसंधान की भावना का विकास करती है। तीस वर्ष की आयु में एक परीक्षा होगी जिसमें असफल विद्यार्थी प्रशासन के पदों के लिए चुने जाएंगें तथा सफल विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करेगें।

2. 30-35 वर्ष तक इस चरण में द्वन्द्ववादी पद्धति (Dialectic method), तर्कशास्त्र तथा दर्शन की शिक्षा प्रदान की जाएगी।

3.35-50 वर्ष तक यह अनौपचारिक शिक्षा का चरण है जिसमें व्यक्ति आगामी 15 वर्ष तक जीवन में व्यावहारिक अनुभव की शिक्षा प्राप्त करेगा। वह राजनैतिक जीवन में सहायक पदों पर रहेगा। वह अपने समय का अधिकांश हिस्सा राजनैतिक जिम्मेदारियों के साथ दर्शन में लगाएगा। लम्बी अवधि के अध्ययन तथा प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप व्यक्ति की विवेकशीलता उत्कृष्ट स्तर प्राप्त कर लेती है परिणामस्वरूप दार्शनिक शासक तैयार हो जाते हैं।

शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ :

1. एथेन्स तथा स्पार्टा की शिक्षा योजना का समन्वय।
2. राज्य के अधीन शिक्षा व्यवस्था।
3. अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था।
4. स्त्री तथा पुरुषों के लिए समान शिक्षा।
5. केवल अभिभावक वर्ग के लिये शिक्षा (सैनिक तथा दार्शनिक)
6. शिक्षा एक सतत् रूप से चलने वाली प्रक्रिया।
7. आयु के अनुरूप पाठ्यक्रम का विभाजन।
8. शारीरिक तथा मानसिक विकास की पूर्ति।

प्लेटो ने शिक्षा का उद्देश्य बताते हुये कहा, कि अज्ञान से ज्ञान तथा अंधकार से प्रकाश की यात्रा ही शिक्षा है जो व्यक्ति की भीतरी आंखें खोलती है।
प्लेटो की शिक्षा का उद्देश्य विचारो एवं आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना व मानव निर्माण करना है।

✓ प्लेटो: "शिक्षा व्यक्ति का आध्यात्मिक भोजन है।"

✓ डनिंग "प्लेटो की शिक्षा मानसिक व्याधि की मानसिक औषधि है।"

✓ बॉर्कर "प्लेटो की शिक्षा प्रणाली उसके न्याय सिद्धान्त का तार्किक परिणाम है।"

कला तथा साहित्य पर सेंसरशिप :
प्लेटो कला तथा साहित्य के केवल उच्च स्वरूप को ही स्वीकार करता है। उसके अनुसार ऐसी कला संगीत तथा
साहित्य पर राज्य द्वारा कठोर प्रतिबंध लगाए जाएं जो चरित्र पर नकारात्मक प्रभाव डाले। प्लेटो का मानना है कि अनैतिक साहित्य तथा कला व्यक्ति का नैतिक पतन कर देती है। अतः राज्य द्वारा केवल ऐसी कला और साहित्य को ही स्वीकृति दी जाए जो व्यक्ति के बौद्धिक विकास में सहायक हो। अश्लील तथा अनैतिक कला तथा साहित्य को राज्य द्वारा प्रतिबंधित कर दिया जाए। प्लेटो ऐसे साहित्य तथा संगीत को बढ़ावा देने का समर्थन करता है जिनसे साहस और विनम्रता के गुणों का विकास हो।

शिक्षा सिद्धांत की आलोचना :-

1. अत्यधिक लम्बी अवधि तक चलने वाली प्रक्रिया।
2. उत्पादक वर्ग के लिये शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं।
3. कला तथा साहित्य की उपेक्षा।
4. गणित पर अत्यधिक बल ।
5. शिक्षा का उद्देश्य केवल राज्य के हितों की पूर्ति।
6. अत्यधिक खर्चीली पद्धति
7. व्यवसायिक / तकनीकी / रोजगार परक शिक्षा का समर्थक नहीं।
> जैलर "प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत में सामंतवाद का समर्थन तथा श्रमिकों के विरुद्ध पक्षपात है।"



साम्यवाद

> प्लेटो का मानना है कि किसी व्यक्ति के अपने कर्त्तव्यों के निष्ठापूर्वक निर्वहन में दो प्रमुख बाधाएं आती हैं- एक संपत्ति के प्रति उसकी आसक्ति और दूसरा परिवार के प्रति उसका मोह और उसके लिए उसकी चिंता

> ये दोनों ही मानव की प्रकृति की मुख्य कमजोरियों होती है जो व्यक्ति को कमजोर और भ्रष्ट बनाती है तथा उसे अपने कर्त्तव्य से विमुख करती है।

> प्लेटो अपने आदर्श राज्य की स्थापना करने हेतु एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था लागू करता है जिसमें वह व्यक्ति की इन दोनों कमजोरियों सम्पत्ति तथा परिवार के सम्बन्ध में साम्यवादी अवधारणा प्रस्तुत करता है।
> प्लेटो का यह साम्यवाद आदर्श राज्य की पूर्ति हेतु अपनाया गया नकारात्मक तथा भौतिक साधन है।

> यह साम्यवाद केवल अभिभावक वर्ग के लिए है, उत्पादक वर्ग के लिए नहीं।
> प्लेटो ने स्त्री व सम्पत्ति का साम्यवाद स्पार्टा की राजनीतिक व्यवस्था से ग्रहण किया है।
> प्लेटो का साम्यवाद त्याग का सिद्धान्त है, भोग का नहीं।

सम्पत्ति विषयक साम्यवाद
> अभिभावक वर्ग को सम्पत्ति संबंधी लोभ तथा लालच से दूर रखने के लिए प्लेटो ने अभिभावक वर्ग के लिए इस साम्यवाद को अपनाया।

> प्लेटो आर्थिक तत्व के दुष्प्रभाव से भलीभांति परिचित था। अतः उसने आर्थिक शक्ति को राजनीतिक शक्ति से पृथक
कर दिया। उसने अभिभावक वर्ग के लिये निजी सम्पत्ति का निषेध कर दिया।

> अभिभावक वर्ग के पास अपनी कोई निजी सम्पत्ति नहीं होगी, अपना कोई भी निजी घर नहीं होगा बल्कि सबकी संपत्ति सांझी होगी।

> अभिभावक वर्ग निजी सम्पत्ति के अभाव में सामूहिक रूप से एक स्थान पर बैरकों में निवास करेंगे तथा सामूहिक भोजनालयों में भोजन करेंगे।
> उनके पास सोना या चांदी न रहे। उन्हें सोना और चांदी के प्रति मोह नहीं रखना चाहिए।
> प्लेटो के अनुसार, "सोना और चांदी नहीं होंगे। अपने ईश्वर द्वारा नित्य अपनी आत्मा के भीतर प्राप्त है। अतः उन्हें मृत्युलोक की निम्न कोटि की धातु की कोई आवश्यकता नहीं है।"
> संपत्ति के अभाव में शासक वर्ग बिना किसी लालच के पूर्ण मनोयोग से शासन संचालन करेंगे तथा सैनिक वर्ग राज्य की रक्षा करेगा।
प्लेटो के मतानुसार आर्थिक चिंताओं से मुक्त अभिभावक वर्ग अपने सद्‌गुणों का प्रयोग अधिक श्रेष्ठ तरीके से कर

पाएगा। प्लेटो को इस बात की भी आशंका थी कि आर्थिक शक्ति के आधार पर राजनीतिक शक्ति का दुरूपयोग किया जा सकता है। अतः उसने उपरोक्त दोनों शक्तियों को पृथक कर दिया।

> प्लेटो ने इस बात पर बल दिया कि सम्पत्ति के प्रति निर्भाव राज्य के कल्याण के लिए आवश्यक है। अपनी सम्पत्ति से अधिक लगाव राज्य की एकता के लिए हानिकारक है। इससे भ्रष्टाचार पैदा होगा और राज्य टूट जाएगा।

इस प्रकार प्लेटो राजनीति में आर्थिक कारकों की भूमिका को समझने वाले पहले व्यक्ति थे। उनका मानना था कि अति धन और गरीबी राज्य को नुकसान पहुंचाती है।

> सेबाइन के अनुसार, "शासन पर सम्पति के दुष्प्रभाव का प्लेटो को इतना दृढ विश्वास था कि उसे दूर करने के लिए

उसे स्वयं की सम्पत्ति का ही विनाश करना पड़ा।"

> एम. बी. फोस्टर, "प्लेटो के अभिभावक वर्ग को मिलजुल कर संपत्ति का स्वामित्व नहीं करना है बल्कि मिलजुलकर उसका परित्याग करना है। यह परित्याग ही राज्य को एकता के सूत्र में बांधेगा।"

परिवार विषयक साम्यवाद

> तत्कालीन समय में स्पार्टा नगर राज्य में परिवार विषयक साम्यवादी व्यवस्था प्रचलित थी, जिससे प्रभावित होकर प्लेटो ने इसे आदर्श राज्य में शामिल किया।

> प्लेटो का मानना था कि परिवार के प्रति प्रेम तथा मोह व्यक्ति को कमजोर तथा भ्रष्ट करने का महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि परिवार होने पर व्यक्ति बाकी अन्य लोगों की तुलना में अपने परिवार को विशेष स्थान देते हुए उसके लिए कुछ विशेष करने हेतु प्रेरित होता है। इसके लिए कई बार वह अनैतिक तरीके भी अपना लेता है। इसके अलावा परिवार के प्रति विशेष प्रेम के कारण वह राज्य के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति विमुख हो जाता है।

> प्लेटो ने अभिभावक वर्ग को पारिवारिक मोह से दूर करते हुए उसके लिए परिवार व्यवस्था को समाप्त कर दिया क्योंकि इससे भ्रष्टाचार, पक्षपात, व्यक्तिवाद, गुटबाजी और अन्य भ्रष्ट आदतें पैदा होती है।
> अभिभावक वर्ग का अपना कोई परिवार नहीं होगा। इस वर्ग का परिवार तथा संपत्ति साझी होंगी। उनकी स्त्रियाँ तथा संतान भी साझी होगी। किसी स्त्री-पुरुष को अपनी संतान की पहचान नहीं।


दार्शनिक राजा

दार्शनिक राजा (Philosopher king) का शासन प्लेटो के दर्शन का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण विचार है।
> प्लेटो ने सद्‌गुणों के आधार पर वर्ग विभाजन कर विवेकशील वर्ग को शासक वर्ग के रूप में रखा तथा इस वर्ग को शासन संचालन का कार्य सौंपा।
> प्लेटो ने इस दार्शनिक वर्ग को 'पूर्ण संरक्षक (Perfect Guardian) कहा है।

> प्लेटो का मानना है कि शासन संचालन का कार्य विवेकपूर्ण कार्य है अतः यह कार्य ऐसे व्यक्ति या व्यक्ति समूह द्वारा ही किया जाना आवश्यक है जो विवेकशील हो।

> प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में शासन संचालन की समस्त जिम्मेदारी दार्शनिक राजा को प्रदान की है। उसके मतानुसार आदर्श राज्य तभी स्थापित होगा जब शासक ज्ञानी तथा विवेकशील हो।

> दार्शनिक राजा के शासन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. विवेक का शासन :-

दार्शनिक राजा विवेकशील होता है। अतः उसे शेष दो वर्गों पर शासन करने का अधिकार है। प्लेटो विवेक को सर्वाधिक महत्व देता है। उसके अनुसार कोई शासक तब तक अच्छा शासन नहीं कर सकता जब तक वो ज्ञानी तथा विवेकशील न हो। दार्शनिक राजा के पास शासन करने लायक ज्ञान, बुद्धि और प्रशिक्षण होता है। शासन संचालन के कार्य में दक्षता और गुणों की आवश्यकता होती है क्योंकि इसका उद्देश्य सबका हित है। अच्छा शासक यह है जो प्रजा को न केवल जीवित रखता है बल्कि उसे मानव के रूप में ढालता भी है। उसका मानना है कि दार्शनिक राजा शासन के लिए सबसे उचित व्यक्ति है क्योंकि उसमें स्वार्थ की तरफ झुकाव नहीं है। जिस प्रकार एक बीमार आदमी डॉक्टर की सहायता लेता है वैसे बीमार राजनैतिक ढांचे को विवेकशील तथा बुद्धिमान प्रशासक की आवश्यकता होती है। दार्शनिक शासक अच्छाई के विचार के अनुरूप कानून का निर्माण करता है। अच्छाई का विचार ज्ञान का उच्चतम रूप है। इसकी तुलना सूरज से की जा सकती है जो सभी जानने लायक वस्तुओं को प्रदर्शित करता है।

2. दार्शनिक राजा की योग्यताएँ :-

1. सद्गुणी
2. न्यायप्रिय
3. विवेकशील
4. व्यक्तिगत मोह से दूर
5. निस्वार्थ एवं कर्तव्यपरायण
3. दार्शनिक राजा कानून के बंधन से मुक्त :-
दार्शनिक राजा पर कानून का कोई बंधन नहीं होगा। प्लेटो ने कानून की बजाय विवेक को अधिक महत्व दिया है चूकिं दार्शनिक राजा विवेकशील है। उसके आदेश ही कानून है। वह कानून से ऊपर है। प्लेटो, "किसी अच्छे चिकित्सक को इलाज के लिए चिकित्सा शास्त्र की पुस्तक से बाध्य नहीं किया जा सकता ठीक वैसे ही दार्शनिक राजा को कानून के माध्यम से बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।"
4. दार्शनिक राजा जनमत के बंधन से मुक्त:-
प्लेटो ने अपने दार्शनिक राजा को जनमत के बंधन से भी मुक्त रखा है। प्लेटो के मतानुसार अधिकांश जनता अज्ञानी तथा विवेकहीन होती है। इस जनता को ज्ञान की दिशा में ले जाने का कार्य दार्शनिक राजा का है। अतः इस कार्य हेतु यदि उसे जनमत के विरूद्ध जाकर भी शक्ति के माध्यम से कार्य करना पड़े तो यह उचित होगा क्योंकि अज्ञानी जनता स्वयं अपना हित नहीं समझती। (गुफा के कैदियों की भांति)
5. दार्शनिक राजा पर चार बंधन :-
प्लेटो ने रिपब्लिक में दार्शनिक राजा के लिये चार कर्तव्य बताकर उस पर बंधन लगाए।
1. शिक्षा व्यवस्था का संरक्षण करना।
2. न्याय व्यवस्था का संरक्षण करना।
3. राज्य के आकार का संरक्षण करना।
4. आर्थिक व्यवस्था में संतुलन बनाए रखना (गरीबी तथा अमीरी को घटने बढ़ने न देना)।

6. जनता का दार्शनिक राजा के प्रति समर्पण
प्लेटो के अनुसार दार्शनिक राजा में विवेक का गुण प्रधान होने के कारण यह ज्ञानी है। अतः अज्ञानी जनता को ज्ञान के दर्शन कराना राजा की जिम्मेदारी है। जनता को राजा के प्रति समर्पित भाव से भक्ति भाव रखना चाहिए क्योंकि स्वयं ईश्वर ने राजा को स्वर्ण से निर्मित किया है। अतः वह आम जनता से श्रेष्ठ है।
> प्लेटो "जब तक राजा दार्शनिक नहीं होंगे आदर्श राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती।"
> प्लेटो जिस प्रकार मरीज को ठीक करने के लिए डॉक्टर की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार शासन स्वरूप का ज्ञान रखने वाला दार्शनिक ही राजा बन सकता है।"
> प्लेटो "जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो वह नगर के सबसे श्रेष्ठ चिकित्सक की तलाश करता है। यहाँ तक कि अपने जूते की मरम्मत के लिए भी वह श्रेष्ठत्तम मोची की तलाश करता है। फिर राज्य के संचालन जैसा श्रेष्ठ कार्य सामान्य व्यक्त्ति द्वारा कैसे संचालित किया जा सकता है।"
फोस्टर "प्लेटो के समस्त विचारों में दार्शनिक राजा का विचार सर्वाधिक मौलिक विचार है।"
> प्लेटो ने दार्शनिक राजा की भूमिका को डॉक्टर, गडरिया तथा बुनकर जैसे रूपकों के उदाहरण से स्पष्ट किया है।

प्लेटो दार्शनिक राजा को सर्वोच्च शक्ति प्रदान करता है लेकिन सवाल यह है कि सैनिक शक्ति तथा आर्थिक शक्ति के स्वामी अन्य दोनों वर्ग उस दार्शनिक वर्ग की आज्ञाओं का पालन क्यों करेंगे जिसके पास सैनिक और आर्थिक शक्ति नहीं हैं।

> प्लेटो ने इसके लिए दो उपाय बताए हैं। उसने विरोध के स्वर को दबाने के लिए दो व्यवस्थाएं की है-

1. कला और साहित्य का अभिवेचन (Cernsorship of Art & Science):-
ऐसे विचारों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी जाएगी जो प्रचलित व्यवस्था के प्रति विरोध का भाव जगाते हो तथा ऐसी कला व साहित्य को प्रचारित किया जाएगा जो राजभक्ति का भाव पैदा करें।

2. उदात झूठ' का प्रचार (Propogation of 'Noble Lie'): -प्लेटो धातुओं और धरती से जन्में हुए लोगो के एक मिथक को उदात् / महान झूठ' के रूप में प्रचारित करने की बात कहता है। नागरिकों के मन में इस कपोल कल्पना के प्रति विश्वास जगाया जाएगा कि मानव धरती से पैदा हुआ है और उसके शरीर में विभिन्न धातु हैं। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को उनकी अलग-अलग क्षमता के अनुसार अलग-अलग तत्त्वों से बनाया है। दार्शनिक वर्ग स्वर्ण से, सैनिक वर्ग रजत से तथा उत्पादक वर्ग तांबे से निर्मित है। दार्शनिक वर्ग चूंकि स्वर्ण से बना है, इसलिए वे उच्चतर सम्मान के पात्र है। शेष दोनों वर्गों को उसके निर्देशों के अनुसार ही चलना चाहिए। 
प्लेटो के मतानुसार यह उदात झूठ' धार्मिक सामाजिक उत्सवों तथा साहित्य के माध्यम से नागरिकों की पूरी तरह हृदयगम कराया जाएगा जिससे कि उनके भक्ति भाव जाग्रत होगा तथा दार्शनिक राजा के निर्देशों को स्वभावतः स्वीकार करने लगेगें। इससे दार्शनिक राजा की पूर्ण सत्ता स्थापित हो जाएगी।

आलोचना -

1. शासन प्रक्रिया में आम आदमी की भागीदारी का निषेध
2. मतभेद और आलोचनाएँ प्रगति की सूचक
3. निरंकुश शासन
4. जनहित विरोधी
5. अलोकतांत्रिक
6. कानून की उचित स्थान नहीं
नीत्शे प्लेटो ने एक मिथक (Myth) का निर्माण मात्र राजनैतिक दमन से दर्शन की रक्षा के लिए नहीं बल्कि दर्शन को राजनैतिक प्रभाव प्रदान करने के लिए किया था।

बट्रेण्ड रसैल "प्लेटो जो नहीं समझता है वह यह है कि ऐसे मिथक, दर्शन के साथ मेल नहीं खाते और इनकी शिक्षा बुद्धि को कुन्द करती है।"

नीत्शे ने उदात झूठ के इस मिथक के आधार पर निर्मित समाज की सामाजिक विभेदीकरण के आधार पर आलोचना की।

सामाजिक विभेदीकरण -

प्लेटो के द्वारा समाज में बनाए गए तीन वर्गों में से शासक वर्ग को महत्त्वपूर्ण स्थान दिए जाने तथा उत्पादक वर्ग की उपेक्षा किए जाने को जर्मन दार्शनिक नीत्शे ने प्लेटो पर सामाजिक भेदभाव स्थापित किये जाने का आरोप लगाया है तथा इसे सामाजिक विभेदीकरण की संज्ञा दी।

> आदर्श राज्य में दार्शनिक राजा का विरोध नहीं हो सकता अतः बार्कर ने प्लेटो के दार्शनिक राजा को 'प्रबुद्ध
निरंकुशवादी / विवेकशील अधिनायकवादी' (Intellectual Tyrrany) कहा।

> एम. बी. फोस्टर ने दार्शनिक राजा की प्रभुसत्ता को 'तर्कबुद्धि की प्रभुसत्ता की संज्ञा दी।

> प्लेटो अपनी पुस्तक 'रिपब्लिक' में आदर्श राज्य का निरूपण करता है तथा आदर्श राज्य के लिए 'Kallipolis' शब्द का प्रयोग करता है।

> प्लेटो ने न्याय को आदर्श राज्य की आधारशिला तथा शिक्षा योजना एवं साम्यवाद को आधारस्तंभ के रूप में प्रस्तुत किया है।

> नागरिकों के तीन वर्ग प्लेटो अपने आदर्श राज्य में तीन वर्गों को स्थापित करता है।

• दार्शनिक वर्ग
सैनिक वर्ग
उत्पादक वर्ग
> अहस्तक्षेप का सिद्धांत तीनों वर्ग श्रम विभाजन के आधार पर अहस्तक्षेप के सिद्धांत का पालन करते हुए कार्य करेंगे। जिसके तहत कोई वर्ग किसी दूसरे वर्ग के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह राज्य श्रम विभाजन पर आधारित है।
कार्य विशिष्टीकरण का सिद्धांत तीनों वर्ग कार्य विशिष्टीकरण सिद्धांत का पालन करते हुए केवल अपना कार्य करेंगे ताकि उस कार्य में उच्च स्तर की दक्षता प्राप्त हो जाए। इस प्रकार प्रत्येक वर्ग अपने अपने कार्य में विशेषज्ञ तथा सिद्ध हस्त हो जाएगा।

> सामाजिक एकता आदर्श राज्य में तीनों वर्गों में आपस में कोई विरोध नहीं होगा बल्कि तीनों वर्ग अपने लिए निर्धारित कार्य करते हुए अन्य वर्गों के साथ इस प्रकार से समन्वय बनाए रखेंगे कि जिससे उनके बीच सामाजिक एकता बनी रहेगी।

आदर्श राज्य

> शिक्षा आदर्श राज्य नियंत्रित शिक्षा व्यवस्था होगी। प्लेटो का मानना है कि न्याय आदर्श राज्य का मूल तत्व है। न्याय की स्थापना करने हेतु सकारात्मक साधन के रूप में शिक्षा को प्लेटो विशेष महत्व देता है।

शिक्षा
साम्यवाद
न्याय

> साम्यवादी व्यवस्था न्याय की स्थापना करने के भौतिकवादी साधन के रूप में आदर्श राज्य में साम्यवादी व्यवस्था लागू होगी। जिसके अन्तर्गत संरक्षक वर्ग के लिए सम्पत्ति तथा परिवार विषयक साम्यवाद लागू होगा ताकि इस वर्ग को आर्थिक लोभ और पारिवारिक मोह से दूर कर उन्हे पूर्णतः शासन संचालन तथा सैनिक कार्यों में रत किया जा सकें।

> स्त्री-पुरुष समानता प्लेटो का आदर्श राज्य लैंगिक आधार पर समतामूलक राज्य होगा जिसमें स्त्री व पुरुषों में समानता होगी। स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार होंगें तथा स्त्रियों भी पुरुषों के समान शासन संचालन तथा रक्षा संबंधी कार्य करेगी।
> दार्शनिक राजा आदर्श राज्य में दार्शनिक राजा का शासन होगा। दार्शनिक राजा के आदेश ही कानून होगे। यह कानूनों से उपर होगा अर्थात् आदर्श राज्य में कानून का नहीं बल्कि विवेक का शासन होगा जिसमें संयम की सुरक्षा, साहस द्वारा की जाएगी।
> नेटलशिप रिपब्लिक में वह (प्लेटो) अपने आदर्श को किंचित मात्र भी न्यून नहीं करता, उसे केवल इस बात से संतोष है कि वह राज्य को एक आदर्श रूप में प्रदर्शित कर रहा है।"

> सेबाइन "आदर्श राज्य प्लेटो की सर्वाधिक मौलिक खोज है।"
> कार्ल पॉपर ने प्लेटो के आदर्श राज्य को बंद प्रणाली' की संज्ञा दी है।
> हैकर "प्लेटोवादी आदर्श राज्य की विशेषताएं थी वर्ग, साम्यवाद, नागरिकता, नियंत्रण, संतोष और सहमति"।

#प्लेटो का न्याय सिद्धांत Notes
#प्लेटो का साम्यवाद सिद्धांत PDF
प्लेटो की शिक्षा योजना क्या है?
प्लेटो के दार्शनिक राजा सिद्धांत का विचार था
प्लेटो ने शिक्षा पर रिपब्लिक पुस्तक लिखी थी
प्लेटो की पुस्तकों के नाम
Plato,was an ancient Greek philosopher of the Classical period who is considered a foundational thinker in Western philosophy 

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