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व्यवहारवाद का अर्थ विकास महत्व आलोचना कार्यक्षेत्र और प्रमुख विद्वान





व्यवहारवाद/ प्रत्यक्षवाद/ अनुभववाद /आधुनिक दृष्टिकोण


#Behaviourism




व्यवहारवाद एक ऐसी विचारधारा या दृष्टिकोण है जिसने राजनीति शास्त्र को राजनीति का विज्ञान बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। व्यवहारवाद का जन्म परम्परागत राजनीति शास्त्र की उपलब्धियों के प्रति असंतोष का परिणाम है और राजनीति शास्त्र को आनुभाविक (Empirical) बनाने के लिए प्रयासरत् है। इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी कहा जा सकता है क्योंकि इसके जन्म के साथ ही राजनीति शास्त्र में वैज्ञानिक विधियों का विकास हुआ है 




व्यवहारवादी प्राथमिक आंकड़ों पर बल देते हैं तथा तथ्य और वैज्ञानिकता को विशेष महत्वपूर्ण मानते हैं राजनीतिक शास्त्र में व्यवहारवाद का प्रभाव द्वितीय  विश्व युद्ध के बाद दिखाई देते हैं परंतु इसके कुछ लक्षण पहले दिखाई देने शुरू हो जाते हैं।



ग्राम वालस में 1897 ईस्वी में अपनी पुस्तक द ह्यूमन नेचर इन पॉलिटिक्स ने मानव प्रकृति का अध्ययन किया।





1908 में ऑर्थर बेंटले ने द प्रोसेस ऑफ गोरमेंट में दबाव समूह का अध्ययन किया और राजनीति को मृत विज्ञान बताया।





1924 में जेम्स लार्ड ब्राइस ने मॉडर्न डेमोक्रेसी लिखा कि हमें केवल तथ्य तथ्य का सरोकार रखना चाहिए।





1925 में चार्ल्स मेरियम ने न्यू आस्पेक्ट्स ऑफ पॉलिटिकल साइंस में तथ्य व वैज्ञानिकता पर बल दिया और शिकागो विश्वविद्यालय को व्यवहारवादियों का केंद्र बिंदु बनाने का प्रयास किया





व्यवहारवादी त्रिकौण- रोबर्ट डहल, चार्ल्स मेरियम डेविड ईस्टन तीनों शिकागो विश्वविद्यालय से संबंधित है।



फोर्ड ,कारनेगी, APSA जैसी संस्थाओं ने व्यवहारवाद(Behaviourism )को बढ़ावा देकर विज्ञान वाद पर बल दिया।




APSA -अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन इसकी स्थापना 1903 में की गई।








व्यवहारवाद (Behaviourism)के उदय के कारण



1-द्वितीय विश्वयुद्ध से पुर्व के अनुभव




2-परंपरागत उपागम के प्रति असंतोष-

क्रिक पैटिक इस असंतोष ने क्षोभ को जन्म दिया और क्षोभ के फलस्वरुप व्यवहारवाद आया।


3-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीतिक शास्त्रियों की उपेक्षा हुई क्योंकि परंपरावादी होने के कारण वे द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका की सहायता नहीं कर पाए।



4-विभिन्न समाज विज्ञानों से प्रेरणा


रॉबर्ट डहल-व्यवहारवाद एक ऐसा आंदोलन है जिनका उद्देश्य राजनीति के अध्ययन को आधुनिक मनोविज्ञान समाजशास्त्र अर्थशास्त्र के विकसित हुए सिद्धांतों पद्धतियों खोजो को दृष्टिकोणों के निकट संपर्क में लाना।

5-वित्तीय सहायता -संयुक्त राज्य अमेरिका में राॅकफेलर व फोर्ड जैसी संस्थाओं ने शोध के लिए विशेष सहायता की जिसके कारण वैज्ञानिक शोध को गति मिली।

6-नए राज्यों का उदय-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्वतंत्र हुए राज्यों को राजनीतिक समस्याओं व चुनौतियों के अध्ययन परंपरागत पद्धति से संभव नहीं था।







व्यवहारवाद( Behaviourism) की परिभाषा



डेविड ईस्टन -व्यवहारवाद में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है विशेषकर ऐसे मानव व्यवहार का जिसका मापन पर्यवेक्षक  व सत्यापन हो सके।




लॉसवेल ने  कहा है-’वह राजनीति जो क्या, कब और कैसे प्राप्त करती है-व्यवहारवाद से संबंधित है।’’ 


डेविड ट्रमैन ने कहा कि-’’राजनीति विज्ञान में शोद्य को व्यवस्थित बनाना तथा आनुभाविक प्रणालियों का विकास ही व्यवहारवाद है।’’ 




प्रमुख व्यवहारवादी विद्वान-



डेविड ईस्टन ,चार्ल्स मेरियम, रॉबर्ट डहल, डेविड एप्टर, आमंड, पावेल ,लासवेल ,लूसियन पाई ,पैट्रिक, वीरसिंगम, बारबरा स्मिथ, पी वी यंग,  वी ओपी जूनियर, हीज यूलाऊ, राजनीतिक विकास, राजनीतिक संस्कृति ,राजनीतिक आधुनिकरण ,राजनीतिक समाजीकरण के सभी समर्थक विद्वान व्यवहारवादी हैं।








व्यवहारवाद का स्वरूप



डेविड ईस्टन- व्यवहारवाद बौद्धिक प्रवृत्तियों  व ठोस शैक्षणिक आंदोलन है।




रोबर्ट डहल- व्यवहारवाद को एक मनोभावों व मनोवृति बताया और व्यवहारवाद को परंपरागत उपागम की उपलब्धियों के प्रति असंतोष की तीव्र भावना बताया।


डेविड ट्रूमैन-व्यवहारवाद से तात्पर्य दो विषय क्रमबंध अनुसंधान और अनुभवी वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग से है।





आमण्ड व पावेल-राजनीतिक विज्ञान में अनुभववाद और यथार्थवाद के आधार पर अध्ययन किया जाता है वही व्यवहारवाद है।





व्यवहारवाद की विशेषताएं

डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक द करंट मीनिंग ऑफ बिहेवियरलिज्म( The Current Meaning of Behaviourism)1962 मे व्यवहारवाद की 8 विशेषताएं बताई है -






1-नियमितताएं-



व्यवहारवादियों का कहना है कि मानव व्यवहार में नियमितताएं पाई जाती हैं इसलिए वह मानव व्यवहार के बारे में पूर्वानुमान लगाकर भविष्यवाणी की जा सकती है जैसे एग्जिट पोल ओपिनियन पोल का प्रयोग।





2सत्यापन-
मानव व्यवहार के नियमितताओं के आधार पर आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं और उनकी पुनः जांच हो सकती है।




3-तकनीकी/ अनुप्रयोग /अनुरूपता-
व्यवहारवादी वैज्ञानिक तकनीकी पर विशेष बल देते हैं जैसे कंप्यूटरीकरण ,सारणीकरण ,सर्वेक्षण ,साक्षात्कार।








4-प्रमाणीकरण-
इसका तात्पर्य है कि आंकड़ों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जाए कि मापन योग्य बन सके।







5 तथ्यों व मूल्यों में भेद-
व्यवहारवादियों का कहना है कि हमें मूल्यों को तथ्य से अलग करना चाहिए मूल्यों का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता मूल्यों को कभी ईश्वर के साथ जोड़ा जाता है तो कभी नैतिकता के साथ जोड़ा जाता है।






6-क्रमबदीकरण /व्यवस्थाबंदीकरण-
शोध निर्माण व सिद्धांत निर्माण में सामजस्य होना चाहिए इसका तात्पर्य यह है कि हमें आंकड़ों को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए ताकि सिद्धांत का निर्माण हो सके।







7-शुद्ध विज्ञान
व्यवहारवादियों का कहना है कि भौतिक विज्ञान की भांति राजनीतिक विज्ञान की एक शुद्ध विज्ञान है और प्राकृतिक विज्ञान की भांति परिष्कृत पद्धति पर बल देती है।







8-समग्रता/ अन्त: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण/ एकीकरण-

अन्त: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण का तात्पर्य यह है कि दूसरे समाज शास्त्रों के गुणों को राजनीतिक शास्त्र में अपनाना इस आधार पर राजनीतिक विज्ञान में राजनीतिक विकास, राजनीतिक संस्कृति ,राजनीतिक समाजीकरण जैसी अवधारणा को अपनाया।






व्यवहारवाद का अध्ययन बिंदु तथा कार्य क्षेत्र




प्रमुख व्यवहारवादी विद्वान हींज युलाऊ व्यवहारवादी दृष्टिकोण के कुछ कार्यक्षेत्र निम्न बताएं



1-व्यवहारवादी दृष्टिकोण में व्यक्ति और व्यक्ति के संबंधों का अध्ययन किया जाता है



2-व्यवहारवादी दृष्टिकोण में समूह , समुदाय और संगठन के लघु तथा वृहत रूप का अध्ययन व उनके पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है।



3-अपने से अधिक व्यापक व्यवस्थाओं के संबंध का भी अध्ययन किया जाता है



4-व्यवहारवादी दृष्टिकोण में राजनीतिक व्यवस्थाओं व उपव्यवस्थाओं के पारस्परिक संबंध जैसे राजनीतिक दल ,दबाव समूह, कार्यपालिका का अध्ययन किया जाता है।




5-विभिन्न अवधारणाओं जैसे निर्णय समूह संरचना शक्ति नियंत्रण आदि का अध्ययन किया जाता है



6-राजनीतिक दृष्टिकोण और राजनीतिक सिद्धांत का भी अध्ययन किया जाता है



7-व्यवहारवादी दृष्टिकोण के कार्य क्षेत्र में नीतियां नीति निर्माण और प्रक्रिया आती है 



8-व्यवहारवादी दृष्टिकोण तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन करता है



9-व्यवहारवादी दृष्टिकोण  प्रक्रिया, नवीन उपकरण व नवीन कार्यविधि का अध्ययन किया जाता है।






व्यवहारवाद की आलोचना





1*मानव व्यवहार में नियमितताएं नहीं पाई जाती मानव मशीन नहीं है वह भावुक प्राणी है।



2*व्यवहारवादी अत्यधिक तकनीकीवादी हैं


3*मूल्यों के महत्व की उपेक्षा करते हैं

4*राजनीतिक विज्ञान हेतु मानविकी विज्ञान है शुद्ध विज्ञान नहीं


5-यह अत्यधिक खर्चीली पद्धति है


6-इसमें निष्पक्ष अध्ययन संभव नहीं है



7-प्रमाणीकरण की  समस्या

सिबली- राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु मनुष्य की गतिविधियां है जिसका परिमापन संभव नहीं है


8-व्यवहारवादी अत्यधिक जटिल शब्दों का प्रयोग करें शब्दाडंबर बन गए


9-अध्ययन हेतु अन्य पद्धतियों की उपेक्षा अनुचित है



10सूक्ष्म अध्ययन को वृहत स्तर पर लागू करना कठिन कार्य है।


11-व्यवहारवादी बुद्धिजीवियों की तटस्थता पर बल देते हैं


12-नव परंपरावादी व्यवहारवादियों की कठोर आलोचना करते हैं इनमें प्रमुख विद्वान माइकल आकसाट, लिओ स्ट्रॉस ,डांटे जर्मीनों  हैं।



व्यवहारवाद का महत्व-



व्यवहारवाद ने सर्वप्रथम राजनीतिक शास्त्र का वैज्ञानिकरण किया।

व्यवहारवाद के फलस्वरूप ही राजनीति शास्त्र में राजनीतिक विकास, राजनीतिक समाजीकरण ,राजनीतिक आधुनिकरण राजनीतिक संस्कृति जैसी अवधारणाएं आयी।

व्यवहारवाद के फलस्वरूप ही एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल जैसी अवधारणा सामने आई।






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