टी.एच. ग्रीन : राजनीतिक विचारकT.H. Green : Political Theorist
टी.एच. ग्रीन : राजनीतिक विचारक
टी.एच. ग्रीन (Thomas Hill Green, 1836-1882) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे। वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे और ब्रिटिश आदर्शवाद (British Idealism) के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। ग्रीन के राजनीतिक विचारों ने आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) को गहराई से प्रभावित किया
टीएच ग्रीन/T.H. Green
“मानव चेतना स्वतंत्रता की परिकल्पना करती है; स्वतंत्रता अधिकारों की मांग करती है और अधिकार राज्य की मांग करते हैं।”/”Human consciousness conceives freedom; freedom demands rights and rights demand the state.” – T.H. Green
टी. एच. ग्रीन (1836–1882) एक ब्रिटिश आदर्शवादी विचारक थे, जिन्होंने सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive Liberty) के सिद्धांत को स्थापित किया।उनका मानना था कि:
मानव चेतना स्वयं स्वतंत्रता की मांग करती है,
यह स्वतंत्रता अधिकारों की आवश्यकता उत्पन्न करती है,
और अधिकारों को संरक्षित करने हेतु राज्य की आवश्यकता होती है।
ग्रीन का तर्कव्यक्ति का नैतिक विकास तभी संभव है जब उसे समाज में स्वतंत्र रूप से अपने विवेक और तर्क के अनुसार कार्य करने का अवसर मिले, और इसके लिए राज्य की भूमिका आवश्यक है।
टी.एच. ग्रीन (T.H. Green) के अनुसार, स्वतंत्रता (Liberty) का अर्थ सिर्फ बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और नैतिक विकास है, सच्ची स्वतंत्रता वह है जो व्यक्ति को “अच्छे” कार्यों के लिए सक्षम बनाती है।
नैतिक स्वतंत्रता की अवधारणा
ग्रीन के अनुसार इच्छा की स्वतन्त्रता व्यक्ति के नैतिक स्वभाव से उत्पन्न होती है।
“अच्छे कार्य” की पहचान व्यक्ति के विवेक और तर्क से होती है।
राज्य का उद्देश्य नैतिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।
राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा तभी कर सकता है जब वह सामूहिक भलाई सुनिश्चित करे।
यदि लोग स्वयं नैतिक जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते, तो राज्य को हस्तक्षेप करना उचित है।
कानून का उद्देश्य बाध्यता नहीं, बल्कि सहायक मित्र के रूप में कार्य करना है।
अधिकार केवल कानूनी मान्यता नहीं, बल्कि नैतिक चेतना से उत्पन्न होते हैं।
सभी अधिकार सामाजिक रूप से व्युत्पन्न हैं – “प्राकृतिक अधिकारों” की ग्रीन ने आलोचना की हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
टी. एच. ग्रीन नैतिक स्वतंत्रता (Moral Freedom) के सिद्धांत के समर्थक थे।
उन्होंने नकारात्मक स्वतंत्रता (बाधाओं से मुक्ति) के विपरीत सकारात्मक स्वतंत्रता (आत्म-विकास और तर्क के अनुसार कार्य) की वकालत की।
उनके अनुसार, राज्य व्यक्ति की नैतिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने का एक माध्यम है, बाधा नहीं।
आदर्शवादी दर्शन और मानव चेतना
ग्रीन का दर्शन ब्रिटिश आदर्शवाद पर आधारित था, जहाँ मन, चेतना और कारण को अनुभवजन्य यथार्थता से ऊपर माना गया।
वे मानते थे कि मानव चेतना प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र, तार्किक और सार्वभौमिक नैतिक सत्य को समझने में सक्षम है।
चेतना के आदर्श के रूप में स्वतंत्रता
मानव चेतना अपने स्वभाव से स्वतंत्रता के सिद्धांत का समर्थन करती है।
स्वतंत्रता, चेतना और तार्किकता की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए मूलभूत आवश्यकता है।
अधिकारों की मांग
स्वतंत्रता केवल एक शर्त है, पर मानव विकास के लिए पर्याप्त नहीं।
इसलिए स्वतंत्रता को व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता और सुरक्षा की मांग करनी होती है (जैसे – जीवन, संपत्ति, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता)।
राज्य की भूमिका
राज्य या राजनीतिक संस्था की आवश्यकता व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और उपयोग के लिए है।
राज्य को अधिकारों की रक्षा के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए, ताकि मानव उत्कर्ष (human flourishing) संभव हो सके।
स्थानिक स्वशासन (Local Self-Governance) को प्राथमिकता देते हैं।
केवल आवश्यक होने पर राष्ट्रीय राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए।
नकारात्मक बनाम सकारात्मक स्वतंत्रता
नकारात्मक स्वतंत्रता: बाहरी बाधाओं से मुक्ति (जैसे बोलने की आज़ादी)।
सकारात्मक स्वतंत्रता: व्यक्ति की अपनी क्षमताओं के अनुसार जीवन को दिशा देने की शक्ति।
ग्रीन का आदर्शवाद सिद्धांत, जिसे ब्रिटिश आदर्शवाद के रूप में भी जाना जाता है, एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जो राज्य, व्यक्ति और नैतिकता के बीच संबंधों पर केंद्रित है। ग्रीन का मानना था कि राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों को एक ऐसा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक वातावरण प्रदान करना है जिसमें वे अपने विवेक के अनुसार कार्य कर सकें। हालांकि, राज्य को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यक्तियों की स्वतंत्रता का दुरुपयोग न हो, और स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए उचित उपाय किए जाएं।
ग्रीन के आदर्शवाद के मुख्य सिद्धांत इस प्रकार हैं:
राज्य का उद्देश्य:
राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों को एक ऐसा वातावरण प्रदान करना है जिसमें वे अपने नैतिक और बौद्धिक विकास को प्राप्त कर सकें।
स्वतंत्रता:
ग्रीन के अनुसार, स्वतंत्रता का अर्थ केवल अपनी इच्छा अनुसार कार्य करना नहीं है, बल्कि यह अपनी सच्ची अच्छाई के साथ खुद को पहचानने की क्षमता है। ग्रीन ने स्वतंत्रता (Liberty) की पारंपरिक नकारात्मक व्याख्या (Negative Liberty) को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि केवल बाहरी बाधाओं की अनुपस्थिति ही स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि सच्ची स्वतंत्रता वह है जिसमें व्यक्ति अपने सर्वोत्तम विकास के लिए समाज के संसाधनों का उपयोग कर सके। इसे उन्होंने 'सकारात्मक स्वतंत्रता' कहा।
अधिकार:
व्यक्तियों को अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि अधिकार उन्हें अपने नैतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने और सामान्य भलाई में योगदान करने में सक्षम बनाते हैं।
राज्य और व्यक्ति:
ग्रीन का मानना था कि राज्य व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक है, लेकिन राज्य को व्यक्तियों की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
नैतिकता:
ग्रीन के अनुसार, नैतिकता व्यक्ति के भीतर से आती है, और राज्य को व्यक्तियों को नैतिक रूप से विकसित होने में मदद करनी चाहिए।
राजनीतिक दायित्व:
ग्रीन का मानना था कि व्यक्ति को राज्य के प्रति राजनीतिक दायित्व है, लेकिन यह दायित्व केवल तभी मान्य है जब राज्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता और नैतिक विकास का समर्थन करता है।
ग्रीन के आदर्शवाद ने उदारवाद और व्यक्तिवाद के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की, यह मानते हुए कि राज्य व्यक्तियों के नैतिक विकास के लिए आवश्यक है, लेकिन राज्य को व्यक्तियों की स्वतंत्रता का भी सम्मान करना चाहिए।
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